Wednesday 01 July 2020 12:13 PM IST : By Dr. Anno Shrivastava

प्रेम का रूपांतरण

prem-story

दिन ढल चुका था अौर जनवरी की वह सर्द शाम सुरमई होने लगी थी जब फोन की घंटी बज उठी थी। फोन पर लिली की अावाज सुनते ही मैं खुश हो गयी। लिली मेरे बचपन की सबसे प्रिय सहेली ! फोन पर उसने बताया कि वह मेरे ही शहर में अपनी कुछ विदेशी महिला मित्रों के साथ एक होटल में ठहरी है। मैंने उसके होटल में रुकने पर नाराजगी जतायी, तो वह हंसने लगी अौर बोली कि वह कुछ ही देर में अपनी मित्रों के साथ मेरे घर पहुंच रही है अौर डिनर मेरे साथ ही करेगी। उसकी बातों में अपनापन था। अनजाने ही मैं पिछली यादों में खोती चली गयी...।
लिली अौर मैं एक छोटे से कस्बानुमा शहर में रहा करते थे। मैं एक अच्छे नौकरीपेशा मध्यमवर्गीय परिवार से थी, जबकि लिली का पारिवािरक स्तर निश्चय ही मुझसे ऊंचा था। वह अौद्योगिक घराने से थी, पर हमारे बीच ऐसी कोई दूरी नहीं थी। हम पूरी तरह एक-दूसरे पर भरोसा कर सकते थे। हमने प्राइमरी से ग्रेजुएशन की शिक्षा एक साथ पूरी की थी, हमने अपने खेल-खिलौने, हंसी-खुशी, रोना-झगड़ना, मान-मनुहार, प्यार-दुलार अापस में बांटा था। उस छोटे से शहर में हम साथ-साथ घूमेफिरे थे। उम्र के खूबसूरत पड़ाव पर हमने अपनी कल्पनाअों, सपनों को साथ-साथ जिया था।
मुझे याद है वह क्षण जब अचानक एक दिन लिली ने बताया था कि वह पड़ोस के एक युवक से प्यार करने लगी है। वह बड़ी रोमांचित थी। उसकी नरगिसी खूबसूरत अांखें पनीली होने लगी थीं, जिन्हें उसने अपने गुलाबी दुपट्टे से पोंछ लिया था। वह बड़ी सुकुमार अौर कुछ-कुछ सहमी सी दिख रही थी। मैंने उसे भरपूर नजरों से देखा, उसने अांखें झुका लीं। मैं थोड़ी असहज थी फिर भी अपने को सहज बनाने की कोशिश कर रही थीं। वह प्यार में थी अौर मैं असमंजस में...। खैर...। ना चाहते हुए भी मैंने उसे टोका था अौर उसे उसके प्रतिष्ठित अौर रूढिवादी परिवार की याद दिलायी थी। वह गंभीर हो गयी थी। उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ िलया था जैसे मुझसे साथ देने का मूक अाश्वासन चाह रही हो। थोड़ी देर तक हम यों ही खड़े रहे अौर वह मेरी तरफ अपलक देखती रही। मेरा मौन समर्थन मिलते ही वह खिल सी गयी। उसने पूरे विश्वास के साथ कहा था कि वह अपने परिवार का सामना करेगी, पर शेखर से अलग होने की वह कल्पना भी नहीं कर सकती। मुझे उसका विश्वासभरा साहस अच्छा लगा था।
लिली का प्यार परवान चढ़ रहा था। उस छोटे से शहर में जहां सभी एक-दूसरे को जानते-पहचानते थे, यह बात भी छुपी नहीं रह सकती थी। लेकिन लिली इनसे बेखबर अपने अापमें खोयी रही। मैं उसकी इस बेफिक्री पर कभी-कभी झुंझला जाती, उसे टोकती। उसे संयत रहने की हिदायत देती। धीरे-धीरे उसने अपनी उमंग को नियंत्रित कर लिया अौर सब कुछ सामान्य दर्शाने की चेष्टा करती रही।
