Wednesday 15 September 2021 04:00 PM IST : By Mini Singh

वो मास्कवाली लड़की

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‘‘क्या हुआ दीपक जी, बड़ी हड़बड़ाहट लगी है ! कहीं पार्क में कोई मिल तो नहीं गयी आपको?’’ दीपक को जल्दी-जल्दी जॉगिंग शूज पहनते देख उसकी भाभी आरती ने चुटकी ली। 

‘‘अरे, नहीं तो भाभी। ऐसी कोई बात नहीं है,’’ हकलाते हुए दीपक बोला, ‘‘अच्छा भाभी, मैं वॉक पर जा रहा हूं, मां को बता दीजिएगा,’’ कह कर दीपक ने अभी पैर बढ़ाया ही था कि पीछे से उमा ने टोका। 

‘‘क्या है मां? वैसे भी मुझे देर हो रही है,’’ दीपक झुंझलाया। 

‘‘अरे, तो कौन सी तुम्हारी ट्रेन छूटी जा रही है ! टहलने ही तो जा रहा है ना?  जरा देर हो जाएगी, 
तो कौन सी आफत आ पड़ेगी?’’ आंखें नाचते हुए उमा बोलीं, तो ठिठक कर दीपक खड़ा हो गया। 

‘‘अच्छा बोलो, क्या काम है?’’ खीजते हुए दीपक बोला।

‘‘मैं ये कह रही थी कि 8 बजे वाली ट्रेन से तुम्हारी इंदौर वाली बुआ जी आ रही हैं। तो जा कर ले आना उन्हें और क्या। नहीं तो कहेंगी, स्टेशन पर कोई लेने तक नहीं आया हमें। इन्हें तो ‘लाद दो लदा दो... घर तक पहुंचा दो... फिर भी...’’ 

‘‘अच्छा-अच्छा ठीक है अब, चुप रहो,’’ उमा की बात बीच में ही काटते हुए दीपक भुनभुनाया, ‘यही तो चल रहा है कुछ दिनों से। इसे ले जाओ उसे ले आओ, ड्राइवर बन गया हूं मैं तो। शादी करके जैसे गुनाह कर रहा हूं मैं। हां, गुनाह तो कर ही रहा हूं। मेरा वश चले, तो...’’लेकिन जब देखा उमा उसे ही निहार रही है, तो सकपका कर चुप हो गया। ‘‘अब जा रहा हूं, बाय,’’ कह कर दीपक झटके से बाहर निकलने ही लगा था कि उमा ने फिर टोका। 

‘‘क्या हुआ तुझे, सब ठीक तो है? देख रही हूं कुछ परेशान दिखायी दे रहे हो,’’ सशंकित होते हुए उमा ने पूछा, तो सिर हिला कर दीपक बोला, ‘कुछ नहीं यों ही...’’ 

‘‘अच्छा सुनो मेरी बात... कुछ दिन के लिए अब टहलने-बुलने जाना बंद करो। शादी होने तक अब तुम्हें बाहर नहीं निकलना चाहिए। हल्दी लगने के बाद लड़का-लड़की बाहर नहीं निकलते हैं, पता है ना?’’ बेचारा कितना खुश हो कर पार्क जा रहा था, मगर उमा ने उसका सारा मूड ही बिगाड़ कर रख दिया।

‘‘अरे सुन रहे हो कि नहीं?’’ उमा के फिर बोलने पर भी दीपक ने कुछ जवाब नहीं दिया और बाहर निकल गया। 

‘‘जरा देखो तो इस लड़के को ! शादी के नाम से ही काहे मुंह बना लेता है समझ नहीं आता हमें। पहले तो बड़ा हुलस कर अपनी शादी की बात करता था, मगर अब सुनना भी पसंद नहीं करता है। हो क्या गया है इस लड़के को? और देखो जरा, टहलने तो ऐसे भागा जैसे इसकी ट्रेन छूटी जा रही है,’’ अपनी बहू की तरफ देख कर उमा बोली, तो आरती खीखी कर हंसने लगी।

‘‘बड़ी खीखी हो रही है बहू? देख रही हो घर में हजारों काम पड़े हैं और तुम यहां खड़ी-खड़ी खिखियाय रही हो?’’ सास की डपट पर आरती ने अपने मुंह पर हाथ रख लिया, पर फिर भी उसकी हंसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।

