Thursday 22 October 2020 02:21 PM IST : By Pama Malik

मैं तेरे प्यार में

story-main-tere-pyar-me

जीवन का एक छोटा सा अंतराल पूरे जीवन के लिए यादगार बन जाता है। वह मेरा ‘प्रथम प्यार’ थी। दो चोटी वाली, गदबदी, प्यारी सी लड़की, जो बिलकुल नहीं जानती थी कि 15 वर्ष का एक किशोर उसे दिलोजान से चाहता है। वह मेरे स्कूल के बगल में रहती थी। कब वह मेरे दिल में उतर गयी, पता ही नहीं चला। इस चाहत में कोई कलुषता ना थी, मैं उसे अपनी प्रेरणा मानता था। स्कूल आते-जाते घंटों उसकी एक झलक के लिए प्रतीक्षा करता, वह छींट वाली फ्रॉक पहन कर कूदती-फांदती आती, कभी कूड़ा फेंकने, कभी फेरीवालों से मोलभाव करने। मैं उतने से ही प्रसन्न हो कर घर लौट आता। उसकी मां घर के अंदर से उसे सुकु कह कर पुकारती, तो उसका निकनेम पता चल गया। हमारे इस खामोश प्रेम का एकमात्र चश्मदीद गवाह था अब्दुल्ला सगीर। वह सुकु का पड़ोसी था, मैं उससे अपने मन की बात कहता था। मेरी व सुकु की अांखें चार भी नहीं हो पायीं कि मेरे पापा का ट्रांसफर हो गया। मैं वह शहर छोड़ आया, सगीर से मेरा संपर्क बना रहा। मैं उससे सुकु की बातें पूछता रहता। फिर पता चला वे लोग भी शहर छोड़ कर कहीं चले गए। सुकु को दिल में बसाए हुए मैं जवान हो गया।

कठिन परिश्रम व लगन से मैं डिप्टी एसपी बन गया। काम के अलावा मेरी जिंदगी का कोई दूसरा मकसद नहीं रह गया था। तभी मेरी जिंदगी में एक दूसरी लड़की का प्रवेश हुआ। वह अपने साथ हुए सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायत दर्ज कराने आयी थी। वह दुबली-पतली, लंबी, आधुनिक लड़की थी। तनिक असुविधा मुझे उसके छोटे कपड़ों से हुई, किंतु इस बात को नजरअंदाज कर मैंने ध्यान से उसकी बात सुनी।

उसने कहा, ‘‘उसने पहली बार मुझे जबर्दस्ती की और दूसरी बार शादी का झांसा दे कर मुझसे संबंध बनाए।’’ उसकी आवाज और अंदाज में बला का आकर्षण था। मैं मुग्ध हो गया और फिर स्वयं को संभाल कर बोला, ‘‘दूसरी बार आप अपनी इच्छा से उसके साथ गयीं। ऐसी परिस्थिति दोबारा कैसे बनी?’’

‘‘वह मेरा बॉस है। वह मेरी मजबूरियों का फायदा उठाता रहा। पदोन्नति का प्रलोभन दे कर वह अकेले में काम करवाता रहा और...’’ वह रोने लगी। मैं द्रवित हो गया, मैंने उसकी कंप्लेन लिख लेने का आदेश दिया।

अगले दिन वह यानी सुकन्या और उसका बॉस दोनों मेरे सामने बैठे थे। उसका बॉस परिमल धनी व अय्याश टाइप का अकड़ू व्यक्ति था, बोला, ‘‘ऑफिसर, आप किसकी शिकायत पर मुझे परेशान कर रहे हैं। ये सब पिछड़े इलाके की लड़कियां दिल्ली की चमकदमक देख कर चकाचौंध हो जाती हैं। धन-दौलत, ऐशोआराम के चक्कर में धनी पुरुषों को फंसाती हैं, इनकी ड्रेस देखी है। इतने छोटे वस्त्र भले घर की लड़कियां पहनती हैं !’’

