Wednesday 15 September 2021 04:21 PM IST : By Sudha Jugran

जो रास्ता खुशी दे

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‘‘शायद अब हमें साथ नहीं रहना चाहिए,’’ कहता हुअा केशव बाथरूम में घुस गया। 

‘‘लेकिन...?’’ केशव की बात पर भौंचक्की सी वह कुछ कहना चाहती थी, पर तब तक दरवाजा भड़ाक से बंद हो चुका था और तेज शावर चलने की आवाज आने लगी थी।

एकाएक राशि को तेज चक्कर आने की सी अनुभूति हुई। वह मेज का सहारा ले कर बिस्तर पर बैठ गयी। वे दोनों पिछले 5 साल से लिव इन रिलेशन में रह रहे थे। इतने लंबे समय तक साथ रहते-रहते अब वह केशव से शादी के बारे में सोचने लगी थी। आदिकाल से वैवाहिक बंधन पुरुषों की फितरत को तो कभी भी नहीं बांध पाया था, पर अब तो सारे बंधन तोड़ कर, नयी-नयी मिली आजादी का जश्न मनाती स्त्री भी पुरुषों के जीवन के इस मापदंड के समीकरण का हिस्सा हुई जा रही थी।

राशि भी बहुत खुशी से इस आजादी का जश्न मना कर सभी तथाकथित पारंपरिक मान्यताओं को तोड़, माता-पिता की सलाह को दरकिनार कर, नाते-रिश्तेदारों व समाज की परवाह ना कर अपनी आर्थिक आजादी को अपनी शारीरिक व वैचारिक आजादी में पिछले 5साल से तब्दील करने के लिए कटिबद्व थी। लेकिन फिर क्या हुआ? पिछले कुछ समय से वह इस आजादी से थकने क्यों लगी है? बिन बंधन की आजादी मोह क्यों नहीं रही है? क्यों कोई उलझन उसके इतने सालों से निर्बाध चलते कदमों को अब ठिठकने के लिए मजबूर करने लगी है?

पिछले 5 साल में वह 2 बार अबॉर्शन करवा चुकी थी, लेकिन अब तीसरी बार ना जाने क्यों वह यह बात केशव से छिपा गयी। जब चौथा महीना शुरू हो गया, तो केशव को भी उसके शरीर में आए परिवर्तन का अहसास होने लगा।

‘‘क्या कुछ ऐसा है, जो तुमने मुझे नहीं बताया...?’’ एक दिन केशव पूछ बैठा। जवाब में वह चुप हो गयी। ‘‘लेकिन क्यों, क्यों किया तुमने ऐसा राशि... कैसे पालोगी इस बच्चे को अकेले...?’’ केशव अकस्मात गुस्से में चिल्ला पड़ा।

‘‘अकेले क्यों, हम दोनों का है, तो हम दोनों ही पालेंगे...’’

‘‘हम लिव इन रिलेशन में रह रहे हैं और मेरी समझ से तुम्हें इसका मतलब समझाने की जरूरत नहीं,’’ केशव भन्ना कर बोला।

‘‘हम 5 साल से साथ रह रहे हैं... अब हमें शादी कर लेनी चाहिए केशव,’’ वह फिर भी शांत रही।

‘‘पर मुझे शादी नहीं करनी है... लिव इन रिलेशन में रहना शुरू करने से पहले ऐसी कोई शर्त तो नहीं थी ना हमारे बीच...?’’ केशव ने उन दोनों के रिश्ते को पलभर में ही वास्तविकता के कठोर धरातल पर पटक दिया।

‘‘लेकिन केशव, जो बच्चा हमारे बीच आ रहा है... वह है तो हमारा ही...’’ केशव की तीव्रता देख कर वह भरसक अपने स्वर को कोमल बना कर बोली।

‘‘मुझे इस बच्चे से कोई लेना-देना नहीं... यह तुम्हारा डिसीजन है। मेरे लिए यह सिर्फ भावुकता व उत्तेजनावश की गयी कुछ कमजोर क्षणों का नतीजा है बस...’’ तटस्थ व कठोर स्वर में अपनी बात कह केशव मुंह फेर कर सो गया।

और वह निशब्द हल्की रोशनी में कमरे में नजर आ रहे सायों पर नजरें गड़ाए अपनी भूत में की गयी गलतियों के सायों से गड़मड़ाती भविष्य की तसवीर से भयभीत हुई बैठी रह गयी।

