शिकायत करना मानवीय स्वभाव है। एक सीमा के भीतर शिकायतें करना अच्छा भी है क्योंकि इसी से हम स्थितियों, लोगों या वस्तुओं में सुधार की कोशिशें करते हैं लेकिन जब यह एक्सट्रीम तक पहुंच जाए तो इससे खुद को और आसपास के लोगों को भी दिक्कतें होने लगती हैं।
शिकायत के फायदे
मनोवैज्ञानिकों की राय में शिकायत करने के कुछ फायदे भी हैं। जैसे, दो लोग बातचीत का सिरा ही शुरू करते हैं इस वाक्य से- आज कितनी गरमी है न! यानी शिकायत संवाद शुरू करने का एक जरिया है। कई बार व्यक्ति शिकायत करके मन को हलका कर लेना चाहता है। उसे मन की भड़ास निकाल लेने के बाद बेहतर महसूस होता है। हालांकि शिकायत करने वाले कभी खुद पर शिकायत करने का लेबल फिट नहीं करना चाहते। ज्यादातर लोग मौसम, ट्रैफिक, सरकारों, संस्थाओं, सार्वजनिक स्थलों, ट्रांसपोर्ट सिस्टम, बॉस, सास, मकान-मालिक, किरायेदार....की शिकायत करते देखे जाते हैं। जब उस शिकायत में अन्य लोग भी जुड़ते हैं और अपनी ओर से कुछ और शिकायतें जोड़ देते हैं तो व्यक्ति को एक तरह से खुद को स्वीकार किए जाने का बोध होता है। उसे अपना दर्द कम महसूस होने लगता है। उसके अहं को तुष्टि मिलती है।
लगातार चर्चा है बुरी
शिकायत को पूरी तरह बंद नहीं किया जा सकता लेकिन शिकायत करते वक्त अपने मुंह से निकले वाक्यों को संतुलित रखना जरूरी है। बेल्जियम विश्वविद्यालय में स्कूल साइकोलॉजी और डेवलपमेंट में दोस्तों के बीच संवाद विषय पर शोध कर रहे मार्गोट बास्टिन अपने एक लेख में कहते हैं, शिकायत करना हालांकि नेचुरल प्रक्रिया है लेकिन हमेशा ऐसा करना अच्छी बात नहीं है। नकारात्मक बातों या चीजों को लेकर लगातार दूसरों से चर्चा करना कई बार हानिकारक हो सकता है, इससे डिप्रेशन भी हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है कि जब हम किसी चीज की अत्यधिक चर्चा करते हैं तो वह हमारे दिमाग में अधिक मजबूती से स्थापित हो जाती है और हमें हमेशा परेशान करती है। इसलिए शिकायत करने का एक तरीका होना चाहिए।
संयत हो शिकायत
बीच सड़क पर गलत ढंग से ओवरटेक करती गाड़ी या कहीं भी गाड़ी खड़ी करके गायब हो चुके ड्राइवर को देख कर कइयों को गुस्सा आता है और मुंह से कई बार असभ्य शब्दावली भी निकल जाती है, लेकिन व्यक्ति को यह भी मालूम होता है कि अगर उसने शीशा खोलकर बुरा-भला कहा या दूसरे ड्राइवर से शिकायत की तो रोड रेज का सामना करना पड़ सकता है। अकसर लोग गाड़ी के शीशे बंद करके चिल्लाते हैं, क्योंकि इससे सामने वाले को कुछ सुनाई नहीं देता। रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे कई पल आते हैं, जहां हम मन की भड़ास तो निकालते हैं लेकिन संयत होकर। शिकायत कब और किससे कर रहे हैं, क्या इससे कुछ हासिल होगा, यह बात समझनी जरूरी है।
क्या है मनोविज्ञान
वरिष्ठ मनोचिकित्सक, लेखक और मेंटर डॉ. समीर पारिख कहते हैं, शिकायत करने से समस्याएं दूर नहीं होतीं, इसलिए समस्या महसूस हो रही हो तो शिकायत करने के बजाय उसका समाधान खोजने पर अपनी ऊर्जा खपानी चाहिए। सवाल यह है कि कुछ लोग अकसर शिकायतें करते पाए जाते हैं। तो आखिर उनके इस व्यवहार का कारण क्या हो सकता है! इसके कुछ आम कारण ये हो सकते हैं-
ध्यान आकर्षित करना: अटेंशन सीकिंग लोग ऐसा अधिक करते हैं, ताकि दूसरों का ध्यान आकर्षित कर सकें। अपनी शिकायतों के आधार पर वे दूसरों से सहानुभूति या दया हासिल करना चाहते हैं।
बचाव का माध्यम: कई बार हताशा से जूझ रहे लोगों के लिए शिकायत डिफेंस का एक जरिया होती है। स्थितियों, अन्यायपूर्ण घटनाओं या कठिनाइयों की शिकायतें करने से उन्हें थोड़ी राहत महसूस होती है।
नियंत्रण की कमीः कई लोगों को लगता है कि जो कुछ भी हो रहा है, उस पर उनका कुछ भी वश नहीं है। ऐसे में वे शिकायतें करके खुद को तनाव से मुक्ति दिलाने की कोशिश करते हैं।
समाधान की कोशिशः कई बार शिकायतें करने वाला वास्तव में समस्या का समाधान भी खोज रहा होता है। उसे लगता है कि शायद लोगों से उसे कुछ सुझाव मिल सकते हैं और वह अपनी मुश्किलों को कुछ आसान बना सकता है।
कैसे बचें इस आदत से
नताशा (नाम बदल दिया गया है) मनोविज्ञान की छात्रा हैं और अभी मानव व्यवहार के अलग-अलग पहलुओं पर शोध कर रही हैं। बार-बार प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने और विफलता मिलने से वह कई वर्ष हताशा में डूबी रहीं। वह कहती हैं, मैं लगातार शिकायतें करती थी। हालांकि न तो मैं लोगों की दया चाहती थी और न ही अपनी यह आदत मुझे पसंद थी। मनोविज्ञान की पढ़ाई ने मुझे एक दृष्टि प्रदान की है। मैंने खुद के सामने कुछ चुनौतियां रखीं और उन्हें पूरा करने की कोशिश की। जैसे- मैंने खुद को तीन का ब्रेक टाइम दिया। तीन दिन सचेत तरीके से यह कोशिश की कि कैसी भी स्थिति हो, शिकायत न करूं। जब भी मेरे दिमाग में कोई समस्या या शिकायत आती, मैं तुरंत कोई ऐसी घटना, वाक्य, फिल्म, रिश्तों में होने वाली छोटी-बड़ी बातें याद करती, जो मेरे भीतर आशा का संचार करती थीं। मैं तुरंत शिकायत से अपना ध्यान भटकाती, बुक पढ़ना शुरू करती या कुछ मजेदार देखती। तीन दिन बिना शिकायत के रहने के बाद मैंने खुद को शाबासी भी दी। मैंने अपने बारे में कुछ अच्छे वाक्य डायरी में लिखे। मैंने खुद पर विश्वास रखा और काफी हद तक कामयाब हुई। कह सकती हूं कि मेरे व्यवहार में शिकायतें अब दो साल पहले की तुलना में 50 फीसदी कम हैं।