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सुप्रिया आज 65 वर्ष की हैं, पर कभी खुद के लिए जी ही नहीं। जवानी पूरी संघर्ष में गुजर गयी और बुढ़ापा... 19 साल की छोटी सी उम्र में ही उनका विवाह हो गया। ससुराल आते ही परिवार के कामकाज का बोझ, सास-ससुर की सेवा और पति का खयाल रखना, इन सभी जिम्मेदारियों का बोझ उनके अकेले के ऊपर आ गया। दो वर्ष और गुजरे तो मां भी बन गयीं। यों तो विवाह के बाद ही उनका जीवन बदल चुका था, किंतु मां बनने के बाद और भी परिवर्तन आ गए। अपने पति विकास की छोटी सी नौकरी और कम वेतन के कारण सुप्रिया को समझौता करने की आदत हो गयी थी। वे बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं, केवल 12वीं तक ही पढ़ाई कर पायी थीं, लेकिन समझदारी में वे किसी भी पढ़ी-लिखी महिला से कम नहीं थीं।

सीमित साधनों में भी उन्होंने अपने बेटे तपन को खूब पढ़ाया-लिखाया। उनके मन में केवल एक ही सपना था कि वे अपने बच्चे के सारे सपने पूरे करेंगी। विकास यों तो आदर्शवादी, सुलझे हुए, बहुत ही अच्छे पति थे, परंतु परिवार की जिम्मेदारियों से पूरी तरह मुक्त थे। वे एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क थे, सुबह निकलते तो कामकाज निपटा कर रात
9 बजे से पहले घर नहीं आ पाते थे। सुप्रिया की सासू मां कामकाज में थोड़ी-बहुत मदद अवश्य कर देती थीं। जैसे-जैसे तपन बड़ा हो रहा था, वह अपने काम खुद से करने लगा था। इसलिए उसके प्रति सुप्रिया की जवाबदारी कम हो रही थी, पर सुप्रिया के सास-ससुर बुढ़ापे की ओर अग्रसर हो रहे थे, इसलिए उनके प्रति जिम्मेदारियां बढ़ रही थीं।
सुप्रिया ने हमेशा खुशी-खुशी अपनी सभी जिम्मेदारियां निभायीं। उन्होंने कभी भी अपने कदम पीछे नहीं लिए।

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धीरे-धीरे तपन भी जवान हो गया, पढ़-लिख कर नौकरी भी करने लगा। आईटी कंपनी में उसी के साथ काम करने वाली तान्या उसे बहुत पसंद थी। साथ काम करते-करते वह उसे प्यार करने लगा। एक दिन उसने अपने मन की बात तान्या से कह दी, तो तान्या ने भी खुशी-खुशी उसका प्यार स्वीकार कर लिया। दोनों के परिवारों को जब यह पता चला, तो उन्होंने उनके प्यार को जल्दी ही विवाह में बदल कर उनका गठबंधन करवा दिया।

इस तरह बहू के रूप में तान्या घर आ गयी। वह भी तपन के साथ ही ऑफिस चली जाती थी। कुल मिला कर नौकरी वाली बहू के आने से सुप्रिया की जिम्मेदारियां कम ना हो पायीं। सुप्रिया ने हंसते हुए भगवान का यह फैसला भी स्वीकार कर लिया।

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भगवान तो लगातार सुप्रिया का इम्तिहान लेते ही जा रहे थे। सास-ससुर भी अब तक लगभग बिस्तर पर आ चुके थे। सासू मां जो थोड़ी-बहुत मदद करती थीं, वह भी बंद हो गयी। अब तो सुप्रिया को ही उनका सारा काम करना पड़ता था।

सुप्रिया के पति विकास भी पूर्ण रूप से उन पर ही निर्भर थे। उन्हें शुरू से सुप्रिया ने हर चीज हाथ में दी थी, तो उनकी आदत अभी भी वैसी ही थी। तपन के साथ-साथ तान्या की भी नौकरी होने के कारण सुप्रिया पहले की ही तरह अभी भी सुबह जल्दी उठ जातीं, ताकि टिफिन तैयार करने में तान्या की मदद कर सकें। वे जानती थीं और समझती भी थीं कि तान्या भी परिवार के लिए ही तो मेहनत कर रही है।

