एक अरसे बाद मैसेंजर पर पुरानी दोस्त का नाम उभरा, होंठों पर अनायास मुस्कान आ गयी। लिखा था, महीने के अंत में भारत आ रही है, एक दिन शहर में रुक कर आगे जाना है...। शहर में मौजूद छोटी सी मित्र मंडली तक यह संदेश पहुंचा और मुलाकात का वक्त तय किया गया। दो दशक से भी ज्यादा का समय गुजर चुका है, इस बीच सबकी शादियां हुईं, बच्चे बड़े हुए और अपनी जिंदगी में सेटल हुए। पर उन चंद दोस्तों से मिलने की ख्वाहिश भी बहा ले जाती है पुराने दिनों के बेफिक्र-बेलौस दिनों में।
वाकई दोस्ती जीवन का वह नायाब तोहफा है, जिसे हम खुद को भेंट करते हैं। वक्त के साथ सबकी जिंदगी बदल जाती है, लेकिन दिल के किसी कोने में दोस्त हमेशा मौजूद रहते हैं, भले ही उनसे मिल सकें या नहीं, पर दोस्ती की खुशबू मन को महकाती रहती है। बरसों बाद भी मिलने पर लगता है कि जैसे कल ही तो मिले थे।
मेंटल-सेंटीमेंटल पर नो जजमेंटल
खलील जिब्रान कहते हैं-दोस्ती एक खूबसूरत अहसास है, कोई मौका या अवसर नहीं। यहां कुछ कहने-सुनने की जरूरत नहीं पड़ती, बिन कहे-सुने ही एक-दूसरे के दिल का हाल जान लेते हैं दोस्त। हालांकि जीवन के अलग-अलग पड़ावों पर कई तरह की दोस्ती होती है, पर मन के करीब तो कोई-कोई ही रह सकता है। ऐसा दोस्त, जिससे आधी रात को भी फोन पर चैटिंग की जा सकती है, छोटी-छोटी बातों पर लड़ा-झगड़ा या मुंह फुलाया जा सकता है। दोस्ती का यह मिर्चीवाले पकौड़ों जितना तीखा, जलेबी जितना घुमावदार और रसगुल्ले जैसा मुंह में घुल जानेवाला मीठा-गहरा रिश्ता अकसर किशोर या युवावस्था में बनता है। ऐसे दोस्त से जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले सलाह ली जाती है, उलझनें बांटी जा सकती हैं, अपने राज साझा किए जा सकते हैं, क्योंकि उस पर भरोसा होता है कि वह बिना जजमेंटल हुए बात सुनेगा और यह बात उसी तक रहेगी। ऐसे दोस्त के सामने अपनी वास्तविक शक्ल-अक्ल और स्वभाव में बने रहने की हिमाकत की जा सकती है...। यह पारदर्शिता, सहजता, सुरक्षा, वफा या तसल्ली दोस्ती के सिवा क्या किसी भी अन्य रिश्ते में हो सकती है !
अलग-अलग हैं दोस्ती के रंग
महान दार्शनिक-चिंतक अरस्तू ने दोस्ती को सटीक ढंग से परिभाषित किया। उन्होंने दोस्ती को तीन श्रेणियों में बांटा-सुविधावाली दोस्ती, खुशी प्रदान करनेवाली दोस्ती और करीबी दोस्ती। सुविधा की दोस्ती परस्पर निर्भरता
पर आधारित होती है। इसमें एक-दूसरे से कुछ हित जुड़े होते हैं। मसलन वे पड़ोसी, जो आपकी अनुपस्थिति में आपकी डाक या अन्य जरूरी चीजों को संभाल सकें। जरूरी नहीं कि इन पर आपको इतना भरोसा हो कि घर की चाबियां भी इनके हवाले कर सकें। कुछ दोस्त शॉपिंग, वॉकिंग या डांस पार्टनर हो सकते हैं। प्रोफेशनल जीवन में भी कुछ दोस्तियां हो सकती हैं। अंत में आती है-अच्छी या करीबी दोस्ती, जिनमें चंद बचपन के दोस्त हो सकते हैं, जिन्हें हर रिश्ते से ऊपर रखा जाता है, जिनके साथ मानसिक-भावनात्मक-आत्मिक किस्म का जुड़ाव होता है।
लंबी उम्र का सीक्रेट है दोस्ती
