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‘‘होमी, यहां आओ। क्लास खत्म होने तक यहीं खड़े रहो।’’

‘‘लेकिन मिस, मैंने कुछ नहीं किया...’’

‘‘मुझे कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिए। जैसा मैंने कहा है, बस आओ और खड़े रहो।’’

क्लास खत्म होने के बाद मिस रोजी ने होमी को स्टाफ रूम में बुलाया। ‘‘खुद को सुधारो होमी, मैं ऐसे व्यवहार को फिर से बर्दाश्त नहीं करूंगी। अब तुम जा सकते हो।’’

‘‘सॉरी मिस,’’ उसने कहा और अपने चुस्त और खिलंदड़े अंदाज में कमरे से बाहर निकल गया था। जब मिस रोजी उसे जाते हुए देख रही थी, तो खुद को यह सोचने से रोक नहीं पायी कि क्यों यह लड़का हमेशा उस पर जादू सा कर देता है। सॉरी कहते उसके पछताए हुए चेहरे के पीछे एक शरारती मुस्कान छुपी थी, जिससे उसकी ठुड्डी पर एक प्यारा सा डिंपल बन गया था। होमी पर गुस्सा होने का नाटक करना भी रोजी के लिए हमेशा मुश्किल हो जाता था।

एक स्कूल अध्यापिका होने के अपने सत्रह वर्षों में रोजी ने सभी प्रकार के छात्र देखे थे। अध्ययनशील लड़के, जिद्दी लड़के, असुधार्य, बौद्धिक रूप से बाधाग्रस्त लड़के, उन्हें पूरी दृढ़ता के साथ उसने संभाला था, जिसके लिए उसकी सराहना होती थी। यहां तक कि सबसे उपद्रवी छात्र, जिन्होंने अन्य शिक्षकों को घोर निराशा और हताशा में डुबोया था, वे भी मिस रोजी के अनुशासन के आगे हार मान जाते थे। वे भले ही मिस रोजी के लेक्चर्स ना सुनें, लेकिन क्लास में शरारत भी नहीं करते थे। जहां तक अध्यापन की बात है तो मिस रोजी हर तरह के छात्रों के बीच तालमेल बिठाना जानती थी। उसने अपना ध्यान बुद्धिमान छात्रों और पढ़ाई में साधारण छात्रों के बीच समान रूप से विभाजित किया। कई बार तो निराशाजनक नतीजे देने वाले छात्रों से आश्चर्यजनक काम करवा लिया था।

कई वर्षों के अध्यापन के अनुभव ने रोजी को छात्र मनोविज्ञान को समझने का कौशल प्रदान किया था। वह समझती थी कि कक्षा में अकादमिक रूप से मेधावी छात्र हमेशा बेहतर व्यवहार करने वाले होते थे। हालांकि होमी पेस्टनजी इस नियम का अपवाद था। वह बुद्धिमान, तेजतर्रार और सर्वश्रेष्ठ नतीजे लाने वाला छात्र था लेकिन साथ ही वह एक अतिसक्रिय और उद्दाम लड़का भी था। वह कोई भी अपमान या अन्याय बर्दाश्त नहीं कर पाता था, जिससे कई बार वह मुसीबत में पड़ जाता था। जब एक अन्य छात्र ने बहस करते हुए उसकी मां का नाम ले लिया तो होमी ने गुस्से में उसके मुंह पर मुक्का मारा। यह इतना तेज था कि दूसरे छात्र के दांत टूट गए। रोजी को होमी को काबू में रखने की चेतावनी देने के लिए उनकी मां को बुलाना पड़ा। शिरीन पेस्टनजी, होमी की मां, एक मुखर, भद्र और सहयोगी पारसी महिला थीं।