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तान्या बहुत ही समझदार और सुलझे हुए विचारों की लड़की थी। वह जितना हो सकता था, उतना ज्यादा से ज्यादा सुप्रिया का हाथ बंटाती थी। एक दिन सुप्रिया ने कहा, “तान्या बेटा, तुम ऑफिस में इतना काम करती हो, घर पर भी देर रात तक तुम्हें कंप्यूटर पर काम करना पड़ता है। तुम सुबह इतनी जल्दी क्यों उठ जाती हो? मैं तुम दोनों का टिफिन अकेले ही बना सकती हूं। कम से कम तुम्हें उतनी देर और आराम मिल जाएगा।”

“नहीं मां, आप इतना तो करती हैं। आप भी तो पूरा दिन लगी ही रहती हैं। आप भी थक जाती होंगी ना।”
अब तक तपन के विवाह के 2 वर्ष हो चुके थे और अब तान्या प्रेगनेंट हो गयी थी। नौ महीने सुप्रिया ने उसका बहुत खयाल रखा, फिर तान्या ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया। कुछ दिन अपने मायके में रहने के बाद तान्या वापस आ गयी। देखते ही देखते 6 माह गुजर गए और तान्या की छुट्टियां भी खत्म हो गयीं। तान्या को अब अपने बच्चे को घर पर छोड़ कर ऑफिस जाना पड़ता था। आर्थिक तौर पर अब उनका परिवार संपन्न था। इसलिए काम वाली के अलावा एक आया भी उन्होंने रख ली थी, ताकि सुप्रिया को मदद मिल सके। सुप्रिया की देखरेख में घर का कामकाज सुचारु रूप से चलता था। उनके होने के कारण तान्या बेफिक्र हो कर ऑफिस का काम कर पाती थी।

समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा। उम्रदराज सास-ससुर भी एक-एक करके उन्हें छोड़ गए। धीरे-धीरे सुप्रिया 65 वर्ष की हो गयीं। विकास भी सेवानिवृत्त हो गए। तान्या का बेटा अब 6 वर्ष का हो चुका था।

एक दिन तपन ने तान्या से कहा, “तान्या, मैंने जबसे होश संभाला है, अपनी मां को कभी उनके खुद के लिए जीते तो देखा ही नहीं। जिम्मेदारियों ने कभी उनका पीछा नहीं छोड़ा। उनका पूरा जीवन संघर्ष में ही बीत गया और यहां तक कि इस उम्र में आज भी वे काम करने से पीछे नहीं हटतीं। जो भी काम होता है, उसे पूरा करती हैं।”

“हां तपन, तुम बिलकुल ठीक कह रहे हो। इतने सालों से तो मैं भी मां को एक जैसे काम में जुटे हुए देख रही हूं।”

“तान्या, हमें तो शनिवार-रविवार मिल जाता है, पर उन्हें पूरे 365 दिन लगे रहना होता है।”

“तपन, अब हमें खुद अपनी जिम्मेदारियां उठानी चाहिए। मां-पापा जी को अब हमें उनका जीवन जीने देना चाहिए। बहुत कर दिया उन्होंने सबके लिए। उनके जीवन का जो समय बाकी है, उस समय में वे अब खुद के लिए क्यों ना जिएं? वे दोनों तो अपने मुंह से कभी भी कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन हमें तो सोचना चाहिए ना। क्या हम सिर्फ उनसे लेते ही रहेंगे? हमारा भी कर्तव्य बनता है उनके लिए कुछ करने का।”

“तुम ठीक कह रही हो, तान्या। हमारा बेटा राहुल अब तो 6 वर्ष का हो गया है। आया भी बहुत अच्छी है, शुरू से उसके साथ है। यदि मां-पापा जी घर पर नहीं होंगे, तो भी वह राहुल की देखरेख अच्छे से ही करेगी।”

