Tuesday 19 January 2021 10:44 AM IST : By Rashmi Kao

किचन फ्रेंडली हसबैंड

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सुनते आए हैं कि पति के दिल का रास्ता पेट से हो कर जाता है। पर पिछले दिनों मैंने देखा कि कैसे ज्यादातर पतियों के दिल का रास्ता किचन से हो कर गुजर रहा था। देख कर बहुत अच्छा लगा। शुक्र है, देसी मर्द विलायती मर्दों की तरह किचन संभालने के लिए आगे आए। क्योंकि हमारे यहां लड़का शेफ तो बन सकता है पर घर की किचन में काम करना उसे शरम से भर देता है। अपने शादीशुदा बेटे को जब मम्मियां किचन में खड़ा हो कर काम करता देखती हैं, तो उन्हें पता नहीं क्यों अपने बेटे का ‘पति पद’ कमजोर होता लगता है। बेटे को ‘होमली’ नहीं कह सकते। लड़की होमली हो, तो बहुत अच्छी लगती है और सोसाइटी की डिमांड भी हमेशा से कुछ ऐसी ही रही है। बेटा किचन की दीवार में कील ठोंक सकता है, प्रेशर कुकर का हैंडल कस सकता है, किचन का बंद सिंक खोल सकता है, टपकता नल बंद कर सकता है, लेकिन उसकी होम पर्सनेलिटी के ग्रूमिंग कोर्स में कुकिंग शामिल नहीं हो सकती। बेटा बनाम पति गृहस्थी का मुखिया बना हुआ ही इंडियन अम्माअों को सुहाता रहा है। पर भला हो इस वायरस लफड़े का कि पति नाम के इस प्राणी ने अपने आपको गृहस्थी की गाड़ी का मालिक और ड्राइवर-इन-चीफ समझने के बजाय गृहस्थी का ‘को-वर्कर’ समझना शुरू किया है।

सचाई यह है कि लॉकडाउन पीरियड में पुरुषों ने जम कर कुकरी शो देखे। महिलाएं यूट्यूब पर अपनी रेसिपीज अपलोड करती रहीं और पुरुष मोबाइल फोन को किचन काउंटर पर आड़ा-तिरछा टिकाए यूट्यूब देख कर खाना पकाते रहे। मर्दों ने किचन का मोर्चा क्या संभाला कइयों को लगा कि कहीं लेडीज ने किचन से इस्तीफा तो नहीं दे दिया। लेकिन लेडीज को किचन काउंटर से दूर कहां जाना है? हां, इतना जरूर हुआ कि कोरोना ने किचन के कारोबार की शक्ल ही बदल दी है।

आजकल ईटिंग आउट बंद है। बाहर से फूड अॉर्डर भी कम हो रहा है। चारों वक्त का खाना घर में ही पक रहा है, घर में कुकिंग होगी, तो बरतन भी गंदे होंगे। मैडम हेल्प से दूरी भी मजबूरी का हिस्सा है। तो क्या करें? किचन में स्वाद का सन्नाटा कब तक चलेगा? एक सिर्फ पकाता जाए और दूसरा सिर्फ बैठ कर खाए... यह बहुत नाइंसाफी है! ऐसा कब तक चलता? आखिर पुरुषों का किचन प्रेम जागा। उन्होंने किचन से अपना नाता जोड़ा। जिसे अंडा तक उबालना नहीं आता था, वह परफेक्ट अॉमलेट बनाने लगा। यही नहीं पुरुष को कुकिंग में मजा आने लगा। उनके लिए यह स्ट्रेस बस्टर साबित हुई। सिगरेट के सुट्टे लगाने से लाख दर्जे अच्छा है कुकिंग का शौक। अब पत्नियां आवाज लगाती है, ‘कब तक किचन में घुसे रहोगे, बाहर तो निकलो।’ नतीजतन हसबैंड आंखें बंद कर हरे-गुलाबी रंगों में लिपटी हूरें चाहे देखते रहें, पर दाल के मामले में मूंग छिलका, मसूर धुली, चना और अरहर दाल को खुली आंखों से पहचानना सीख चुके हैं। मजे की बात यह है कि जब मैंने अपनी दोस्त से एक खुशखबरी शेअर की, तो वह हंस कर बोली, ‘‘लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग के माहौल में जब बाहर खाना बंद है, तो तुम पार्टी देने से तो रही। चलो, मुझे 100 रुपए पेटीएम कर दो। घर में चिकन बनवा कर खा लूंगी। हसबैंड अच्छा चिकन बनाना सीख गए हैं।’’

सच है जिंदगी हमसे इजाजत नहीं मांगती। वह हमें चौंकाती है। हमें काबू में रखती है। वक्त बदलते देर नहीं लगती और वक्त बहुत कुछ सिखाता भी है। इसलिए जरूरी है कि हम रिश्तों में अपना सपोर्ट सिस्टम तलाशें। पुरुषों का खाना बनाने के मामले में आत्मनिर्भर बनना जरूरी है। बेटियों को किचन में बुला कर खाना बनाने के गुर सिखाए जा सकते हैं, तो बेटों को क्यों नहीं। पापा के हाथ के बने राजमा या पुलाव का टेस्ट अगर मम्मी के हाथ के बने आलू-पूरी को पछाड़ दें, तो डाइनिंग टेबल पर कहकहों का लुत्फ कई गुना बढ़ जाएगा और यहीं से सोसाइटी में सुंदर बैलेंस की शुरुआत होगी, जो स्त्री और पुरुष दोनों को सेल्फ डिपेंडेंट बनने में मदद करेगी।