‘‘बहुत हंस लिया, अब जा कर देखो सारा सामान आ गया या नहीं। शादी-ब्याह का घर है, मेहमान आने शुरू हो गए हैं और यहां किसी को कुछ सूझ ही नहीं रहा है। अभी बड़की दीदी का तो आना बाकी ही है। अरे बाप रे ! उनके तो नाम से ही मेरे हाथ-पांव फूलने लगते हैं। सब कुछ व्यवस्थित ना हुआ, तो मेरी तो खैर नहीं है। हैं तो जेठानी, पर सास से कम रोब नहीं है उनका,’’ उमा अपने आपमें ही बड़बड़ा रही थीं,लेकिन जैसे ही उनकी नजर आरती पर पड़ी, जोर से डपटीं, ‘‘अभी तक यहीं खड़ी है? क्या सिनेमा चल रहा है? नहीं, तो जाओ।’’

‘‘जी-जी अम्मा जी,’’ अपना दुपट्टा संभालते हुए आरती बोली, ‘‘वैसे अम्मा जी, एक बात पूछें क्या?’’ 

‘‘हां पूछो, अब बिना पूछे तो मानोगी नहीं तुम,’’ अपने सरकते आंचल को सिर पर लेते हुए उमा बोलीं। 

‘‘अम्मा जी, सुना है दीपक जी की होनेवाली पत्नी बहुते पढ़ी-लिखी है,’’ उमा के चेहरे पर अपनी नजरें टिकाए आरती बोली। 

‘‘हां, है तो। लेकिन हमारा बेटा कौन सा मूर्ख-गंवार है बहू? अव्वल दर्जे का इंजीनियर है इंजीनियर, समझी?’’ बड़ी शान से तनते हुए उमा बोलीं, ‘‘और मैंने लड़की की पढ़ाई-लिखाई देख कर नहीं, बल्कि उसकी सुंदरता देख कर पसंद किया है उसे। तूने भी तो लड़की की फोटो देखी है ना? दूध सा गोरा रंग, लंबे घने बाल, पतली छरहरी और ऊंचा-लंबा कद देख कर ही मैंने उसे अपने बेटे के लिए पसंद किया था। जानती है मैं क्यों गोरी लड़की चाहती थी अपने दीपक के लिए? क्योंकि अगर पति-पत्नी दोनों का रंग सांवला हुआ, तो उनके बच्चे जामुन जैसे पैदा नहीं हो जाएंगे,’’ सास की बात पर आरती को जोर की हंसी छूट आयी। 

‘‘हंसो मत बहू, सही कहती हूं, आम के पेड़ में आम और जामुन के पेड़ में जामुन ही फलता है। अच्छा, अब चलो घर के काम निपटाओ जल्दी-जल्दी। और सुनो, ये सलवार-कमीज, लहंगा-पटोला बड़की दीदी के सामने नहीं चलेगा। भूल कर भी उनके सामने ऐसे कपड़े मत पहनना, नहीं तो मुझे ही सुनाने बैठ जाएंगी कि मैंने अपनी बहू-बेटियों को सिर चढ़ा रखा है। अब भई मैं तो जमाने के अनुसार बदल ही रही हूं। मगर वे अभी भी ‘ढाक के तीन पात’ बनी हुई हैं, तो हम क्या कर सकते हैं। अच्छा छोड़ो वह सब, अमित को उठाओ जा कर। कहो उससे कि हलवाई को बुला लावे। सामान तो लिखवाना पड़ेगा ना।’’
उमा को डर लग रहा था कि शादी का घर है, सब काम समय पर हो पाएगा या नहीं। दरअसल, दीपक की शादी तो फरवरी में ही होनी थी। मगर कोरोना का कहर, उसके बाद लंबे लॉकडाउन के चलते शादी की डेट आगे बढ़ गयी, सबने कहा कि औरों की तरह हम भी ऑनलाइन शादी कर देते हैं। लेकिन उमा चाहती थीं कि दीपक की शादी पूरे रीतिरिवाज के साथ हो। जरा लेट हो जाए, तो कोई हर्ज नहीं है, पर शादी तो पूरे विधि-विधान से ही होगी। लड़की वालों का भी यही विचार था। उनका कहना था कि एक ही तो बेटी है उनकी, तो सारे आस-अरमान कैसे पूरे होंगे? इसलिए वे लोग भी लॉकडाउन खत्म होने के बाद ही शादी करना चाहते थे अपनी बेटी की।

