‘‘क्या बात है रंजीते? आज सुबह सुबह,’’ कर्नल साहब ने अपने बगीचे में चहलकदमी करते हुए रंजीत को देख कर कहा।
‘‘वो सर जी मां का फोन आया है, गांव जल्दी बुलाया है...’’ हिचकते हुए रंजीत ने कहा।
‘‘तो...’’
‘‘सर जी... छुट्टी चाहिए थी 15 दिन की। मां ने मेरे लिए एक लड़की पसंद की है, जिद कर रही हैं कि तू भी देख ले, अगर पसंद आए तो शादी कर दूंगी।’’
‘‘ओ...हो ! तो मेरा फौजी शहीद होने जा रहा है,’’ ठहाका लगाते हुए कर्नल शमशेर सिंह ने कहा, ‘‘ठीक है ! भाई जाओ।’’
दिल्ली के पास आर्मी कैंप में रहने वाला रंजीत असल में छोटे से गांव का बाशिंदा है। इस देश का जांबाज सिपाही है। पिता भी फौज में थे, उन्होंने देश के लिए हंसते-हंसते जान निछावर कर दी थी। मां ने अकेले ही पाला उसे, गांव में जमीन थी, खेती कर गुजारा हो जाता था।
रंजीत ने जैसे ही रूप कौर को देखा तो देखता ही रह गया। एकदम खरी पंजाबन थी। लंबी, गोरी, तीखे नैन-नक्श और गजब का भोलापन, नजर चेहरे पर जमी तो फिर हटी ही नहीं। रूप भी मंद-मंद मुस्करा रही थी उसकी हालत देख कर। मां ने बात संभाली और 15 दिन में ही चट मंगनी ते पट ब्याह हो गया।
फिर वापस जाने का समय आ गया...
रंजीत ने तय किया कि रूप पहले एक-दो महीने मां के साथ रहे, फिर वह आ कर ले जाएगा। मगर रूप तो मोटे-मोटे आंसुओं से रोने लगी।
मां ने भी झिड़क दिया, ‘‘शादी उसकी मेरे साथ हुई है या तेरे साथ, अब वो तेरी वोटी है, तेरे साथ साए की तरह रहेगी।’’
कैंप में पहुंचते ही बात आग की तरह फैल गयी कि रंजीते शादी करके आया है। शाम तक तो उसके अड़ोसी-पड़ोसी सबने उसके घर में डेरा जमा दिया। सबसे आगे था सैम, जो मुंह बनाए झूठमूठ का गुस्सा दिखा रहा था।
‘‘यह है मेरा जिगरी यार ! तुम हमको दोस्त कहता है? और... दोस्त को ही शादी में नहीं बुलाया, ना भाभी से मिलाया, आज से दोस्ती खत्म... समझा !’’
‘‘अरे यार ! नौटंकी बंद कर और मिठाई खा, मां ने खासतौर पर तेरे लिए भिजवायी है। अगर दूसरा शुभ मुहूर्त होता तो मैं रुक जाता, मगर इसके बाद 6 महीने तक कोई मुहूर्त नहीं था और बार-बार छुट्टी मिलना मुश्किल होता है, तू तो जानता है।’’
रूप ने झटपट चाय-नाश्ते का इंतजाम कर दिया। रंजीत बाकी लोगों से मिलता रहा और सैम रूप की मदद करने लगा।
अकसर जब रूप सजती तो रंजीत कहता, ‘‘बिलकुल मेम साहब लगती हो ! बस अंग्रेजी में हाथ थोड़ा तंग है, हा... हा... हा...’’ और हंस देता।
रूप संशय में घिर जाती कि यह तारीफ है या...
इधर अकसर शाम को सैम आ जाता, कभी शाम की चाय तो रात का खाना खा कर ही जाता और ढेर सारी तारीफों के पुल बांध देता, रूप की पाक कला, तो कभी खूबसूरती या बेपरवाह हंसी की।
सैम के साथ रूप का घुलना-मिलना रंजीत को पसंद नहीं आ रहा था, मगर एक तरफ पत्नी तो एक तरफ दोस्त, किसे छोड़े, किसे पकड़े... एक बार इशारों-इशारों में रंजीत ने रूप को समझाना चाहा कि उसे सैम से ज्यादा घुलना-मिलना नहीं चाहिए, मगर रूप ने एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दिया।
एक दिन जब वह ऑफिस से निकला तो रास्ते में पड़ोस में रहने वाली मिसेज मेहता मिल गयीं। रंजीत ने नमस्ते किया। उन्होंने उसे रोक लिया।
रंजीत ने पूछा, ‘‘क्या बात है?’’
