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घर में नन्हे मेहमान के आने की खुशी की कोई तुलना ही नहीं है। हालांकि यह मेहमान खुशियों के साथ पेरेंट्स के लिए नए अनुभव भी ले कर आता है। कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी हॉस्पिटल में नियोनैटोलॉजिस्ट डॉ. संजीव वेंगालथ का कहना है कि शुरुआत के 28 दिन किसी भी मां के लिए बहुत चैलेंज से भरे हो सकते हैं। इस दौरान बच्चों में कई तरह की ऐसी समस्याएं होती हैं, जिन पर ध्यान ना दिया जाए, तो ये गंभीर समस्या में बदल सकती हैं। जन्म के शुरुआती 28 दिनों में होने वाली समस्याएं डॉक्टरी सलाह से ठीक हो सकती हैं। बच्चों में इस दौरान होनेवाली कुछ आम समस्याएं हैं-

ओरल थ्रश

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यह एक तरह का फंगल इन्फेक्शन है, जो कैंडिडा नाम के यीस्ट से होता है। इसकी वजह से बच्चा बहुत चिड़चिड़ा हो जाता है। उसे दूध पीने में भी तकलीफ का सामना करना पड़ता है। इस इन्फेक्शन में बच्चे की जीभ पर सफेद कोटिंग जम जाती है। अगर इसका समय से इलाज ना किया जाए, तो जीभ से खून आना शुरू हो जाता है। 

क्या है वजहः जब मां या बच्चे को किसी तरह की एंटीबायोटिक दी जा रही हो, तो यह बच्चे में ओरल थ्रश की वजह बन सकती है। इसके अलावा मां के ब्रेस्ट की सफाई ना होने के कारण होने वाला फंगल इन्फेक्शन, बोतल से दूध पिलाना, बच्चे को चूसने वाला निपल देना,फॉर्मूला मिल्क को सफाई से ना बनाना आदि ओरल थ्रश की वजह हो सकते हैं।

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क्या है इलाजः बच्चे के मुंह की साफ-सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। इससे जीभ पर कोटिंग नहीं जमा होती। अगर मां को किसी तरह का इन्फेक्शन हो, तो उसका इलाज करवाएं। कोशिश करें कि बच्चों को बोतल से और फॉर्मूला मिल्क ना पिलाएं। अगर किसी वजह से बोतल देनी बहुत जरूरी हो, तो उसकी साफ-सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। कई बार डॉक्टर निस्टैटिन या माइकोनैजोल जैल भी लगाने के लिए देते हैं। 

हर्निया

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हर्निया भी बच्चों की बेहद आम समस्या है, लेकिन इसके बारे में बहुत से पेरेंट्स को पता ही नहीं होता। दरअसल, बच्चों की आंत जब पेट के किसी कमजोर हिस्से में फंस कर उसे बाहर की तरफ पुश करने लगती है, तो उस स्थिति को हर्निया कहा जाता है। यह दो तरह का होता है- पेट में, जिसे अंबिलिकल हर्निया कहा जाता है और प्राइवेट पार्ट में, जिसे इंजिनल हर्निया कहा जाता है। 

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क्या है वजहः प्रीमैच्योर बच्चे, जिनकी फैमिली में हर्निया की हिस्ट्री हो, ऐसे लड़के, जिनके प्राइवेट पार्ट ठीक से विकसित ना हुए हों, हिप बोन में समस्या हो, यूरिनरी या रिप्रोडक्शन ऑर्गन में कोई समस्या हो आदि। अंबिलिकल हर्निया की वजह से बच्चों की नाभि सूज कर बढ़ जाती है और इंजिनल हर्निया में बच्चों का प्राइवेट पार्ट फूल कर मोटा होता है। ज्यादातर केसेज में यह अपने आप ठीक हो जाता है।

क्या है इलाजः इसका इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि यह हर्निया कितना बढ़ा हुआ है और कितना गंभीर है। अंबिलिकल हर्निया एक महीने से लेकर डेढ़-2 साल की उम्र तक ठीक हो जाता है। दबाने से नाभि का बढ़ा हुआ हिस्सा अंदर हो जाता है, जो दोबारा बाहर निकल आता है, लेकिन पेरेंट्स को इससे छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। कई बार इसके लिए भी सर्जरी की नौबत आ जाती है। जब भी बच्चे में ऐसा कोई लक्षण देखें, तो पीडियाट्रिक को जरूर दिखाएं। जब तक बच्चे में इसके लक्षण दिखते रहें, समय-समय पर उसकी जांच डॉक्टर से करवाते रहें।

