Thursday 19 May 2022 11:56 AM IST : By Pooja Bhatt

शांति से भरा शेरों का घर गिर

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जंगल सफारी के शौकीन लोगों को अपना यह शौक तब तक पूरा होता नहीं दिखता, जब तक कि वे जंगल के राजा शेर को ना देख लें। यों भी अगर आप किसी जंगल सफारी पर जाएं और शेर के दीदार ना हों, तो फिर मायूस हो कर ही घर लौटना होगा। हालांकि गिर की सैर करने पर आपको मायूस नहीं होना पड़ेगा। बहुत मुमकिन है कि यहां जाने पर जंगल का राजा अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ टहलता हुआ आपको दिख जाए। गर्व से सिर उठाए, सीना चौड़ा करके, सधे कदमों से चलते हुए गिर के राजा साहब को देखने वाले ठिठक कर रुक जाते हैं। कैमरे पर उंगलियां थम जाती हैं, और पर्यटक इस सोच में पड़ जाते हैं कि कहीं इस शाही सवारी की फोटो खींचने से उनकी शान में गुस्ताखी तो नहीं हो जाएगी।

जंगल सफारी का आंखों देखा हाल

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गिर पहुंचने पर हमने 2 जंगल सफारी बुक कीं। एक शाम की और दूसरी सुबह 6 बजे की। सर्दी की शाम में तैयार हो कर हम रूट 10 से होते हुए जंगल की तरफ बढ़े। हवा में तीखापन था और सूरज भी हमारे साथ घने जंगल में छुपने के लिए बढ़ने लगा था। शाम के धुंधलके और रात के छिटपुटे की रोशनी में दिखते-छुपते हम भी आगे बढ़ रहे थे। शुरुआत में सबसे पहले हमें सुअरों का झुंड दिखायी दिया, लेकिन हमारी नजरें जिसे ढूंढ़ रही थीं, वह इतनी आसानी से कहां नजर आने वाला था। 

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खैर, जंगल में पेड़ों के घने झुरमुट और घिरते अंधेरे के बीच हम आगे जंगल के काफी भीतर तक आ गए थे। अब हमारा सामना हुआ हिरणों और सांभर हिरणों के झुंड से। गिर के जंगलों के ये बाशिंदे अतिथि सत्कार की पुरानी परंपरा में विश्वास करने वाले हैं, इसलिए इन्होंने और जंगल के सभी जानवरों और पक्षियों ने पूरे सफर में हमारा दिल बहला कर रखा। जंगल में घूमते-घूमते 2 घंटे बीत चुके थे,लेकिन शेर देखने में नाकाम ही रहे थे। हम यह उम्मीद छोड़ ही चुके थे कि आज जंगल का यह वीआईपी निवासी हमें दिखायी देगा। लेकिन तभी हमें खबर मिली कि पास ही कहीं 2 शेर अपनी झलक दिखाने के लिए हमारा इंतजार कर रहे हैं। हमारे ड्राइवर अजय भाई की मदद से जल्द ही हमने वह जगह ढूंढ़ ली, जहां 2 शेर बैठे आराम फरमा रहे थे। हमें लगा कि मानो गिर आना सार्थक हो गया। 

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हालांकि हमारा दिल अभी तक नहीं भरा था और अब हम सब यह सोचने लगे थे कि अगली सफारी में कौन सा सरप्राइज हमारा इंतजार कर रहा होगा। रात के साथ ठंड भी बढ़ती जा रही थी। तापमान लगभग 2 डिग्री तक पहुंच गया था, फिर आंखों से नींद कोसों दूर थी। होटल के लॉन में पर्यटकों के लिए बॉनफायर का इंतजाम किया गया था। कुछ देर लॉन में बैठ कर हम सब अपने-अपने कमरों में सोने चले गए। सुबह जल्दी उठना था, लेकिन ठंड के दिनों में जल्दी बिस्तर छोड़ना थोड़ा मुश्किल लग रहा था। सुबह 6 बजे तक हम सब तैयार हो चुके थे। 