 हमारी बीए की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। लिली के माता-पिता उसे उच्च शिक्षा के लिए बाहर नहीं भेजना चाहते थे अौर संभवतः लिली भी शहर नहीं छोड़ना चाहती थी। मुझे एमए करने के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा था। हम बराबर एक-दूसरे को पत्र लिखते रहे अौर छुटि्टयों में मिलते रहे। हमारी बातों में प्रायः लिली अौर उसके प्रेमी शेखर की बातें होतीं। उन दिनों छोटे से शहर में लड़की-लड़के का मिलना-जुलना नहीं था फिर भी प्रेम तो पनपते ही थे। प्रेम कहानियां रची जाती थीं अौर प्रेम प्रसंग पर तरह-तरह की व्याख्याएं भी होती थीं।
लिली उसी शहर में रह कर एमए कर रही थी। देखते ही देखते हमने एमए का 2 वर्षीय पाठ्यक्रम पूरा कर लिया। लिली ने अागे ना पढ़ने का मन बना लिया था अौर उसके माता-पिता भी यही चाहते थे। मैं परीक्षा दे कर वापस अा गयी थी। अागे की योजना परीक्षाफल अाने तक मैंने स्थगित थी, पर यह सुनिश्चित था कि मुझे अागे भी अपनी पढ़ाई जारी रखनी है।
छुटि्टयों में मेरी मुलाकात लिली से होती रही। उसके माता-पिता उसके विवाह की योजना बना रहे थे, यह लिली ने मुझे बताया। मैंने उसे अपने माता-पिता से वस्तुस्थिति स्पष्ट करने को कहा, पर उसने टाल दिया। दिन बीतते रहे अौर हमारा परीक्षाफल अा गया। मैंने शोध करने का मन बना लिया अौर मैं पुनः घर से दूर अपने अध्ययन में व्यस्त हो गयी।
इसी बीच मेरे माता-पिता ने मेरा विवाह उसी शहर में निश्चित कर दिया, जहां मैं अध्ययनरत थी। सगाई की अौपचारिक रस्म भी पूरी कर ली गयी। मैंने लिली को बताया, वह बहुत खुश हुई। उसने मेरे मंगेतर पार्थ से मिलना चाहा। हमने प्रोग्राम बनाया। कुछ दिनों बाद एक छुट्टी में मैं पार्थ, लिली अौर शेखर मिले, अच्छा लगा। इस मुलाकात में पार्थ अौर शेखर का अच्छा परिचय हो गया। मुझे याद है लौटने के बाद उसने मुझे कोई पत्र नहीं लिखा था। मेरे पत्रों का उसने जवाब भी नहीं दिया था। मैं भी अपने शोध कार्य में व्यस्त थी, किंतु इस व्यस्तता के बावजूद मुझे लिली की लापरवाही खलने लगी। मेरे मन में उसे ले कर तरह-तरह की शंकाएं भी उठती रहीं।
जाड़े की छुटि्टयों में मैं अपने घर गयी। घर पहुंचते ही मेरी मां ने मुझे लिली की सगाई की खबर सुनायी। मां ने बताया कि लिली का विवाह िकसी बहुत बड़े अौद्योगिक घराने में हो रहा है। यह सब सुन कर मैं अवाक थी। मुझे लिली पर बहुत गुस्सा अाया, लेकिन अगले ही पल मैं अनेक शंकाअों से घिर गयी। मुझे उसकी चिंता होने लगी। मैं उससे मिलने के लिए निकल पड़ी। रास्तेभर मुझे लिली का खूबसूरत चेहरा मुरझाया हुअा अौर उसकी चंचल अांखें उदास महसूस होती रहीं। उसके घर पहुंच कर सीधे उसके कमरे में