Saturday 04 July 2020 02:31 PM IST : By Team Vanita

अंधेरों से अागे

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मासूम माला ने ऐसे गुनाह की सजा भुगती, जो उसने किया ही नहीं था। गैंग रेप की शिकार इस लड़की को क्या न्याय मिल पाया, क्या उसका जीवन सामान्य हो
वह बुरी तरह चीख रही थी। चिल्लाते-चिल्लाते उसका गला बैठ गया था। हलक में कांटे उग अाए थे। सख्त जमीन पर पड़े भूसे के टुकड़े उसके नरम जिस्म को जख्मी कर रहे थे। पर ये जख्म उन जख्मों के सामने कुछ नहीं थे, जो उसके शरीर के साथ अात्मा को भी जख्मी किए दे रहे थे। बहता हुअा गरम खून उसकी कमर के नीचे इकट्ठा हो रहा था। वक्त मानो थम सा गया था। कितनी देर हो गयी थी, कितने लोग थे, यह अहसास भी अब उसे नहीं था। सिर्फ इतना पता था कि इस वक्त जो शख्स उसके जिस्म को रौंद रहा था, उसे वह काका कहती थी अौर वह उसे हमेशा ‘माला बिटिया’ कह कर बुलाता था। वही क्यों बिन्नू चाचा, प्रीतम भैया, चंदर भैया, सोनू सब उसके जाने-पहचाने थे।
‘‘छोड़ दो मुझे... मर जाऊंगी,’’ वह दर्द से तड़पती हुई चिल्लायी।  
‘‘छोड़ना मत कमीनी को, चल चंदर अब तेरी बारी है,’’ रुकमा दादी की कड़क अावाज उसके कानों में पिघला सीसा बन कर उतर गयी।
‘‘दादी इसकी हालत तो देखो, सच में मर जाएगी।’’
‘‘बड़ा तरस अा रहा है,’’ दादी भद्दी गाली दे कर बोली, ‘‘वहां वो हरामी क्या तेरी बहन की अारती उतार रहा होगा।’’ िफर वे जोर से चिल्लायीं, ‘‘कस के हाथ पकड़ के रख जित्तू... बदन में जान नहीं है क्या?’’
अब कोई अौर था। वह जोर से चीखी, तो किसी की भारी हथेली उसके मुंह पर चिपक गयी। उसका दम घुटने लगा, वह सांस लेने को जूझ रही थी, तभी उसकी नींद खुल गयी, वह थरथर कांप रही थी। उसका जिस्म पसीने से तरबतर था।
उसने बराबर में नजर डाली। श्रीकांत गहरी नींद में सो रहे थे। पालने में 6 महीने का बबलू भी सो रहा था। उसने श्रीकांत का कंबल ठीक किया अौर हौले से बबलू का माथा चूम लिया। फिर धीरे से कमरे से बाहर अा कर दरवाजा भिड़ा दिया। फ्रिज से ठंडा पानी निकाल कर पिया, तो थोड़ी राहत महसूस हुई। वह बाहर बालकनी में अा कर चेअर पर बैठ गयी। दूर तलक सन्नाटा पसरा हुअा था। पीला मरियल सा चांद पेड़ की फुनगी पर टंगा था। उसने सिर कुर्सी की पुश्त पर टिका लिया अौर अांखें मूंद लीं।
 क्या होगा कल, यह सवाल उसके जहन में ठक-ठक कर रहा था। पूरे 6 साल गुजारे हैं उसने इस दिन के इंतजार में।
अाज भी वह मंजर उसे चैन से सोने नहीं देता। हर रात वह उसी खौफ में जीती है। छह साल हुए जब वह वहां कस्बे में अपनी मां, बाबा अौर बड़े भाई रोहन के साथ रहती थी। बाबा की वहां छोटी सी कपड़े की दुकान थी। रोहन बीकॉम फाइनल में था। 16 बरस की माला वहीं गर्ल्स इंटर कॉलेज में 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी। मां गौरी गृहिणी थीं अौर अपना परिवार सुघड़ता से चला रही थीं। ये लोग जिस मकान के ऊपरी हिस्से में किराएदार थे, उसी में नीचे मकान मालिक बद्री सिंह का परिवार रहता था। उनका भरापूरा परिवार था, जिसमें उनकी मां, पत्नी, भाई, बेटे अौर एक बेटी रेखा थी। रेखा कस्बे के एकमात्र डिग्री कॉलेज में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। दोनों परिवारों में अच्छी मित्रता थी।
