ध्रुवी 24 वर्ष की हो चुकी थी। अपनी पढ़ाई पूरी कर उसे एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गयी। अरुण व ममता बहुत प्रसन्न थे, ‘‘कुछ दिन नौकरी कर ले, फिर ध्रुवी के लिए एक अच्छा सा रिश्ता देख कर इसके हाथ पीले कर देंगे।’’
वैसे तो ध्रुवी अपने जीवन में सरपट दौड़ रही थी, किंतु आज भी दिल के किसी कोने में निनाद की याद पल रही थी, तभी तो शादी की बात सुनते ही पुराने घाव की तरह उभर आयी, ‘‘यह क्या बात ले कर बैठ गए आप दोनों ! अभी तो मुझे शहर बदलना है, नौकरी जॉइन करने के लिए दिल्ली को रवाना होना है,’’ ध्रुवी ने बात ढक दी।
रेलवे स्टेशन पर अरुण और ममता ने हिदायतों की पोटली उसके सामान के साथ बांध दी और उसे दिल्ली भेज दिया। कंपनी रहने की व्यवस्था भी करनेवाली थी सो मां-बाप को टेंशन नहीं थी। स्टेशन पर कंपनी की ओर से कोई लेने आ गया और उसे गेस्ट हाउस पहुंचा गया। यह ध्रुवी की पहली दिल्ली यात्रा थी, सो थोड़ा उत्साहित होना लाजिमी था। शाम को वह पास के मार्केट घूमने निकल गयी। वहां विंडो शॉपिंग करते हुए उसे ऐसा आभास हुआ कि उसका दिल अचानक जोर से धड़का। जैसे हवा की सनसनाहट कुछ कहना चाह रही हो उससे। मन में यकायक एक नाम उभरा- निनाद। निनाद ! उसकी याद आज यहां कैसे आ गयी ! क्या वह यहीं कहीं है, उसके आसपास, करीब, बेहद करीब ! दिल में उठी लहरों को काबू करने की विफल कोशिश करते हुए ध्रुवी इधर-उधर ताकने लगी। तभी उसके कंधे पर एक थपकी हुई। पीछे मुड़ी, तो सामने निनाद खड़ा था।
‘‘ओ माई गॉड ! तुम !’’ ध्रुवी को अपनी नजरों पर विश्वास नहीं हुआ। मुंबई में जुड़े तार यहां दिल्ली में एक बार फिर टकरा सकते हैं, ऐसा तो उसने कभी सोचा भी नहीं था।
‘‘मैंने कब सोचा था कि तुम मुझे यहां मिल जाओगी,’’ निनाद भी खुशी से दीवाना दिखायी पड़ा।
ध्रुवी एक आकर्षक युवती के रूप में निखर आयी थी- पतली-छरहरी काया, कमर तक लहराते केश और चंपई रंगत। गोलमटोल गालों की जगह अब उभरे हुए चीक बोंस ने ले ली थी। उसका फैशन सेंस भी आज के समय से मेल खा रहा था। निनाद उसे देख कर सुखद आश्चर्य से भर उठा। और ध्रुवी निनाद की मोहकता की दीवानी हो गयी- उसकी जॉ लाइन अब और भी साफ नजर आने लगी थी। गोरे रंग पर शेव करने से गाल हल्के हरे से प्रतीत हो रहे थे। और बाल आजकल के लेटेस्ट कट में उसके कद को और बढ़ा रहे थे।
दोनों पास के रेस्तरां में प्रवेश कर गए। काफी कुछ था एक-दूसरे के साथ बांटने के लिए। इतने बरसों की बातें, जो कुछ जीवन में घटा, वह सब दोनों बताना चाहते थे। वहां बैठते ही बिना कुछ सोचे निनाद ने ध्रुवी का हाथ थाम लिया। ध्रुवी ने भी कोई प्रतिरोध नहीं किया। कुर्सी पर बैठे हुए ही जैसे दोनों उड़ रहे थे, संग नाच रहे थे। इतने लंबे अरसे बाद मिलने पर उनकी प्रसन्नता का ठिकाना ना था।
‘‘अब भी हॉट चॉकलेट पसंद है तुम्हें?’’ ध्रुवी ने पूछा, तो निनाद अाह्लादित हो उठा, ‘‘नॉट बैड, इतने सालों बाद भी तुम्हें मेरी पसंद याद है।’’
‘‘मुझे तो वह वाकया भी याद है जब स्कूल से लौटते समय तुमने मेरी स्कर्ट पर लगा स्टेन देख लिया था और झट मेरे पीछे-पीछे सट कर चलने लगे थे। इन फैक्ट, तब मुझे पता चला था कि स्कूल में बच्चे मुझे देख कर हंस क्यों रहे थे। वे भी क्या दिन थे- अल्हड़, नादान, बेफिक्रे। कितना रोयी थी मैं असलियत जानकार। तब भी तुमने ही मुझे समझाया था। तुम्हारी बातों ने मेरे मन का बोझ एकदम हल्का कर दिया था, निनाद। तुम्हारे अमेरिकन नजरिए और हमारे यहां की सोच में भारी अंतर महसूस हुआ था मुझे,’’ ध्रुवी पुराने गलियारों में विचरने लगी। सच, निनाद के आने से उसकी अपनी सोच में काफी परिवर्तन आया था।