मैंने धड़कते मन से प्रवेश किया। पर कमरे का दृश्य देख कर मैं अजीब सी स्थिति में खुद को पा रही थी। लिली रेशमी पीली साड़ी फैलाए उसमें गोटे, सितारे टांकने में व्यस्त थी। मुझे देखते ही वह खुशी से उछल पड़ी अौर मुझसे लिपट गयी। उसका चेहरा पहले से भी ज्यादा खिला-खिला लग रहा था अौर उसकी अांखों से खुशियां छलक रही थीं, पर उसने मेरी मनोस्थिति को भांप लिया था। उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया। वह संयत अौर सहज थी। वह मुझे पत्र ना लिख पाने के लिए बार-बार माफी मांग रही थी। उसने बताया कि उसके माता-पिता ने अपनी हैसियत से भी अधिक धनाढ्य अौर प्रतििष्ठत परिवार में उसका विवाह सुनिश्चित कर दिया है। उसने यह भी बताया कि उसके होनेवाले पति विक्रम प्रताप सिंह बहुत बड़े उद्योगपति हैं अौर उनका देश-विदेश में व्यापार फैला हुअा है। उसने अपनी सगाई की अनेक तसवीरें दिखायीं। सगाई के बहुमूल्य गहने-कपड़े दिखाते हुए वह फूली नहीं समा रही थी। वह इतनी खुश अौर उत्साहित थी कि मैं शेखर के बारे में पूछने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही थी। वह लगातार बोले जा रही थी, फिर अचानक वह शांत हो गयी। कमरे में घोर सन्नाटा व्याप्त हो गया। वह कुछ बेचैन सी लगी। उसने मेरी तरफ इस तरह देखा, जैसे मेरे मन में उठे भारी तूफान को शांत करना चाह रही हो। मेरी अांखों से बरबस अांसू निकल पड़े, जिन्हें उसने अपने हाथों से पोंछ दिया। मैंने उसकी अोर देखा, वह बड़ी शांत अौर समझदार लग रही थी। उसने पुनः बोलना शुरू किया, ‘‘जो हो रहा है, वह ठीक हो रहा है, परिवार की प्रतिष्ठा के अनुरूप हो रहा है।’’ उसने बताया कि वह माता-पिता की प्रतिष्ठा के सामने झुक गयी अौर विरोध नहीं कर पायी। उसने अपने घर-खानदान के लिए सब कुछ स्वीकार कर लिया है। उसका ऐसा बलिदान मुझे अच्छा नहीं लगा। पहली बार ना जाने क्यों उसकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। मुझे लग रहा था कि सुख, ऐश्वर्य के लिए उसने शेखर को भुला दिया है।
शीघ्र ही लिली ब्याह कर अपनी ससुराल चली गयी। वह अपार ऐश्वर्य की स्वामिनी बन गयी थी। उसका भव्य विवाह समारोह लोगों के लिए चर्चा का विषय बन गया था। सभी उसके सौभाग्य का बखान कर रहे थे। पता नहीं क्यों इन सबके बीच मेरा मन उदास हो जाता। खैर, धीरे-धीरे मैं भी अपने अध्ययन में व्यस्त हो गयी।