‘‘अब...? क्या है जीवन, इसके आगे... कानूनन उसका कोई अधिकार नहीं है केशव पर और अगर इस बच्चे का अधिकार हो भी, तो क्या इतना सरल है साबित करना... इसमें उसकी सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, शारीरिक स्थिति कितनी चरमरा जाएगी, यह वह अच्छी तरह से जानती थी।

पिछले कुछ समय से उन दोनों के बीच आने वाला बच्चा भयंकर टकराव का कारण बन चुका था और आज उसकी परिणति केशव के इस एक वाक्य में कहे फैसले ने कर दी थी कि ‘शायद अब हमें साथ नहीं रहना चाहिए।’

लिव इन रिलेशन के रिश्ते का परिणाम इतना भयानक हो सकता है, पर यह सच है। इसके लिए वह खुद को मानसिक रूप से तैयार करने लगी थी। अपनी शक्ति को केशव से लड़ने में खर्च करने के बजाय वह आगामी भविष्य पर अकस्मात लिख दी गयी कठिन इबारत को पढ़ने का माद्दा अपने अंदर संजोने की पुरजोर कोशिश कर रही थी।

वह बहुत देर तक सोचती रही। कुछ फैसले लिए। कुछ फोन किए और फिर दूसरे कमरे में जा कर सो गयी। सुबह का नाश्ता केशव बनाता था। डिनर की तैयारी राशि करती थी।

सुबह केशव किचन में व्यस्त था कि राशि अपनी अटैची व बैग ले कर दूसरे कमरे से तैयार हो कर बाहर निकली। मेज पर नाश्ता रखते केशव के चेहरे पर कई प्रश्न एक साथ लक्षित हो गए।

‘‘तुम सही कहते हो केशव, शायद अब हमें साथ नहीं रहना चाहिए...’’ केशव के चेहरे पर टंगे प्रश्नों को दरकिनार कर राशि बिना किसी लाग-लपेट के बोली।

‘‘लेकिन... लेकिन... मेरा मतलब...’’ अपनी उम्मीद के विपरीत राशि का रुख देख कर केशव चौंक गया।

‘‘मैं अपनी बचपन की दोस्त सलीना के साथ शिफ्ट हो रही हूं।’’

‘‘मतलब कि तुम्हें शिफ्ट होना मंजूर है, पर अबॉर्शन करवाना नहीं,’’ केशव विद्रुप स्वर में बोला।

‘‘मुझे अबॉर्शन करवाना है या नहीं, यह फैसला तुम नहीं मैं करूंगी केशव... हम दोनों लिव इन में रहे... यह दोनों का फैसला था। प्रकृति ने बच्चे पैदा करने की पूरी जिम्मेदारी स्त्री के शरीर को दी है, जबकि इस स्थिति को उत्पन्न करने के लिए दोनों बराबर के जिम्मेदार होते हैं। तुम्हारे लिए यह कुछ कमजाेर क्षणों की भूल भर है... पर मैं पूछना चाहती हूं केशव कि क्या तुम भी किन्हीं कमजोर क्षणों की भूल का नतीजा हो... और अगर नहीं तो यह बच्चा हम दोनों के प्यार की निशानी क्यों नहीं है... मुझे चौथा महीना पूरा होनेवाला है, अब या तो मैं अपनी जान पर खेल कर इस बच्चे को खत्म कर दूं या अपनी आन पर खेल कर इसे जन्म दूं, यह मेरी मर्जी है...’’ राशि शांत मगर दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘एक पुरुष कुंअारा बाप बनने में शरम महसूस नहीं करता तो एक स्त्री क्यों?’’ कह कर राशि बैग कंधे पर डाल अटैची खींचती हुई बाहर निकल गयी।

टैक्सी में बैठी राशि का दिल व आंखें आंसुओं से सराबोर थीं। इतना बड़ा फैसला लेना सरल नहीं था। थोड़ी देर बाद वह सलीना के फ्लैट की घंटी बजा रही थी। सलीना को देखते ही अपनेपन की उष्मा से पिछले कुछ दिनों से उसके अंदर जमी हुई बर्फ पिघल कर बाढ़ की तरह तूफान मचाती हुई बहने लगी। सलीना बहुत देर तक उसे गले लगाए, पीठ सहलाते हुए आश्वासन देती रही।

