Monday 04 January 2021 12:23 PM IST : By Poonam Ahmed

अपने अपने मेघदूत

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पानीपत के एस. पी. कॉलेज की कैंटीन में बैठी चारों सहेलियां सोनिका, काव्या, राखी और सुनयना चाय-समोसे का आनंद उठा रही थीं। हमेशा की तरह सोनिका सौम्या मैम पर टीका-टिप्पणी करने में व्यस्त हो गयी। सौम्या उन्हें संस्कृत पढ़ाती थी, चारों बीए फाइनल की छात्राएं थीं। सोनिका ने कहा, ‘‘बस यह सौम्या मैम ही ‘अभिज्ञानशाकुंतलम’ इतनी नीरसता से पढ़ा सकती हैं, उनका चेहरा देखा है कभी। एकदम नीरस, भावहीन। तीस साल की होंगी, पर रोनी सूरत लिए घूमती हैं। पता नहीं क्यों मैंने संस्कृत ले ली। इससे अच्छा होता, तो हिस्ट्री ही ले ली होती। कम से कम नीलम मैम का हंसता-मुस्कराता चेहरा तो दिखता, यहां तो जैसे सौम्या जी हंसना ही नहीं जानती, कितनी बोरिंग है।’’

काव्या ने कहा, ‘‘मैंने तो कहा था, चल हिस्ट्री लेते हैं, तुझे पता नहीं क्या करना है संस्कृत का।’’

‘‘अरे, मुझे लगा स्कोरिंग सब्जेक्ट है, इसलिए ली। हिस्ट्री याद करना कौन सा आसान काम है, पर हां, इन सौम्या मैम की गंभीर, बोरिंग मुख-मुद्राअों से बच जाते।’’ इस बात पर राखी और सुनयना भी हंसती हुई हां में हां मिला कर नाश्ता करती रहीं और बीच-बीच में सौम्या की बुराई में भाग लेती रहीं।

चारों बचपन की सहेलियां थीं, घर भी आसपास ही थे। सौम्या की नियुक्ति इस गर्ल्स कॉलेज में संस्कृत प्रोफेसर के रूप में 2 साल पहले ही हुई थी। शुरू में ही उसकी दोस्ती इंगलिश प्रोफेसर रागिनी से हुई थी, जो समय के साथ प्रगाढ़ होती चली गयी थी। रागिनी अपने मिलनसार स्वभाव के कारण छात्राअों और टीचर्स में काफी लोकप्रिय थीं। सौम्या अपने नाम के अनुरूप ही शांत और सौम्य थी। स्टाफ रूम में अपने कोमल स्वभाव के कारण उसने सबका दिल जीत लिया था। कम बोलती थी, गंभीर रहती थी, पर स्वभाव की कोमलता ने हर टीचर का दिल जीत ही लिया था। क्लास में मन लगा कर पढ़ाती, काम से काम रखती। सोनिका जैसी छात्राअों की नजर में वह काफी रूखी-सूखी, भावहीन, बोरिंग पर्सनेलिटी थी। सोनिका पढ़ाई में होशियार थी, वह लगभग सभी टीचर्स की फेवरेट थी, पर सौम्या ने कभी उसे कुछ स्पेशल अटेंशन नहीं दी थी। सोनिका को सौम्या की यह बेरुखी खल गयी थी। उसे एक जिद सी सवार हो गयी थी कि सौम्या भी उसे एक खास लड़की समझेगी ही। खूबसूरत, मेधावी सोनिका के दिल पर सौम्या का यह रूखा सा स्वभाव छाया रहने लगा था। वह सबसे सौम्या की बुराई करती घूमने लगी थी। उसका कहना था, ‘‘संस्कृत पढ़ाते समय टीचर के हावभाव, स्वर में कुछ बात तो होनी चाहिए ना। अरे, संस्कृत रस ले कर पढ़ने का विषय है या रूखे-सूखे चेहरे के साथ भाषण देने का। मुझे नहीं लगता कि इन्होंने प्रेम संबंधी किसी भावना को कभी महसूस किया होगा, ये क्या समझाएंगी, अभिज्ञान और मेघदूत।’’ एक दिन सोनिका ने हिंदी की मंजू मैम से पूछ ही लिया, ‘‘मैम, सौम्या मैम की फैमिली में कौन-कौन हैं।’’