मेरे कुछ कहने से पहले ही सुकन्या ने तैश में आ कर कहा, ‘‘क्या छोटे वस्त्र पहननेवाली लड़कियों का मान-सम्मान नहीं होता। छोटे वस्त्रों की दुहाई दे कर आप बड़े से बड़ा अपराध करने के लिए स्वतंत्र हैं।’’

‘‘देखो, यदि अपराध सिद्ध हो गया, तो तुम 5 से 7 वर्षों के लिए अंदर चले जाओगे। पदोन्नति के झूठे सपने और शादी का झांसा दे कर तुम लड़कियों का शारीरिक शोषण करते हो,’’ मैं गुर्राया, तो उसका बॉस नरम पड़ गया, ‘‘मैं शादी का झांसा क्यों दूंगा। मैं विवाहित हूं। यदि मैं बलात्कार करता, तो यह चीखती-चिल्लाती, विरोध करती, इसने ऐसा नहीं किया। जो कुछ भी हुआ आपसी रजामंदी से हुआ।’’

‘‘यह सरासर झूठ बोल रहा है सर। इसने अपने विवाहित होने की बात भी मुझसे छुपाए रखी,’’ सुकन्या के अांसू मुझे आहत कर रहे थे। मैंने रौद्र रूप धारण किया, तो उसका बाॅस डर गया। उसने बलात संबंध बनाने की बात स्वीकार कर ली, किंतु कोर्ट में वह मुकर गया। दोनाें पक्षों की बात सुन कर न्यायाधीश ने बॉस के पक्ष में निर्णय सुनाया, किंतु उसे चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘यदि पुरुष झांसा देता भी है, तो स्त्री को विवाह पूर्व उससे दैहिक संबंध नहीं बनाने चाहिए। स्त्री बालिग है और उसके मित्रवत संबंध है, तो शारीरिक रिश्ते आपसी सहमति से बनते हैं। उसमें किसी एक को दोषी नहीं माना जा सकता, फिर भी स्त्री की विवशता का फायदा उठाना कानूनन जुर्म है। अतः मैं श्री परिमल को दो लाख रुपए का आर्थिक दंड देता हूं, जो सुकन्या के खाते में जाएगा।’’

कोर्ट के बाहर खड़ी उदास सुकन्या को मैंने लड़ाई जारी रखने का अनुरोध किया, किंतु उसने मना कर दिया।

हम मिलते रहे, जिसकी परिणति हमारे विवाह के रूप में हुई। उसने खुद को बदल दिया। छोटे वस्त्र के स्थान पर साड़ी और सूट पहनने लगी। खुद को एक आदर्श पत्नी साबित करने का पूरा प्रयास किया, हम खुश थे। अचानक एक दिन मुंबई जाते समय रेल यात्रा में परिमल से भेंट हुई। मैं अकेला था। वह मुझसे मित्रवत मिला, किंतु कुछ देर बाद ही वह बोलने लगा, ‘‘आपने एक ऐसी लड़की के चक्कर में मुझे बेवजह दंडित किया, जो झूठी और मक्कार थी। मेरी वैवाहिक जिंदगी खतरे में पड़ गयी है।’’

‘‘बेवजह? आप यदि विवाहित थे, तो आपने उससे अनैतिक रिश्ते क्यों बनाए?’’ मैं तैश में आ गया, किंतु सुकन्या से अपने विवाह की बात छुपाए रखी।

‘‘एक बहुत ही सुंदर, युवा स्त्री यदि स्वयं आगे बढ़ कर आपको हमबिस्तर होने का आमंत्रण दे, तो आप क्या करेंगे?’’