‘‘शादी-ब्याह का घर है। हजार काम हैं घर में और यहां बातों में और सोने में ही लोग समय बर्बाद कर हैं। मैं भी किधर-किधर और कितना देखूं,’’ भुनभुनाती हुई उमा अपने पति को झाड़ने लगीं, जो बरामदे में सोए हुए थे, ‘‘अजी, उठो जी, कितना सोओगे अब। कुछ समझ में भी आ रहा है कि शादी-ब्याह का घर है?’’

‘‘हां भाई, लेकिन पहले चाय तो पिलाओ भाग्यवान, सब हो जाएगा चिंता क्यों करती हो?’’ जम्हाई लेते हुए मनोहर जी बोले। 

‘‘चाय... चाय... चाय, इसके बिना तो सुबह ही नहीं होती इनकी। अरे ओ बहू, इनको जरा चाय बना कर दे भई। नहीं तो कोई काम नहीं हो पाएगा। और अमित को उठाया या नहीं? तुमसे ना हो पाएगा, मैं ही उठाती हूं उसे जा कर,’’ गला फाड़े उमा चिल्लायी, ‘‘अरे अमित...’’ 

तभी इंदौरवाली बुआ जी गाड़ी से उतरते दिखीं, तो भागी उधर और फिर दोनों ननद-भौजाई बुक्का फाड़ कर रोने लगीं। अब रोए भी क्यों ना, आखिर सालों बाद जो दोनों ननद-भौजाई मिल रही थीं। अमित की शादी पर आयी थीं, उसके बाद अब आ रही हैं। 

कुछ ही देर में रो-पीट कर बुआ जी फ्रेश हो गयीं और फिर चाय-वाय पी कर अपना बक्सा उठा कर एक कमरा पकड़ लिया। पहले भी जब बुआ जी मायके आती थीं, तब उनका एक अलग ही कमरा हुआ करता था। मिट्टी-फूस के उस छोटे से कमरे में घुप अंधेरा हुआ करता था, जिसमें मुश्किल से बुआ जी की दोनों आंखें नजर आतीं थी। खैर, अब ना तो वह मिट्टी-फूस का घर रहा और न ही वह गांव। नौकरी लगते ही दीपक के पिता जी परिवार सहित दिल्ली आ बसे और तबसे यहीं हैं। वैसे मायका चाहे गरीब हो या अमीर, बेटियों के लिए सबसे प्रिय जगह होती है। मायके का मोह तो बुढ़ापे में भी नहीं छूटता। 

‘‘कल तक बड़की भौजाई भी आ ही जाएंगी, फिर देखना घर में कितनी रौनक छा जाएगी। भले ही बड़की भौजाई जरा कड़क मिजाज की हैं, पर वे जहां भी होती हैं रौनक जम जाती है। गांव-मोहल्ले में किसी की भी बेटी की शादी हो रही हो, बड़की भौजाई के बिना उनका तो काम ही नहीं चलता था। सबकी मदद के लिए वे हमेशा खड़ी रहती थीं। अब तो उम्र हो गयी उनकी, पति रहे नहीं, वरना पहले देखती उन्हें। मांग में गहरे लाल रंग का खूब भरा हुआ सिंदूर, हाथों में भरीभरी चूड़ियां। दसों उंगलियों में एकदम चटक लाल नेल पॉलिश लगाए बिना वे कभी नहीं रहती थीं। खूब शृंगार-पटार किया करती थीं। लेकिन अब तो बेचारी... दुख होता है देख कर,’’ अफसोस करते हुए उमा बोलीं, ‘‘लेकिन अब भी उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आयी है। देखना कैसे दीपक के ब्याह में भी वह कमर-लचका-लचका कर खूब नाचेंगी और फिर सुबह कहेंगी, ‘‘हाय मेरी कमर ! मैं तो मर गयी रे !’’ हंसते हुए उमा बोली, ‘‘खूब रौनक जमेगी उनके आने से देखना।’’