यह सब कुछ सोचते हुए तान्या ने सुप्रिया और विकास के लिए घूमने जाने की टिकट बुक कर ली। उनकी हर सुख-सुविधा का ध्यान रखते हुए उसने एक बहुत ही अच्छे ग्रुप के साथ पूरे एक माह का टूर बुक कर लिया। उनके लिए सभी जरूरत की चीजें खरीद लीं।

उसके बाद वे दोनों अपने मां-पापा जी के कमरे में गए और तान्या ने कहा, “पापा जी, यह आप दोनों के घूमने जाने की टिकट हैं, पूरे एक महीने का टूर है। आप लोगों की उम्र के ही लोग हैं। केरल और दक्षिण भारत की खास-खास जगहों पर यह आपको ले कर जाएंगे।”

सुप्रिया बीच में ही बोल पड़ी, “अरे बेटा, यहां राहुल को कौन संभालेगा? घर में तकलीफ हो जाएगी, तुम लोगों का ऑफिस? तुम्हारा टिफिन?”

“नहीं मां, यह सब तो जीवन भर चलता ही रहेगा। आप लोग कब घूमोगे-फिरोगे? यहां की चिंता छोड़ दो, आप लोगों को थोड़ा चेंज मिल जाएगा और अच्छा भी लगेगा। आप दोनों बेफिक्र हो कर घूम आओ, तो हमें भी अच्छा लगेगा। सबके लिए सोचते-सोचते ही आपकी उम्र निकल गयी। आप दोनों ने सबके लिए बहुत किया। अब आप लोग भी जियो अपनी जिंदगी। जिम्मेदारियां ऐसे तो कभी खत्म ही नहीं होने वाली।”

अपने बेटे-बहू की बात मान कर सुप्रिया और विकास घूमने चले गए। यह एक महीना ऐसा था, जिसकी उन्होंने सपने में भी कभी कल्पना नहीं की थी। कुछ ही दिनों में वे सब एक-दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए। ये वे सुकून के पल थे, जो इससे पहले उन्हें कभी भी नहीं मिले थे। इन सुनहरे पलों का उन्होंने भरपूर फायदा उठाया। खूब आनंद उठाया, खूब खुश रहे, एक महीना कैसे गुजर गया, उन्हें पता भी नहीं चला।

जब वे लौट कर वापस आए, तब उन्हें तो बिलकुल याद भी नहीं था कि आज उनकी शादी की 40वीं सालगिरह है। असली में तान्या और तपन ने बुकिंग ही ऐसी की थी कि वे दोनों उनकी शादी की सालगिरह पर वापस आएं। टेबल पर रखे केक को देख कर उन्हें खयाल आया कि आज उनकी शादी की 40वीं सालगिरह है। केक के ऊपर लिखा था- वी लव यू मां-पापा जी।

यह देख कर उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा। अपने पूरे परिवार के साथ बैठ कर उन्होंने सबसे पहले केक काटा और फिर खाना खाया। इसके बाद साथ में लाए उपहार सबको दिए। वहां की बातें सबके साथ साझा कीं। एक महीने की हर घटना मानो एक फिल्म के जैसे वे उन्हें सुना रहे थे।
बात करते-करते काफी रात बीत गयी, फिर वे अपने कमरे में चले गए। उन दोनों का पूरा कमरा गुलाब के फूलों की खुशबू से महक रहा था। सवाल इस उम्र में कमरा फूलों से सजाने का नहीं था, यह भावना थी प्यार की, उन्हें खुशी देने की और उनके लिए कुछ अलग-सा करने की। कुछ ऐसा जो उनके मन को अंदर तक छू जाए, खुशी दे जाए। वे एक बार फिर अपनी पुरानी यादों को ताजा कर सकें।