‘‘मिस,’’ उन्होंने कहा था, ‘‘कृपया होमी को अपना बेटा मानें और जैसा उचित समझें, उसके साथ करें। आप उसे डांटें, मारें, कुछ भी करें, वह हमारी बजाय आपकी बात अधिक सुनता है। वह आपको अपनी दूसरी मां जैसा ही समझता है। वह अकसर बताता है कि मिस रोजी ने ये कहा या वह कहा! आपने तो जैसे उस पर जादू सा कर दिया है।’’

‘‘होमी आपको अपनी मां मानता है,’’ ये शब्द रोजी के दिमाग में गूंजते रहे। वह अचानक सोचने लगी कि क्या उसके मन में भी होमी के लिए सॉफ्ट कॉर्नर है या बाकियों के मुकाबले थोड़ा अधिक स्नेह है? फिर उसने अपना सिर हिलाया। नहीं! मैं किसी छात्र के प्रति पक्षपात नहीं कर सकती। मैं अपने सभी स्टूडेंट्स के प्रति निष्पक्ष रहती हूं। रोजी ने खुद को आश्वस्त करने की कोशिश की मगर ऐसा हो नहीं सका। अंदर ही अंदर, वह हमेशा होमी के प्रति एक भावनात्मक लगाव महसूस करती थी, जिसने उसकी निष्पक्षता को संदेह के घेरे में ला खड़ा किया था।

लेकिन उस टिप्पणी ने कि कोई उसे मां मानता है, उसके भूले-बिसरे अतीत के घावों को ताजा कर दिया था। अगर जीवन ने उसके साथ क्रूर चाल नहीं चली होती, तो वह होमी की उम्र के एक लड़के की असली मां होती। वह तब इक्कीस वर्ष की चुलबुली युवा लड़की थी, जिसका जीवन एक खुली किताब जैसा था, जिसके पन्नों पर उत्साह और उमंग के क्षण अंकित होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। रोजी एक शिक्षिका बनना चाहती थी। ग्रेजुएशन के बाद उसने बीएड. करने के लिए मुंबई के सबसे शीर्ष शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेजों में से एक में प्रवेश लिया था। उन्हीं दिनों जॉकी ने उसके जीवन में प्रवेश किया था और कैसे ! वह दिन याद आते ही उसकी आंखें नम हो गयीं।

 

क्लास खत्म करने के बाद जैसे ही वह तेजी से चर्चगेट स्टेशन की ओर बढ़ी, उसने महसूस किया कि कोई उसे जानबूझ कर धक्का मारने और गलत तरीके से छूने की कोशिश कर रहा है। वह लड़खड़ा कर लगभग गिरने को हुई लेकिन तभी उसने अपनी पूरी ताकत से उस आदमी को दूर धकेलने की कोशिश की। उसने पाया कि इस अचानक हमले और हाथापायी के बीच उसका ब्लाउज थोड़ा फट गया था। शर्मिंदगी और निराशा की उस अवस्था में वह अपने आप को बचाने और संभालने की कोशिश कर रही थी कि ठीक तभी एक लंबे कद के युवक ने उस विकृत मानसिकता वाले शैतान को कॉलर से पकड़ लिया और उसके चेहरे और पेट पर लगातार घूंसे बरसाने लगा। मारपीट के डर से अपराधी किसी तरह भीड़ से रास्ता बनाते हुए बच निकलने में सफल रहा। युवक ने रोजी को देखा और तुरंत अपनी जैकेट उतार कर उसके कंधों को ढक दिया। वह उसके साथ ही उतरकर उसे उसके कॉलेज की बिल्डिंग तक छोड़ कर आया।