कुछ दिनों बाद लिली का एक बड़ा सा रजिस्टर्ड लिफाफा मुझे मिला। लिफाफे में उसकी अपने पति के साथ ढेर सारी तसवीरें थीं, जिन्हें उसने मेरे लिए भेजा था। उसने मुझे एक पत्र भी भेजा था, जिसमें उसने अपने सुखद वैवाहिक जीवन के बारे में लिखा था। वह अपने नए परिवार में खुश अौर संतुष्ट थी, मुझे थोड़ा इतमीनान महसूस हुअा। हमारे बीच पत्रों का सिलसिला चलता रहा। अपने पत्रों में वह अपनी खुशहाल जिंदगी देश-विदेश की यात्राअों, नए-नए अनुभवों के बारे में िवस्तार से लिखती। उसके पत्रों से ही पता चला कि उसके पति विक्रम अौर उनका पूरा परिवार देश-विदेश में फैले अपने उद्योग-धंधों में व्यस्त रहते हैं। अपनी अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद वे अनेक सामाजिक संगठनों से जुड़ कर जनहित के कार्य भी करते रहते हैं। लिली ने मुझे बताया कि वह भी अपने पति के व्यवसाय अौर सामाजिक सरोकार से पूरी तरह जुड़ गयी है। अपने पत्रों में उसने यह भी लिखा िक उसका जीवन किसी सुखद स्वप्न के साकार होने जैसा है। उसके पत्रों को बार-बार पढ़ती। मैं कभी-कभी हैरान परेशान हो जाती अौर सोचती कि वह स्वच्छंद, चंचल, हिरनी सी लिली कैसे यह सब कर पाती होगी। एक पल को मुझे उसका नया स्वरूप बनावटी लगता अौर उस पर शक होने लगता। पर अपने बचपन के स्नेहपूर्ण मित्रता के वशीभूत मैं उस पर विश्वास करने लगी। उसके पत्रों के एक-एक शब्द मुझे बांधते चले गए अौर धीरे-धीरे मैं उसके नए स्वरूप को स्वीकारती चली गयी।
मेरे विवाह का निमंत्रण पत्र पा कर वह बहुत खुश हुई थी। उन दिनों वह विदेश यात्रा पर थी। उसका अाना संभव नहीं था, पर अचानक विवाह के दिन अा कर उसने मुझे सरप्राइज गिफ्ट दिया था। बाद में बिना बताए वह एक दिन मेरे ससुराल भी अा गयी। उसकी इन बातों में जो अपनापन था, वही उसे खास बनाता था। वह रिश्ताें को संपूर्णता से जीती थी। मुझे यह सोच कर गर्व होता था कि लिली अपने प्यार को भूल कर कुल की मर्यादा के लिए नितांत अनजान व्यक्ति के साथ विवाह बंधन में बंध ही नहीं गयी थी, बल्कि उसने अपनी पूरी जीवनशैली ही बदल ली थी। भूल कर भी कभी उसने अपने पत्रों में शेखर की चर्चा नहीं की थी। मुझे कभी-कभी अाश्चर्य भी होता, परंतु मैं उसके त्याग के प्रति बहुत भावुक थी अौर इसीलिए उसे पहले से ज्यादा चाहने लगी थी।
अचानक मेरे पति ने मुझे अावाज दी अौर मैं अतीत से वर्तमान में लौट अायी। मैंने बड़े उत्साह से लिली के अाने की खबर पार्थ अौर बच्चों को दी। सब खुश थे। देखते ही देखते पूरा घर नए रंगीन परदों, चादरों, कुशन अौर ताजा फूलों से सज गया। मैंने झटपट नाश्ता अौर डिनर के िलए मेनू बना लिया। नौकरानी को जरूरी हिदायत दे डाली, अच्छी क्रॉकरी निकाल ली। मतलब यह कि लिली के स्वागत में सब कुछ सज-संवर गया।
सायं लगभग 7 बजे लिली अपनी मित्रों के साथ अा पहुंची। अाते ही वह मुझसे लिपट गयी। वह मेरे पति, बच्चों से बड़ी अात्मीयता से मिल रही थी। उसने अपनी मित्रों से हमारा परिचय कराया अौर बताया कि वह उन्हें भारत दर्शन कराने निकली है।
