2024
वनिता के जुलाई, 2025 अंक में पढ़ें स्किन और हेअर हेल्थ पर विशेष जानकारी
July-2025
एक बार की बात है या वंस अपॉन ए टाइम... बेडटाइम स्टोरीज की शुरुआत अकसर इन्हीं वाक्यों से शुरू होती थी। कहानियों की कुछ पंक्तियां तो ताउम्र के लिए जेहन में अंकित हो गयी हैं। जैसे ...और परी ने अपनी जादू की छड़ी घुमायी, घोड़े पर उड़ता सजीला राजकुमार आया और राजकुमारी को कैद से छुड़ा ले गया... खरगोश दौड़
घर में शिशु हों, तो उन्हें मच्छरों से सुरक्षित रखने के लिए कई उपाय आजमाए जा सकते हैं। इस बारे में जानकारी दे रहे हैं कीको के एक्सपर्ट्स, जानिए कैसे चुनें अपने नन्हे मुन्नों केलिए बेस्ट मॉस्किटो रिपेलेंट्स-
नवजात शिशु अपने पेरेंट्स के लिए ढेर सी खुशियां और जिम्मेदारियां लेकर आता है। जैसे-जैसे मौसम बदलता है, वैसे-वैसे आपके नन्हे-मुन्नों की ज़रूरतें भी बदलती हैं। बदलते मौसम में नयी मांओं के लिए जरूरी है कि वे अपने बेबी की हेल्थ के लिए पहले से तैयारी करके रखें।
हर बच्चा अपने में खास होता है, लेकिन कई बार किसी शारीरिक या दूसरी समस्याओं के कारण ये स्पेशल चाइल्ड बन जाते हैं। ऐसे बच्चे के पेरेंट्स कैसे उनकी मदद करें, बता रहे हैं एक्सपर्ट-
छोटे बच्चों से जुड़ी कई ऐसी समस्याएं होती हैं, जिन पर समय रहते ध्यान ना देने पर वे गंभीर हो जाती हैं। जन्म के शुरुआती 28 दिनों में होने वाली समस्याएं डॉक्टरी सलाह से ठीक हो सकती हैं। इस दौरान बच्चों में कई तरह की ऐसी समस्याएं होती हैं, जिन पर ध्यान ना दिया जाए, तो ये गंभीर समस्या में बदल सकती हैं।
बच्चे की त्वचा की देखभाल करते समय अलग-अलग मौसम में नई चिंताएं पैदा होती हैं। सर्दियों में हमें अपने बच्चे की त्वचा की देखभाल में बदलाव करना ज़रूरी है। इस मौसम में हवा ठंडी और शुष्क होती है, और कम नमी के कारण त्वचा शुष्क हो जाती है। छोटे बच्चों की त्वचा बड़ों की त्वचा की तुलना में अधिक नाजुक और संवेदनशील होती है, इसलिए छोटे बच्चों की त्वचा की नमी कम होने का खतरा सबसे अधिक होता है।
मोबाइल फोन, टैब, कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की स्क्रीन अत्यधिक ऊर्जा वाली कम वेवलेंथ की नीली और बैंगनी रोशनी उत्पन्न करती है। यह रोशनी दृष्टि को प्रभावित करती है। इतना ही नहीं, यह आंखों को समय से पहले बूढ़ा बनाने का कारण भी बनती है। छोटी उम्र से ही बच्चों की आंखों पर अत्यधिक दबाव पड़ने से किशोरावस्था आते-आते इनकी आंखों पर बहुत ही बुरा असर पड़ सकता है।
बच्चे को आप लाड़-प्यार से पालते हैं, लेकिन जब आप उसे प्री स्कूल भेजते हैं, तब आप उसके साथ नहीं होते। यह उनके जीवन का बड़ा बदलाव है।
कोविड की दूसरी लहर ने बच्चों को भी अपनी चपेट में ले रखा है। बच्चों में कोरोना के हल्के से लेकर गंभीर तक लक्षण दिखायी दे रहे हैं। कुछ केसेज में बच्चों को भी हॉस्पिटल में एडमिट करवाने की नौबत आ रही है।
बोस्टन के चिल्ड्रन हॉस्पिटल में सेंटर फॉर हॉलिस्टिक पीडियाट्रिक एजुकेशन एंड रिसर्च की डाइरेक्टर कैथी केंपर का मानना है कि बच्चों के सोने का सीधा संबंध उनकी इम्युनिटी से है। एक नवजात शिशु को 16 घंटे, नन्हे-मुन्ने को 11 से 14 घंटे और प्री-स्कूल जाने वाले बच्चों को 10 से 13 घंटे रोज सोना चाहिए।
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