‘‘मैं जॉकी हूं,’’ उसने कहा, ‘‘मैं यहां पास ही एक अॉफिस में कार्यरत हूं।’’ उसने अपना बिजनेस कार्ड रोजी को देते हुए कहा, ‘‘काम पूरा होने के बाद मुझे कॉल करें। यदि आप आज जैकेट वापस करने में असमर्थ हों, तो कल भी यह मुझे दे सकती हैं।’’ इस अचानक हुई घटना के सदमे से हिल चुकी रोजी ने केवल अपना सिर हिला दिया। रोजी ने कॉलेज में ही अपनी बहन रीना को कॉल कर एक ब्लाउज लाने को कहा। जब वह अायी तो शाम के छह बज चुके थे। रोजी ने जॉकी के दिए हुए नंबर पर कॉल किया लेकिन किसी ने फोन उठाया नहीं। जाहिर था कि वह फोन अॉफिस का था और छह बजे तक अॉफिस बंद हो चुका था।

अगले दिन क्लास खत्म होने के बाद उसने जॉकी को फोन किया। वह आया तो उसके चेहरे पर एक आश्वस्त मुस्कान थी। वह क्षण था, जब रोजी को पहली दफा महसूस हुआ कि उसके सामने खड़ा नौजवान बहुत सुंदर है। पहले दिन तो रोजी इस कदर सदमे में थी कि उसे धन्यवाद जैसा शब्द भी नहीं बोल सकी थी, उसे देखना तो दूर की बात थी। रोजी ने महसूस किया कि जॉकी के व्यक्तित्व में एक तमीज, गरिमा और आश्वस्ति के भाव थे। इस बार रोजी ने तहेदिल से उस सुदर्शन नौजवान को शुक्रिया कहा। अब तक की जिंदगी में रोजी सिर्फ पढ़ाई करती रही थी और किसी पुरुष से नजदीकी बढ़ाने पर कभी उसने ध्यान नहीं दिया था। लेकिन जॉकी के व्यवहार में कुछ ऐसा था, जो उसे छू गया। वह उसके साथ खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी। जॉकी ने जब शाम को उसे चाय पर बुलाया तो वह इंकार नहीं कर सकी। यह पहली मुलाकात थी और इस तरह बात आगे बढ़ती गयी। पहली, दूसरी, तीसरी और फिर कई मुलाकातें होने लगीं। दोनों जल्दी ही एक-दूसरे के गहरे प्रेम में पड़ गए थे और उन्होंने शादी का फैसला कर लिया था।

जॉकी ने इस फैसले के बाद अपने माता-पिता से बातचीत की। चूंकि रोजी महाराष्ट्र की थी और जॉकी मैंगलोर का, तो माता-पिता इस शादी की बात से नाखुश थे। लेकिन रोजी और जॉकी के संबंध इतने गहरे थे कि उनका विरोध पिघल गया और शादी की तारीख की घोषणा हो गई। युवा प्रेम और जुनून की नदी में तैरते हुए दोनों अब दो जिस्म एक जान हो गए थे। कैंडल लाइट डिनर, वीकेंड पिकनिक, एक सुंदर-सुखद जीवन का आरंभ हो चुका था। और फिर वे समझ भी नहीं पाए कि कैसे किन्हीं कमजोर क्षणों में वे भावनाओं के ज्वार में फिसल गए।

"जॉकी," एक दिन रोजी ने कंपकंपाते होंठों से डरते हुए कहा, "मुझे लगता है कि मैं प्रेगनेंट हूं।’’ रोजी की आंखों में आंसू थे, वह बहुत ही शर्मिंदा महसूस कर रही थी, वह डरती थी कि कहीं यह खबर घर वालों या समाज को लग गई तो उसके साथ ही परिवार के मान-सम्मान पर आंच आएगी। अभी शादी को पूरे चार महीने बाकी थी लेकिन जैसा कि जॉकी ने हमेशा किया था, बहुत प्यार और आश्वस्ति के साथ रोजी को संभाल लिया।

"यह हमारे प्यार का फल है, रोजी,’’ उसने पूरी संजीदगी से कहा, ‘‘समय बहुत जल्दी बीत जाएगा और हम पति-पत्नी बन जाएंगे। फिर हमें किसी की परवाह नहीं, हम सबका सामना कर लेंगे।’’