उसके चेहरे पर गजब का अात्मविश्वास था। वह पहले से भी अधिक सुंदर अौर गरिमामयी लग रही थी। बहुमूल्य वस्त्र-अाभूषण में उसका रूप किसी देवी की तरह दमक रहा था। उसके माथे की बिंदिया  उसके सौभाग्य की छटा बिखेर रही थी। मैं उसे अपलक निहारती  रही, तभी उसने मुझे टोका, ‘‘कुछ खिलाअोगी या यों ही देखती रहोगी।’’ मुझे उसका टोकना अच्छा लगा। मैं नाश्ता लगाने लगी। बच्चे मेहमानों के स्वागत में लग गए। पार्थ अौर लिली अापस में बात करने लगे। लिली अपने पति, बच्चों अौर यात्राअों के बारे में बातें करती रही। उसने बताया वह पिछले एक सप्ताह से यूपी के ऐतिहासिक, धार्मिक स्थानों का अपने मित्रों के साथ भ्रमण कर रही है।
लगभग 10 बजे मैं खाना लगाने लगी। खाने से पहले उसने मेरे फोन से अपने पति, बच्चों से बात की फिर वह किचन में अा गयी अौर मेरा सहयोग करने लगी। अचानक उसने बताया वह रात मेरे पास रुकेगी अौर मेहमानों को होटल भेज देगी। मेरे गले में बांहें डाल कर उसने कहा, ‘‘हम पूरी रात खूब बातें करेंगे।’’ उसका अपनापन मुझे अंदर तक छू गया।   
मेहमान होटल जाने लगे। हम उन्हें विदा करने बाहर निकले ही थे कि फोन की घंटी बज उठी, मैं फोन सुनने अंदर लौट अायी। फोन पर मैंने जो अावाज सुनी उससे मैं चौंक गयी। अावाज लिली के पूर्व प्रेमी शेखर की थी। शेखर ने मुझे बताया कि वह  मेरे घर पहुंच रहा है, मैं स्तब्ध थी। मैंने रिसीवर रखा ही था कि पार्थ अौर लिली कमरे में अा गए। मैंने उन्हें शेखर के अाने की खबर दी। पार्थ कुछ गंभीर हो गए अौर बिना कुछ बोले बच्चों के कमरे में चले गए। लिली मेरी घबराहट देख कर हंसने लगी। उसने बड़ी सहजता से बताया कि जबसे वह इधर अायी है, शेखर उसके साथ है। मुझे वह कुछ चंचल सी दिखी। वह अाराम से पैर फैला कर सोफे पर बैठ गयी। मुझे उस पर संदेह होने लगा, जिसे वह समझ गयी। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया अौर बोली, ‘‘देखो, रिश्ते इतनी अासानी से खत्म नहीं हो जाया करते। शेखर अभी भी मेरा है। मैंने उसे खोया नहीं है अौर मैं उसे खोना भी नहीं चाहती।’’
उसकी बातों से मुझे कंपन सी होने लगी।
मैंने उसे ध्यान से देखा। उसे शेखर की पत्नी, परिवार अौर उसके अपने पति, परिवार का ध्यान दिलाया। उसने जिस तरह अपने माता-पिता की मर्यादा के लिए अपनी इच्छा के विरुद्ध सब कुछ स्वीकार कर लिया था, उसकी याद दिलाया। वह खामोश रही अौर मेरा गुस्सा बढ़ता गया। मैंने उसे जम कर खरी-खोटी सुनायी, ताने दिए। वह सुनती रही। उसका धैर्य, उसकी खामोशी मेरे अंदर अजीब सी हलचल पैदा कर रही थी। सच कहूं, तो वह मुझे चतुर खलनायिका सी लगने लगी।
