Tuesday 21 September 2021 12:38 PM IST : By Poonam Ahmed

टीचर्स डे

teachers-day

नंदिनी ने जैसे ही क्लास में कदम रखा, प्रतिदिन की तरह उनकी नजर सबसे पीछे के बेंच पर कोने में बैठे नमन पर पड़ी, क्रोध और घृणा के मिलेजुले भावों से उनके माथे पर शिकन उभर आयी। नंदिनी इस छठी कक्षा की अध्यापिका भी थीं और हिंदी पढ़ाती थीं। उन्होंने सबकी उपस्थिति दर्ज की, पढ़ाना शुरू किया, प्रतिदिन की तरह नमन को डांटने की इच्छा बलवती हुई, तो जानबूझ कर तेज स्वर में बोलीं, ‘‘नमन!’’ 

नमन कांपता खड़ा हो गया। 

‘‘कल जो पढ़ाया था याद है?’’ 

नमन कुछ नहीं बोला, उन्हें टुकुर-टुकुर देखता रहा। नंदिनी और चिढ़ गयीं, फिर डांटा, ‘‘कुछ पूछ रही हूं तुमसे? कुछ याद है?’’ 

नमन ने सिर नीचे झुका लिया, पूरी कक्षा में बच्चों की हल्की-हल्की हंसी सुनायी देने लगी। 

‘‘जाओ, एक कोने में जा कर खड़े हो जाओ।’’

नमन अपनी बेंच से निकल कर क्लास के एक कोने में जा कर खड़ा हो गया। यह तो लगभग हर दूसरे दिन-तीसरे दिन का रुटीन ही था। नंदिनी ने आगे पढ़ाना शुरू कर दिया, पूरे पीरियड नमन खड़ा रहा। बच्चे बीच-बीच में उसे देख कर मुस्काराते रहे। नमन के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी, एकदम चुपचाप पता नहीं किन ख्यालों में डूबा क्या सोचता रहा। पीरियड खत्म होने पर नंदिनी सब बच्चों की नोटबुक्स ले कर जिनमें नमन की भी थी, क्लास से निकल गयीं। 

दिन में अपने फ्री पीरियड में वे स्टाफ रूम में बैठ कर सब बच्चों की नोटबुक्स चेक करने लगीं। जैसे ही नमन की नोटबुक सामने आयी,उनका चेहरा गुस्से से तन गया, कोई चीज पूरी नहीं ! गंदी राइटिंग ! ओह, इस गंदे लड़के से कैसे मेरा पीछा छूटेगा, वे कॉपी एक तरफ रख कर चेअर पर सिर टिका कर सोचने लगीं। बहुत गुस्सा आता है नमन पर, बाकी सब बच्चों के चेहरों पर कितनी ताजगी, खुशी, कितना उत्साह, शरारत दिखती है और यह रोनी सूरत ले कर बैठा रहता है। ना पूछने पर कोई उत्तर, ना बताने पर कोई प्रतिक्रिया, करने क्या आता है स्कूल जब पढ़ने में मन ही नहीं लगता है और कितना गंदा रहता है ! लगता है रोज नहाता भी नहीं है, इस स्कूल में इसका एडमिशन कैसे हो गया। किसी छोटे-मोटे सरकारी स्कूल में कहीं पढ़ लेता, हमारे इतने अच्छे स्कूल में क्यों एडमिशन ले लिया? बस, यह एक साल निकल जाए, मेरी जान छूटेगी इससे, पर कहीं फेल हो गया, तो फिर पूरे साल इसकी शक्ल देखनी पड़ेगी।

घर जा कर नंदिनी अपने पति संजीव और 16 वर्षीया बेटी रिया से रोज की तरह नमन की शिकायत करने लगीं, तो रिया ने हंस कर कहा, ‘‘मम्मी, नमन तो आपके दिलोदिमाग पर छाया रहता है, आपका फेवरेट स्टूडेंट !’’ 