रोजी अतीत में गोते लगा रही थी और अचानक फिर उसे हर जगह खून नजर आने लगा। उसने देखा कि उसके इर्द-गिर्द, हर जगह खून बिखरा था। शादी के निमंत्रण कार्ड पर, उसकी वेडिंग ड्रेस पर, उसके सपनों और उसकी जिंदगी में हर जगह लाल खून बिखरा हुआ था। उसे ढलान पर फिसलती हुई मोटरसाइकिल दिखी ! वह ट्रक का टायर, जिसने जॉकी के शरीर को रौंद डाला था। शादी को सिर्फ एक महीना बचा था और रोजी के सारे सपने चकनाचूर हो चुके थे। उस आघात और दुख के अवसर में वह अपने भीतर एक पिताहीन भ्रूण को भी सहन कर रही थी। वह समाज के भय से गर्भपात कराने को तैयार हुई मगर डॉक्टरों ने मां की जान को खतरा बताते हुए इससे इंकार कर दिया था। रोजी ने अपने स्कूल से लंबी छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया और फिर अविवाहित मांओं को संभालने वाली संस्था, डिवाइन मर्सी इंस्टीट्यूट, पुणे में शरण ली। दिन बीतते गए और संस्था की सिस्टर्स की देखरेख में उसने वहां एक स्वस्थ शिशु को जन्म दिया और फिर बहुत मानसिक वेदना के साथ खुद को शिशु से अलग कर लिया। बच्चे को वहीं सिस्टर्स के पास छोड़ कर वह फिर से अपने संस्थान वापस आयी। उसने अपनी बीएड. पूरी की और फिर जल्दी ही एक प्रतिष्ठित स्कूल में अध्यापन करने लगी।

मर्सी इंस्टीट्यूट की ननों ने एक साल बाद उसे कॉल करके सूचना दी कि उसके बेटे को एक सभ्य, संस्कारी निःसंतान दंपती ने गोद लेने के लिए संपर्क किया है। ये तो खुशी की ही बात थी कि उसके बच्चे को माता-पिता का नाम और घर मिल रहा था। रोजी इस बात पर सहमत हो गयी और आवश्यक कागजी कार्रवाई करने के लिए पुणे गयी। गोद लेने के नियम के अनुसार बच्चे को गोद लेने वाले माता-पिता की पहचान गुप्त रखी जाती थी। इस तरह रोजी ने अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण अध्याय को समाप्त किया और पूरी तरह अपनी पेशेवर जिंदगी में लिप्त हो गयी। वह अपने स्कूल में सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों में से एक थी, जिसके लिए हमेशा उसकी सराहना होती थी।

होमी ने बोर्ड परीक्षाएं अच्छे अंकों से उत्तीर्ण कर ली थी। रोजी के लिए यह एक वार्षिक गतिविधि होती थी कि वह दसवीं क्लास के बच्चों को विदा करती थी। ये बच्चे अब कॉलेज के लिए तैयार हो रहे थे। वहां से सभी अपने कैरिअर बना लेते या अलग-अलग कॉलेजों में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश ले लेते। यह वर्ष 1998 की बात है। उस दिन क्लास खत्म हो चुकी थी और वह घर जाने के लिए स्कूल के गेट से बाहर निकली ही थी कि उसने मिलिट्री ड्रेस व टोपी में एक बेहद सुंदर युवक को स्कूल गेट पर खड़े देखा, जो हाथों के इशारे से उसे रोक रहा था। उसने पूरे आर्मी अंदाज में अपनी टीचर को सलामी ठोंकी और कहा, ‘‘पंजाब रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट होमी पेस्टनजी आपको सैल्यूट करते हैं मिस।’’

रोजी मंत्रमुग्ध स्थिति में खड़ी इस नौजवान को विस्मय भरी दृष्टि से देख रही थी। "ओह माय डियर बॉय होमी, क्या सुखद आश्चर्य है?’’