‘‘उनकी मां और पिता जी। उनका विवाह नहीं हुआ है।’’

‘‘तभी इतनी रूखी-सूखी सी हैं,’’ कह कर सोनिका हंसी, तभी उसके मोबाइल पर उसके बॉयफ्रेंड अमित का फोन आ गया, तो वह वहां से हट गयी। अमित ने मूवी और लंच का प्रोग्राम बनाया था। सोनिका ने कहा,‘‘लेकिन मैं कॉलेज में हूं।’’

‘‘तो छोड़ दो, मैं थिएटर के बाहर ही खड़ा हूं।’’

‘‘जरूरी पीरियड है।’’

‘‘अरे छोड़ो, तुम तो बाद में भी पढ़ लोगी, आअो ना।’’ उसने काव्या को बताया, ‘‘मैं जा रही हूं, बाद में नोट्स दे देना।’’ सोनिका तेज-तेज चलते हुए जा ही रही थी कि उसे अपने ख्यालों में डूबी धीरे-धीरे चलती सौम्या दिखायी दी। उसने मन ही मन कहा, ‘‘हुंह, पता नहीं क्या सोचती रहती है, बोर।’’ सौम्या की नजर सोनिका पर पड़ी, तो सोनिका मस्ती में चलती हुई उसे विश किए बिना पास से निकल गयी। सौम्या ने सोनिका को देखा था, पर अपने पीरियड में उसे गायब देख कर पूछ लिया, ‘‘सोनिका कहां है।’’ काव्या ने कहा, ‘‘मैम, कुछ जरूरी काम था, उसे घर जाना पड़ा।’’ सौम्या ने बिना कोई प्रतिक्रिया दिए फिर पढ़ाना शुरू कर दिया। अगले दिन उसने सोनिका से पूछा, ‘‘कल तुम्हें अचानक जाना पड़ा, घर में तो सब ठीक है ना।’’

सोनिका ने असभ्य ढंग से कहा, ‘‘घर में सब ठीक है मैम, कुछ पर्सनल काम था,’’ कह कर वह बेशर्मी से मुस्करायी, तो कुछ और लड़कियां भी हंस दीं। सौम्या फिर गंभीरतापूर्वक पढ़ाने लगी।

अगले दिन सीढि़यों के नीचे ही खाली पीरियड में सोनिका अपने ग्रुप के साथ सौम्या की ही चर्चा कर रही थी कि नीचे उतरती हुई सौम्या के पैर अपना नाम सुन कर नहीं ठिठक गए। सोनिका को सौम्या से एक चिढ़ सी, एक जिद सी बन गयी थी। वह कह रही थी, ‘‘अब सौम्या मैम को क्या बताती कि अमित के साथ मूवी देखी, लंच किया, उनका बोरिंग लेक्चर मिस हो गया, अच्छा ही हुआ और बॉयफ्रेंड के साथ प्यार-मोहब्बत, मूवी, लंच वे क्या समझेंगी। उनकी लाइफ में तो कुछ है नहीं, मैंने पता किया है वे अपने पेरेंट्स के साथ रहती हैं। विवाह की उम्र जब निकल रही होती है तब स्त्रियां ऐसी ही हो जाती हैं। वैसे देखने में तो सुंदर हैं, फिर विवाह क्यों नहीं हुआ। क्या पता इनके रूखे-सूखे हावभाव देख कर लड़के भाग खड़े हुए हों। ये तो संस्कृत साहित्य के शृंगार रस में डूबे शब्द को भी वियोग रस में बदल देती हैं, प्रेम दृश्य भी ऐसे वर्णन करती हैं जैसे अभी रो देंगी, ये क्या जानें प्यार-व्यार,’’ कह कर वह हंसी तो बाकी लड़कियों ने भी उसका साथ दिया। सौम्या चुपचाप नीचे उतरने लगी।

