Monday 02 November 2020 03:51 PM IST : By Dipti Mittal

अनूठा है पुणे की प्रिया सीतारमण का रेड डॉट कैंपेन

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पुणे की 38 वर्षीय प्रिया सीतारमण दक्षिण भारतीय सोशल वर्कर हैं। उनकी हमेशा से इच्छा रही कि वे जितना इस सोसाइटी से ले रही हैं, कम से कम उतना तो इसे वापस करें। इसी भावना के चलते उन्होंने अपने 36वें जन्मदिन पर खुद को ही एक खूबसूरत तोहफा दिया। उन्होंने अपनी हाउसिंग सोसाइटी की कुछ जागरूक महिलाओं और बच्चों के साथ मिल कर एक ग्रुप बनाया, जिसे NJIYO का नाम दिया गया। इस छोटे से ग्रुप ने अपने स्तर पर चैरिटी और सोशल अवेअरनेस के काम करने शुरू किए। उन्होंने सोसाइटी के वॉचमैन, सफाई कर्मचारियों, कामवाली बाइयों आदि का रेगुलर फ्री मेडिकल चेकअप कराया। अनाथाश्रम और वृद्धाश्रम की नियमित विजिट कीं। इसके अलावा बाढ़ के राहत कामों से जुड़ीं, गरीब महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन्स बांटे, बच्चों को कपड़े, किताबें देने के साथ वेस्ट ड्राइव स्वच्छता अभियान भी चलाया। इसी बीच उन्होंने एक लेख पढ़ा, जिससे उनको पता चला कि अकेले पुणे में सफाई कर्मचारियों को 20 हजार किलोग्राम गंदे डायपर्स और सैनिटरी पैड्स को बाकी कचरे से अलग जमा करना पड़ता है। इससे वे त्वचा संबंधी रोग, बैक्टीरियल इन्फेक्शन, टायफॉइड, हेपेटाइटिस के शिकार हो सकते हैं। उनको इतनी तकलीफ सिर्फ इसलिए सहनी पड़ती है, क्योंकि खुद को सभ्य कहनेवाले नागरिकों में इतनी तमीज और जागरूकता नहीं है कि वे ऐसे कचरे को सही तरीके से फेंकें।

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इसके बाद तो प्रिया सीतारमण ने अपने ग्रुप NJIYO के माध्यम से रेड डॉट कैंपेन जरिए लोगों में जागरूकता फैलाने का फैसला किया। इसके लिए प्रिया ने सबसे पहले 10 साल से बड़े उन बच्चे-बच्चियों की वर्कशॉप ली, जिनसे घर की महिलाएं इस बारे में बात करना भी सही नहीं समझतीं। आज भी परिवारों में पीरियड्स टैबू हैं। बच्चों को समझाया गया कैसे प्रयोग किए गए डायपर और सैनिटरी नैपकिन्स कागज के ऐसे लिफाफे में पैक करके फेंकने हैं, जिस पर रेड डॉट लगा हो, ताकि सफाई कर्मचारी उसे बिना असुविधा के बाकी कचरे से अलग कर सकें।

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प्रिया सीतारमण ने बच्चों को ही यह जिम्मेदारी दी कि वे सोसाइटी के घरों में जा कर पुराने न्यूजपेपर इकट्ठे करें और उनके पेपर बैग बना कर उन पर रेड डॉट लगाएं। फिर घर-घर जा कर रेड डॉट मुहिम की लोगों को जानकारी दें। बच्चें टीम बना कर सभी बिल्डिंगों में गए और लोगों को इस कैंपेन के बारे में समझा कर उनको रेड डॉट लगे पेपर बैग गिफ्ट किए। जिन घरों में महिलाएं नहीं थीं, वहां पुरुषों को समझा कर बैग दिए गए, ताकि वे अपनी परिचित महिलाओं को रेड डॉट कैंपेन के बारे में बता कर उन्हें बैग गिफ्ट कर सकें। बच्चों को इस कैंपेन से जोड़ने का फायदा यह हुआ कि वे अपने घर में मम्मी और बहनों को बार-बार याद दिलाने लगे कि उनको रेड डॉट लगे पेपर बैग यूज करने हैं। वे कहती हैं, ‘‘मेरा 11 वर्षीय बेटा अरूल भी मुझे और अपनी बहन को यह याद दिलाना नहीं भूलता। अब उनका टीवी देखने के बजाय लिफाफा बनाने की क्राफ्ट एक्टिविटी में ज्यादा मन लगने लगा है। इन पेपर बैग का निर्धारित मूल्य है, जिससे जमा पैसा चैरिटी के कामों में लगाया जा रहा है।