‘‘ये सैम तेरा दोस्त है या तेरी बीवी का यार?’’ मिसेज मेहता ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा।
‘‘क्या बकवास है?’’ रंजीत जोर से चिल्ला उठा।
‘‘और नहीं तो क्या? अगर तेरा दोस्त है तो जब तू घर पर नहीं होता, तब क्यों आता है?’’ कह कर वह निकल गयी।
वह जब घर पहुंचा तो सैम पहले से मौजूद था और रूप कुछ लिख रही थी।
‘प्रेम पत्रों का आदान प्रदान भी शुरू हो गया,’ मन ही मन उसने सोचा।
आंखों के डोरे लाल दिखने लगे थे। रूप ने पूछा, ‘‘चाय बना लाऊं?’’
‘‘नहीं... आज प्यास लगी है हम ड्रिंक्स लेंगे।’’
‘‘क्यों सैम... तू मेरा दोस्त है ना !’’
‘‘तुझे शक है क्या?’’
तब तक रंजीत ने दो ग्लास गटक लिए थे।
‘‘अगर... अगर... तू मेरा दोस्त है इसे मार डाल... गला घोंट दे इस औरत का !’’
‘‘क्या बोल रहा है, रंजीत? तू होश में तो है !’’
‘‘मैं होश में नहीं रहना चाहता,’’ और एक ओर वह गिर पड़ा, सैम ने उसे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। इधर एक कोने में बैठी रूप सुबकने लगी।
‘‘यह आज की बात नहीं सैम, रोज का यही हाल है, ना जाने मुझसे क्या अपराध हो गया है?’’
‘‘यह मुझे मारना चाहता है, मैं जितना इसका ध्यान रखती हूं, उतना यह फटकारता है,’’ कह कर वह सैम के कंधे पर सिर रख कर फफक उठी।
‘‘सब ठीक हो जाएगा, परेशान लगता है वैसे दिल सोने का है मेरे यार का।’’ सैम समझ चुका था कि बात क्या है, किसी ने शक का कीड़ा रंजीत के दिमाग में डाल दिया है, उसको और रूप को ले कर। अपने दोस्त के मासूम से चेहरे पर चिंता की लकीरें देख उसका दिल भर आया। कहां तो उसे अपने दोस्त का हर दुख दूर करना था, कहां वही उसके दुख का कारण बन गया।
‘‘कल शाम को आना सैम,’’ रूप ने कहा तो वह बोला, ‘‘बस कल आखिरी बार है, फिर मैं तुमसे कभी नहीं मिलूंगा।’’
तीन जिंदगियां ऐसी उलझी हुई कभी नहीं थीं। तीनों दिल अलग-अलग कारण से जल रहे थे और आंच दूसरा महसूस तो कर रहा था, पर आंच को काबू कैसे करें?
दूसरे दिन सुबह रंजीत उठा तो सिर भारी हो रहा था। रूप नीबू पानी बना लायी।
‘‘क्यों जी, कल क्यों नाराज हो रहे थे?’’
‘‘कुछ नहीं...’’ अनमना सा उत्तर दिया तो रूप उसकी बांहों में झूल गयी, ‘‘सुनो, आज के बाद मैं सैम से बात नहीं करूंगी, ठीक है ! वैसे भी आज हमारी शादी की सालगिरह है, एक साल कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला... है ना!’’
‘‘मुझे तो एक-एक पल पता चला,’’ मन ही मन रंजीत बुदबुदाया।
‘‘चलो ना ! देवी मां के मंदिर, प्रसाद चढ़ाएंगे,’’ जब रूप ने मासूम सा चेहरा बना कर मनुहार की तो रंजीत मान गया।
आंखें बंद करके रूप देवी मां के ध्यान में ऐसे खोयी जैसे अपनी सारी खुशियां मां से मांग लेना चाहती हो। वहीं रंजीत अलग ही दुनिया में था... ईर्ष्या और नफरत की आग, जो पहले ही उसका सुख-चैन जला कर राख कर चुकी थी, अब उसे एक और भयंकर कदम उठाने के लिए उकसा रही थी।
रास्ते में उसने पेस्ट्रीज का एक डिब्बा खरीदा।
‘‘क्या मेरे लिए पेस्ट्रीज है? अरे वाह !’’