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रात का धुंधलका छंट चुका था और गुलाबी सुबह दस्तक देने लगी थी। सूरज अभी पूरी तरह निकला भी नहीं था कि हम जंगल के बीच पहुंच चुके थे। जंगल में ठंडी हवाएं हमारा इंतजार कर रही थीं। दांत किटकिटा रहे थे और हाथ ठंडे हो कर बर्फ की तरह जम रहे थे। अगर कुछ ठंडा नहीं हो रहा था, तो वह था हमारा जोश और उत्साह। चूंकि अभी तक रोशनी जंगल में दाखिल नहीं हुई थी, इसलिए हमें सबसे पहले पेड़ में छुपे उल्लुओं की एक जोड़ी नजर आयी। उनके साथ दो छोटे बच्चों को देख कर मन उत्साह से भर गया। हमारे ड्राइवर ने उल्लुओं की आवाज की रेकाॅर्डिंग चला दी। हैरानी की बात थी कि पेड़ पर बैठे उल्लुओं ने भी वे आवाजें सुन कर बोलना शुरू कर दिया। उल्लुओं की इस बातचीत का आनंद लेने के लिए हम कुछ देर वहीं रुक गए। हमारे ड्राइवर ने बातया कि उल्लुओं को अलग-अलग तरह की आवाजें निकालने के लिए ट्रेंड किया जा सकता है। आगे बढ़ने पर जो नजारा हमें दिखायी दिया, वह तो कल्पना से भी परे था। तीन शेरनियां 4 बच्चों के साथ शिकार पर निकली हुई थीं। जब तक हम वहां पहुंचते, वह पूरा झुंड मिल कर अपनी दावत का इंतजाम कर चुका था। शेरनियां खा-पी कर सुस्ता रही थीं और बच्चे मरी हुई जंगली भैंस के ऊपर चढ़ कर उछल-कूद मचा रहे थे। 

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कुछ देर बाद मांओं ने अपने बच्चों को घर वापस लौटने के लिए धकेलना शुरू किया, पर बच्चे कहां मानने वाले थे, वे वहां से हिलने को तैयार ही नहीं थे। उन्हें तो मरी हुई भैंस के रूप में एक खिलौना मिला हुआ था। किसी आम मां की तरह वे शेरनियां कभी बच्चों को गरियातीं, तो कभी बांहों में भर कर दूर धकेलने की नाकाम कोशिश कर रही थीं। इंसान हो या जानवर, मां और बच्चों का यह खेल आम सी बात है, पर वह पल हमारे लिए बहुत खास बन चुका था। हम ठगे से खड़े हुए यह नजारा देख रहे थे कि शेरनियों ने वापसी का रुख कर लिया था। हम फटाफट तसवीरें लेने में जुट गए। मॉर्निंग सफारी का हमारा सफर बेहद रोमांचक और मजेदार रहा। हम भी वापस लौट तो आए थे, पर दिल अभी भी जंगल की उस जादुई दुनिया में रमा हुआ था।

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जंगल सफारी के अलावा आप सोमनाथ मंदिर और दीव आइलैंड भी जा सकते हैं। जंगल सफारी के दिन में 3 ग्रुप्स जाते हैं- सुबह 6-9, दोपहर 12-3 और शाम को 3-6 बजे तक। इनमें सबसे बेहतरीन सफर सुबह का रहता है। कोशिश करें कि एक बार सुबह की सफारी में जरूर जाएं। इन तीन घंटों में आप ड्राइवर या गाइड की इजाजत के बिना ना तो जीप से उतर सकते हैं और ना ही कहीं पर जीप रुकवा सकते हैं। जंगल में प्लास्टिक की पानी की बोतलें भी ले जाना मना है, इसलिए शुरुआत में ही अपने गाइड या ड्राइवर से पूछ लें कि उसके पास पर्याप्त पानी है कि नहीं। इसके अलावा देवलिया पार्क सफारी में 55 मिनट का रूट भी है। सफारी की बुकिंग आप ऑनलाइन भी करवा सकते हैं। हमें यहां पर सफारी के लिए प्रति व्यक्ति 250 रुपए देने पड़े। ध्यान रहे कि हर व्यक्ति का आईडी प्रूफ हमेशा साथ रहे। जाने से पहले कैमरा फीस और गाइड फीस के बारे में भी पूरी जानकारी ले लें। 

कैसे पहुंचें

गिर पहुंचने के लिए आप हवाई जहाज से राजकोट पहुंचें और फिर 164 किलोमीटर का सफर तय करके गिर पहुंचें। यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जूनागढ़ है, जो 74 कि.मी. की दूरी पर है।