Wednesday 10 May 2023 05:06 PM IST : By Indira Rathore

जमाने में जिनके हुनर बोलते हैं

dhoop-4

हरफनमौला... हम सभी के आसपास एकाध लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें हम यह खिताब देते हैं। जाहिर है, ये लोग हर फन के माहिर होते हैं, हुनरमंद, क्रिएटिव होते हैं, इनकी रुचियों में विविधता होती है। अंग्रेजी में इसके वजन का शब्द है-पॉलीमैथ्स। ऐसे लोगों की दिलचस्पियां अलग-अलग तरह की होती हैं। कई बार इन्हें इनकी इन्हीं अलग-अलग रुचियों के कारण रेनेसां जैसे संबोधन भी दिए जाते हैं। इनके ज्ञान का आकाश असीमित होता है। मसलन कोई बड़ा गणितज्ञ हो, लेकिन वह संगीत में भी उतना ही दखल रखता हो, या उसके हाथों का हुनर उसकी कलाकृतियों में नजर आता हो।

कला-विज्ञान का मेल

इतिहास में ऐसे कई अद्भुत रचनात्मक लोगों के बारे में हमने पढ़ा है। ल्यूनार्डो दा विंसी पेंटर तो थे ही, वे बेहतरीन आर्किटेक्ट और इनोवेटर भी थे। हर चीज को वैज्ञानिक दृष्टि से देखते थे। इन्हें रेनेसां मैन कहा जाता था। विंसी कला को प्रकृति और विज्ञान का समन्वित रूप मानते थे। अमेरिकन लेखक बेंजामिन फ्रैंकलिन लेखन के अलावा राजनीति, विज्ञान और कूटनीति के माहिर थे। वे समाचार-पत्र प्रकाशक और इन्वेंटर थे। संगीतकार बिथोवन ने केवल धुनें नहीं बनायीं, बल्कि नौ सिंफनी की रचना भी की, उन्हें लिखा और पियानो-वॉयलिन बजाया। वे गजब के परफॉर्मर और इंप्रोवाइजर थे। अल्बर्ट आइंस्टाइन भी अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों की खुराक संगीत से लेते थे। उनकी मां ने उन्हें वॉयलिन बजाने की ट्रेनिंग दी थी। वर्ष 2018 में नोबल पुरस्कार प्राप्त केमिस्ट फ्रांसिस अर्नोल्ड पियानो व गिटार भी बजाती हैं। फ्रांसिस कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर हैं। उनकी जीवन-यात्रा खासी ऊबड़-खाबड़ रही। वह कैंसर सर्वाइवर हैं, इसके बावजूद जिंदगी को जिंदादिली से जीने के लिए वह खूब यात्राएं करती हैं।

गौर करें, तो वास्तव में विज्ञान और कला के बीच खास रिश्ता है। एक नयी रिसर्च में कहा गया है कि अवॉर्ड विनिंग साइंटिस्ट, खासतौर पर नोबल प्राप्त वैज्ञानिकों में कलात्मक अभिरुचियां खूब देखने को मिलती हैं। इस बारे में नोबलप्राइज.ओआरजी में एक लेख कुछ वर्ष पहले प्रकाशित हुआ था, जिसका शीर्षक था-द सिंफनी ऑफ साइंस।

क्रिएटिव ब्रेन और पॉलीमैथ्स

dhoop-3

क्रिएटिव तो सभी होते हैं, फिर ऐसा कैसे संभव है कि कुछ लोगों में रचनात्मक क्षमताएं कूट-कूट कर भरी होती हैं। हरफनमौला विरले ही होते हैं। कई लोगों का आईक्यू लेवल हाई होता है, मगर जरूरी नहीं कि वे क्रिएटिव भी होंगे। क्रिएटिविटी अलग चीज है। एक स्टडी में कहा गया है कि अलग-अलग क्षेत्रों में गहरी दिलचस्पी और क्रिएटिविटी के बीच कनेक्शन है। यूएस की न्यूरोसाइंटिस्ट नैंसी एंडरसन ने क्रिएटिव ब्रेन और पॉलीमैथ्स पर एक अध्ययन किया। हर इंसान कुछ ना कुछ गढ़ता है, कल्पना करता है, लेकिन कुछ लोग एक ही समय में कई कार्यों में लिप्त हो सकते हैं। उनकी क्रिएटिविटी हर कार्य में नजर आती है। कई लोगों में हुनर जन्मजात या प्रकृति प्रदत्त होता है। बहुत से लोग बिना ट्रेनिंग लिए वाद्य यंत्र बजा लेते हैं, सही सुर लगाते हैं या रागों की समझ रखते हैं। कुछ लोग मैथ्स में विशेष शिक्षा ना होने के बावजूद मुश्किल सवाल हल कर लेते हैं, बेहतरीन डिजाइंस बना लेते हैं या पेंटिंग्स कर लेते हैं। क्रिएटिविटी स्कूल या कॉलेज की शिक्षा से इतर कुछ और है। ऐसे लोगों की दृष्टि घटनाओं, स्थितियों, वस्तुओं, सूचनाओं के उन पहलुओं तक जाती है, जहां आम लोग नहीं पहुंच पाते। कई हस्तियों की पढ़ाई बीच में ही छूट गयी, लेकिन वे जीवन में सफल रहे। स्टीव जॉब्स, बिल गेट्स इसका उदाहरण हैं।

