Wednesday 08 February 2023 03:16 PM IST : By Gopal Sinha

गरम चाय की प्याली हो...

tea-sattire

मिसेज मटक्कली ने किटी पार्टी में चाय पीने का प्रस्ताव रखा, तो कुछ नकचढ़ी सहेलियों ने इनकार कर दिया। इस पर उसने अपनी सहेलियों से कहा, ‘‘चाय कोई ऐसी-वैसी नहीं है भाई, वरना बड़े-बड़े लोगों के बीच चाय पर चर्चा ना हो रही होती।’’ यानी चर्चा का विषय कुछ भी हो, चाय हमेशा महत्वपूर्ण रही है। तुरंत ही सहेलियों ने चाय की फरमाइश कर दी और 10 मिनट के अंदर सबके सब चाय के कप में गोते लगाते हुए निंदा रस में बिजी हो गयीं, तो कुछ इस चिंता में डूब गयीं कि क्या चाय के लिए ना पूछनेभर से ही उनकी मेड 3 दिनों में चाय के 6 प्याले ताेड़ चुकी है।

चाय पर सिर्फ चर्चा ही नहीं होती, रिश्ते भी पक्के होते हैं। जरा फिल्म सौतन को याद कीजिए, टीना मुनीम की मम्मी ने उन्हें जो भी कहा हो, पर टीना तो प्रेम रस से सराबोर हो कर राजेश खन्ना को यही कहा कि शायद मेरी शादी का खयाल दिल में आया है, इसीलिए मम्मी ने मेरी तुम्हें चाय पे बुलाया है... वे चाहतीं, तो होनेवाले दामाद को लंच पे, डिनर पे बुला सकती थीं, लेकिन चाय पे बुलाया। यकीनन चाय की बड़ी हस्ती है। फिल्म हर दिल जो प्यार करेगा में अपने सल्लू मियां ने क्या झूम कर गाया है कि इक गरम चाय की प्याली हो... चाहे गोरी हो या काली हो...। सुंदरियों के झुंड के साथ नृत्य करते सलमान चाय से फ्लर्ट कर रहे थे या सुंदरियों से, यह हमें आज तक समझ नहीं आया।

चाय का एक अदद कप और किस्से हजार ! हमारे शहर में चाय की एक दुकान है, जहां चाय की घूंटों की आड़ में नैन-मटक्का तो होता ही है, कभी-कभी राज उजागर होने पर सिर फुटौवल की नौबत भी आ जाती है। ऐसा कोई नेता नहीं, जिसकी छीछालेदर यहां ना होती हो और ऐसा कोई अभिनेता नहीं, जिसकी नयी फिल्म की चालू समीक्षा ना होती हो। लोग चाय से भी गरम बहस में उलझे होते हैं और चायवाला नौरंगी साधु भाव से सबके लिए चाय पका रहा होता है। उसे हमने एक बटा दो, तीन बटा पांच और कटिंग चाय का हिसाब बैठाते ही देखा है।

चाय की दुकान के भी कई नाम हैं, कहीं इसे टपरी कहते हैं तो कहीं ठीया, कहीं खोखा तो कहीं ठेला। भई चाय तो चाय है, कहीं भी बने, पीनेवाले को फर्क नहीं पड़ता ! वे तो चाय की खुशबू, उसके फ्लेवर के दीवाने होते हैं। लेकिन चाय का ‘फ्लेवर’ कहने पर एक दिन हमें जबर्दस्त फर्क पड़ गया।ऑफिस में हमने चाय पीते ही उसके फ्लेवर की क्या तारीफ कर दी, हमारी बॉस ने हमारे गरीब शब्दज्ञान पर हिकारत से हमें देखा और कहा, ‘‘बच्चे, चाय का ‘फ्लेवर’ नहीं होता, उसका ‘बुके’ होता है।’’ हमने इस शब्द को गांठ बांध लिया और तबसे चाय से उठती खुशबू में हमें सिर्फ बुके ही नजर आता है।