‘‘हम सबकी अपनी एक स्टोरी होती है, ध्रुवी, जिसमें हर कदम लोग जुड़ते जाते हैं। मुझे खुशी है कि मैं तुम्हारी स्टोरी का अदना सा हिस्सा बन पाया,’’ निनाद बोला।
‘‘अदना सा नहीं...’’ अस्फुट शब्दों में ध्रुवी ने कहा, पर फिर तुरंत बात बदल दी, ‘‘जानते हो निनाद, हम सबको किसी के प्यार की, किसी के भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम मुझे दोबारा मिलोगे और तुमसे कह सकूंगी कि आई रियली मिस्ड यू।’’
‘‘एक सीक्रेट शेअर करूं- उन दिनों मैं अपनी कॉपी में दिल की शेप बना कर उसमें ‘डी’ लिखा करता था,’’ बता कर निनाद जोर से हंस पड़ा। ध्रुवी की नजरें शरम से झुक गयीं, चेहरे पर लालिमा छा गयी। बात पलटते हुए वह बोली, ‘‘तुम इतनी अच्छी पेंटिंग किया करते थे। अब भी करते हो?’’
‘‘हां, पेंटिंग तो मेरा पैशन है। उससे मुझे शांति मिलती है। तुम यहां दिल्ली में कबसे रह रही हो?’’
‘‘मैं आज ही दिल्ली पहुंची हूं। यहां मेरी जॉब लगी है, कल से जॉइन करना है। और तुम यहां कब से हो?’’
‘‘मैं भी यहां जॉब करता हूं। मम्मी-पापा अभी भी नवी मुंबई में ही हैं। यहां अकेला रहता हूं। मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना था, क्योंकि माता-पिता के कंधों पर बैठ कर बचपन का सफर तो तय किया जा सकता है, परंतु जवानी का बोझ नहीं ढोया जा सकता,’’ निनाद ने ध्रुवी को अपना पता दे दिया। फोन नंबर्स एक्सचेंज करने के बाद दोनों अपने गंतव्यों पर लौट गए।
अगली सुबह गेस्ट हाउस में नाश्ता करके ध्रुवी सही समय पर अपने नए दफ्तर पहुंच गयी। पर्स में ममता द्वारा दी गणपति की प्रतिमा लिए वह नए जीवन के सोपान चढ़ने को तैयार थी। इसी शहर में नौकरी और यहीं निनाद का साथ- इससे अधिक की उम्मीद नहीं कर रही थी ध्रुवी। दफ्तर दिल्ली के मध्य कनॉट प्लेस में था। बिल्डिंग जरूर पुरानी थी, पर अंदर से एकदम स्टेट ऑफ आर्ट। स्टार्टअप में नौकरी करने का मजा ही अलग है- नयी तकनीक, नयी सोच और नया खून। कंपनी के मालिक से मिल कर ध्रुवी में उत्साह भर गया। उम्र में वह ध्रुवी से कुछ ही वर्ष बड़ा होगा, लेकिन उसकी आगे बढ़ने की ललक, जीतने की चाह और परिश्रम के कारण वह ना जाने कितनों का प्रेरणास्रोत बन चुका था।
एचआर ने ध्रुवी के जरूरी दस्तावेज जमा किए, कुछ कागजी कार्यवाही की और उसे मीटिंग रूम में इंतजार करने को कहा। उसने चाय का कप थामा ही था कि एक भद्र महिला ने अंदर प्रवेश किया, ‘‘हेलो ध्रुवी, मैं यहां की एचआर मैनेजर हूं। हमारी कंपनी में आपका स्वागत है। आपसे पहले जो शख्स इस सीट पर नौकरी करता है, आपको उसके अंडर ट्रेनिंग पर रखा जाएगा, ताकि आप सारा काम समझ सकें। दरअसल उसे नौकरी से निकाला जा रहा है, किंतु अभी तक उसे बताया नहीं गया है। थोड़ा सेंसेटिव मामला है ना इसलिए। अगले हफ्ते उसका लास्ट डे होगा, तब आप उससे हैंडओवर ले लेना।’’