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बैग्स की बढ़ती डिमांड को देखते हुए इनको बनाने की जिम्मेदारी गरीब महिलाओं को दे दी गयी। घरों से न्यूजपेपर इकट्ठे कर उन्हें दिए जाते हैं, जिनसे वे महिलाएं रेड डॉट लगे पेपर बैग बना कर 30 रुपए में 20 बैग बेचती हैं। बैग की बिक्री से उनकी आय भी होने लगी। प्रिया सीतारमण के अनुसार, उनको पिछले 4 महीनों में 13,000 रेड डॉट बैग का ऑर्डर मिला है। अब यह मुहिम एक हाउसिंग सोसाइटी से निकल कर बड़े एरिया में फैल चुकी है। प्रिया से प्रेरणा ले कर पुणे की बाकी सोसाइटीज में भी इसी तरह के ग्रुप बनाए जा रहे हैं। कुछ रेड डॉट बैग सैंपल के तौर पर महिलाओं को मुफ्त दिए जाते हैं और बदले में उनसे पुराने न्यूजपेपर लिए जाते हैं। कहते हैं ना, बड़ी से बड़ी मंजिल पर पहुंचने की शुरुआत एक छोटे, लेकिन सही कदम से होती है। अाज रेड डॉट कैंपेन ने पुणे में धीरे-धीरे जनहित आंदोलन का रूप ले लिया।

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प्रिया सीतारमण पेशे से साइकोलॉजिस्ट हैं और पुणे के सबसे बड़े बाल सुधार गृह में जुवेनाइल जस्टिस काउंसलर के पद पर हैं। वहां पर वे नाबालिगों की काउंसलिंग करती हैं। मगर उन जैसी ऊर्जावान महिला को इतने में संतोष कहां... इसलिए वे अपनी इस जिम्मेदारी के अतिरिक्त भी प्रत्येक शनिवार जेल जा कर अपनी संस्था की तरफ से बच्चों की वर्कशॉप लेती हैं, जहां पर उनको क्राफ्ट वर्क, पेंटिंग, गेम्स जैसी मनोरंजक एक्टिविटीज के साथ वेलनेस और वेल्यू एजुकेशन क्लास भी कराती हैं। इससे उनमें जिम्मेदार नागरिक बनने की भावनाएं जगती हैं।

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प्रिया का कहना है, ‘‘यह समाज हमें जितना देता है हम उसको आधा भी वापस नहीं करते। मैं छोटी-छोटी कोशिश करती हूं कि जितना मुझे मिला है कम से कम उतना तो वापस दे पाऊं। यह देख कर मुझे बेहद खुशी होती है कि मेरी ही तरह सोचनेवाले लोगों की समाज में कोई कमी नहीं है। एक हाथ बढ़ाओ, तो 20 हाथ सामने से बढ़े मिलते हैं। आज हर कोई चाहता है कि वह समाज के लिए कुछ करे, सिर्फ शुरुआती सिरा मिलने की देर होती है और हम अपनी संस्था द्वारा लोगों को यह मौका दे रहे हैं।’’

उनका जीवनसूत्र है- जियो और दूसरों को भी जीने में सहयोग करो। आप जो सोसाइटी को देंगे वह घूमफिर कर आपके पास ही वापस आएगा। सच, प्रिया सीतारमण जैसी महिलाएं समाज को सही दिशा में आगे ले जा रही हैं।