 मकान मालिक को माला बद्री काका कहती थी। बद्री काका की मां रुकमा दादी का पूरे परिवार में बेहद दबदबा था। वे बहुत कड़क स्वभाव की थीं।
माला, चंदन, रोहन, रेखा अौर सोनू की खूब दोस्ती थी। कभी वे लोग नीचे अांगन में कैरम खेलते या ऊपर छत पर ताश, तो कभी इकट्ठे खेतों में घूमने निकल जाते अौर अमराई में अाम तोड़ कर खाते। इस बीच रेखा अौर रोहन के बीच कब नजदीकियां बढ़ कर प्रेम में परिवर्तित हो गयीं, इसका किसी को अहसास तक ना था। दोनों जानते थे कि अलग जाति होने के कारण माता-पिता कभी उनके विवाह के लिए सहमत नहीं होंगे। अतः उन्होंने अपने संबंध कभी उजागर नहीं होने दिए।
अचानक एक दोपहर रेखा कॉलेज से वापस नहीं अायी, तो सब परेशान हो उठे अौर रेखा को ढूंढ़ने निकल पड़े। शाम तक यह कंफर्म हो गया कि रोहन भी गायब है। यानी दोनाें साथ भागे हैं। माला के पिता तेज सिंह अन्य लोगों के साथ रोहन अौर रेखा की तलाश में निकल गए। घर पर मां-बेटी परेशान बैठी थीं। रोहन ने उन्हें किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था। तभी दरवाजे पर खटखट हुई, तो माला ने एकदम दौड़ कर दरवाजा खोला कि शायद बाबा अौर रोहन अा गए।
दरवाजे पर रुकमा दादी खड़ी थीं। उनके पीछे बद्री, सोहन, चंदर, सोनू सहित अनेक लोग खड़े थे। दादी का चेहरा गुस्से से लाल था। वे जोर से चिल्लायीं, ‘‘कहां है हमारी बिटिया?’’ दादी का ऐसा विकराल रूप माला ने कभी नहीं देखा था। वह सहम कर बोली, ‘‘हमें नहीं मालूम दादी।’’
‘‘नहीं मालूम, तो उठा लो इस हरामजादी को अौर इसकी वो गत बनाअो कि इसका पूरा खानदान याद रखे,’’ वे माला की अोर इशारा करके चिल्लायीं। उसे दबोच कर जबर्दस्ती मुंह बंद करके नीचे खड़ी कार में बिठा दिया गया। गौरी चिल्लाती हुई जीने में उनके पीछे दौड़ी, ‘‘छोड़ दो मेरी बेटी को, उसकी कोई गलती नहीं है।’’ लेकिन उसका मुंह अौर हाथ-पैर बांध कर कमरे में बंद करके बाहर से कुंडी लगा दी गयी।
गाड़ी कस्बे से कुछ दूर खेतों के बीच बने घेर में रुकी। यहां दादी के परिवार की गाय, भैंस बंधती थीं। यहां भूसे के कई कोठे थे। भूसे के एक अाधे खाली कमरे में माला को जमीन पर पटक दिया गया। वह उन सबके अागे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाती रही, पर किसी ने एक ना सुनी। अौर फिर वहां शुरू हुअा इंसानियत को शर्मसार करनेवाला दहशतनाक खेल। अपनी मर्जी से भागी बेटी का बदला उस मासूम की इज्जत लूट कर लिया गया अौर सबसे हैरत की बात यह थी कि इन सबकी कमान एक अौरत ने ही संभाल रखी थी। बद्री काका की पत्नी राधा इन दिनों मायके गयी हुई थीं। अगर वे यहां होतीं तब शायद यह अनर्थ होने से बच जाता।
माला बार-बार बेहोश होती रही फिर दर्द से तड़प कर होश में अाती रही। अाखिरकार बेहोशी की हालत में उसे मुर्दा समझ सड़क के किनारे फेंक घर में ताला लगा कर वे सब फरार हो गए।
रोहन अौर रेखा की कोई खबर नहीं थी। पुलिस स्टेशन पर उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा कर जब तेज सिंह घर अाए, तो गौरी की हालत देख बदहवास हो उठे। माला पर क्या गुजर रही होगी, सोच कर ही उनकी रूह कांप रही थी। अासपास के लोगों के साथ उसकी तलाश में निकले। उसके पिता सड़क के किनारे लहूलुहान हालत में पड़ी अपनी लाड़ली बिटिया की हालत देख कर बिलख उठे।
