वह आमतौर पर बहुत खुश रहने वाली लड़की है। बंगलुरु के एक बड़े होटल में हाउसकीपिंग इंचार्ज थी। पिछले लॉकडाउन में नौकरी बची,मगर सैलरी में कटौती हुई। कोविड की दूसरी लहर ने उसे घर बैठने पर मजबूर कर दिया। बाद में स्टाफ में कटौती हुई, तो उसकी नौकरी भी चली गयी। एक और लड़की है, घर के पास ही स्थित ब्यूटी पार्लर में काम करती थी, पिछले लगभग सवा साल से काम बंद है। एक छोटे से स्कूल में पढ़ाने वाली शिक्षिका भी कुछ दिन आधे वेतन पर काम करने के बाद अब खाली हैं। ऑनलाइन कोचिंग दे रही हैं, लेकिन काम बहुत कम है। एक अन्य महिला हैं, जो घर से ही टिफिन सर्विस चलाती थीं। आसपास के नौकरीपेशा बैचलर्स और छात्रों को उनका बनाया खाना बहुत पसंद आता था। लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम की शुरुआत हुई, तो ज्यादातर अपने घर लौट गए। वे बहुत परेशान हैं, क्योंकि उनका घर इसी आमदनी से चलता था।
ऐसी बहुत सी स्त्रियां हैं, जिन्होंने मेहनत के बल पर बड़ी सी दुनिया में अपनी छोटी सी जगह बनायी थी, मगर कोरोना के कहर ने उन्हें एक बार फिर से जीरो पर लौटा दिया है। यह बात सही है कि इस लहर में क्या स्त्री और क्या पुरुष, सभी ने सेहत और कैरिअर के स्तर पर बहुत कुछ खोया, मगर स्त्रियों पर यह मार इसलिए थोड़ी ज्यादा पड़ी है, क्योंकि वे पहले से ही जॉब मार्केट में कम हैं।
युनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के ग्लोबल डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट की प्रोफेसर बीना अग्रवाल ने अपने शोध में पाया कि जिन महिलाओं की नौकरी लॉकडाउन के दौरान गयी, उन्हें दोबारा काम पर लौटने में समस्या हो रही है। कोई नहीं बता सकता कि लॉकडाउन से पहलेवाली स्थिति को बहाल होने में कितना समय लगेगा। बहुत से परिवार ऐसे भी हैं, जहां स्त्री-पुरुष दोनों की ही आजीविका पर संकट आ गया है। स्त्री अपनी आमदनी से छोटी-छोटी बचत करके परिवार को किसी आकस्मिक स्थिति से उबारती थी, लेकिन इस लंबे दौर में ज्यादातर की बचत भी खर्च हो गयी है।
एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले तेजी से बढ़े हैं। एक डाटा अध्ययन के अनुसार घरेलू हिंसा से संबंधित कंटेंट को ऑनलाइन सबसे ज्यादा सर्च किया गया। साथ ही हिंसा से बचाव संबंधी कंटेंट भी सर्च किया गया। स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता और परिवार-समाज में उनकी स्थिति के बीच एक गहरा संबंध है। एक स्त्री आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती है, तो परिवार व समाज में उसकी स्थिति भी अपेक्षाकृत मजबूत होती है। खराब स्थितियों से निकलने की ताकत भी उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता की बदौलत ही मिलती है। अब जबकि आजीविका के साधन उनके सामने सिकुड़ते जा रहे हैं, उनकी स्थिति को ले कर आशंकाएं भी सिर उठाने लगी हैं।
लेकिन ठहरिए... कुछ अंदेशों के आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि महिलाएं हार मान लेंगी। संघर्ष उन्हें विरासत में मिला है और इसी के बूते वे हर पहाड़ और चट्टान से टकरा कर अपनी जगह बना लेती हैं। इस नकारात्मक माहौल में भी कुछ स्त्रियां रोशनी की किरण ले कर आ रही हैं। वे ना सिर्फ अपनी जिंदगी को नयी दिशा दे रही हैं, बल्कि दूसरों को भी प्रेरणा दे रही हैं।
एक लड़की, जिसने शादी के कुछ ही समय बाद पति को खो दिया, आज कोरोना मरीजों और उनके परिजनों की मदद के लिए आगे आयी है। एक और महिला हैं, जिन्होंने सालों बाद अपने पुराने हुनर को तराशा और लॉकडाउन के दौरान कुछ नया करने का मन बनाया। आज उनके बनाए कलात्मक गहने व सजावटी सामान खूब तारीफें बटोर रहे हैं। कुछ लड़कियों ने अपने आसपास के गरीब बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा ले लिया, तो कुछ ने बेजबान जानवरों के खाने और इलाज की जिम्मेदारी उठायी। कुछ रास्ते बंद हुए, तो महिलाओं ने अभिव्यक्ति के कई नए रास्ते खोज निकाले हैं। अंत में बस इतना ही कि धैर्य, हौसले और कोशिशों को कम ना होने दें। यही वह पूंजी है, जिसके बल पर जग जीता जा सकता है।