‘‘बस राशि, आज रो ले... आज के बाद एक भी आंसू नहीं... जब लिव इन रिलेशन की व्यवस्था को स्वीकार करने की हिम्मत एक लड़की करती है, तो पुरुष की ही तरह परिणाम के लिए उसे भी मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए... हालांकि मां बनना स्त्री के जीवन की कमजोर कड़ी है, जबकि पुरुष स्वछंद हो भंवरा बना फिरता है... केशव भी किसी ना किसी दिन शादी कर ही लेगा... भले ही जीवन में आने वाली उसकी वह लाइफ पार्टनर इससे पहले किसी की लिव इन पार्टनर रह चुकी हो। पर जिस लड़की के साथ 5 साल रहा, जब उसके साथ जिंदगी बिताने की बात नहीं सोच पाया, तो किसी नए के साथ, जो अपने स्याह अतीत की दुविधा को भी साथ ले कर आएगी, कैसे निभा पाएगा...?’’

‘‘तू बैठ, मैं काॅफी बना कर लाती हूं,’’ सलीना जा कर 2 कप काॅफी बना कर ले आयी।

‘‘अब बता, क्या करना चाहती है... केशव से इस बच्चे का अधिकार पाने के लिए, कानून की किताबों को खंगालना या अकेली मां बन कर एक नयी राह तलाशना... कौन सा रास्ता खुशी दे देगा, यह भविष्य की बात है, पर इतना जानती हूं कि किसी इंसान से लड़ने से अच्छा है परिस्थितियों के खिलाफ लड़ना... जीत गयी, तो तुझे सुकून मिलेगा। इंसान से जीत कर भी सुकून नहीं मिलेगा।’’

‘‘तू ठीक कहती है सलीना... मैं उस बात के लिए कमजोर क्यों बनूं, क्यों रोऊं, गिड़गिड़ाऊं, जिसका कारण सिर्फ मैं अकेली नहीं हूं... अपनी ताकत, अपनी हिम्मत, अपना पैसा, उस उबड़खाबड़, बियाबान रास्ते पर चलने में क्यों झोंकूं, जिसका अगर कोई हल निकलेगा भी तो तब तक मेरे जीवन का सारा रस सूख चुका होगा।’’

‘‘शाबाश ! यह हुई ना बात... अब तू वही पुरानी राशि लग रही है, जो परिस्थितियों की गुलाम नहीं... बल्कि परिस्थितियों को अपना गुलाम बनाने की सोचती थी... और फिर थोड़ी सी परिस्थितियों का ही तो फर्क है राशि। मैं शादीशुदा हूं, पर बेटा होस्टल में, पति 3 साल से यूएस गए हैं... मैं भी तो अकेले ही यहां जिंदगी से जूझ रही हूं...’’

‘‘परिस्थितियों से निबटना व सामाजिक व्यवस्था और उसके बनाए दायरे से बाहर जा कर परिस्थितियों से निबटने में बहुत फर्क है, सलीना...’’ बोलते-बोलते राशि की आंखों में दो मोती आ कर फिर अटक गए।

‘‘जानती हूं... पर एक दरवाजा बंद होता है, तो कई नए दरवाजे भी खुलते हैं... बस खोलने की हिम्मत होनी चाहिए। चल अब कुछ खा ले,और आॅफिस जा। छुट्टी करने की कोई जरूरत नहीं। खुद को कमजोर होने का मौका बिलकुल नहीं देना है।’’

थोड़ी देर बाद दोनों आॅफिस के लिए निकल गयीं। उसका आने वाला बच्चा अब उसके शरीर से टकराती नजरों में सवाल बन कर उभरने लगा था। लेकिन उसने कुछ छिपाया नहीं। कई बातें छिपाने पर तनाव से गुजरना पड़ता है। इससे अच्छा है, एक बार सच बोल कर खुद को शांत रखना। राशि ने भी एक बार सबको सच बता कर सबका मुंह बंद कर दिया था। 