नंदिनी ने मुंह बनाया, ‘‘चुप रहो रिया, सुबह से ही उसकी शक्ल देख कर गुस्सा आ जाता है, रोनी शक्ल। कभी भी फ्रेश नहीं दिखता, पता नहीं कैसे माता-पिता हैं, क्या सिखा रहे हैं !’’ नंदिनी रोज घर पर भी नमन को कोसती रहती थीं, उन्हें नमन से नफरत, चिढ़ होती जा रही थी। 

त्रैमासिक परीक्षाअों में नमन हर विषय में फेल हुआ, तो प्रिंसिपल सारिका ने नंदिनी को बुलाया और नमन का नाम लिया ही था कि नंदिनी शुरू हो गयीं, ‘‘मैम, इस लड़के का मन पढ़ाई में जरा भी नहीं लगता, यह इस क्लास तक पहुंचा भी कैसे? मैं तो अभी स्कूल में नयी आयी हूं, पर यह पिछली क्लास में पास भी कैसे हुआ।’’ 

सारिका सौम्य स्वभाव की बहुत ही शांत महिला थीं, स्कूल की प्रसििद्ध में उनके कोमल स्वभाव का विशेष योगदान था, उन्होंने कोमल स्वर में कहा, ‘‘नंदिनी, यह नमन का पांचवीं क्लास का रिजल्ट है, एक बार नजर डाल लो।’’

नंदिनी ने जैसे-जैसे नमन की पिछली रिपोर्ट्स पर नजर डाली, उनके चेहरे का रंग बदलता चला गया। नमन इतना मेधावी छात्र था ! हर विषय में इतना होशियार ! स्कूल की बाकी गतिविधियों में इतना आगे ! नंदिनी जैसे हैरत में डूबी थीं, अवाक थीं, आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। 

सारिका ने गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारे जॉइन करने के कुछ ही दिन पहले नमन की मां की डेथ हो गयी है, पिता अकेले हैं, इस समय अस्वस्थ हैं, दोनों अकेले रह गए हैं। घर-गृहस्थी, नमन की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। खुद ही तैयार हो कर स्कूल आ जाता है, आसपास के लोगों की मदद से जितना हो सकता है, अभी चल रहा है। दोनों नमन की मां के जाने के दुख से अभी उबर नहीं पाए हैं। नमन की मां थी, तो नमन बहुत अच्छे छात्रों की श्रेणी में आता था। हम टीचर्स हैं, हमारा कर्तव्य है कि अपने स्टूडेंट्स के गिरते मनोबल को उठा कर जीवन में आगे बढ़ने में इनकी मदद करें। मुझे आशा है, तुम मेरी बात समझ गयी होंगी।’’

नंदिनी के मुंह से कुछ नहीं निकला, आंखें भर आयी थीं, ‘‘जी मैम, थैंक्स,’’ कहते हुए नंदिनी सीधे वॉशरूम गयीं, आंखें अजीब सी ममता से भीगी जा ही थीं। सारिका मैम ने नमन के बारे में बता कर उनका मार्गदर्शन बहुत ही उचित ढंग से किया था।

उस दिन जब नंदिनी घर पहुंची, संजीव और रिया उनके चेहरे पर छायी उदासी व गंभीरता को देख कर हैरान हुए। डिनर के समय उन्हें हंसाने की कोशिश करते हुए रिया ने कहा, ‘‘क्या हुआ मम्मी, आज इतनी चुप ! नमन नहीं आया क्या?’’

संजीव हंस पड़े, नंदिनी की आंखों से अचानक बह चली अश्रुधारा देख कर पिता-पुत्री चौंक गए, संजीव ने पूछा, ‘‘क्या हुआ नंदिनी, तबीयत तो ठीक है?’’