अस्पताल में माला के होश में अाने पर पुलिस ने उसके बयान लिए, माला की हालत बेहद नाजुक थी। वह बार-बार चीखती हुई होश में अाती फिर बेहोश हो जाती। न्यूज चैनल्स अौर अखबारों की हैडलाइन बने गैंग रेप के इस केस ने लोगों को स्तब्ध कर दिया। झूठी शान के लिए कोई अौरत किसी दूसरी अौरत के साथ इतना बुरा कर सकती है, किसी को भी विश्वास करना मुश्किल था। पुलिस ने सारे अपराधी गिरफ्तार कर लिए थे, तमाम साक्ष्य उपलब्ध थे। रोहन अौर रेखा भी यह खबर देख कर वापस अा गए थे। उन्होंने अदालत में अपने बालिग होने अौर मंदिर में विवाह के सबूत पेश किए, तो अदालत ने उन्हें साथ रहने की अनुमति दे दी। माला को अस्पताल में काफी लंबा वक्त गुजारना पड़ा। उसके कई अॉपरेशन हुए, काउंसलिंग के लंबे सेशन चले, जिनसे उसे रिकवर होने में अासानी हुई, पर वह एकदम गुमसुम हो कर रह गयी थी। जिस्म पर लगे जख्म ठीक हो रहे थे, पर नाजुक मन पर जो जख्म लगे थे, वे उससे जीने की वजह पूछ रहे थे। क्या रह गया था बाकी उसके जीवन में? समाज में क्या सम्मान रह जाएगा उसका अौर उसके परिवार का? ‘‘नहीं जीना है मुझे,’’ उसने खुद से कहा।
 एक शाम उसने ड्रेसिंग करने अायी नर्स की ट्रे से चुपचाप नाइफ निकाल कर तकिए के नीचे छिपा लिया अौर रात में जब सन्नाटा छा गया, तो उसने अपनी कलाई की नसें काट लीं। नाइट ड्यूटी के डॉ. श्रीकांत राउंड पर अाए, तो देखा खून बह रहा था अौर वह बेहोश थी। स्टिच लगा कर जब उसे कमरे में वापस पहुंचाया गया, तो डाॅ. श्रीकांत उसके पास ही अा कर बैठ गए। वह अभी भी बेहोश थी। डॉक्टर उसके करीब बैठे उसके भोले मासूम चेहरे को देखते रहे। उन्हें माला पर बेपनाह प्यार अाया।
श्रीकांत दिल के बेहद अच्छे थे। उनके बचपन में ही पिता नहीं रहे थे। मां ने उन्हें बड़े जतन से अच्छे संस्कार दे कर पाला
था। गत वर्ष उनकी मां का भी स्वर्गवास हो गया। अब वे दुनिया में बिलकुल अकेले थे। माला की तकलीफ ने उनके दिल को छू लिया। अब श्रीकांत प्रतिदिन ड्यूटी अॉफ होने के बाद माला के पास अा कर बैठते। उसके स्कूल की सहेलियों की बातें करते, टीवी पर कॉमेडी शो दिखा कर उसे जबरन हंसाने की कोशिश करते। श्रीकांत ने उसे वह सब भी दिखाया, जो बाहर चल रहा था। देशभर में कैंडल मार्च करते युवा अौर हर अायु वर्ग के लोग, उसके लिए इंसाफ मांगती भीड़, जो बार-बार उसे दिलासा दिलाती कि ‘तुम्हारा कोई दोष नहीं हम सब तुम्हारे साथ हैं।’’ धीरे-धीरे माला सामान्य होने लगी।
यह सब थेरैपी का हिस्सा था। पर उसका इलाज करते-करते कब डॉक्टर खुद दिल के मरीज बन गए, पता ही नहीं चला। माला के घर अाने के बाद भी माला के माता-पिता अौर सबसे बढ़ कर श्रीकांत की सेवा अौर प्यार ने माला को दोबारा जिंदगी जीने की प्रेरणा दी। अब वह कॉलेज जाने लगी थी। समाज का रवैया उसके लिए बेहद सकारात्मक था। सबको उससे हमदर्दी थी। एक दिन जब श्रीकांत ने माला के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा, तो वह फूट पड़ी, ‘‘ मैं अापके काबिल नहीं हूं...’’
