फरवरी का महीना हर साल दिल में अलग किस्म की सुरसुरी पैदा करता है, लेकिन हर बार उम्र के तकाजे और पत्नी जी के तगादे मेरी आशिकमिजाजी को हवा कर देते। पिछले साल तय कर लिया था कि हम भी वेलेंटाइन बाबा के दरबार में जयकारा लगा कर ही दम लेंगे। यही नहीं, लोगबाग वेलेंटाइन वीक मनाते हैं, हमने प्रेम पखवाड़ा मनाने की ठान रखी थी।
इससे पहले कि किस्सा-ए-वेलेंटाइन आगे बढ़े, आपसे कुछ बातें साझा करना जरूरी समझता हूं। मेरी उम्र है 60 साल, पत्नी जी 56 की, शादी को हो गए हैं तकरीबन 32 साल ! पर दिल तो बच्चा है जी। और यही बच्चा रट लगाए बैठा है कि वेलेंटाइन पर कुछ धमाल जरूर करेगा। बच्चों की बात से याद आया कि हमारे दो गैर शादीशुदा सपूत हैं, जो जॉब के सिलसिले में हमसे दूर दूसरे शहरों में रहते हैं।
खैर छोडि़ए इन बातों को, मैंने भी कुछ दिनों के लिए दिमाग की बातों को तवज्जो ना देते हुए दिल की सुननी शुरू कर दी है। वेलेंटाइन पखवाड़े की पूरी एक्सेल शीट मैंने तैयार कर ली थी। यानी 7 फरवरी से शुरू हो कर 14 फरवरी को अपने अंजाम तक पहुंचने वाला प्रेम का यह महापर्व अपने हर दिन में अद्भुत है। लेकिन मुझे तो 1 फरवरी से ही इस व्रत को धारण करना था। लिहाजा मैंने वेलेंटाइन से जुड़े तमाम कंटेंट सोशल मीडिया, यूट्यूब और गूगल पर खंगाल डाले, ताकि जो कार्य अभी तक किसी ने ना किया हो, वो मैं करूं और प्रेम पर्व के इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवा सकूं।
खैर, प्रेम माह का पहला दिवस अपनी पूरी छटा के साथ आ गया। प्लान के मुताबिक पहले दिन मुझे उनके दिल तक का रास्ता उनके पेट से हो कर तय करना था। पत्नी जी थोड़ी चटोरी किस्म की हैं और मात्र 1-2 समोसे या चाट की एक प्लेट से लहालोट हो जाती हैं। शाम को पार्क में घूमने जाने का बहाना बना कर मैं घर से निकल गया और सीधा पहुंच गया तीखानेर हलवाई की दुकान पर। मैंने दुकानदार से 4 समोसे पैक करने को कहा।
घर के दरवाजे पर ही पहुंचा था कि अंदर से 3-4 महिलाओं की हंसी का कॉकटेल मेरे दिल की खुमारी पर कटारी चलाता प्रतीत हुआ। हाथ में लिया समोसे का पैकेट छुपाने की जगह थी नहीं, सो मय पैकेट के जब मैं घर में दाखिल हुआ, तो पत्नी जी अपनी तीन सहेलियों के साथ हंसी-ठठ्ठे में मशगूल थीं। मुझे देखते ही कहा, ‘‘अरे, आप बड़ी जल्दी आ गए? और ये क्या लाए हैं?’’ मैं क्या कहता कि इस पैकेट में समाेसे नहीं मेरे वेलेंटाइन पर्व का पहला भोग है, जिसे मैं अपनी प्रेयसी पर चढ़ाने आया हूं। पत्नी जी ने लपक कर मेरे हाथ से पैकेट ले लिया और खोल कर देखा, तो खुश हो गयीं, ‘‘वाह, आपको कैसे पता चला कि मेरी सहेलियां आयी हुई हैं,’’ और उन महिलाओं की ओर मुखातिब हो कर बोलीं, ‘‘लो बहनो, गरमागरम समोसे का लुत्फ उठाओ, मेरे श्रीमान जी खास हमारे लिए लाए हैं।’’
उनकी प्रशंसा भरी आंखों के बदले में मैं भी ऊपर से मुस्कराया, पर अंदर से मेरी हालत खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसी थी। मन के किसी कोने में पुरुषाेचित चुहल सूझी कि कहां एक देवी को भोग चढ़ाने वाला था, कहां 3-3 देवियां और बोनस में मिल गयीं। लेकिन कुशल खिलाड़ी की तरह यह भाव चेहरे पर कतई ना आने दिया।