कॉलबेल की अावाज सुनते ही वह बाहर चली गयी अौर शेखर के साथ ड्रॉइंगरूम में बैठ गयी। पार्थ कॉफी के लिए कह कर वह भी उनके पास जा कर  बैठ गए। मैंने स्वयं को सहज बनाने का प्रयास किया। बाई कॉफी ले अायी। पार्थ ने मुझे बुलाया अौर मुझे उनके पास जाना पड़ा। ड्रॉइंगरूम में सब कुछ सामान्य सा था। किसी के चेहरे पर ना कोई घबराहट अौर ना ही कोई अपराधबोध था। शेखर ने मुस्करा कर मेरा अभिवादन किया। सब कॉफी की चुस्कियों के साथ बातचीत कर रहे थे। मुझे बेचैनी महसूस होने लगी अोर मैं अंदर चली अायी। पार्थ भी मेरे साथ अंदर अा गए।
कुछ देर बाद लिली अंदर अायी। उसने अपना बैग खोल कर कुछ पैकेट्स निकाले अौर मुझे उपहार स्वरूप देने लगी। मेरे मना करने पर वह उदास हो गयी। मैंने एक बार फिर उसे समझाने की कोशिश की। उसने उस सर्द रात में मेरे माथे पर अायी पसीने की बूंदों को अपने रेशमी अांचल से पाेंछ दिया।
उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा अौर कहने लगी, ‘‘मैं तुम्हारे अपनत्व की कद्र करती हूं। तुम्हारा विरोध, तुम्हारी चिंता सही है, पर तुम परेशान मत हो। हम अब बड़े हो गए हैं। हम अपना भला-बुरा समझते हैं। मैं अपने पति अौर परिवार की जिम्मेदािरयों को खूब अच्छी तरह निभा रही हूं। मैंने अपने माता-पिता के मान-सम्मान को कभी ठेस नहीं पहुंचायी, लेकिन इसका यह अर्थ तो नहीं कि हमारा अलग से अपना कोई अस्तित्व ही नहीं है। हमारी अपनी जिंदगी में कुछ नितांत व्यक्तिगत भी हो सकता है,’’ वह थोड़ा ठहरी अौर फिर बोली, ‘‘तुम बताअो, मेरे माता-पिता ने मेरी भावनाअों को कितना सम्मान दिया, मेरी इच्छा को कितना समझा। सब स्वीकार लेने का यह मतलब तो नहीं कि सब कुछ समाप्त हो गया अौर रातोंरात मैं बदल गयी, मेरा प्रेम बदल गया। नहीं ऐसा हरगिज नहीं हुअा। मैं वही हूं, मेरा प्रेम वही है। हां मेरा तरीका बदल गया है।’’
‘‘मैं तुम्हारी वही लिली हूं, जो तुम्हारी हर बात मानती रही है...’’
मैं सांस रोके उसकी बातें सुनती रही। उसके चेहरे के भाव, उसके मन में उठे हलचल को स्पष्ट कर रहे थे। उसने अपनी गरदन को हल्का सा झटका दिया अौर फिर शांत लहजे में बोली, ‘‘यह दुनिया अनोखी है, यहां के तौरतरीके अनोखे हैं, कुछ हमें अच्छा लगेगा, कुछ नहीं। हम किस-किसकी जिम्मेदारी ले सकते हैं।’’ वह थोड़ी देर चुप रही।
मुझे लगा कि वह मुझे उसके व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप ना करने की चेतावनी दे रही है। उसने  फिर बोलना शुरू किया, ‘‘देखो, मैं एक ऐसी सोसाइटी से हूं, जहां सब अपना-अपना जीवन जीते हैं। मेरी जीवनशैली बदल गयी है, पर मेरा हृदय वही पुराना का पुराना है। मुझे अपने पति, परिवार के सम्मान का अाभास है, पर मैं अपने प्यार का भी सम्मान करती हंू,’’ फिर वह हल्के से हंसी अौर बोली, ‘‘वैसे भी हाई सोसाइटी के पति-पत्नी एक-दूसरे से व्यक्तिगत जीवन में ताकझांक नहीं करते। इसे हाई सोसाइटी की संस्कृति कह सकती हो।’’