हमारे ऑफिस के चाय मित्र की व्यथा कुछ अलग ही है। हम कुल जमा 9 लोग हैं, और हर किसी को अलहदा किस्म की चाय चाहिए। बॉस के लिए इंग्लिश ब्रेकफास्ट, ललिता जी को खूब दूधवाली, मिस मालिनी को डबल टी बैग वाली कड़क, क्रिएटिव डिजाइनर को ब्लैक टी विदाउट शुगर, तो हमें लेमन फ्लेवर... सॉरी लेमन बुके वाली ! क्या मजाल कि चाय मित्र कोई भूल करे, सबको उनके बुकेवाली चाय अनवरत मिलती है।

हमारे दादा जी ने बताया था कि वे एक दिन कपड़े की दुकान पर गए थे, तो दुकानदार ने खूब आदर से बैठाया और कपड़ा दिखाने लगा। बीच में उसने नौकर को आवाज दी। नौकर आया, तो उसे हाथ के इशारे से 3 प्याली चाय लाने के लिए कहा और देर तक हाथ हिलाता रहा। दादा जी की खरीदारी पूरी हो गयी, पर नौकर चाय ले कर नहीं आया। दादा जी उठने लगे, तो दुकानदार इसरार करने लगा कि चाय पी कर जाइए, पता नहीं नौकर अभी तक आया क्यों नहीं। दादा जी ने रुकने से इनकार करते हुए उसका धन्यवाद किया और चले आए।बाद में दादा जी को किसी ने बताया कि दुकानदार बड़ा काईयां है, मुंह से चाय लाने को कहता है और हाथ हिला कर मना कर देता है।

हमारे एक पड़ोसी हैं, सुबह-शाम घर के बाहर चाय पीते हुए दिख जाते हैं और हर आने-जानेवाले परिचित को कहते हैं, ‘‘आइए, चाय पी कर जाइए।’’ भला कौन ऐसे ऑफर को स्वीकार करे, क्या जूठी चाय पिलाएंगे। भई, चाय पिलानी हो, तो आदर से बुलाइए, फिर पिलाइए। इस चलताऊ चाय के ऑफर को लोग दूर से ही नमस्कार करते। मेरा मन करता कि एक बार बोल ही दूं कि हां, लाइए पिलाइए चाय। फिर शायद उनकी यह आदत छूट ही जाती, पर श्रीमती जी की सख्त हिदायत थी कि खबरदार, उनकी चाय ना पीना। उनके घर में 2-2 बिल्लियां हैं, क्या पता उनके मुंह मारे हुए दूध की चाय ही ना पिला दें।

काफी पहले की बात है, तब हम एक सरकारी कॉलोनी में रहते थे। बगल के क्वॉर्टर में एक अंकल रहते थे। एक दिन उनके घर गया, तो आंटी उनके लिए चाय ले कर आयी थीं। उन्होंने आंटी से कहा कि मेरे लिए भी चाय ले आएं।मैं बड़ों की बात का आदर करने वाला अच्छा बच्चा था, सो वहीं बैठ गया।आंटी मेरे लिए चाय ले कर आयीं। मैंने देर तक चाय नहीं पी, मुझे लगा था कि चाय पीते समय मुंह से सुर्र-सुर्र आवाज निकलेगी, तो अंकल मुझे गंवार समझेंगे। तभी जोर से सुड़क की आवाज आयी, तो देखा अंकल सुर्र-सुर्र करके नहीं, सुड़क-सुड़क करके चाय पी रहे हैं। मेरा सारा सोफिस्टेकेड दिखने का खौफ जाता रहा और मैंने भी बिंदास सुर्र-सुर्र करके चाय पी।

बचपन में ही हम चीजों के अजूबे नाम हिंदी में बोल कर खुश होते थे। चाय को हम पर्वतोत्पन्न सुमधुर उष्ण पेय कहते, तो सुननेवाले का दिमाग घूम जाता।

चाय पीनेवालों की अपनी अलग जमात होती है। जितने मुंह, उतने स्वाद। मैं और मेरी पत्नी सुबह-सुबह ऑर्गेनिक तुलसी ग्रीन टी पीते हैं। एक दिन हमारी हरियाणवी पड़ोसिन उसी वक्त कुछ काम से आयीं, तो हमने भी उन्हें वह हेल्दी चाय की दावत करायी।वे चाय पी कर चली गयीं और अगले कुछ दिनों तक नजर नहीं आयीं। श्रीमती जी उनका हालचाल लेने उनके घर गयीं, तो पता चला कि उस दिन हमारी चाय पीने के बाद उन्हें चक्कर आने लगे थे। तबसे वे डर के मारे हमारे सामने आने से कतराती थीं कि कहीं हम उन्हें दोबारा वह मुई चाय ना पिला दें। वे बता रही थीं कि उनके यहां दूध में थोड़ी चायपत्ती और ढेर सारी चीनी डाल कर चाय बनाते हैं। कहती हैं, भई, जब चाय पियो और होंठ ना चिपकें, तो वह चाय कैसी ! जब उन्होंने अपनी वाली भयंकर मीठी चाय हमारी श्रीमती जी को पिलायी, तो उन्हें चक्कर आ गए।

