Wednesday 07 October 2020 01:06 PM IST : By Deepti Mittal

मिलिए पुणे की गायत्री पाठक से जो बेसहारा बच्चों का सहारा हैं

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एक बड़ा प्यारा और अर्थपूर्ण गीत है - तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो, तुमको अपने आप ही सहारा मिल जाएगा... यह गीत जैसे 35 वर्षीय गायत्री पाठक जैसी शख्सियत के लिए ही लिखा गया है। उनसे मिलने और जुड़ने की भी अजीब ही कहानी है। 5 अक्तूबर 2018 में पुणे के एक व्यस्त ट्रैफिक सिगनल पर बड़ी हृदय विदारक घटना घटी। रुके हुए ट्रैफिक पर एक बड़ा सा होर्डिंग बोर्ड टूट कर गिर पड़ा, जो अनेक लोगों को घायल कर कुछ की जान भी ले गया। मृतकों में एक ऑटो ड्राइवर भी था, जो अपनी मृत पत्नी की अंतिम क्रिया करके घर लौट रहा था। उस ऑटो ड्राइवर के दो बच्चे थे, जो 2 ही दिन में अनाथ हो गए थे। यह खबर पढ़ कर मेरा हृदय द्रवित हो गया। एक अखबार से पता चला कि उस समय वहां पर एक सोशल वर्कर गायत्री पाठक भी उपस्थित थीं, जिन्होंने घायलों की बहुत मदद की।

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मैं किसी भी तरह उन दो बच्चों की मदद करना चाहती थी और उन तक पहुंचने का जरिया सिर्फ एक नाम ‘गायत्री पाठक’ ही नजर आ रहा था। मैंने गायत्री पाठक को फेसबुक पर खोज निकाला और उन्हें मैसेज किया। उन्होंने मुझे रिप्लाई में अपना कॉन्टेक्ट नंबर दिया। उनसे बात करने पर पता चला कि उन दोनों बच्चों की जिम्मेदारी वे पहले से ही ले चुकी हैं, क्योंकि वे अनाथ बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाती हैं। उनसे बात कर उनसे मिलने की उत्सुकता बढ़ी। वहां पहुंच कर हमें एक साधारण कद-काठी की 35 साल की सामान्य सी महिला मिली, लेकिन जैसे-जैसे उनसे बातचीत की, उनका कद हमारी आंखों में बढ़ता चला गया। गायत्री पाठक स्वयं एक अनाथ हैं। 18 साल की होने तक वे पुणे से 240 किलोमीटर दूर मिराज नामक जगह के पाठक अनाथ आश्रम में रहीं। इसी कारण उन्हें पाठक सरनेम मिला।

अनाथ आश्रमों में यह नियम है कि वहां बच्चे 18 साल तक ही रह सकते हैं। बालिग होने के बाद उनको बाहरी दुनिया में आ कर अपना अस्तित्व कायम रखने का संघर्ष स्वयं करना पड़ता है। गायत्री को भी 18 साल के बाद अनाथ आश्रम से बाहर निकलना पड़ा और वे पुणे आ गयीं। मगर ‘अब आगे क्या?’ इस सवाल का जवाब उनके पास नहीं था। वे अपनी पढ़ाई पूरी कर जीवन में कुछ बनना चाहती थीं, मगर ना कोई सुविधा थी ना गाइडेंस। पुणे की एक एनजीओ ‘विद्यार्थी सहायक समिति’ ने उनके एडमिशन और पढ़ाई में मदद की। फिर उन्होंने पार्ट टाइम जॉब के साथ पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया और जर्नलिस्ट बनीं।