मुझे लगा वह मेरे मिडिल क्लास होने का मुझे अहसास करा रही है। मुझे चक्कर सा अा गया। वह किस अस्तित्व, विश्वास, संस्कृति को परिभािषत कर रही थी, यह मेरी समझ से बाहर था। मुझे वह स्वार्थी, धोखेबाज अौर चालाक दिख रही थी। उसने उपहार के पैकेट्स पूरे अधिकार के साथ मेरे पलंग पर रख दिए अौर बैग से एक सुंदर काला सूट निकाल कर चेंज किया, बाल संवारे। उसने सहज मुस्कान के साथ मुझे देखा। मैंने सहम कर पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’ उसने बताया कि वह शेखर के साथ टूरिस्ट डाक बंगला जा रही है, रात वहीं रुकेगी अौर सुबह होटल चली जाएगी। वह विदा लेने के लिए मुझसे लिपट गयी। उसने मेरे माथे को चूम लिया अौर मुझे लगा सैकड़ों बिच्छुअों ने मुझे एक साथ डंक मारा हो। रात ना रुक पाने के लिए उसने मुझसे माफी मांगी। मैं मूक सी सब देख रही थी। मेरा भय साकार हो रहा था, मैं स्वयं को असहाय अनुभव कर रही थी। वे चले गए अौर मैं शर्मिंदा अपने पति के सामने खड़ी थी।
मुझे वह छलावा सी लग रही थी। मैं सोच रही थी, हर चमकनेवाली चीज सोना नहीं हो सकती। मैं अच्छी तरह समझ रही थी कि वह मुझसे मिलने नहीं अायी थी, उसने मुझे माध्यम बनाया था, मेरा इस्तेमाल किया था। उसने मुझे मेरी मित्रता को, मेरे विश्वास को छला था। यह सब सोचते ही मेरा मन अवसाद से भर गया। मैं सुबकती रही अौर वह भयावह रात ढलती रही।

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दूसरी सुबह मैं बहुत उदास थी, मेरा मन भारी थी। सुबह के उजाले में उसके दिए उपहार के पैकेट्स, नए रंगीन परदे, चादरें, कुशन अौर बिखरी हुई क्रॉकरी मुझे कटाक्ष करते से प्रतीत हो रहे थे। मैंने अपनी अांखें बंद कर ली। तभी पार्थ ने बड़े स्नेह से मुझे चाय का प्याला पकड़ाया। वे मेरे पास बैठ गए अौर बोले, ‘‘तुम उदास ना हो, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं। जिस पर हमारा वश नहीं, उसे उसी के हाल पर छोड़ देना उचित है। हां हो सके, तो तुम उसे भूलने की कोशिश करो, पर हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, इसका ध्यान रखना।’’
पार्थ ने जाने-अनजाने मेरे समक्ष विकल्प रख दिए थे, परंतु मेरी विवशता तो यह थी कि ना तो मैं उसे उसके हाल पर छोड़ सकती थी अौर ना ही उसे भूल सकती थी। सिक्के का दूसरा पहलू समझने को ना मेरे पास धैर्य था अौर ना ही कारण।
भारी मन से मैंने बिस्तर छोड़ा अौर नित्य चर्या में लग गयी। मन अनेक प्रश्नों से जूझ रहा था कि तभी अचानक फोन की घंटी बज उठी। पार्थ ने फोन उठाया अौर हेलो के साथ ही मुझे अावाज दी। मेरे पहुंचने पर उन्होंने मुझे फोन पकड़ा दिया। फोन पर लिली थी। उसने पूरी ताजगी के साथ हंसते हुए हेलो कहा। मैं चुप रही। उसने कहा, ‘‘लो, शेखर की पत्नी शुभा से बात करो।’’