सही में बड़की भौजाई ने तो आते ही घर में रौनक जमा दी। धीरे-धीरे कर मंझली बुआ, छोटी बुआ, उनके बच्चे, दीपक की दोनों बहनें, उनके बच्चे और बाकी सारे रिश्तेदार भी आ गए। लोगों की चहलपहल, हो-हल्ला, हंसी-ठिठोली से घर एकदम शादी वाला लगने लगा। दीपक की बहनें दौड़-दौड़ कर द्वार पर बंदनवार सजाने लगीं, तो कोई रंगोली से द्वार और चौक सजाने लगीं। उनकी इस सजावट से घर-आंगन महक उठा। मंगल गीतों से घर-द्वार चहकने लगा। मेंहदी और संगीत पर सबके साथ बड़की भौजाई की बहू ने भी जो डांस किया सब देखते रह गए। साथ में बड़की भौजाई ने भी कमर लचकायी, पर तुरंत ही हांफने लगीं। अब 70-75 की उम्र भी तो हो चली थी उनकी। शादी में हल्दी, उबटन की रस्म, सारे मांगलिक कार्य में सब खूब आनंदित थे।
मगर ताज्जुब कि जिसकी शादी हो रही थी, वही मुंह फुलाए बैठा था ! उसके चेहरे को देख कर तो यही लग रहा है, ‘ना कोई उमंग है.... ना कोई तरंग है... मेरी जिंदगी है क्या... एक कटी पतंग है...’ जब भी उसकी शादी की बात होती है, वह दुखी हो कर अपने कमरे में चला जाता है। कल ही की बात है, बड़की भौजाई ने जब दीपक के माथे को चूमते हुए कहा था कि ‘दीपक बबुआ पर शादी का खूब निखार चढ़ने लगा है’ तो वह चिढ़ उठा और बोला कि पूरे दिन यही बातें कर मेरा दिमाग खराब मत किया करो आप सब। उसकी बातों पर यह बोल कर सब हंसने लगे कि बेचारा शादी के नाम से शरमा गया। लेकिन मन में तो लड्डू फूट रहे होंगे। मगर इन्हें नहीं पता कि शादी का यह लड्डू नहीं खाना चाहता दीपक। मगर बोल नहीं पा रहा है। बोलेगा भी कैसे, जब उसने खुद इस शादी के लिए ‘हां’ कही है तो। लड़की भी देखी उसने, कहा भी कि उसे लड़की पसंद है। तभी तो शादी की बात आगे बढ़ायी गयी। लेकिन अब जाने क्यों उसी शादी के नाम से उसे चिढ़ होने लगी है। उसे देख कर तो यही लगता है, जबरन उसे बलि का बकरा बनाया जा रहा है। 

दीपक के दिल की बात कौन जाने कि वह इस शादी से खुश क्यों नहीं है? लेकिन अब वह यह शादी क्यों नहीं करना चाहता, इसके पीछे एक राज है। दरअसल, अभी कुछ महीने से ही एक लड़की जो रोज पार्क में टहलने आती है, उस पर दीपक का दिल आ गया है। अरे,इसलिए तो वह रोज, बिना नागा किए, दौड़ता-भागता पार्क पहुंच जाता है। पार्क में रोज दोनों की आंखें चार होती हैं और बातें हजार होती हैं। उस रोज जब उस लड़की का रुमाल नीचे गिर गया था और दीपक उसे उठा कर देने लगा तब दोनों की आंखें चार हुई थीं। उस लड़की के काले लंबे लहराते बाल और आंखों में किसी विजेता सी चमक देख कर दीपक कुछ पल उसे निहारता रह गया था। लेकिन उस लड़की ने जब उसे ‘थैंक्स’ बोला, तो वह अकबका कर नीचे देखने लगा था। उस पार्क के 5 चक्कर लगाते हुए दोनों की आंखें दस बार बातें करती थीं। लेकिन दीपक को लगता एक बार उसका चेहरा देखने को मिल जाए। परंतु वह तो हमेशा मास्क लगाए होती थी अपने चेहरे पर, फिर कैसे वह उसका चेहरा देख पाता ! 