कुछ दिन सब सामान्य चलता रहा। सौम्या अपने पीरियड पूरी तन्मयता से लेती, रागिनी से थोड़ी-बहुत दिल की बातें करती और घर चली जाती। जहां सोनिका जैसी लड़कियां उसका मजाक बनाती थीं, वहीं कुछ और लड़कियां भी थीं, जिन्हें वह बहुत प्रिय थीं। वे अकसर सौम्या को घेरे रहतीं, वे पढ़ाई से संबंधित कुछ भी पूछतीं, सौम्या उनकी हर तरह से मदद करती। सौम्या की सादगी ने कई छात्राअों और टीचर्स को प्रभावित किया था, पर आधुनिक, धनी परिवार की जिद्दी, घमंडी, सुंदर, स्मार्ट सोनिका सौम्या के पीछे ही पड़ी रहती। सौम्या को अपनी शक्ल दिखा कर जानबूझ कर उसके पीरियड से गायब हो जाती, अमित के साथ घूमती-फिरती। सौम्या ने सोनिका को मार्केट वगैरह में भी अमित के साथ बाइक पर घूमते देखा था।

अचानक सौम्या कॉलेज में अनुपस्थित थी। एक दिन, दो दिन, तीन दिन हो गए, लड़कियों ने टीचर्स से पूछना शुरू किया, तो जवाब मिला, उनकी मां का स्वर्गवास हो गया है। छात्राअों में सन्नाटा सा छा गया। सौम्या को पसंद करनेवाली छात्राअों को बहुत दुख हुआ। उनमें से काफी लड़कियां टीचर्स से सौम्या के घर का पता ले कर शोक प्रकट करने भी गयीं। टीचर्स का भी सौम्या के घर आना-जाना चल रहा था। सोनिका ने राखी से कहा, ‘‘चल, हम लोग भी अफसोस करते चलते हैं, मैडम के घर का हाल भी देख लेंगे।’’

मंजू मैम से एड्रेस ले कर एक दिन चारों शाम को सौम्या के घर पहुंचीं। रागिनी भी वहीं बैठी हुई थीं। सौम्या सोनिका और उसकी सहेलियों को देख कर थोड़ा हैरान हुई, पर अवसाद में डूबा मन कुछ और सोच ही नहीं पाया। सब चुपचाप बैठी थी, चारों लड़कियों ने नजर डाली, अत्यंत सादगीभरा सुरुचिपूर्ण घर था। काव्या ने ही बात शुरू की, ‘‘मैम, कैसे हुआ अचानक। बीमार थीं।’’

सौम्या ने रुंधे गले से कहा, ‘‘मां अच्छी-भली रात को सोयी थी, अचानक मुझे आवाज दी। मैं भागी, पर मां कुछ बोल ही नहीं पायी, हार्ट फेल हो गया। जब तक डॉक्टर आए, मां जा चुकी थीं।’’ इतने में अंदर से ‘‘बेटा, आना’’ की आवाज आयी, तो सौम्या ने कहा, ‘‘पिता जी बुला रहे हैं, उन्हें बुखार है, अभी आयी,’’ कह कर सौम्या अंदर चली गयी, तो सोनिका इशारे से अपनी सहेलियों से चलने की पूछ ही रही थी कि सौम्या वापस आयी और बोली, ‘‘पिता जी को दूध और दवाई देनी है, आप सबके लिए भी चाय बना कर लाती हूं। आप लोग बैठो, मैं अभी आयी।’’

रागिनी ने कहा, ‘‘नहीं सौम्या, हम चलते हैं अब।’’

‘‘नहीं-नहीं, चाय का तो टाइम हो ही रहा है, बैठिए, मैं अभी आयी।’’