किसी को फीकी चाय पसंद है, तो किसी को खूब मीठी, किसी को हल्की चाय पसंद है, तो कोई कड़क चाय पीना पसंद करता है। कोई बगैर दूध की पीता है, तो किसी को चाय में पानी चाहिए ही नहीं। कोई उबाल-उबाल कर काढ़ा बना कर पीता है, तो कोई चाय पत्ती डालने के बाद तुरंत गैस बंद कर ढक कर कुछ देर ब्रू करा कर पीता है। गुड़वाली चाय भी आपमें से किसी को जरूर पसंद होगी।

कॉलेज के दिनों में नुक्कड़ पर चाय की दुकान थी, जहां हम रोज चाय पीते थे। एक दिन चायवाला अच्छे मूड में था, बोला, ‘‘भैया जी, आज आपको स्पेशल चाय पिलाऊंगा।’’ हम खुश हो गए। जब चाय आयी, तो उसमें से किसी मसाले की महक आ रही थी, जो कम से कम हम दोस्तों को अच्छी नहीं लग रही थी। हमने पूछा, तो उसने बताया कि तेजपत्ता डाल कर आप लोगों के लिए बढि़या चाय बनायी है। एक दोस्त ने पूछा कि तुम्हारे पास हींग-जीरा है। उसने खुश हो कर कहा कि है ना भैया। दोस्त ने कहा, ‘‘तो भैया, सिर्फ तेजपत्ता ही क्यों डाला, छौंक भी देते चाय को !’’ हम ठठा कर हंस पड़े और वह नादान कुछ समझ ना पाया कि स्पेशल चाय पिलाने के बावजूद भैया लोग खुश क्यों नहीं हुए।

पहले चाय की कुछ ही किस्में होती थीं, तो इतना लफड़ा नहीं होता था। ग्रीन टी, लीफ, गोलदाना, डस्ट... हम असम की चाय, दार्जिलिंग की चाय जानते थे... अब तो कैपेचीनो टी, ऑर्गेनिक टी, मसाला टी, तंदूरी चाय और भी ना जाने क्या-क्या ! एक बार एअरपोर्ट पर हम सादी चाय पीने को तरस गए, जहां देखो वहीं मसाला चाय, फ्लेवर्ड टी।

हमारी एक फेसबुक फ्रेंड हैं, कभी अपने हाथों से बनी चाय पी कर खुद से इश्क कर बैठती हैं, तो कभी चाय याेग करती हैं। बकौल उनके, हमारे हौसलों का कप आधा खाली नहीं है, वह तो उम्मीदों, इरादों और पॉजिटिविटी की चाय से लबालब भरा है। उनका तो यहां तक कहना है कि आप चाय को पसंद नहीं करते, चाय आपको पसंद करती है। चाय पर उनका पजेसिवनेस देखिए, मानवाधिकार दिवस पर वे कहती हैं कि दिन के किसी भी पहर में चाय पीना मानव का अधिकार है। वाकई ऐसे चाय प्रेमियों की बदौलत ही चाय को खास रुतबा हासिल हुआ है।

चाय पर शायरों ने भी खूब कलम चलायी हैं।महबूब अपनी माशूका से कहता है :

मैंने देखा ही नहीं कोई मौसम, तुम्हें चाहा है चाय की तरह !

एक और शायर कहते हैं:

गर्म मिजाज, सांवला सा रंग,

अच्छी बीत रही है जिंदगी... चाय के संग !

मियां गालिब ने क्या खूब कहा है:

चाय के नशे का आलम कुछ, यह है गालिब कोई राई भी दे

तो अदरक वाली बोल देते हैं...

तो हो जाए एक गरम चाय की प्याली...