दीपक कभी भी मास्क पहन कर वॉक नहीं करता था, क्योंकि उसकी सांसें फूलने लगती थीं। मगर वह लड़की तो एक बार भी अपना मास्क नहीं उतारती थी। दीपक का दिल बोलता कि ‘काश, एक बार वह लड़की अपना मास्क उतार देती, तो मैं उसका चेहरा भी देख पाता कि वह देखने में कैसी है।’ तभी दूसरा दिल कहता, ‘प्यार तो दो आंखों वाला ही होता है पगले। चेहरा तो सिर्फ छलावा है।’ 

सच में, प्यार तो दो आंखों वाला ही होता है। भले ही लोग कहें कि चेहरा मन का आईना होता है, पर यदि किसी इंसान की बात का सही और गहराई से अर्थ जानना हो, तो उसके चेहरे को विशेष तौर पर आंखों को पढ़ना आना चाहिए। यदि दो प्रेम करनेवाले आपस में एक-दूसरे को अच्छे से समझते हैं, तो उन्हें कुछ बोलने की जरूरत ही नहीं रहती। कवि बिहारी ने मात्र आंखों के भावों से ही दिल को पढ़ लेने के ऊपर ही तो लिखा था, ‘कहत, नटत, रीझत, खीजत, मिलत, खिलत, लजियात... भरे भौन में करत है, नैनन ही सौ बात...’ जो बातें जबान नहीं बोल पाती उन्हें आंखें बोल देती हैं। कभी ऐसा होता है कि हम मुंह से कम और आंखों से ज्यादा बोलते हैं। विशेषज्ञ भी कहते हैं कि ‘55 से 80 फीसदी तक हम अपनी बात बिना बोले ही कह सकते हैं। आंखों की भाषा हमारी बॉडी लैंग्वेज का ही एक हिस्सा है। किसी की आंखों को ठीक से पढ़ा जाए, तो यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह क्या बोल रहा है और दीपक ने भी अच्छे से पढ़ लिया था कि उस लड़की की भी आंखें वही बोल रही हैं, जो उसकी आंखें। वह हर बार पूछना चाहता था उसकी आंखों से कि आखिर वह उससे कितना प्यार करती है? मगर वह बस मुस्करा कर गुजर जाती थी।

उस दिन पार्क के बाहर दोनों टकरा गए, तो हिम्मत करके दीपक ने ही उसे ‘हेलो’ बोला था, तो वह हंस कर आगे बढ़ गयी थी। पता तो चल ही जाता है ना कि इंसान मास्क के अंदर से भी हंस रहा है या नहीं। इस तरह से कई बार उनके बीच हाय-हेलो हुई। फिर धीरे-धीरे उनमें बातें भी होने लगीं। उस लड़की ने अपना नाम सोनी बताया। बहुत ही मीठी आवाज थी सोनी की। दीपक बोलना चाहता था कि एक बार वह मास्क खोले, पर डर लगता कि कहीं वह नाराज ना हो जाए, और प्यार तो दो आंखों से होता है, सोच कर दीपक चुप रह जाता। 

दोनों एक-दूसरे की तरफ आकर्षित होने लगे थे। लेकिन दीपक यह सोच कर सिहर उठता कभी कि जब सोनी को उसकी शादी होने की बात पता चलेगी, तो क्या होगा ! वह तो यही सोचेगी ना कि दीपक उसे धोखा दे रहा है? मगर दीपक उससे सच में प्यार करने लगा है। दीपक का मन करता अपने परिवार वालों से जा कर बोल दे कि वह यह विवाह नहीं करना चाहता है, क्योंकि उसे किसी और से प्यार हो गया है। मगर उसके बाद घर में जो हंगामा मचेगा, वह सोच कर ही उसका रोम-रोम कांप उठता था। 

ऐसा करते-करते शादी का दिन भी नजदीक गया और दीपक का पार्क जाना बंद हो गया। क्योंकि हल्दी लगने के बाद दूल्हा और दुलहन घर से बाहर नहीं निकल सकते हैं। कुछ बहाने बना कर दीपक बाहर जाना भी चाहता, तो उमा उसे जाने नहीं देतीं। कशमकश में था कि क्या करे। मगर अब वह कुछ नहीं कर सकता था, क्योंकि कल ही उसकी शादी थी उस लड़की से, जिसे उसके मां-पापा ने पसंद किया था। 

‘मुझे माफ कर दो सोनी, पर मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता था सच में...’ उस पार्कवाली लड़की की फोटो अपने सीने से लगाए दीपक अपना कमरा अंधेरा कर बैठा था। दीपक जानता था कि अब वह उससे मिल नहीं पाएगा और जब मिलेगा तब वह किसी और का हो चुका होगा। इसलिए चुपके से उसने सोनी की तसवीर अपने फोन में कैद कर ली थी। 