रोजी को यह जानकारी नहीं थी कि होमी हायर सेकेंडरी के बाद एनडीए में शामिल हो गया था और भारतीय सेना के एक गौरवशाली अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहा था। उसके गोल-मटोल गाल, जिन पर रोजी चिकोटी काटना पसंद करती थी, अब वहां एक रौबीला चेहरा नजर आ रहा था। उसने श्रद्धा से रोजी के पैर छुए और कहा, ‘‘मिस, कृपया मेरे कान एक बार मरोड़ दें जैसे आप कक्षा में किया करती थीं। वो क्या है न, सेना में अगर हम कुछ गलत करते हैं तो वे कान नहीं मरोड़ते, बल्कि पीठ पर पंद्रह किलो भार के साथ कुछ किलोमीटर दौड़ाते हैं।’’ दोनों इस बात पर दिल खोलकर हंस पड़े थे। वे काफी देर तक पुराने दिनों की बात करते रहे। फिर होमी ने कहा, “मिस, अगर आप अंबाला आती हैं, तो कृपया मुझे जरूर बताएं। मैं आपको वहां पूरा कैंटोनमेंट एरिया घुमाऊंगा।’’

उसके एक साल बाद ही एकाएक कारगिल में घुसपैठियों का उपद्रव शुरू हो गया। एक छोटी सी चिंगारी आग में तब्दील हो गई और आए दिन सैकड़ों जवानों के मरने-मारने की खबरें आने लगीं। बहुत से युवा गोलियों के शिकार हो गए थे। एक दिन रोजी स्कूल से शाम को घर लौटी तो चाय पीते हुए वह समाचार पत्र देखने लगी। एकाएक एक बड़ी सी तसवीर और उसके साथ लगी खबर पर उसकी नजर अटक गई। तसवीर जानी-पहचानी लग रही थी। उसने नाम पढ़ा-लेफ्टिनेंट होमी पेस्टनजी ने शानदार वीरता का प्रदर्शन करते हुए, खुद गोलियों से छलनी होने से पहले दुश्मन सेना के तीन लोगों को मार गिराया। रोजी के पैर लड़खड़ाने लगे, उसने किसी तरह आंसुओं को रोका। फिर उसने अपने प्रधानाचार्य को फोन घुमाया, “सर, क्या आपने आज का पेपर पढ़ा? क्या वह हमारा होमी है? ओह माय गॉड, ओह माय गॉड,’’ वह चिल्लाई और सोफे पर ढह गई। समाचार पत्र उसके हाथ से फिसल गया था।

कुछ दिन बाद रोजी के पास एक फोन आया, ‘‘नमस्कार सुश्री रोजी! मैं सिस्टर अन्ना, डिवाइन मर्सी इंस्टीट्यूट, पुणे से बोल रही हूं। आशा है कि आप हमें पहचान गई होंगी। क्या हम जल्दी ही किसी दिन आपसे मिल सकते हैं? हम आपके साथ कुछ जरूरी व्यक्तिगत मामलों पर चर्चा करना चाहते हैं।’’ रोजी सोच में पड़ गई। ऐसी आखिर क्या बात हो सकती है, जो सिस्टर अन्ना उससे करना चाहती हैं? रोजी ने उनसे मिलने का वक्त तय किया। अगले ही दिन सुबह दस बजे के आसपास वह पुणे स्थित उस संस्थान में पहुंची। यह रविवार का दिन था। सिस्टर अन्ना ने उसका स्वागत किया, ‘‘कृपया आइए मिस रोजी, हमारी सीनियर सिस्टर आपसे कुछ बात करना चाहती हैं।”