खैर, दूसरा दिन यों जाया ना करूंगा, मैंने सोचा और योजना के मुताबिक अगले दिन शाम को मैंने पत्नी जी से इसरार किया कि वे भी ईवनिंग वॉक पर साथ चलें। पत्नी जी थोड़े नानुकर के बाद साथ चल पड़ीं। थोड़ी देर वॉक करने के बाद मैं उनके साथ तीखानेर की दुकान पर आ गया। पत्नी जी हैरत में थीं कि यहां आज इन्हें क्या खरीदना है, तभी मैंने 2 प्लेट टिक्की चाट का ऑर्डर दे दिया और पत्नी जी की आंखों में रोमांटिक खयाल ढूंढ़ने लगा।
लेकिन कहते हैं किस्मत फूटी हो, तो कहीं भी चले जाओ, किस्मत तो साथ ही जाएगी। चाट की प्लेट आने से पहले इसी दुकान में पत्नी जी की उन्हीं तीनों सहेलियों का दुरागमन हो गया। हमें देखते ही एक बोल पड़ीं, ‘‘हाय, आप दोनों यहां... क्या बात है,’’ और तीनों धम्म से हमारे पास वाली कुरसियों पर बैठ गयीं। पत्नी जी तो सहेलियों के आने से खुश हो गयीं, लेकिन मेरे दिल का हाल मत पूछिए। खैर, मैंने 3 प्लेट और चाट का ऑर्डर मन मार कर दिया।
व्रत के तीसरे दिन मैंने सोच लिया कि आज किसी को भी अपनी तपस्या भंग करने नहीं दूंगा और कुछ ऐसा करूंगा, जिसमें कोई दखल दे ही नए पाए। पत्नी जी को कपड़ाें का भी बहुत शौक है, तो सोचा कि इनके लिए बढि़या सी साड़ी लाऊं, जिसे देख कर बस ये खुश हो जाएं। पत्नी जी जिस दुकान से कपड़ों की खरीदारी करती थीं, मैं भी बैंक जाने का बहाना बना कर वहीं चला गया। अपनी पसंद से एक बढि़या सी साड़ी खरीदी और उसकी अच्छी पैकिंग करा कर घर आ गया। पत्नी जी को जब साड़ी दी, तो वे अचंभित हुई, ‘‘ये किस खुशी में ले आए, अभी तो ना कोई तीज, ना त्योहार...’’ कहते हुए उन्होंने पैकेट खोला और देखते ही उनका अचंभा अफसोस में तब्दील हो गया। कहने लगीं, ‘‘अरे, इसी फैब्रिक और इसी रंग की साड़ी तो छोटी (उनकी छोटी बहन) ने मुझे दीवाली पर दी थी। मुझे बता तो देते...’’
मेरा सारा जोश काफूर हो गया, क्योंकि अब साड़ी बदली नहीं जा सकती थी। मैंने अपनी पसंद की खुद ही दाद देते हुए साड़ी की फॉल-पिको भी करा दी थी। मैंने हिम्मत नहीं हारी और कहा, ‘‘अरे, तो काेई दूसरी साड़ी दिलवाता हूं तुम्हें, अभी चलो।’’ लेकिन पत्नी जी ने साफ मना कर दिया और कहा, ‘‘रहने दीजिए, इसे मैं होली में सुनैना (मेरी छोटी बहन) को दे दूंगी।’’ तीसरे दिन भी मेरा चढ़ावा प्रेम की देवी की भेंट नहीं चढ़ पाया।
अब चौथे दिन मेरी अग्नि परीक्षा थी, मुझे हर हाल में अपने प्रेम को कसौटी पर खरा उतारना था। एक अरसा हो गया था, हम मूवी देखने थिएटर में नहीं गए थे, जबकि पत्नी जी एक जमाने में फिल्मों की बेहद शौकीन रही थीं। मैंने नयी रिलीज हुई फिल्म की 2 टिकटें ऑनलाइन बुक करा लीं और उन्हें सरप्राइज देने का इंतजार करने लगा। उस दिन मैंने उन्हें कह दिया था कि आज हम कहीं घूमने चलेंगे, घर में बैठे-बैठे बोर हो गए हैं। जब पत्नी जी लकदक तैयार हो गयीं, तो मैंने उन्हें सरप्राइज देते हुए बताया कि हम घूमने नहीं, मूवी देखने जा रहे हैं। इतना सुनते ही पत्नी जी का मूड ऑफ होता दिखा। उन्होंने मेरी ओर हिकारत भरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘आप भी ना... ओटीटी प्लेटफॉर्म के जमाने में कौन देखता है मूवी थिएटर में जा कर... और ये वाली मूवी तो मैंने कल ही देखी है।’’ बस फिर क्या था, टिकटें अब कैंसिल हो नहीं सकती थीं, सो पैसे तो डूबे ही और मेरा पॉपकॉर्न खाते हुए मूवी देखने का सपना भी अधूरा रह गया।