‘तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिली सोनी? अगर मिली होती, तो आज हम जुदा ना होते? सच कहता हूं मेरा जरा भी नहीं मन यह शादी करने का, पर करना पड़ रहा है, क्योंकि इसी में सबकी भलाई है। पर तुम मेरे दिल में हमेशा रहोगी,’ दीपक सोनी की फोटो को चूमते हुए बुदबुदा ही रहा था कि तभी निक्की ने आ कर झट से उसके हाथ से फोन छीन लिया। 

‘‘अरे निक्की... फ...फ... फोन दो मेरा... मैं कहा ना लाओ,’’ दीपक ने झपटा मारा, पर निक्की दूर छिटक गयी। निक्की दीपक की सबसे छोटी बहन है, जो हमेशा उसे छेड़ती रहती है। दीपक को डर लग रहा था कि अगर घर में किसी ने उस लड़की की तसवीर देख ली, तो आफत आ जाएगी। हजार सवाल करने लगेंगे कि यह लड़की कौन है और दीपक के फोन में उसकी तसवीर कैसे? इन सवालों का क्या जवाब देगा वह फिर ! वक्त के साथ भले ही दीपक का परिवार बदला था थोड़ा-बहुत, मगर अभी भी उनके विचार बहुत दकियानूसी थे। प्रेम विवाह तो इस खानदान में आज तक किसी ने नहीं किया था। तो दीपक के फोन में किसी लड़की की फोटो देख कर सवाल ना करते, हो ही नहीं सकता था। 

‘‘नहीं दूंगी, पहले यह बताओ यह मास्कवाली लड़की कौन है? नहीं बताओगे, तो मां को दिखाती हूं,’’ कह कर निक्की भाग ही रही थी कि दीपक ने उसकी चुटिया पकड़ी।

‘‘ ओह... छोड़ो भैया... मां, देखो भैया मार रहे हैं मुझे... बचाओ... निक्की की आवाज सुन उमा और बाकी लोग भी वहां पहुंच गए। 

‘‘मां, देखो ना भैया मुझे मार रहे हैं। वो मैंने इनके मोबाइल में मास्कवाली लड़की....’’ बोल ही रही थी कि दीपक ने उसका मुंह दबा दिया। 

‘‘अरे क... कुछ कुछ नहीं मां, ये ऐसे ही पगली कुछ भी बोलती है,’’ मन तो किया दीपक का कस कर एक-दो मुक्के निक्की की पीठ पर लगा दे, पर मां के सामने उसकी इतनी हिम्मत हो सकती थी क्या? लेकिन बहुत गुस्सा आ रहा था उसे। कितनी शांति से वह अपने कमरे में अपनी सोनी से अपने दिल की बातें कर रहा था, मगर उसमें भी इस निक्की ने डाका डाल दिया।

‘‘मां, मुझसे पहले इस बंदरिया की शादी करानी चाहिए थी आपको। जान छूटती हमारी। पनौती कहीं की !’’ दीपक झल्लाया, तो जीभ निकाल कर निक्की उसे चिढ़ाते हुए भाग गयी। शुक्र था किसी ने दीपक का फोन चेक नहीं किया। वे लोग दोनों भाई-बहन की लड़ाई देख बस हंसते रहे। मौका देखते ही दीपक ने उस मास्क वाली लड़की सोनी की तसवीर डिलीट कर दी, क्योंकि अब क्या फायदा उसकी तसवीर को सीने से लगाए रखने का। कल को कहीं दीपक की पत्नी ने देख लिया, तो बड़ा हंगामा होने से कोई रोक नहीं सकता। इसलिए उसे मिटा देना ही सही लगा उसे। 

मरता क्या ना करता बेचारा... घोड़ी पर चढ़ गया दीपक। गाजे-बाजे के साथ बारात लड़की के दरवाजे पर भी पहुंच गयी। जयमाल के बाद, सात फेरे ले कर दीपक और मोनिका हमेशा के लिए एक हो गए। विदाई के समय भीगी आंखों से कातर स्वर में रोती हुई मोनिका अपनी मां के गले लग पड़ी थी। 