‘‘मिस रोजी’’, सुपीरियर ने कहा, ‘‘हमारे नियमों के अनुसार, एक बार जब आप अपने बच्चे को गोद देने के लिए सहमत हो जाते हैं, तो हम नैतिक और कानूनी सिद्धांतों से बंध जाते हैं कि जैविक मां को उस परिवार की पहचान के बारे में कभी नहीं पता चलेगा जिसने गोद लिया है लेकिन आपके मामले की परिस्थितियों को देखते हुए हमें लगता है कि कुछ सूचनाओं का खुलासा करना अब हमारा नैतिक कर्तव्य है।’’

रोजी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। यह एक ऐसा अध्याय था, जो उसके लिए कई साल पहले बंद हो चुका था। वह अनभिज्ञ और अवाक दोनों भावनाओं के बीच झूल रही थी। सुपीरियर ने कहा, ‘‘हालांकि, आपको इस पर गोपनीयता बनाए रखनी होगी और इस संबंध में एक वचन देना होगा।’’

Silhouette of a soldier with the India flag stands against the background of a sunset or sunrise. Concept of national holidays. Commemoration Day.
Silhouette of a soldier with the India flag stands against the background of a sunset or sunrise. Concept of national holidays. Commemoration Day.

‘‘हां, सिस्टर, मैं सहमत हूं,’’ उसने कहा।

‘‘रोजी,’’ सुपीरियर ने कहा, ‘‘तुम एक वीरमाता हो, एक बहादुर जवान की मां ! ले. होमी पेस्टनजी, जिन्होंने पिछले सप्ताह कारगिल में सर्वोच्च बलिदान दिया, वह आपका जैविक बच्चा था, जिसे आपने बाईस साल पहले हमारे सदन में जन्म दिया था।’’

कुछ क्षणों के लिए रोजी की दुनिया ही थम गयी थी। मौन के उस खुले तालाब में सिर्फ दीवार घड़ी की टिक-टिक की बूंदें टपक रही थीं। रोजी अपना माथा पकड़े वहीं धम से बैठ गई थी। सिस्टर अन्ना रोजी को दिलासा देने के लिए धीरे से उसके कंधों को सहलाते हुए उसके पीछे आ खड़ी हुईं और फिर रोजी का दिल दहला देने वाला रुदन संस्थान के गलियारों में गूंज उठा। उस दुःख में सिस्टर अन्ना की बांहों में वह देर तक कांपती रही, आंसू बहाती रही।

गणतंत्र दिवस था। नई दिल्ली में राजपथ से कार्यक्रम समारोह का टीवी पर सीधा प्रसारण हो रहा था। युद्ध के नायकों को वीरता पदक दिए जा रहे थे। गर्व के साथ बहादुर जवान पोडियम पर चढ़ रहे थे, ताकि उन्हें उनकी विस्तारित छाती पर गौरवशाली पदक प्रदान किया जा सके। और फिर एक घोषणा हुई, ‘‘...नेतृत्व और वीरता की सच्ची परंपरा का पालन करते हुए, ले. होमी पेस्टनजी ने तीन दुश्मनों को मार डाला और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया जाता है। उनकी मां, वीरमाता शिरीन पेस्टनजी से पदक प्राप्त करने का अनुरोध किया जाता है।’’

शिरीन पेस्टनजी को मंच पर चढ़ते देख रोजी के आंसू बहने लगे। अचानक वह रुक गई। उसने अपने आंसू पोंछे। हां, मैं वीरमाता हूं, लेकिन केवल खून के रिश्ते से। शिरीन ने ही मेरे होमी को देश का हीरो बनाया। वही असली मां है इस बहादुर जवान की। रोजी खड़ी हुई। जैसे ही शिरीन पेस्टनजी ने पदक प्राप्त किया, रोजी टीवी देखते हुए गर्व से बोल उठी, ‘‘मिस रोजी थॉमस, सीनियर टीचर, मॉडर्न स्कूल, पंजाब रेजिमेंट के ले. होमी पेस्टनजी की मां शिरीन को सम्मान देती है ! जय हिंद !!’’

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