‘‘देखिए, आप फिर बिना प्रमाण के उसे आरोपित कर रहे हैं।’’

‘‘अच्छा तो यह सुनिए, मैंने उसकी आवाज टेप कर ली थी, ताकि वह फिर मुझे पर आरोप लगाए, तो मैं इसका उपयोग कर सकूं।’’

परिमल ने जो टेप मुझे सुनाया, उसमें सुकन्या की ही आवाज थी। वह 10 लाख रुपए की डिमांड कर रही थी, अन्यथा वह केस को दूसरी अदालत में ले जाने की धमकी दे रही थी।

‘‘आवाज बनायी जा सकती है, इसको कोर्ट मान्य प्रमाण के रूप में नहीं स्वीकार करता,’’ मैंने कहा, किंतु मुझे खुद के कहे पर विश्वास नहीं हो रहा था। बात को समाप्त करके मैं अपनी बर्थ पर लेट गया, किंतु सारी रात जागता रहा।

दिल्ली लौट कर मैंने सुकन्या की पासबुक चेक की। उसमें कोर्ट के निर्णय के बाद के दिनों में एक साथ 10 लाख रुपए की एंट्री थी, मैं सन्न रह गया। सामने चाय ले कर मुस्कराती हुई आती सुकन्या को मैं नहीं बता पाया कि आज मैं कितना आहत था। मेरी जिंदगी में अविश्वास का तूफान आ गया था, किंतु मुझमें इतनी हिम्मत ना थी कि मैं उसे छेड़ता। मैं अपने शादीशुदा जीवन को खतरे में नहीं डालना चाहता था। सुकन्या की कॉलेज फ्रेंड वान्या की मैरिज एनिवर्सरी पार्टी में मेरी भेंट अपने दूर के रिश्ते के कजिन मयंक से हुई। वह बला का फेंकू और बड़बोला था, किंतु उस दिन उससे दूरी बनाए रखने की मेरी मंशा धरी की धरी रह गयी। वह अपनी स्मार्टनेस और वैभव का बखान करते हुए लड़कियों के किस्से सुनाने लगा, ‘‘यार, लड़कियां तो इस कदर मुझ पर मर मिटती थीं कि बात शादी तक पहुंच जाती थी, अरे खुद को ऑफर तक कर देती थीं।’’

‘‘अच्छा यार, बोर मत कर। पुलिसिया आदमी से ऐसी बात करेगा, तो अंदर कर दूंगा।’’

‘‘यार, देख ना एकाध के फोटो दिखाऊं, तो विश्वास करेगा। अरे, कुछ तो इस पार्टी में भी मौजूद है। मैंने अनिच्छा से गरदन घुमायी और ठिठक गया, ‘‘यह कौन है?’’

‘‘अरे सुकन्या है यार, जेएनयू में हम साथ पढ़े हैं। इससे मेरे अंतरंग रिश्ते थे, इसी के कारण तो मैं आज भी अविवाहित हूं।’’ तभी सामने से सुकन्या आती दिखी। मयंक कुछ कहता उसके पहले ही मैं बाेल पड़ा, ‘‘मीट माई वाइफ सुकन्या।’’

‘‘ओह अच्छा, नमस्ते भाभी। मयंक की हालत गैस निकले गुब्बारे सी हो गयी। वह वहां से खिसक गया। फिर वहां नजर नहीं आया। सुकन्या उसी प्रकार मुस्कराती इधर-उधर घूमती, सबसे बतियाती रही। उसके चेहरे पर कोई अपराधबोध ना था, सो मैं निश्चिंत हो गया। किंतु मेरे जहन में मयंक का कहा गया अंतिम वाक्य गूंजता रहा। देर रात सबकी दृष्टि बचा कर भागते मयंक को मैंने धर दबाेचा, ‘‘हां, अब बोल क्या बोलता है।’’

‘‘अरे यार, वह... मैं... हांकने के चक्कर में ज्यादा बोल गया था। मैं और सुकन्या जेएनयू में साथ पढ़े थे बस यही सचाई है, बाकी सब झूठ है... सॉरी यार।’’ शर्मिंदा सा मयंक चला गया।