बच्ची का जन्म हो गया। राशि के घर में पता चला, पर कोई उसे देखने भी नहीं आया। सलीना ने औपचारिकता निभाते हुए केशव को भी सूचना दी, पर उसने भी पूरी तरह से बेरुखी दिखा दी। आरवी एक साल की हो गयी थी। सलीना की जिद पर उसने आॅफिस के कर्मियों व कुछ निजी दोस्तों को एक छोटी सी पार्टी दे डाली थी। सलीना रात को कमरे में आयी, तो राशि एक हाथ से आरवी को सहलाती हुई चुपचाप आंखों में उमड़ आए आंसुअों को पोंछ रही थी।

‘‘अरे, यह आज फिर बिन बादल बरसात कैसे... क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं...’’ आंसू पोंछ कर राशि ने जबर्दस्ती मुस्कराने का प्रयत्न किया।

‘‘कुछ तो है... मुझसे कुछ छिपाने की जरूरत क्यों आ पड़ी...’’ सलीना संजीदा हो गयी।

‘‘नहीं, तुझसे कुछ नहीं छिपा सकती...’’ राशि फिर पिघलने लगी, ‘‘केशव शादी कर रहा है...’’ भर्राए कंठ से वह बोली।

‘‘तेरा मन अभी भी उसके इर्दगिर्द घूम रहा है?’’

‘‘कैसे ना घूमेगा सलीना... कहां छुटकारा पाऊंगी...’’ वह नन्ही आरवी की तरफ एकटक देखते हुए बोली, ‘‘इस डोर से तो बंधी ही हूं ना... सलीना, शादी कितना बड़ा बंधन लगता है ना हमें... जब उस खूबसूरत बंधन में बंधने, निभाने व बुनियाद बनाने की उम्र होती है... तो हम आजादी को चुन लेते हैं... लेकिन फिर यह बिना बंधन की आजादी का मोह खत्म क्यों होने लगता है... विवाह एक बंधन ही सही, पर उस बंधन की आजादी का मोह आखिर इतना आकर्षित क्यों करने लगता है कि एक उम्र के बाद उसमें बंधने के लिए हर स्त्री-पुरुष छटपटाने लगता है... कहां पर गलती होती है? कौन सी व्यवस्था सही है...’’ राशि की आंखें फिर बदरी बन बरसने लगीं।

‘‘ये सब सोच कर खुद को कोसने के बजाय एकजुट हो कर भविष्य की तरफ देख... अब तू सिर्फ एक लड़की नहीं, मां भी है आरवी की... एक ‘सिंगल मदर’ जो आज के आधुनिक जीवन का एक जीता जागता सच है... इसीलिए अकेली मां के इस सच को स्वीकार कर... जीवन को नए सिरे से संवारने व नए ढर्रे पर ढालने के लिए खुद को तैयार कर राशि... दूसरा मैं तुझे बताना चाहती थी कि एक महीने बाद विनय भी वापस आ रहे हैं...’’

सलीना का इतना कहना काफी था। ‘‘ठीक है, मैं जल्दी ही अपने लिए कोई व्यवस्था कर लूंगी।’’
एक महीने बाद राशि एक स्टूडियो अपार्टमेंट में शिफ्ट हो गयी। अतीत को पूरी तरह बिसरा कर वह पूरी तरह से अब वर्तमान में जी कर भविष्य की तरफ देख रही थी। लिव इन रिलेशन में रहने के बाद अलग होने की स्थिति में सिंगल मदर होना कोई गुनाह नहीं है और ना किसी को अपमानित करने या कमतर समझने का हक है उसे... खुद का सम्मान करना सीखेगी, तो कोई भी उसका अपमान करने की हिम्मत नहीं कर सकता। यही सोच कर वह उमंगों व विश्वास के उड़ते छोरों को मजबूती से पकड़ जीवन डगर पर फिर से बढ़ चली थी। 

लेकिन आॅफिस में बमुश्किल सालभर पहले आया आर्यन उसकी खींची लक्ष्मण रेखा को पार करने की धृष्टता जब तब कर बैठता। सांवली रंगत, मध्यम कद-काठी, साधारण सी शख्सियत व साधारण से परिवार से संबध रखने वाले सिरफिरे आर्यन से वह जितना दूर जाना चाहती, वह उतना ही उसे घेरता रहता। अभी नया-नया ही तो बांधा था राशि ने खुद को। उसके अरमानों पर बंधी ढीली सी गिरह को कोई जरा सा सहारे की उंगली से आराम से खोल सकता था। 