‘‘क्यों नहीं हो काबिल... क्या हुअा तुम्हें?’’
‘‘अाप तो सब जानते हैं फिर भी...’’ उसकी अधूरी बात का सिरा थामते हुए श्रीकांत बोले, ‘‘हां फिर भी... क्योंकि जो हुअा, उसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं था।’’
‘‘अापको बहुत अच्छी लड़की मिल जाएगी...’’
‘‘मेरे लिए तुम दुनिया की सबसे अच्छी लड़की हो,’’ श्रीकांत ने अाजिजी से माला का हाथ थाम लिया।
‘‘लेकिन उन गुनहगारों को सजा दिलाए बिना मैं कभी खुश नहीं रहूंगी,’’ माला की अांखें प्रतिहिंसा से जल उठीं।
‘‘उन सबको उनके अंजाम तक पहुंचाने में मैं तुम्हारे साथ हूं।’’
श्रीकांत अपने वादे पर खरे उतरे, विवाह के बाद से अाज तक वे हर पल उसके साथ थे। न्यायिक प्रक्रिया धीमी थी, पर वे हमेशा उसे धैर्य रखने को कहते। माला पर समझौते का बहुत दबाव बनाया गया, लाखों की पेशकश की गयी, पर वह किसी तरह ना डिगी। कल फैसले का दिन है। सुनने में अाया था कि जब माला किसी तरह ना मानी, तो वे लोग न्याय खरीदने के प्रयासों में जुट गए। क्या होगा कल, क्या उसकी अस्मत की बोली चंद रुपयों में लग जाएगी या उसे न्याय मिलेगा? दूर सूरज की पहली किरण उम्मीद की उजास के साथ झांक रही थी।
जब वह श्रीकांत के साथ अदालत परिसर में पहुंची, तो नन्हा बबलू उसकी गोद में था। परिसर के बाहर भारी भीड़ थी। सैकड़ों मीडियाकर्मी चारों तरफ कैमरे लिए खड़े थे, युवाअों ने उसके समर्थन में बैनर उठा रखे थे, वे दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की मांग कर रहे थे।
अाज अदालत के कमरे में भी काफी भीड़ थी। तमाम अभियुक्त वहां मौजूद थे अौर गरदन झुकाए हुए थे। जज साहब ने जब दादी के साथ बाकी नौ मुलजिमों को उम्र कैद की सजा सुनायी, तो दादी ने जोर से रोना शुरू कर दिया। वे माला से माफी मांग रही थीं। श्रीकांत ने माला का हाथ मजबूती से थाम िलया अौर दोनों कोर्ट रूम से बाहर अा गए। बाहर भीड़ खुश हो कर नारे लगा रही थी। मीडिया के फ्लैश चमक रहे थे। अाज भी माला की अांखों में अांसू थे, पर ये खुशी के अांसू थे। लंबे संघर्ष के बाद ही सही, अाज सचाई की जीत हुई थी। वह सिर ऊंचा करके अागे बढ़ चली। वह जानती थी कि अाज के बाद वे सपने उसे कभी नहीं अाएंगे, अाज वह सुकून से सोएगी। बादलों से सूरज निकल अाया था, उसके अंधेरे जीवन में भी प्रकाश फैल गया था।