इधर यहां नववधू आगमन की जोर-शोर से तैयारियां चल रही थीं। सभी बहनों ने बड़े उल्लास से दीपक और मोनिका का कमरा सजाया। महिलाओं ने मंगल गीत गाए। द्वार छेकाई पर बहनों ने नेग मांगा, तो अजीब तरह से मुंह बनाते हुए दीपक बोला, ‘‘मां से ले लो भई, मुझे परेशान मत करो।’’

जब वह इस विवाह से खुश ही नहीं था, तो बहनों को क्या नेग देता। उसे तो वहां खड़े लोगों की आवाजें, मंगल गीत गातीं महिलाएं भी चिड़चिड़ाहट पैदा करा रही थीं। जब चिढ़ कर उसने कहा कि अब यह गाना-बजाना बंद करो, तो औरतें यह बोल कर हंसने लगीं कि ‘बहुत थक गया है बेचारा, जाने दो, आराम करने दो अब दूल्हा-दुलहन को।’ लेकिन क्या बताए कि तन से नहीं, मन से थक गया है वह। सोच-सोच कर उसका माथा खराब हुआ जा रहा था कि अब उसे उस मास्क वाली लड़की को देखने का भी कोई हक नहीं है, क्योंकि वह किसी और का हो चुका है। ना तो पुए-पकवान, ना फूलों की महक और ना ही लोगों की हंसी-ठिठोली ही अच्छी लग रही थी उसे। 

वह तो एकांत में अकेले कहीं बैठना चाहता था, पर वह भी लोगों को मंजूर नहीं था। सब उसे और नयी दुलहन को घेरे खड़े थे। दीपक किसी तरह अपने आप पर संयम रखे हुए था, मगर कब तक रख पाएगा नहीं पता उसे। खैर, धीरे-धीरे लोगों की भीड़ छंटने लगी और दीपक का गुस्सा भी उतरने लगा। अब गुस्सा करके भी क्या कर लेता वह? अपना ही नुकसान करता। 

सुहागरात पर सभी बहनों ने दरवाजा छेक लिया यह बोल कर कि पहले पैसे दो, फिर जाने दूंगी। झल्लाते हुए दीपक ने उन्हें 2-2 हजार के 5 नोट थमा दिए। कहने लगीं सब, ‘‘लगता है बड़ा उतावला हुआ जा रहा है अपनी नयी दुलहनिया को देखने के वास्ते। इसलिए बिना ना-नुकुर किए इतने पैसे थमा गया हमें,’’ मगर उन्हें क्या पता कि वह नयी दुलहनिया को देखने के लिए उतावला नहीं हुआ जा रहा है, बल्कि बहुत थक चुका है अौर सोना चाहता है। उसका बस चले, तो कभी देखे ही ना दुलहन का मुख। लेकिन रिवाज है इसलिए बेमन से ही दीपक ने जब अपनी नयी-नवेली दुल्हन का घूंघट उठाया, तो देखता ही रह गया। एकदम वही विजेता सी चमक वाली आंखें। लेकिन फिर वह यह सोच कर मायूस हो गया कि यह उसकी आंखों का धोखा है और कुछ नहीं। क्योंकि यह लड़की वह कैसे हो सकती है। जितना वह सोनी को भूलने की कोशिश करता, उतना ही वह उसे याद आ रही थी। सुहागरात में दोनों के बीच कुछ भी बातें नहीं हो पायी, क्योंकि मोनिका इतनी थक चुकी थी कि वह दुलहन के कपड़े में ही सो गयी। उधर दीपक छत में टकटकी लगाए देखता रहा और फिर जाने कब उसकी भी आंख लग गयी।
‘‘तुम यहां !’’ अचानक सुबह-सुबह उस मास्क वाली लड़की सोनी को अपने सामने देख कर दीपक अवाक रह गया ! इधर-उधर देखा कोई नहीं था। सब घोड़े बेच कर सोए हुए थे। शादी को ले कर सब इतने थक चुके थे कि अभी तक कोई उठा नहीं था। और मोनिका शायद बाथरूम में थी। 

‘‘हां मैं, तुमने ऐसा क्यों किया दीपक? प्यार मुझसे किया और शादी किसी और से कर ली तुमने? मैंने सिर्फ और सिर्फ तुमसे प्यार किया और तुमने मुझे धोखा दे दिया। यह तुमने सही नहीं किया,’’ कह कर सोनी सिसकने लगी। उसे रोते देख दीपक का मन हुआ उसे बांहों में भर ले और कहे, ‘नहीं, मैंने तुम्हें धोखा नहीं दिया। मैं तो आज भी तुमसे प्यार करता हूं। मगर वह ऐसा नहीं कर सकता था, नहीं तो मोनिका के साथ धोखा होता। 

‘‘क्यों किया तुमने ऐसा दीपक बोलो ना? कहो कि तुम्हारा प्यार झूठा था?’’

