41 वर्षीय गुणवती चंद्रशेखरन, तमिलनाडु के शिवकाशी गांव की रहने वाली हैं। क्विलिंग कला की ओर रुझान उनका बचपन से था। दो साल की उम्र में पोलियो से बुरी तरह से प्रभावित होने के कारण वे कुछ कदम भी चलने में सक्षम नहीं थीं। उन्हें लोग कमजोर और लंगड़ी गुणवती के नाम से जानते थे। यही बात उन्हें बहुत खटकती थी। घर में बाकी बहन-भाई डॉक्टर-इंजीनियर बने, लेकिन गुणवती की पढ़ाई दसवीं तक हुई और 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह कर दिया गया। विवाह गुणवती के जीवन का लक्ष्य नहीं था। वे लीक से हट कर जीवन में कुछ करना चाहती थीं, जिससे लोग उन्हें कमजोर नहीं, बल्कि एक मजबूत महिला के नाम से जानें। गुणवती को क्विलिंग कला में रुचि थी।
कैसे हुई शुरुआत
रंगबिरंगे अलग-अलग शेप व साइज के पेपर्स से तैयार इस खूबसूरत कला ने गुणवती को एक मुकाम तक पहुंचाया। गुनास क्विलिंग के नाम से उन्होंने अपना एक ब्रांड बनाया, जिसमें कागज से तैयार वॉल आर्ट, हैंडमेड फ्रेम, ग्रीटिंग कार्ड, मिनिएचर, ज्वेलरी और भी बहुत कुछ तैयार होता है। इस कला में 3 मि.मी., 5 मि.मी. व 10 मि.मी. साइज के रंगबिरंगे पेपर को रोल करके एक खास शेप के साथ डिजाइन में उतारा जाता है। इसे ज्वेलरी या किसी खास वस्तु की शेप में ढाला जाता है। गुणवती ने पेपर क्विलिंग आर्ट के तहत कई वर्कशॉप कीं,जिसमें उन्होंने 2000 से ज्यादा लोगों को यह काम सिखाया। इस कला को सीखने के लिए ज्यादातर महिलाओं, स्टूडेंट, अनाथ बच्चों ने रुचि दिखायी। इतना ही नहीं, इन लोगों की आर्थिक रूप से मदद करने के साथ वर्कशॉप में तैयार उनकी चीजों को बेचने में भी मदद की।
ब्रिटिश काउंसिल ने गुणवती को एक सफल एंट्रप्रेन्योर के तौर पर बुलाया। यूके के क्विलिंग एक्सपर्ट ने उनके काम को सराहा और गुणवती के काम को ख्याति मिली। तमिलनाडु सरकार की ओर से उन्हें डिस्ट्रिक्ट अवाॅर्ड भी दिया गया। आज वे इस कला को सिखाने के लिए ऑनलाइन क्लास और लाइव सेशन भी देती हैं, जिसमें वे यूनिक ज्वेलरी डिजाइन बनाना सिखाती हैं। कंपनी का लोगो डिजाइन करना , मिनिएचर पोर्ट्रेट, वॉल आर्ट बनाना सिखाती हैं। गुणवती कहती हैं, ‘‘2014 में मैंने यह काम करना सीखा। मैं बहुत पढ़े-लिखे परिवार से थी और मेरे पिता गांव के पहले डॉक्टर माने जाते हैं, लेकिन कम पढ़ने की वजह से मेरे पास अपनी रुचि में डूबने के सिवा कोई चारा नहीं था। मेरे पिता जी ने अच्छा रिश्ता मिलते ही मेरी शादी कर दी। मैं जीवन में कुछ करना चाहती थी। पेपर क्विलिंग में मेरी रुचि जागी। साड़ी के पल्लू से टेराकोटा, एप्लीके वर्क की बारीकी को पकड़ कर उसे पेपर क्विलिंग कला में ढालती थी।’’
कितनी होती है कमाई
गुणवती अपनी क्विलिंग आर्ट को सिर्फ सरकारी स्टॉल्स में ही बेचती हैं। वे हर साल 8 से 10 सरकारी स्टॉल्स में जाती हैं। अदभुत कला होने से सरकार से गुणवती को काफी सपोर्ट मिला। वे पोलियो की वजह से अकेले चल नहीं सकतीं, इसीलिए पति साथ जाते हैं। गुणवती की कला प्रदर्शनी पांडिचेरी, कर्नाटक व केरल में लग चुकी हैं। सबसे ज्यादा उनकी कला की बिक्री केरल में होती है। एक बार की प्रदर्शनी में 60,000 से 80,000 रुपए तक कमाई होती है। कोविड के बाद थोड़ा कम प्रदर्शनियां लगीं, पर ऑनलाइन क्लासेज हुईं। 30 रुपए के झुमके से ले कर 1 लाख रुपए तक के क्विलिंग वॉल आर्ट बिकते हैं। वॉल आर्ट की तसवीर को आमने-सामने देखने पर ही इस कला में की गयी मेहनत और गहराई मालूम चलेगी। इसमें 4 से 10 मि.मी. पेपर रोल का इस्तेमाल होता है। पेपर क्विलिंग आर्ट के सबसे ज्यादा प्रोडक्ट्स चेन्नई, केरल, कोयम्बटूर में बिकते हैं।