अपना सजा हुआ कमरा देख कर वे आश्चर्यचकित रह गए, मन ही मन खुश भी हुए। उम्रदराज पति-पत्नी फूलों से सजे, खुशबू से महकते हुए उस कमरे में अपनी सुहागरात की बातें याद कर रहे थे। बात करते-करते विकास ने कहा, “सुप्रिया, कितने खुशकिस्मत हैं हम, जो हमें तान्या और तपन जैसे इतने प्यारे बच्चे भगवान ने दिए हैं।”

“हां विकास, मैंने तो कभी ऐसे पलों की कल्पना तक नहीं की थी, जो हमारे बच्चों ने हमें दे दिए।”

“सुप्रिया, हम बहुत भाग्यशाली हैं, वरना हर माता-पिता को ऐसे पल और ऐसा सुख कहां मिल पाता है। कितने तो बेचारे संघर्ष करते-करते अपनी ख्वाहिशों को लिए ही दुनिया से रुखसत हो जाते हैं। यहां तक कि कितने तो वृद्धाश्रम में ही अपनी वृद्धावस्था गुजार देते हैं और वहीं से ऊपर! हमारे बच्चों को हमारे संघर्ष का पूरा अहसास है।”

Sketch and Drawing with watercolor painting of Happy asian senior retired couple, relax smiling elder man and woman enjoying with retired vacation at outdoor. Health care, Family outdoor lifestyle
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“विकास, सच कहूं, तो आज मेरे जीवन की पूरी थकान ही मिट गयी। इन दिनों जो खुशी बच्चों ने हमें दी, उससे लगता है मानो जीवन में फिर से वही ताजगी, वही स्फूर्ति वापस आ गयी है।”

“तुम ठीक कह रही हो, सुप्रिया। यह रात जिसमें बच्चों ने हमारे लिए कमरा सजाया है, हमारी उस सुहागरात से भी ज्यादा खूबसूरत है, क्योंकि ऐसी सुहागरात शायद ही किसी और वृद्ध दंपती ने मनायी होगी, जिसमें हमारे प्यार के अलावा बच्चों की दी हुई खुशी की महक हर फूल और हर पत्ती से आ रही है।”

इस तरह की बातें करते हुए वे दोनों बहुत भावुक हो गए और एक-दूसरे की बांहों में बांहें डाले नींद की आगोश में चले गए।

खुशियों का यह सिलसिला यहीं पर खत्म नहीं हुआ। अब तो हर वर्ष तान्या अपने मां-पापा जी के लिए ऐसे घूमने के प्रोग्राम बनाती थी और वर्ष में एक बार वे सभी साथ में भी घूमने जाते थे। एक दिन शाम को सुप्रिया, विकास, तपन, तान्या और राहुल टहलते हुए एक वृद्धाश्रम के सामने से गुजरे, जहां कुछ वृद्ध उन्हें बैठे हुए दिखायी दिए। तब उन्होंने एक-दूसरे की तरफ देखा और कुछ पलों के लिए वे वहां रुक गए।

तब विकास ने कहा, “सुप्रिया, इन सबने भी अपने-अपने बच्चों के लिए, अपने परिवार के लिए वही सब किया होगा ना, जो हमने अपने बच्चों के लिए किया है, किंतु उनके बच्चे...”

उनकी बात पूरी भी ना हो पायी थी कि राहुल बीच में ही बोल पड़ा, “पापा, जब आप लोग बूढ़े हो जाओगे ना, तब मैं भी आपका बहुत खयाल रखूंगा, जैसे आप दादा जी और दादी का रखते हो।”

यह सुन कर सुप्रिया और विकास हंस दिए और सुप्रिया ने कहा, “बिलकुल राहुल, अपने माता-पिता का खयाल तो रखना ही चाहिए।”

तान्या और तपन एक-दूसरे की तरफ देख कर मुस्करा दिए। उनकी यह मुस्कराहट बहुत कुछ कह रही थी। उन्हें अपने माता-पिता की तरह अपना बुढ़ापा भी बिलकुल सुरक्षित लग रहा था।

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