सायनोसिस

इस स्थिति में बच्चों की त्वचा हल्की नीली दिखने लगती है। आमतौर पर यह नीलापन होंठ, मुंह, हाथ की उंगलियों के नाखून, इयर लोब्स यानी कान के बाहरी हिस्से से ले कर पूरे शरीर में हो सकता है। 

क्या है वजहः सायनोसिस दो तरह का होता है- एक्रोसायनोसिस और सेंट्रल सायनोसिस। एक्रोसायनोसिस हेल्दी शिशुओं में भी देखा जाता है। इसमें पूरे शरीर में नीलापन ना हो कर मुंह के आसपास के हिस्सों, हथेलियों और पैरों के तलवों में नीलापन होता है। सेंट्रल सायनोसिस लंग्स को पर्याप्त ऑक्सीजन ना मिल पाने के कारण होता है।

क्या है इलाजः आमतौर पर बच्चे के शरीर को गरम रखने से अगर यह नीलापन दूर नहीं होता, तो इसके लिए डॉक्टर से सलाह लेना बहुत जरूरी है। 

एप्नीया

बच्चों के शरीर में नीलापन आने की एक वजह उनमें एप्नीया की समस्या भी हो सकती है। यह स्थिति तब होती है, जब बच्चे के सांस लेने की प्रक्रिया में 20 सेकेंड और उससे कम समय की रुकावट आती है या फिर उसकी हार्ट बीट बहुत स्लो होती है।

क्या है वजहः बच्चे के दिमाग का ठीक तरह से विकास ना होना, इन्फेक्शन, न्यूरोलॉजिकल समस्याएं, हार्ट प्रॉब्लम, पेट की समस्याएं या जेनेटिक गड़बड़ियां।

क्या है इलाजः डॉक्टरी सलाह से दिया जाने वाला सीपीएपी यानी कंटीन्यूअस पॉजिटिव एअरवे प्रेशर व ब्रीदिंग को ठीक करने वाली कुछ दवाएं। पेरेंट्स थोड़ी समझदारी से बच्चों की इन आम समस्याओं को बढ़ने से रोक सकते हैं। शिशु अगर बहुत रो रहा है, ठीक से दूध नहीं पी रहा है, शरीर या स्किन में कोई दाग नजर आ रहा है, उसके सांस लेने के पैटर्न में कोई बदलाव दिख रहा है, तो तुरंत उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। 

इन सबके अलावा बच्चे के रोते समय इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उसकी जीभ पूरी तरह से बाहर निकल रही है या नहीं। कई बार जीभ तालू से चिपकी रह जाती है, जिसकी वजह से बच्चों को स्पीच से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। अगर सही समय पर इस पर ध्यान ना दें, तो बाद में सर्जरी करवानी पड़ सकती है। इसी तरह बच्चा जब खड़े होना या चलना शुरू करे, तो उसके पैरों की बनावट पर भी ध्यान दें। शुरुआत में फ्लैट फुट या बो लेग्स की दिक्कतें पकड़ आने पर उन्हें ठीक किया जा सकता है। 

खतरनाक है टोटके आजमाना

कई बार बच्चों पर कुछ पुराने टोटके आजमाने से भी स्थिति बिगड़ सकती है, जैसे नाभि बढ़ने की स्थिति में कुछ लोग छेद वाला सिक्का उस पर बांध देते हैं। जीभ पर फंगस जमा होने पर तेल लगा देते हैं या फिर गंदे कपड़े से रगड़ कर साफ कर देते हैं। इसी तरह बच्चों की आंखों में घर का बना सुरमा डालना, कान में सरसों का तेल डालना, उन्हें घुट्टी पिलाना ऐसे इलाज हैं, जो हो सकता है कि आज से कुछ साल पहले सही हों, लेकिन बदलती परिस्थितियों, प्रदूषण और मिलावट के कारण आज सही नहीं माने जा सकते। 

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