‘‘हर वक्त खुद के बनाए मकड़जाल में क्यों उलझी रहती हो?’’ एक दिन धृष्ट हो आर्यन सवाल दाग बैठा।

‘‘मकड़ी को शायद अच्छा लगता है, अपने खुद के बनाए जाल में उलझे रहना... क्यों तुम्हें कोई एतराज है?’’ वह चिढ़ कर बोली।

‘‘एतराज यह है कि यदि मैं उस जाल के अंदर आने की कोशिश करूंगा, तो डर है कि कहीं जान ना गंवा बैठूं... इसलिए उम्मीद करता हूं कि मकड़ी ही उस जाल से बाहर आने की हिम्मत कर बैठे...’’

‘‘ना तुम यह गुस्ताखी करो और ना मकड़ी का ही कोई अरमान है बाहर आने का...’’ वह त्यौरियां चढ़ाते हुए बोली।

‘‘पर मैं फिर भी इंतजार करूंगा तुम्हारे बाहर आने का... क्यों खुद को सजा दे रही हो...’’ बेबाक सा आर्यन आज एकाएक संजीदा हो गया।

राशि उसकी संजीदगी से आंखें, कान बचाती हुई घर चली आयी, पर आर्यन की बातें देर तक कानों में गूंजती रहीं। आरवी 3 साल की होनेवाली थी। केशव का फ्लैट छोड़ने के बाद उसकी केशव से मुलाकात नहीं हुई थी। अभी तक उसने खुद को सचमुच अपने जाल में जकड़ रखा था। इसलिए आर्यन की बचकानी बातों को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देती थी, पर पता नहीं आज उसके संजीदा स्वर में कैसी कसक थी कि भुलाए ना भूल रही थी। आर्यन का भरा हुअा सा स्वर निरंतर उसके कानों में गूंज कर प्रतिध्वनित हो रहा था। विचलित सी वह कुछ समझ नहीं पा रही थी। यों आर्यन के लिए उसके दिल में किसी तरह की भी कोमल भावनाएं कभी पैदा नहीं हुई थीं, लेकिन आज उसे समझने का नजरिया कुछ बदल जरूर रहा था।

अपने ही खयालों में उलझी हुई सी वह बिना कुछ खाए-पिए बिस्तर पर लेट गयी। तभी मोबाइल की घंटी बज गयी। उसने फोन उठा कर देखा, इतने समय बाद स्क्रीन पर केशव का नाम देख कर मानो शरीर का समस्त द्रव जम गया। सैकड़ों सवाल मस्तिष्क में कौंध गए। दुविधा में पड़ी वह फोन भी रिसीव नहीं कर पायी। लेकिन फोन एक बार बंद हो कर फिर बजने लगा। अनेकों संशय मन में लिए उसने ना चाहते हुए भी यंत्रवत फोन उठा लिया।

‘‘कैसी हो राशि...’’ उससे कोई जवाब ना दिया गया। लंबे समय बाद केशव की आवाज की उष्मा से वह जैसे मोमबत्ती की तरह पिघलने लगी थी। कोई जवाब ना पा कर केशव खुद ही बोलने लगा, उसकी आवाज गमगीन थी, ‘‘तुम्हारे बिना रहना मुश्किल होता जा रहा है राशि... तुम्हारी जिद से जिद में आ कर मैंने रास्ता बदल तो लिया, लेकिन सिमी के साथ एक दिन भी खुश नहीं रह पा रहा हूं... हर समय तुम ना जाने कैसे बीच में आ जाती हो... सिमी और मैं अलग हो रहे हैं... मैं अपनी बेटी और तुम्हारे पास वापस आना चाहता हूं, मुझे माफ कर दो...’’