नंदिनी कोहनी टेबल पर टिका हाथों में मुंह छिपा कर रोए जा रही थी। बहुत पूछने पर नमन के बारे में बताया, तो माहौल उदास हो गया। वे कह रही थीं, ‘‘बड़ी गलती हुई मुझसे ! बिना जाने हाल ही में अपनी मां को खो चुके बच्चे के साथ कितनी रुखाई से पेश आ रही थी, अपने आप पर शरम आ रही है मुझे,’’ एक अपराधबोध नंदिनी के मनोमस्तिष्क पर हावी होता जा रहा था। रातभर नमन का उदास चेहरा, सूनी आंखें नंदिनी की आंखों के आगे आती रहीं और वे ममता से भीगी अपनी आंखें पोंछती रहीं, बेचैनी से सुबह होने की प्रतीक्षा कर रही थी।

अगले दिन जब नंदिनी क्लास में बायीं, उनकी नजर नमन पर पड़ी। बच्चों की समवेत फुसफुसाहट सुनायी दी, जिसकी उपेक्षा कर नंदिनी ने नमन को अपने पास बुलाया। नमन डरता हुआ उनके पास आ कर खड़ा हो गया। नंदिनी ने उसके उलझे, कुछ गंदे बालों पर हाथ फिराया,तो नंदिनी को नमन की आंखों में डर और हैरानी एक साथ दिखे। नंदिनी ने स्नेहपूर्वक पूछा, ‘‘नमन, होमवर्क किया?’’ 

नमन ने कुछ जवाब नहीं दिया, तो बच्चे हंसने लगे। नंदिनी ने उन्हें घूरा, तो सब शांत हो गए, फिर कहा, ‘‘यहीं रहो मेरे पास, मैं कुछ पूछती हूं तो बताना।’’ 

नमन बिलकुल चुप रहा। नंदिनी ने जानबूझ कर कुछ आसान सवाल पूछे, जिनके जवाब सब बच्चों ने खूब उत्साह से दिए, पर नमन चुप ही रहा, शांत, उदास। तीन-चार दिन यही क्रम चलता रहा, नंदिनी नमन को अपने पास ही खड़ा करतीं, उसके सिर पर हाथ फेरतीं, उसका कंधा थपथपातीं, उसे उत्तर देने के लिए प्रोत्साहित करतीं, फिर नमन से कहतीं, ‘‘नमन को उत्तर पता है, अब वह बताएगा।’’ 

एक दिन नमन की चुप्पी टूट ही गयी। उसने नंदिनी को उनके प्रश्नों के उत्तर ठीक दिए, तो नंदिनी ने बच्चों के साथ मिल कर तालियां बजायीं, नमन को खूब शाबाशी दी। धीरे-धीरे नमन में एक सुखद परिवर्तन दिखने लगा था, नंदिनी का दिल भर आता। अब नमन कुछ साफ-सुथरा रहने लगा था, उसकी नोटबुक्स भरने लगी थीं। पीछे की बेंच से कब नंदिनी के सामने बेंच पर बैठने लगा, किसी को पता नहीं चला। हर प्रश्न पर हाथ खड़ा करता, सही जवाब देता, तालियां बजतीं, तो नमन के चेहरे पर एक चमक उभर आती, पर हंसता-मुस्कराता अब भी नहीं था। नंदिनी क्लास में अब थोड़ा हंसी-मजाक भी कर लेतीं, नमन के चेहरे पर एक मुस्कराहट देखने के लिए कुछ गपशप भी बच्चों के साथ करने लगी थीं। 

जिस दिन नंदिनी को जवाब दे कर नमन धीरे से मुस्कराया, तो नंदिनी का दिल ममता से भर उठा, मन ही मन स्वयं को फिर धिक्कारा, कितने दिन इस बच्चे के साथ रुखाई से पेश आयी, मां के जाने के गम में डूबे हुए बच्चे को कितना डांटा-फटकारा, छिः, बहुत पाप हुआ, पर नमन की भोली मुस्कराहट में नंदिनी का ममतापूर्ण हृदय डूबता जा रहा था। अब नमन धीरे-धीरे अन्य बच्चों के साथ बातें करता भी दिख जाता था। अब नंदिनी की पूरी नजर, पूरा ध्यान नमन पर रहता था। कई बार उसके लिए कुछ खाने के पैकेट भी ले आती और अपने पास बुला कर चुपचाप दे देतीं। अब दोनों के बीच एक अनूठा रिश्ता अपनी जड़ें मजबूत करता जा रहा था। 