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वे स्वयं इस बात की भुक्तभोगी रहीं कि बच्चे जब अनाथ आश्रम में होते हैं, तो उनको मदद के नाम पर जरूरत का सामान वितरित करने के लिए बहुत से लोग सामने आते हैं, लेकिन 18 के होते ही उन्हें उस दुनिया में अकेले धकेल दिया जाता है जिसका उन्हें जरा भी अनुभव नहीं होता। अनाथ होने के कारण उनके पास आईडेंटिटी प्रूफ जैसे आधार कार्ड, वोटर कार्ड आदि भी नहीं होते, जिनकी इस समाज में कदम-कदम पर जरूरत होती है। गायत्री पाठक ने ऐसी सभी परेशानियों को स्वयं अनुभव किया था। पत्रकारिता करते हुए जब उन्हें पता चला कि पुणे में आए बहुत से अनाथ बालिग रेडलाइट एरिया, ह्यूमन ट्रैफिकिंग, स्मगलिंग जैसे गलत कामों में फंस गए हैं, तो उन्होंने अपने स्तर पर ऐसे अनाथ युवाओं को मार्गदर्शन और सपोर्ट दे कर मुख्यधारा में लाने का बीड़ा उठाया।

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उन्होंने सरकार से इस बात के लिए निरंतर लड़ाई लड़ी कि अनाथ बालिगों को आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड जैसे आईडी प्रूफ मिलने चाहिए। साथ ही उन्होंने अनाथ बालिगों के लिए सरकार से नौकरियों और शिक्षा केंद्रों में 1% आरक्षण की भी मांग की। उनकी कोशिशों से 2012 में महाराष्ट्र सरकार ने ये दोनों मांगें मंजूर कीं। पिछले वर्ष गायत्री पाठक ने एक एनजीओ ‘सनाथ फाउंडेशन’ का गठन किया, जिसके अंतर्गत उन्होंने 2 फ्लैट्स किराए पर लिए हैं। एक को बॉयज हॉस्टल और दूसरे को गर्ल्स हॉस्टल की शक्ल दी है। आज की तारीख में उनका फाउंडेशन 14 लड़कियों और 5 लड़कों की देखरेख कर रहा है। ये सभी अनाथ आश्रम से निकले निराश्रय बालिग हैं, जो कोई ना कोई प्रोफेशनल कोर्स या पढ़ाई कर रहे हैं जैसे वेब डिजाइनिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग, नर्सिंग आदि। अपनी कोशिशों से वे इन युवाओं के लिए प्रायोजक जुटा कर उनका भविष्य संवार रही हैं।

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सनाथ फाउंडेशन की एक लड़की ने ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट हासिल की है, वहीं दूसरी ओर एक लड़के ने 10वीं में 90 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं और आज वह मेडिकल की तैयारी कर रहा है। इन सभी युवाओं में गायत्री पाठक ने आत्मविश्वास और हौसला भर दिया है। उनसे मिलनेवाला हर इंसान कुछ कर गुजरने की प्रेरणा ले कर लौटता है। यदि आप वहां जाएंगे, तो आपको वहां कोई अनाथ नहीं, बल्कि हंसता-खेलता, मेहनत करता परिवार मिलेगा, जिसमें सभी एक-दूसरे के सुख-दुख के सच्चे साथी हैं और एक-दूसरे का भरपूर ध्यान रखते हैं।

सनाथ फाउंडेशन की स्कीम ‘स्पॉन्सर ए चाइल्ड’ के तहत उन युवाओं के लिए ऐसे स्पॉन्सर खोजे जा रहे हैं, जो सिर्फ डोनेशन देने तक का संबंध ना रखें, बल्कि उस एक युवा के लिए बडे़ भाई या बहन जैसी भूमिका अदा करें। गायत्री पाठक इस उद्देश्य में काफी हद तक सफल हुई हैं।

सीमित संसाधनों की वजह से बच्चों की संख्या अभी कम है, लेकिन गायत्री पाठक का लक्ष्य अनेकानेक अनाथ युवाओं को सुरक्षित छत्रछाया और सपोर्ट दे कर आत्मनिर्भर बनाने का है, जिससे वे गर्व के साथ सिर उठा कर समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। वे समय-समय पर अलग-अलग अनाथ आश्रमों में जा कर 18 साल के होनेवाले बच्चों से मिलती हैं, उन्हें मार्गदर्शन दे कर आगे के लिए तैयार करती हैं, उनके पेपर वर्क, डॉक्यूमेंट्स तैयार करने जैसे कार्य करती हैं और उन्हें सनाथ फाउंडेशन के बारे में भी बताती हैं। उनके पति एक प्रोफेसर हैं, जो उनके सामाजिक कार्यों में भरपूर सहयोग दे रहे हैं।