अब मेरा आत्मविश्वास डिगने लगा था, दफ्तर में बेस्ट इनोवेटिव आइडिया का खिताब पाने वाला मैं अपनी एक के बाद एक ध्वस्त होते आइडियाज के आगे बेबस, लाचार था। लेकिन देवी को पता नहीं कि उसका पाला किस भक्त से पड़ा है। अब वेलेंटाइन वीक शुरू होने में 3 दिन बाकी थे, सोचा इन तीन दिनों में कुछ बड़ा करते हैं। मैंने पास के रिजॉर्ट में कमरा बुक कराया और एहतियातन पत्नी को सरप्राइज वक्त से पहले ही दे दिया। पत्नी सुन कर बेहद खुश हुईं, लेकिन ऐन उसी रात को मुझे बुखार हो गया और प्रोग्राम कैंसिल हो गया, जिसका मुझसे ज्यादा अफसोस पत्नी जी को हुआ, क्योंकि वे अपने सोशल मीडिया स्टेटस में अपने रिजॉर्ट वाले प्लान को सार्वजनिक कर चुकी थीं।
तीन दिनों तक मेरे जैसा प्रेम भक्त बिस्तर पर पड़ा रहा और प्रेम की देवी तीमारदारी में लगी रही। खैर, अपना प्री-वेलेंटाइन प्रोग्राम तो धराशायी हो गया, लेकिन मेरे जैसा वीर वेलेंटाइन मना कर ही रहेगा, इसी सोेच के साथ मैंने आगे बढ़ने की ठानी। गूगल देख कर पता लगाया कि रोज डे पर गुलाब के फूल दे कर अपनी प्रेयसी को रिझाया जाता है। मेरे हृदय में प्रेम का ज्वार-भाटा इस कदर तांडव कर रहा था कि पास के टिल्लू फ्लोरिस्ट के पास जा कर गुलाब खरीदने पहुंच गया। टिल्लू पहले तो मुस्कराया, फिर बोला, ‘‘अंकल, अगर ये गुलाब आंटी जी के लिए ले जा रहे हो, तो डिस्काउंट दूंगा। और अगर किसी और के लिए तो डबल रेट लूंगा।’’ ये क्या बात हुई, लेकिन हर हफ्ते पूजा के लिए गेंदे की माला व फूल लेने वाले अंकल ऐन रोज डे के दिन गुलाब खरीदेंगे तो शक तो होगा ही। मैंने उसे डांटा, ‘‘अरे, आंटी के लिए ही ले जा रहा हूं, अब कहां किसी और के लिए...’’ मैंने ठंडी आह भरी।
घर पहुंच कर जब मैंने रोमांटिक अंदाज में पत्नी जी को गुलाब पेश किए तो पहले तो वे चौंकी, फिर उनकी त्योरियां चढ़ गयीं, ‘‘इस उम्र में वेलेंटाइन बाबा का भभूत लगा कर घूमने का शौक अचानक कैसे चर्रा गया! जितने के गुलाब ले कर आए हैं, उतने में हफ्ते भर की सब्जियां आ जातीं,’’ और बिना गुलाब लिए किचन में चली गयीं।
मेरा वेलेंटाइन का सारा भूत उतर कर ना जाने किस पीपल के पेड़ पर बैठ गया। अब अकेले कमरे में बैठा आगे के 6 दिनों के बारे में सोच रहा हूं कि अगर पत्नी जी गुलाब देख कर भड़क गयी हैं तो प्रपोज डे पर रिंग, चॉकलेट डे पर चॉकलेट, टेडी डे पर टेडी देख कर उनका पारा सातवें आसमान पर ना चला जाए। प्रॉमिस डे पर चाहे कुछ प्रॉमिस कर भी लूं, पर हग डे व किस डे ! तोबा-तोबा गरदन ही हलाल ना कर दें कहीं ! मेरे वेलेंटाइन डे का बाजा तो बज गया, और अब पत्नी जी को कैसे मनाऊं, इस मोर्चे पर आप मेरी कुछ मदद कर सकते हैं तो आपका स्वागत है।