मैं सशंकित सा इधर-उधर घूमता रहा। मयंक तो सुकन्या को ‘चरित्र प्रमाण पत्र’ दे गया था। रात के खाने के बाद सुकन्या गायब हो गयी। मैं उसे खोजता वान्या के बेडरूम में पहुंच गया, जहां से आती फुसफुसाहट ने मुझे विवश कर दिया कि मैं छुप कर उनकी बातें सुन लूं। ‘‘मयंक को तो ज्यादा बोलने की आदत है, कहीं तेरे पति से तुम दोनों की नजदीकियों के बारे में बता दिया, तो गड़बड़ हो जाएगी।’’ यह वान्या थी। ‘‘थैंक गॉड। उसने कुछ नहीं बताया, अन्यथा ये तुरंत रिएक्ट करते, हो सकता है मुझे तलाक ही दे दे देते। तुने उसे पार्टी में बुला कर भूल की है,’’ सुकन्या ने उलाहना दिया। मैं उल्टे पैर वहां से लौट आया और चुपचाप जा कर गाड़ी में बैठ गया, मेरे सपनों का शीशमहल टूट गया था।

कुछ देर बाद सुकन्या मुझे ढूंढ़ती हुई वहां आयी और बोली, ‘‘ओह गॉड, कहां-कहां नहीं ढूंढ़ा मैंने तुम्हें, तुम यहां बैठे हो, बता कर आना चाहिए ना।’’ वह मेरे बगल में बैठ गयी। मैंने कार स्टार्ट की और वह मुझसे चिपक कर बैठ गयी। कहीं से मेरे मन में एक आवारा सा ख्याल आया कि यदि मैं इस बेवफा की गरदन दबा दूं, तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। मुझे चुप देख कर सुकन्या ने अंधेरे में मेरी आंखों में देखने का प्रयास किया और डर गयी, ‘‘क्या हुआ, ऐसे क्यों देख रहे हो?’’

‘‘कुछ नहीं हुआ, अलग हट कर बैठो, रास्ते में ट्रैफिक है,’’ मैंने स्वयं पर नियंत्रण रखा और सुकन्या भी संभल कर बैठ गयी।

मेरी मां बीमार थीं। सुकन्या ने उनकी सेवा करने का अनुरोध करके उन्हें घर पर बुला लिया। मां गांव में पिता जी और चाचा-चाची के परिवार के साथ सुखपूर्वक रहती थीं। यहां उनके आने पर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। सुकन्या भी मेरी बेरुखी और दूरी का कारण समझ नहीं पा रही थी। मुझे खुश करने के लिए शायद उसने यह निर्णय लिया। वह मेरी और मां की खूब सेवा करती और हमारा ध्यान रखती। इस बीच उसकी चचेरी बहनों ने शिमला घूमने का कार्यक्रम बनाया, सुकन्या भी जाना चाहती थी। मां ने कहा, ‘‘अभी तो मैं ठीक हूं, तुम घूम आओ।’’
सुकन्या लगभग 10 दिन के टूर पर रवाना हो गयी। मैंने उसे सचेत किया कि फोन सदैव साथ रखना। मां की तबीयत खराब होने पर उसे तुरंत लौटना पड़ेगा, किंतु उनके शिमला जाने के बाद सुकन्या से संपर्क टूट गया। एक दिन सुकन्या के बड़े भाई का फोन आया कि उनकी मां बहुत सीरियस है, किंतु सुकन्या का फोन स्विच ऑफ है, क्या किया जाए। मैंने सुकन्या के होटल मैनेजर का फोन नंबर निकाला और उससे सुकन्या से बात कराने का अनुरोध किया। बड़ी देर बाद सुकन्या की उखड़ी-उखड़ी सी आवाज आयी, ‘‘हेलो, क्या बात है।’’

‘‘मम्मी बहुत बीमार हैं, आईसीयू में हैं, किसी भी समय कुछ भी हो सकता है, तुरंत लौट आओ।’’ दूसरी तरफ सन्नाटा छा गया।

story-main-tere-pyar-me-1

‘‘तुम हो कहां, मैंने इतनी बार तुम्हें कॉल किया...’’ मुझे चुप हो जाना पड़ा, क्योंकि फोन डिस्कनेक्ट हो गया था। बाद में कई बार फोन करने पर भी मैनेजर का जवाब मिलता, ‘‘मैडम इज नॉट एवेलेबल।’’