राशि की समस्त इंद्रियां श्रवण तंत्र बन गयीं। सांसें मानो अपना प्रवाह विस्मृत करने लगीं। शरीर में कोई स्पंदन शेष ना था। वह पाषाण बन बुत की तरह मोबाइल कान से लगा कर अविचल बैठी थी। बहुत कुछ कहना चाह रही थी, पर स्वर जैसे निष्ठुर बन रूठ गए थे। 

‘‘मैं जानता हूं राशि... तुम मुझसे बहुत नाराज हो, पर बस मुझे एक मौका दे दो... कभी शिकायत ना होगी तुम्हें मुझसे... आरवी अभी बहुत छोटी है...उसे पिता के साये की जरूरत है... अपने लिए ना सही, आरवी के लिए स्वीकार कर लो मुझे... अब कभी तुम्हें अपनी जिंदगी से जाने ना दूंगा...’’ केशव की आवाज भावनाओं के वेग से नम हो कांप रही थी।

राशि की जबान तो तालू से चिपक गयी थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया। 

‘‘आज सोच लो अच्छी तरह से... मैं कल दोपहर 1 बजे तुम्हें फोन करूंगा...’’ कुछ जवाब ना पा कर अपनी बात कह केशव ने फोन रख दिया।

फोन आॅफ कर राशि निढाल हो बिस्तर पर गिर गयी। बहुत कुछ याद आ गया। वह दिन, जब उसने केशव का फ्लैट छोड़ा था। कितनी निराश्रित हो कर घर से निकली थी। अपने बिन बाप के बच्चे को इस धरती पर लाने के लिए उसे भी धरती जितना धैर्य रखना पड़ा था। केशव ने पलट कर भी ना पूछा था कि वह किस हाल में है। अपनी बच्ची के पैदा होने की खबर सुन कर उसके दिल में उसे एक बार देखने की तमन्ना तक ना जागी थी, और आज?

लेकिन कितना मनभावन व संपूर्ण था यह प्रस्ताव... सच तो यह है कि केशव के बाद किसी पुरुष के नजदीक जाने की चाह ने ही उसके हृदय में कभी जन्म ना लिया। सब कुछ बिखर गया था, एक विश्वास तो था ही, चाहे लिव इन में रह रहे थे। दिल-दिमाग में छाया तो केशव ही रहा था... वह पुरुष नहीं थी कि सब कुछ भुला कर फिर अपना नया आशियां बना लेती... और इतना सरल भी नहीं था आरवी की जिम्मेदारियों के साथ... आज अगर वह केशव का प्रस्ताव मान ले, तो कितनी अनसुलझी बातें सुलझ जाएंगी। आरवी को अपने जन्म की जटिल विभीषिका पता भी नहीं चलेगी। उसे अपने पिता का प्यार मिल जाएगा, उसे केशव का साथ वापस मिल जाएगा, जिससे उसका सामाजिक, मानसिक, पारिवारिक जीवन स्थिरता पा लेगा। वह विचारों व भावनाओं के अंतर्द्वंद की कशमकश से उठ कर पीछे तकिया लगा कर बैठ गयी, ‘लेकिन क्या जवाब देगी अपने अंदर की राशि को... उस स्त्री को, जिसे कोख में दोनों की गलती कहें या प्यार का फल अकेले ले कर घर से निकलना पड़ा था। वह शारीरिक बलात्कार भले ही ना हो, लेकिन क्या जवाब है उस मानसिक बलात्कार का केशव के पास... जिसका फल स्वाभाविक व कुदरती हो कर भी सिर्फ उसे ही भुगतना पड़ा था... केशव उसकी जिद के कारण जिद में आया, तो उसने रास्ता बदल दिया... उसका अपनी बेटी के पास वापस आने का मन किया, तो पत्नी से नहीं बनी... आखिर कौन सा स्वर्ग पाने की खुशी में रास्ता बदल गया था केशव... तब बेटी के प्रति कोई मोह ना जागा... दोनों के कर्मों की सजा उसने अकेले भुगती, पारिवारिक,सामाजिक और मानसिक तौर पर भी... खुद को तैयार भी कर लिया था अब भविष्य में आरवी के सवालों के जवाब देने के लिए। इन सबके बीच केशव कहां था?’

वह बहुत देर हल्के अंधेरे में बैठी विचारों के सागर में गोते लगाती रही। उसकी तंद्रा तब भंग हुई जब अलार्म घड़ी ने बज कर सुबह होने की सूचना दी। चौंक कर उसने घड़ी की तरफ देखा, सुबह हो गयी... पता भी ना चला। उसने आरवी को उठा कर स्कूल के लिए तैयार किया। उसे छोड़ कर आयी। आज आॅफिस जाने का मन नहीं था। इसलिए छुट्टी के लिए मेल कर दिया। 