मैं कुछ समझ पाती उसके पहले ही शुभा की मधुर अावाज सुनायी पड़ी। हमारे बीच हल्की-फुल्की अौपचारिक बातें हुईं। अगली अावाज फिर लिली की थी। उसने पूछा, ‘‘कैसी हो?’’ मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
उसने बड़ी अात्मीयता से कहा, ‘‘परेशान ना हो, मैं तुम्हारी वही लिली हूं, जो तुम्हारी हर बात मानती रही है, पर सोचो, क्या मैं अौर शेखर दोस्त नहीं हो सकते। मैं शेखर से कभी दूर हुई ही नहीं। मैंने शेखर को अपना परिवार बसाने पर बाध्य किया, उसकी पत्नी शुभा से हमने कुछ नहीं छुपाया। शुभा एक समझदार पत्नी है। शेखर उसके प्रति समर्पित है। वे परस्पर खुश हैं। शेखर खुश है, तो मैं खुश हूं। उसका परिवार सुखी है, तो मैं संतुष्ट हूं। मैं स्वार्थी नहीं हूं अौर ना ही गैर जिम्मेदार। शेखर को मैंने खोया नहीं है, बल्कि निस्वार्थ पाया है। वह अपनी पत्नी अौर बच्चों के साथ खुश रहे, यह मेरी जिम्मेदारी है,’’ बोलते-बोलते वह ठहर सी गयी। कुछ क्षण बाद वह रुंधे स्वर में बोली, ‘‘तुम जानती हो कि मेरा विवाह शेखर से इसलिए नहीं हुअा, क्योंकि वह मेरे पिता से कम हैसियतवाला था। उसकी हैसियत उसकी ईमानदारी है, सज्जनता है। वह अच्छी नौकरी में है, उसका अपना बनाया सब कुछ उसके पास है। समाज में उसका सम्मान है, उसका परिवार उससे स्नेह रखता है,’’ वह बोलते-बोलते सिसकने लगी। मैंने उसे शांत कराने की कोशिश की। अपनी सिसकियां रोकते हुए वह कहने लगी, ‘‘विश्वास करो, रात तुम्हारे यहां ना रुकने के पीछे शुभा का अाग्रह था। वह कुछ समय मेरे साथ बिताना चाहती थी। क्या कहूं, अब तो मैं शेखर के साथ-साथ शुभा अौर उसके बच्चों से भी प्यार करने लगी हूं,’’ फिर वह किंचित हंसते हुए बोली, ‘‘मेरे प्यार ने विस्तार पा लिया है। यों समझो कि हमारे प्यार का रूपांतरण हुअा है। यह अपराध नहीं है। अब मुझे किसी तरह का पछतावा अौर अपराधबोध कदापि नहीं है,’’ वह हंसती हुई अपनी जाने-पहचाने मजाकिया अंदाज में बोली, ‘‘मैंने कहा था ना कि मैंने अपना तरीका बदल दिया है।’’
बरबस मेरे होंठों पर मुस्कान तैर गयी। वह बोलती रही, ‘‘हां यह ठीक है कि मैंने यह सब तुम्हें बताया नहीं। मैं असमंजस में थी कि तुम मुझे िकस तरह लोगी, पर मैं गलत थी। तुमने मेरा हमेशा विश्वास किया है, यह मुझे याद रखना चाहिए था। मुझे एक बार फिर माफ करना,’’ वह चुप हो गयी। फोन कट चुका था, पर उसकी निश्छल गूंज बाकी थी। एक बार फिर सरप्राइज दिया था उसने। अपने अांसू पोंछते हुए मैं पलटी, पीछे पार्थ खड़े थे। उनके चेहरे पर सुकूनभरी मुस्कान थी।  
मैं सिक्के का दूसरा पहलू देख कर निशब्द थी, पर मेरा मन पुलकित था। उसने मुझे मोह लिया था। अचानक सब कुछ अच्छा लगने लगा था। रात के उदास रंगीन परदे, चादरें, कुशन, बिखरी क्रॉकरी अौर गुलदस्ते में लगे फूल मंद-मंद मुस्करा रहे थे। मैंने महसूस किया कि उस सर्द रात की सुबह गुनगुनी अौर भली-भली सी थी।