अगले दिन सुकन्या की मां ने आईसीयू में अंतिम सांस ली और उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया, जिसमें मैं शामिल था। तीसरे दिन प्रसन्न मुद्रा में सुकन्या बैग-बैगेज के साथ दाखिल हुई। मैं निर्विकार मुद्रा में लॉन की चेअर में बैठा चाय पीता रहा। मेरी एकटक दृष्टि उसे सहन नहीं हुई, अंदर से मां की खांसी की आवाज से वह सचेत हुई, ‘‘मम्मी की तबीयत ज्यादा खराब है।’’ ‘‘नहीं तो, वे तो ठीक हैं,’’ मेरी टटोलती नजर से उसे असुविधा हुई।

‘‘शिमला में नेटवर्क की समस्या थी, संपर्क ही नहीं हो पा रहा था।’’ ‘‘तुम्हारा फोन स्विच ऑफ था, तुम कहां घूम रही थीं। चार दिन पहले मुझसे तुम्हारी बात हुई, तुमने मेरी बात सुनी।’’

‘‘नहीं तो...’’ उसने सफेद झूठ बोला।

‘‘अच्छा। लेकिन मैंने तुम्हारी आवाज सुनी, अब ज्यादा समय नष्ट ना करके गुड़गांव रवाना हो जाओ, तुम्हारी मम्मी नहीं रही।’’ ‘‘क्या !’’ वह चीख पड़ी, ‘‘मेरी मां आईसीयू में भरती थीं, तुमने मुझे बताया क्यों नहीं,’’ वह वहीं बैठ कर फूट-फूट कर रोने लगी।

‘‘इसका मतलब आईसीयू वाली बात तुम जानती थीं, किंतु तुम्हें लगा तुम्हारी सास की तबीयत खराब है सो तुमने रंग में भंग डालना उचित नहीं समझा। मस्ती करके अपना टूर पूरा होने के बाद तुम लौटीं, मेरी मां से तुम्हें क्या लेना-देना,’’ मैंने गरजते हुए कहा। वह सहम कर चुप हो गयी, अपनी पोल खुलती देख उसकी बाेलती बंद हो गयी। वह सिसकते हुए मायके जाने की तैयारी करने लगी। मेरा मन घृणा से भर गया। मैंने उससे अलग होने का फैसला कर लिया। उसके आने पर मैं उसे अपना निर्णय सुनाता, किंतु लौट कर तो उसने मुझे चमत्कृत कर दिया। उसने बताया कि वह मेरी संतान की मां बननेवाली है, मैं उसे अपना निर्णय नहीं सुना सका। यद्यपि विवाहोपरांत उसने घर और मेरा ध्यान रखा, किंतु विवाहपूर्व की उसकी चरित्रहीनता, मां के प्रकरण में बरता गया दोगलापन मुझे विवश कर रहा था कि मैं उससे संबंध विच्छेद कर लूं।

एक दिन अब्दुल्ला सगीर का फोन आया, वह दिल्ली में था और मुझसे मिलना चाहता था, मैंने उसे तुरंत घर आने को कहा। मैं बेचैन था, शायद वह सुकु की कोई खबर दे सके, नियत समय पर वह आया।

‘अब्दुल्ला ! कैसा है मेरे यार?’’ मैंने उसे बांहों में भींच लिया। वह मेरी सुकु के शहर का था, उसमें सुकु की यादों की खुशबू थी। हम चाय पीते अतीत की यादों में गुम थे। अचानक वहां सुकन्या आयी, सगीर उठ खड़ा हुआ, उसकी भौंचक्की भावभंगिमा देख कर मुझे आश्चर्य हुआ, ‘‘क्या हुआ यार, बैठ ना आराम से, यह पत्नी है मेरी सुकन्या।’’

‘‘तू तबसे सुकु के बारे में पूछ कर मेरा दिमाग खाए जा रहा है।’’

‘‘हां, तो क्या हुआ,’’ मेरा दिल धड़कने लगा।

‘‘अरे, यही तो है तेरे दिल की धड़कन, जिसके लिए तू वर्षों दीवानावार तड़पता रहा, तेरी पत्नी सुकन्या यानी ‘सुकु’।