‘‘नहीं झूठा नहीं था मेरा प्यार, सच में,’’ दीपक बोला। 

‘‘तो तुम अपनी पत्नी को छोड़ कर मेरे पास आ सकते हो?’’ वह लड़की बोली, तो एक मिनट के लिए दीपक को कुछ नहीं सूझा कि वह क्या कहे?

‘‘सॉरी, पर मैं ऐसा नहीं कर सकता। क्योंकि अब वह मेरी पत्नी है। मेरे सुख-दुख की साथी। सात फेरे लेते वक्त वचन दिया है मैंने उसे जीवनभर साथ निभाने का,’’  दीपक ने स्पष्ट शब्दों में उसे बोल दिया। तभी जोर से हंसने की आवाज से वह चौंका ! 

‘‘बस-बस-बस... अब मुझसे नहीं हो पाएगा,’’ हंसते हुए जब उस मास्क वाली लड़की ने अपना मास्क हटाया, तो दीपक भौंचक्का रह गया !क्योंकि वह कोई और नहीं, बल्कि उसकी पत्नी मोनिका ही थी। 

‘‘तुम... तो तो तुम ही हो वह मास्कवाली लड़की? इतने महीनों से तुमसे ही मैं पार्क में मिलता रहा?’’ दीपक अभी भी कन्फ्यूज था कि जो वह समझ रहा है वह सही है या जो नहीं समझ रहा है वो सही है। 

‘‘बस-बस, अब अपने दिमाग पर ज्यादा जोर मत डालो। मैं बताता हूं कि असल में हुआ क्या है,’’ मोनिका के पापा अपनी हंसी रोकते हुए बताने लगे, ‘‘दरअसल मोनिका अभी कुछ साल और शादी नहीं करना चाहती थी। वह मास्टर्स करने के बाद ही शादी करना चाहती थी। मगर हम इतना अच्छा घर-वर अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे। और सबसे बड़ी बात की बेटी का ससुराल पास में ही रहेगा, तो एक तसल्ली रहेगी। हम चाहते थे कि मेरी बेटी की शादी तुमसे जो जाए। तुम्हारे बारे में सब पता कर लिया था हमने। पर मोनिका पर्सनली तुम्हें जानना चाहती थी इसलिए उसने यह नाटक रचा।’’ 

‘‘अच्छा, तो ये बात थी? मतलब मेरे खिलाफ साजिश रची जा रही थी। और मान लो अगर मैं तुम्हें पसंद नहीं आता या मेरा चाल-चलन कुछ खराब होता, तो क्या तुम मुझसे शादी करने से मना कर देती ?’’ दीपक ने पूछा, तो मोनिका हंसी और बोली, ‘‘हां, पर आज मैं जीत गयी, तुम्हें पा कर। तुमने जो कहा ना कि अब तुम शादीशुदा हो और तुमने अपनी पत्नी का साथ निभाने का वचन दिया है, वह बात मेरे दिल को छू गयी।’’ 

मोनिका की बातों पर दीपक हंसा और सबके सामने ही उसे गोद में उठा कर चूमते हुए बोला, ‘‘और मैं भी जीत गया, क्योंकि वो मास्क वाली लड़की कोई और नहीं, बल्कि मेरी पत्नी ही है। मेरा प्यार ही मेरा हमसफर है।’’ 

इतने दिनों से जो दीपक मुंह फुलाए हुए था, उसे आज ठहाके पर ठहाके लगते देख सब भौंचक्के थे। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि अचानक से दीपक को कौन सा गड़ा खजाना मिल गया कि उसके तेवर ही बदल गए। अब यह तो कोई कभी समझ ही नहीं पाएगा कि आज अचानक दीपक का मिजाज इतना बदला-बदला क्यों है, पर जो भी है बढ़िया है।