‘‘नहीं, शादी की सालगिरह की खुशी में यह पेस्ट्रीज मैं सैम के घर देने जाऊंगा... वैसे भी कल मैंने उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था। ऐसा करो, तुम घर जाओ, मैं अपने दोस्त से मिल कर आता हूं।’’
‘‘मैं भी चलती हूं ना...’’
‘‘तुम जा कर क्या करोगी, तुम घर जाओ,’’ आवाज फिर कठोर हो गयी।
उसने रूप को ऑटो में बैठा दिया व खुद मोटरसाइकिल से सैम के घर निकल पड़ा। दरवाजा खटखटाया तो सैम ने खोला, मगर वह भौंचक्का सा था। रंजीत ने बेतकल्लुफ हो कर कमरे में प्रवेश किया, ‘‘कल ज्यादा ही बदतमीजी कर गया... मुझे माफ करना यार !’’
‘‘यार भी कहता है और माफी भी मांगता है तुम !’’
‘‘ये तुम्हारी फेवरेट पेस्ट्रीज।’’
‘‘अच्छा, तो शादी की सालगिरह की खुशी में आयी हैं यह पेस्ट्रीज।’’
‘‘यही समझ कर खा लेना... ठीक है !’’
एक बार फिर उसके शब्द और उसकी आंखें अलग-अलग भाव दर्शा रहे थे। जहां आंखें कठोर और निर्दयी लग रही थीं, वहीं शब्द चाशनी में पगे थे।
आज रूप बेहद खुश थी। उसने वह कर लिया था, जो उसने चाहा था। साल भर की मेहनत आज रंग लाने वाली थी। उसने एक खूबसूरत सा केक टेबल पर सजाया, जिस पर लिखा था- हैप्पी वेडिंग एनिवर्सरी मिस्टर एंड मिसेस रंजीत... एक साल हो गया, खुशी उससे संभाले नहीं संभल रही थी।
उसने आज अपना पारंपरिक सलवार-कुरता नहीं पहना, बल्कि एक फ्लोइंग गाउन, उसके साथ मैचिंग सैंडल्स, हाथ में घड़ी, गले में खूबसूरत सा हार, बाल जो हमेशा चोटी में बंधे रहते थे, आज उन्हें भी रबर बैंड से आजादी दे दी गयी थी। खुद ही के रूप को देख कर रूप चकित रह गयी थी। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और वह दौड़ कर दरवाजा खोलने के लिए गयी, रंजीत ही था।
उसे एक पलक निहारता रहा, पहले प्यार और फिर नफरत ने आंखों में जगह ले ली।
‘‘यह ड्रेस, यह सैंडल, यह हार... यह सब कहां से आया ? बताओ !’’ जोर से चिल्ला कर उसने कहा।
‘‘मैं अच्छी लग रही हूं ना, बिलकुल अंग्रेजी मेम साब जैसी।’’
‘‘क्या मतलब ?’’
‘‘आई विल शो यू... कम दिस वे मिस्टर रंजीत,’’ उसने एक लेटर रंजीत के हाथ में पकड़ा दिया।
रंजीत का सिर थोड़ी देर घूमता सा महसूस हुआ... क्या है यह सब? मैं समझ नहीं पा रहा हूं?’’
इंग्लिश में लिखा हुआ वह लेटर, नीचे योर्स एंड ओनली योर्स- रूप।
अब रूप ने धीरे से बताया, ‘‘करीब एक साल से मैं अंग्रेजी सीख रही हूं सैम से... गांव की पढ़ी-लिखी मुझे तो बस पंजाबी और हिंदी ही आती थी मगर... थोड़ा हिचकिचाते हुए, ‘‘जब तुम मुझे देख कर हंस देते और कहते अंग्रेजी में तेरा हाथ तंग है तो बड़ी कोफ्त होती, मैंने तय किया कि मैं अंग्रेजी सीखूंगी। सैम जो तुम्हारा दोस्त है, मुझे अंग्रेजी सिखा कर अपनी दोस्ती निभा रहा था।’’ थोड़ी देर खामोशी पसरी रही दोनों के बीच, फिर रूप ने कहा, ‘‘जब तुम शक करते... गुस्सा होते तो सैम का दिल टूटता। कई बार उसने मना भी किया, मगर मैंने अपनी कसम दे कर उसे फिर राजी किया... हम दोनों अकेले में अंग्रेजी सीखते थे। उसने बहुत मेहनत की मेरे साथ और अब मैं इंग्लिश लिख पाती हूं, बोल पाती हूं, यह सब केवल तुम्हारे लिए...’’