बात देशों-शहरों की

वैसे बात सिर्फ लोगों की नहीं, कुछ खास देश-शहर भी ज्यादा क्रिएटिव हो सकते हैं। एडोबी के एक सर्वे के मुताबिक, टोक्यो सबसे रचनात्मक शहरों में गिना जाता है। पेरिस, न्यूयाॅर्क, लॉस एंजेलिस, बर्लिन, लंदन, सैन फ्रांसिस्को जैसे शहरों को भी रचनात्मकता के लिए जाना जाता है। न्यूयाॅर्क सफल बिजनेस और प्रोडक्शन के लिए मशहूर है, तो पेरिस फैशन, डिजाइन और अन्य कलाओं का चैंपियन है। स्ट्रीट आर्ट या स्ट्रीट म्यूजिक का कॉन्सेप्ट इस शहर ने बाकी दुनिया को दिया है। यहां जगह-जगह आर्ट गैलरीज, म्यूजियम्स और थिएटर नजर आते हैं। भारत की बात करें, तो यूनेस्को के अनुसार चेन्नई, मुंबई, हैदराबाद, जयपुर, वाराणसी, श्रीनगर सर्वाधिक क्रिएटिव शहर हैं। कहते हैं, जिस देश के नागरिक क्रिएटिव हों, जिन शहरों-देशों में कला व कलाकारों का सम्मान होता हो और जहां सरकारें युवाओं की कल्पना-शक्ति को आगे बढ़ाने के लिए नीतियां बनाती हों, उन देशों की अर्थव्यवस्था बेहतर होती है।

कल्पना और यथार्थ के बीच

dhoop-2

सवाल यह है कि क्या महज कल्पना से ही रचनात्मकता पनप सकती है। मन में आइडिया तो आया, लेकिन क्रियान्वित ना हो सका, तो बेकार है। वर्ष 2021 में जेनेवा के वेबस्टर सेंटर फॉर क्रिएटिविटी एंड इनोवेशन में हुई क्रिएटिविटी वीक कॉन्फ्रेंस में वक्ताओं का कहना था कि क्रिएटिविटी आइडियाज से आगे की चीज है। यह एक मनोस्थिति है, जिसमें पर्सनेलिटी, मोटिवेशन, इमोशंस सब शामिल हैं। अमूमन रचनात्मक लोग जिज्ञासु, लचीले और कल्पनाशील होते हैं। रचनात्मकता को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक, व्यावहारिक और सांस्कृतिक फैक्टर्स को भी समझना जरूरी है, क्योंकि इनसे व्यक्ति की क्रिएटिविटी प्रभावित होती है। क्रिएटिव कोई भी हो सकता है। अच्छी कोडिंग करनेवाले, एडवर्टाइजिंग कैंपेन चलानेवाले, गार्डनिंग, पॉटरी, कॉपी राइटिंग करनेवाले, सिलाई-कढ़ाई, निटिंग, कुकिंग में दिलचस्पी रखनेवाले और यहां तक कि अकाउंटेंट या सेल्स एक्जिक्यूटिव्स भी क्रिएटिव हो सकते हैं। कल्पना को हकीकत में बदलने की राह कुछ बुनियादी बातों पर निर्भर करती है। क्रिएटिविटी को पनपने के लिए अनुकूल वातावरण और जरूरी संसाधन चाहिए। कई लोग अच्छे प्रशिक्षण के जरिये अपनी क्रिएटिव एनर्जी को अगले मुकाम तक ले जाने में सफल रहते हैं। एक्सपर्ट्स इसे एक स्किल मानते हैं। ऑर्गेनाइजेशनल बिहेवियर एंड ह्यूमन डिसिजन प्रोसेसेज जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार रचनात्मकता की ट्रेनिंग दी जा सकती है और इसका अभ्यास किया जा सकता है। कई बार आम लोग भी मौका मिलने पर अपनी क्रिएटिविटी दिखाते हैं, जबकि उचित माहौल ना मिलने पर क्रिएटिव लोग पीछे रह जाते हैं। रचनात्मकता, आइडियाज और कलात्मकता को सही दिशा ना मिले, सही प्रेरणा या माहौल ना मिले, तो यह हुनर दब भी सकता है।

नकारात्मकता उड़न छू

dhoop-1

व्यक्तित्व विकास में रचनाधर्मिता की बड़ी भूमिका है। गुस्से, तनाव या दबावपूर्ण मनोस्थिति में कई लोग कुछ लिखने, पेंटिंग, निटिंग या खाना बनाने जैसी गतिविधियों में रत हो जाते हैं, इससे वे अपना इमोशनल बैलेंस बिठा पाते हैं। दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो रुटीन कार्यों को भी रचनात्मक ढंग से करने के तरीके खोजते हैं। रचनात्मकता पॉजिटिविटी को बढ़ावा देती है। इससे अवसाद, दबाव, बेचैनी या तनाव के लक्षण कम हो जाते हैं। यहां तक कि इम्यून सिस्टम भी बेहतर होता है। कारण यह है कि जब व्यक्ति कुछ रचनात्मक कर रहा होता है, तो उसका ध्यान बाकी नेगेटिव इमोशंस से हट कर केवल मौजूदा क्षण पर टिक जाता है, इसे ही माइंडफुलनेस कहते हैं। यह स्थिति योग या ध्यान जैसी होती है। इसमें एंडोर्फिन, डोपामाइन और सेरोटोनिन का स्राव होता है, जिससे मन शांत और सकारात्मक बनता है। जरूरी है कि रचनात्मकता को पनपने दें, उसे आगे बढ़ाएं। जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए भी यह जरूरी है।