ऐसे कितने ही शोध हुए हैं कि स्ट्रोक, डिप्रेशन, डिमेंशिया, अल्जाइमर या हार्ट प्रॉब्लम्स के लिए काफी हद तक अकेलापन जिम्मेदार है। खासतौर पर उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह अकेलापन बढ़ता है। इसलिए यह जरूरी है कि परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए दोस्तों को ना भूला जाए और अगर कुछ समय के लिए दूरी हो भी जाए, तो जितनी जल्दी संभव हो, उनसे रीकनेक्ट किया जाए। इस पर फिशरमेन्स फ्रेंड स्टडी का विश्लेषण करते हुए ऑ क्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एंथ्रोपोलॉजिस्ट रॉबिन डनबर कहते हैं कि इंसान एक बार में लगभग डेढ़ सौ लोगों के साथ कनेक्ट हो सकता है। यह आकलन मस्तिष्क के साइज के हिसाब से किया गया है, लेकिन इनमें वह बहुत कम लोगों से संवाद में सक्षम है। इन्हीं डेढ़ सौ लोगों में उसके चंद दोस्त भी शामिल हैं। डनबर कहते हैं कि ऐसी कई मेडिकल स्टडीज हुई हैं, जो बताती हैं कि मेंटल-फिजिकल स्वास्थ्य के लिए दोस्ती कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जीवन में कम से कम 5-6 अच्छे दोस्त जरूर होने चाहिए, जिनके कंधे पर सिर टिका कर रो सकें, जिन पर पूरा भरोसा कर सकें। शोध यह भी कहते हैं कि लंबी उम्र का राज अच्छी दोस्तियां हैं। कुछ समय पहले ही हुए एक अध्ययन में कहा गया कि जिनके पास अच्छे दोस्त होते हैं, उनकी उम्र लंबी होने के चांसेज 50 फीसदी तक बढ़ जाते हैं।
इन्वेस्टमेंट तो करना होगा
फिशरमेन्स फ्रेंड स्टडी में पाया गया कि एक सामान्य दोस्ती को सच्ची मित्रता में बदलने में कम से कम 34 घंटे का परिश्रम लगता है। अमूमन किसी भी परिचय को प्रगाढ़ होने में लगभग 5-6 महीने का समय लग सकता है, जिसमें नियमित संपर्क होता रहे। सवाल यह है कि इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास इतना वक्त कहां होता है, पर यह चाहत हर किसी के दिल में होती है कि उसके जीवन में भी चंद अजीज दोस्त हों। इस स्टडी में शामिल लगभग 60 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे चाहते हैं कि उनके दायरे में दोस्तों की संख्या बढ़ सके। डनबर के अनुसार, डिजिटल दुनिया ने परिवार से भी ज्यादा नकारात्मक असर दोस्ती पर डाला। मित्रता को जूम या वॉट्सऐप से अंतरंग नहीं बनाया जा सकता। इस स्टडी के अनुसार, बेस्ट फ्रेंड वह है, जो बुरे से बुरे हाल में भी दोस्त को स्वीकार करे, कठिन समय में साथ दे और सपोर्ट सिस्टम बने।
हर एक दोस्त जरूरी होता है
बेस्ट फ्रेंड की खूबियां गिनाने के साथ ही यह बताना भी जरूरी है कि हर एक दोस्ती की अपनी अहमियत है। कई बार सुविधावाली दोस्ती भी गहरी मित्रता में बदल जाती है, तो बेस्ट फ्रेंड्स के बीच भविष्य में दूरी भी पैदा हो सकती है। वैसे दिल के दरवाजे खुले हैं, तो दोस्ती की खुशगवार बयार अंदर आ ही जाती है। भावनाओं का आदान-प्रदान होता रहे, तो परिचितवाले टैग पर ‘अच्छी दोस्ती’ की मोहर लगते देर नहीं लगती। बस एक कदम आगे बढ़ाने की जरूरत होती है। यहां बशीर बद्र के उस शेर को उलटना पड़ता है, जिसमें वे कहते हैं, कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो...। दोस्ती के लिए दुनियादारी नहीं, बच्चों सी मासूमियत चाहिए।
...एक छोटा सा टेस्ट
चलिए एक छोटा सा टेस्ट करते हैं। क्या आपके फोन की कॉन्टैक्ट लिस्ट में ऐसे कुछ नाम हैं, जिन्हें जब चाहे फोन घुमा सकते हैं...। कभी जब मन बहुत उदास हो, आंखों में नमी हो, किसी से दिल का हाल बयां करने को जी चाहे या कभी बहुत खुश हों और खुशी संभाले ना संभल रही हो, तो क्या आप किसी दोस्त से बात कर पाते हैं...। अगर हां, तो आप भाग्यशाली हैं। अगर ऐसा नहीं है, तो समय आ गया है कि लोगों से मिलें-जुलें, बातें करें, पुराने दोस्तों को तलाशें, उनसे मुलाकात का वक्त निकालें।