सौम्या किचन में व्यस्त हो गयी। सोनिका ने कहा, ‘‘रागिनी मैम, सौम्या मैम तो अब और अकेली हो जाएंगी, उनका कोई और रिश्तेदार है यहां।’’
रागिनी ने ठंडी सांस लेते हुए धीरे-धीरे कहा, ‘‘तुम लोगों ने तो उसे शांत, गंभीर देख कर बहुत बातें बनायी हैं ना,’’ चारों के चेहरों का रंग उड़ गया। वे सकपका गयीं। रागिनी ने संयत स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारी गलती नहीं है, तुम्हारी उम्र ही एेसी है। बात की गहराई तक गए बिना तुम लोग ऊपर ऊपर देख कर ही फैसला कर लेती हो। ये सौम्या के अपने माता-पिता नहीं है। उसके माता-पिता तो दिल्ली में रहते हैं, ये तो उसके मंगेतर रवि के माता-पिता हैं, जिनका अब सौम्या के सिवा कोई नहीं है। सौम्या और रवि एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। दोनों का विवाह होनेवाला था, अचानक रवि की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। रवि इकलौती संतान था, सौम्या अपना घर-परिवार छोड़ रवि के माता पिता की देखभाल के लिए यहां उनके साथ ही रहने आ गयी। उसके माता-पिता, भाई सब मिल कर भी सौम्या को उसके फैसले से हटा नहीं पाए। उसके माता-पिता भी आए हुए थे, वे आज ही वापस गए हैं। सौम्या ने इसलिए यहीं यह जॉब भी ढूंढ़ी।’’

चारों का चेहरा सफेद पड़ गया था, रागिनी मैम धीरे-धीरे बोल रही थी, ‘‘सबके अपने-अपने मेघदूत होते हैं। सौम्या ने जो प्यार किया था, आज तक निभा रही है। रवि के ना रहने पर कभी उसके माता-पिता को अकेला नहीं छोड़ा। घरवालों से झूठ बोल कर बाइक पर घूमना, मूवी देखना, लंच करना ही प्यार नहीं है बच्चो, यह तो इक आग का दरिया है और डूब कर जाना है।’’

इतने में सौम्या आ गयी। सबको चाय दे कर खुद भी चुपचाप एक कप ले कर बैठ गयी। चारों लड़कियों ने उस पर एक साथ नजर डाली, हल्के से गुलाबी रंग के सादा से सूट में उदास सी सूरत आज उन्हें दुनिया की सबसे सुंदर सूरत लगी। लगा जैसे सौम्या मैम के रोम-रोम से अनूठे प्रेम की छटा निकल कर पूरे कमरे में फैल रही है। अपनी हरकतों पर, अपनी सोच पर सिर शरम से झुका जा रहा था। अांखें उठायीं, तो अांसू झिलमिला रहे थे, जिन्हें देख कर सौम्या चौंकी, ‘‘क्या हुआ, सोनिका।’’

‘‘सॉरी मैम,’’ सौम्या ने बस सिर हिला दिया, सोचा, सोनिका ने मां की मृत्यु के लिए कहा, पर यह तो सोनिया के दिल से हर बात के लिए सॉरी था। रागिनी को सौम्या ने रोक लिया था। चारों सहेलियां सौम्या के घर से बाहर आ कर चुपचाप चलती पास के ही पार्क की बेंच पर बैठ गयीं। चारों की अांखों में पश्चाताप के अांसू थे, सोनिका के दिल में तो जैसे एक तूफान हलचल मचाए था। वह क्या समझ रही थी। अमित के साथ पूरा दिन फोन पर चैटिंग, उसके साथ घूमना-फिरना, मिलना-जुलना प्यार है। नहीं। प्यार तो सौम्या मैम ने किया था, प्रेम में त्याग है तभी तो प्यार को पूजनीय कहा जाता है। यह तो एक अनूठा रिश्ता है, जिसमें शरीर का कोई आकर्षण नहीं होता फिर भी दो दिल हमेशा एक-दूसरे के करीब होते हैं। सम्मान, त्याग और समर्पण से सराबोर प्यार के इस खूबसूरत अहसास को समझते हुए सोनिका के दिल में आज सौम्या मैम के लिए प्यार और सम्मान की भावनाएं हमेशा के लिए अपना स्थान बना चुकी थीं।