‘‘तुमने मुझे क्यों नहीं बताया... मैं तुम्हें किसी अच्छे इंग्लिश स्पीकिंग स्कूल में भेज देता... तुम बहुत आसानी से तीन-चार महीने में सीख लेती उसके लिए सैम को क्यों परेशान किया?’’ इस बार वह बेहद चिंतित लगा।
‘‘मैं तुमसे ही तो छुपाना चाहती थी। मन में था कि तुम्हें सरप्राइज दूंगी... देखो मैंने दिया ना !’’
‘‘यह मैंने क्या कर दिया शक और जलन में ! जानती हो रूप, मैं सैम के घर क्यों गया था। मैं बता नहीं सकता, मेरा दिमाग खराब हो गया था... तुम लोगों को साथ देख कर... मन में सोचा सैम को ही खत्म कर दूं,’’ वह आवेश में बोला।
‘‘क्या...’’ रूप की आंखें निकल आयीं... उसका हाथ कांपने लगा... ‘‘क्या कह रहे हो तुम !’’
‘‘असल में शक ने मुझे अंधा कर दिया था... आज जो मैंने पेस्ट्रीज खरीदी थीं, उनमें जहर था रूप... उनमें जहर था... जल्दी चलो ! जल्दी चलो.... सैम के घर, कहीं अनर्थ ना हो जाए !’’
तुरंत दोनों कार में बैठ कर चल दिए। रूप आंखों में आंसू भरे, अस्त-व्यस्त बाल, जिस काजल को बड़े मनोयोग से उसने आज आंखों में भरा था, वह अब बह के इधर-उधर बिखर रहा था। गाड़ी के रुकते ही रंजीत तुरंत भागा दरवाजे की तरफ और बेतहाशा बेल बजाता रहा। दरवाजा था कि खुल ही नहीं रहा था। क्या हो सकता है...? दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा... जिस अनहोनी का डर था... क्या वह हो गयी, अब उसके भी हाथ कांपने लगे।
तभी रूप ने कहा, ‘‘दरवाजा तोड़ दीजिए !’’
उसने पूरी ताकत से अपना शरीर दरवाजे पर मार दिया, कुछ ही पल में धम्म से अंदर गिर पड़ा ।
सामने खड़ा था सैम।
‘‘तुम सैम...’’
जोर से खिलखिला उठा सैम, ‘‘हां... मैं सैम...’’
तभी रूप बोल पड़ी, ‘‘सैम, तुमने पेस्ट्रीज नहीं खायींं?’’
‘‘हां नहीं खायीं, क्योंकि मेरा यार दिल से दे कर ही नहीं गया था,’’ उसने रंजीत को चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘मैं फ्रिज में रख रहा था कि पता नहीं कैसे हाथ से पूरा डिब्बा ही छूट गया और... दो मिनट में सारी पेस्ट्रीज का सत्यानाश, उसके बाद डेढ़ घंटा लगा साफ-सफाई में... सोच रहा था तैयार हो कर तुम्हारे घर ही पहुंच पार्टी लेगा, इसलिए नहा रहा था... और इसीलिए दरवाजा नहीं खोल पाया, मगर मेरा यार तो इतना बेताब था कि दरवाजा ही तोड़ने पर उतारू हो गया... हा... हा... हा !’’ उसकी उन्मुक्त हंसी ने सारी गंभीरता, सारा तनाव जैसे छूमंतर कर दिया।
‘‘थैंक गॉड ! सैम तुमने पेस्ट्री नहीं खायी,’’ रंजीत ने सैम को गले लगा लिया, ‘‘थैंक गॉड !’’ उसने सैम को कस कर भींच लिया, ‘‘नहीं तो मैं इतने प्यारे दोस्त से आज हाथ धो बैठता। मैंने कितनी बड़ी नादानी की मैं बता नहीं सकता !’’
मगर रूप ने इशारे से मना किया कि कुछ बातें ना ही पता चलें तो अच्छा है ! कुछ गंदी भावनाएं ना ही उजागर हों तो अच्छा है।
‘‘वैसे आज एनिवर्सरी के दिन तुम लोग यहां क्या कर रहे हो?’’
‘‘सैम, तुमने आज मुझे इतना प्यारा गिफ्ट दिया ! तो केक तुम्हारे बिना कैसे काट सकते थे? इसलिए तुम्हें लेने आए, चलो !’’ रंजीत ने कहा।