घर जा कर भी नंदिनी का ध्यान नमन में रहता, वह बच्चा है, घर जा कर पता नहीं क्या खाने के लिए मिलता होगा, पिता अस्वस्थ हैं, क्या करता होगा? अब नंदिनी की कोशिश थी कि वे नमन के लिए जितना संभव हो, उतना कर दें। नंदिनी नमन के बाकी विषयों की पढ़ाई के बारे में टीचर्स से पूछती रहती थीं। नंदिनी के विनयपूर्वक आग्रह करने पर सभी टीचर्स नमन पर अतिरिक्त ध्यान देने लगी थीं।

छमाही परीक्षा में नमन ने सबको हैरत कर दिया, उसने बहुत ही अच्छे अंक प्राप्त किए थे। सारिका ने नंदिनी को फिर बुलाया और कहा, ‘‘वेलडन नंदिनी, मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। तुमने एक बच्चे को अपना स्नेह, मार्गदर्शन दे कर उसका जीवन संभाल दिया आई एम प्राउड ऑफ यू, नंदिनी।’’

नंदिनी बहुत खुश हुईं, जरा सा स्नेह ही तो मिला उसे मुझसे जैसे एक मुरझाया हुआ फूल खिल उठा है। इस उदास बचपन को सींचने के लिए स्नेह कितना आवश्यक था !

नंदिनी ने नमन को बुला कर कुछ चॉकलेट्स और मिठाई दी, नमन ने ‘थैंक्यू मैम’ कहते हुए उनके चरण स्पर्श किए, तो वे निहाल हो गयीं। अब नमन नंदिनी से अपने पिता के बारे में भी बाते करने लगा था, उसने बताया कि उसके पिता पहले से काफी ठीक हैं और ऑफिस भी जाने लगे हैं।

टीचर्स डे आने वाला था, सब बच्चे आपस में बातें करने लगे कि क्लास टीचर को क्या देंगे। स्कूल में छोटा सा प्रोग्राम होता था, टीचर्स के मना करने के बाद भी स्टूडेंट्स टीचर्स को कुछ गिफ्ट देते ही थे, कुछ बच्चे हंस रहे थे कि नमन क्या देगा, इसे तो टीचर ही देती रहती है। टीचर्स डे पर बच्चों ने कुछ प्रोग्राम पेश किए, कुछ कविताएं सुनायीं, दो-तीन नाटक भी हुए। प्रोग्राम अच्छा रहा, फिर बच्चे टीचर्स को गिफ्ट देने लगे। नमन के हाथ में भी पुराने अखबार में लिपटा हुआ एक पैकेट था, कुछ बच्चे हंसने लगे, ‘‘कुछ पुरानी चीज उठा कर ले आया है यह।’’

नमन ने बहुत ही संकोच के साथ अपना पैकेट नंदिनी के आगे कर दिया और कहा, ‘‘मैम, आपके लिए।’’

नंदिनी ने इतने उपहारों में सबसे पहले नमन का दिया पैकेट खोला, नजर आंसुअों से धुंधला गयीं, एक पुरानी साड़ी! ‘‘यह मेरी मम्मी की साड़ी है, अब मुझे आपके पास से मां की खुशबू आती है।’’

कलेजा मोम हो गया नंदिनी का, ममता में भी एक खुशबू होती है, महसूस कर लिया जरा से बच्चे ने, किसी की परवाह किए बिना रो पड़ीं नंदिनी, नमन को बांहों में भर लिया। एक सन्नाटा पसर गया जैसे, जिसने भी यह दृश्य देखा, अपनी आंखें भीगने से रोक ना सका। टीचर्स डे पर एक गुरु-शिष्य के स्नेह-सम्मान का जीताजागता उदाहरण सबके सामने था।