चाय ले कर बैठी, तो अपनी कशमकश में उलझी उसकी आंखों में आंसू छलक आए। आंसू तो उस दिन भी छलके थे, जिस दिन वह बेसहारा हो कर अंधेरे, अनजान भविष्य की तरफ कदम बढ़ा रही थी। लेकिन आज के आंसू मान, स्वाभिमान व आत्मविश्वास के थे। आज केशव व आर्यन 2-2 मजबूत सहारे उसकी तरफ अपने हाथ बढ़ा रहे थे। उसका साथ पाने को आतुर थे। उसके मन-मस्तिष्क में एक निर्णय धीरे-धीरे पुख्ता हो रहा था। शायद अगले कुछ घंटों में वह किसी नतीजे पर पहुंच पाएगी। ऐसा सोच कर उसने खुद को संतुष्ट किया और घर के कार्यों में लग गयी।

आॅफिस का टाइम शुरू हुए काफी देर हो गयी थी। आर्यन आॅफिस पहुंच गया होगा। उसे उसकी छुट्टी का पता भी चल गया होगा। तभी फोन की घंटी बज गयी। उम्मीद के अनुसार आर्यन का ही फोन था। उसने फोन नहीं उठाया। थोड़ी देर बाद फोन फिर बजने लगा। वह फोन को बस घूरती ही रही। फोन थोड़ी-थोड़ी देर में बज कर फिर बंद हो जाता। उसके बाद काफी देर तक फोन नहीं बजा, लेकिन घर की घंटी बज गयी। उसने दरवाजा खोल दिया।

चिंतित सा आर्यन दरवाजे पर खड़ा था, ‘‘क्या हुआ तुम्हें... कब से फोन मिला रहा हूं... तुमने बीमारी का मेल किया था... मैं चिंतित हो गया था... सोचा शायद तुम्हें मेरी मदद की जरूरत हो... पर तुम तो एकदम ठीक लग रही हो...’’ वह गुलाबी सूट में सजी-संवरी राशि को देख कर आश्चर्य से बोला।

‘‘तुम्हारा फोन उठा लेती, तो तुम्हें मेरी कितनी फिक्र है कैसे जान पाती...?’’ वह मुस्करायी।

‘‘तुम्हें हंसी सूझ रही है... मेरी तो जान ही सूख गयी थी... कि आखिर हुआ क्या है, जो इतनी देर से मोबाइल नहीं उठा रही हो...’’ अार्यन की चिंता उसे ठीक देख कर अब गुस्से में तबदील हो गयी थी, ‘‘ऐसा कहीं होता है?’’

‘‘तो फिर कैसे होता है...?’’ राशि मंद-मंद मुस्कराती चाय बनाने लगी।

‘‘तुम्हें जरा भी फिक्र है कि मैं किस तरह से भीड़ से हाथापाई करता आ रहा हूं...’’

‘‘तो मत करो ना हाथापाई... मुझे अपने घर ले चलो...’’ राशि की मुस्कराती आंखें एकाएक नम हो गयीं, ‘‘ये लो, गरम-गरम चाय पियो।’’

‘‘राशि...? तुम्हें पता है ना तुम क्या बोल रही हो...’’ हतप्रभ सा आर्यन बोला।

‘‘हां आर्यन, मकड़ी अपने बुने जाल से बाहर आना चाहती है... क्या तुम सहारा दोगे...?’’ राशि की पलकें भीग गयीं। बहुत बड़ा निर्णय ले रही थी। बहुत कुछ छूट रहा था।

‘‘सहारा नहीं... सहारा तो कमजोरों को दिया जाता है राशि। तुम तो मजबूत हो, बस थोड़ा सा बिखर गयी हो, समेट लूंगा तुम्हें...’’ वह भावविह्वल हो कर बोला।

‘‘तो समेट लो ना... इससे पहले कि कुछ और बिखर जाऊं...’’ राशि ने अपना सिर आर्यन के कंधे पर रख दिया। आर्यन ने परम संतुष्टि, विश्वास व खुशी से राशि को बांहों में समेट लिया। दोनों की धड़कनें एक हो रहीं थी। घड़ी में 1 बज रहा था और मोबाइल बज-बज कर तूफान खड़ा कर रहा था। आखिर तूफान शांत हो गया। शायद केशव को भी इस तूफान के बाद के सन्नाटे के कारण का अहसास हो गया था। जवाब मिल गया था उसे।