ध्रुवी को ज्ञात था कि स्टार्टअप में काम सीखने का जितना मौका मिलता है, उतना ही हाइरिंग और फाइरिंग का रिवाज भी होता है। उसके कैरिअर की शुरुअात किसी की नौकरी के एवज में हो रही है, यह बात उसे अच्छी तो नहीं लगी, पर उसके हाथ में यह निर्णय नहीं था। ध्रुवी को उसकी सीट पर ले जाया गया।
‘‘मीट निनाद, आपको इन्हीं के अंडर काम करना है,’’ एचआर मैनेजर के कहते ही ध्रुवी पर गाज गिर गयी। निनाद उसे एक बार फिर अपने समक्ष पा फूला ना समा रहा था, किंतु ध्रुवी का चेहरा राख हो गया। उसकी नौकरी निनाद की जगह लगी है ! किस मुंह से बताए वह यह बात उसको। इसी उधेड़बुन में 5 दिन निकल गए। निनाद उसे पूरे मन से काम सिखा रहा था। दफ्तर के बाद भी दोनों मिल लिया करते, कभी साथ डिनर करते हुए घर लौटते, तो कभी कैंटीन में साथ लंच करते, परंतु ध्रुवी असली बात बताने की हिम्मत नहीं जुटा पायी।
आज काम पर उसका छठा दिन था। कल कंपनी निनाद को निकाल बाहर करेगी। अब ध्रुवी के पास और समय नहीं बचा सो उसने आज शाम ही निनाद को आगाह करने का मन बनाया। ‘‘आज तुम्हारे साथ कॉफी पीने का मन है, कहीं चलें?’’
‘‘चलो, आज मैं तुम्हें अपनी पसंद के कैफे ले चलता हूं। वहां की लाते-कॉफी तुम्हें जरूर पसंद आएगी,’’ निनाद को कहां पता था कि आज बाहर जाने के पीछे ध्रुवी का क्या उद्देश्य है।
‘‘निनाद, मेरी बात ठंडे मन से सुनना और समझने की कोशिश करना,’’ ध्रुवी ने उसे सारी स्थिति बता दी। उसकी बात सुन कर निनाद कुछ क्षणों के लिए अव्यवस्थित हो उठा। अचानक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाएगी, उसने कभी सोचा भी नहीं था।
‘‘कौन कहता है अच्छी कला सहज-सरल होती है। और हो भी क्यों कर? जब जिंदगी ही सहज-सरल नहीं, ना तो हमारा दिमाग, और ना ही दिल !’’ निनाद द्वारा कही बात ध्रुवी की समझ में नहीं आयी। इससे आगे कुछ भी कहे बिना वह वहां से उठ कर चला गया।
अगले दिन दफ्तर में निनाद ध्रुवी के समक्ष एक अजनबी के रूप में आया। ना मुस्कराहट, ना बातचीत, केवल रूखा व्यवहार। दिनभर दफ्तरी कार्यवाही, फुल एंड फाइनल की प्रक्रिया निबटाने और ध्रुवी को काम संबंधी बातें समझने में चला गया। निनाद का यह शुष्क रवैया ध्रुवी के मन को छलनी किए जा रहा था, पर वह करती भी तो क्या। दोष ना उसका था, ना निनाद का। निनाद ने घर लौटने से पहले उससे आखिरी विदाई तक नहीं ली। ध्रुवी समझ रही थी कि निनाद का अंतर्मन घायल है। उसके अहं को चोट लगी है, शायद इस बात से अधिक कि उसकी जगह ध्रुवी ने ली।
उस शाम ध्रुवी ने निनाद के घर जाने का मन बनाया। एक गुलदस्ता हाथों में लिए वह उसके दरवाजे पर खड़ी हो गयी। निनाद ने दरवाजा खोला, पर ध्रुवी को अंदर आने के लिए कहे बिना ही मुड़ कर स्वयं अंदर चला गया। ध्रुवी भी पीछे-पीछे हो ली। वह समझ रही थी कि निनाद की मानसिक स्थिति दुरुस्त नहीं। और वह उसे पूरा समय देने को तैयार थी।
‘‘नौकरी मुबारक हो, ध्रुवी,’’ निनाद ने तंजभरे स्वर में कहा, तो ध्रुवी की आंखें नम हो उठीं, लेकिन उसने फौरन खुद को संयत कर लिया।
‘‘इसके लिए मुझे दोषी मत ठहराओ, निनाद, मैं तो जानती भी नहीं थी कि तुम...’’ ध्रुवी आगे कुछ कह पाती इससे पहले निनाद बोल पड़ा, ‘‘बॉस से तो मिली होंगी तुम। आखिर तुम्हारी खूबसूरती काम आ ही गयी। मैं ही मूर्ख था, जो काबिलीयत को असली पहचान समझता रहा।’’
‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’ निनाद की बात ने ध्रुवी के हृदय को और भी चोटिल कर दिया।
‘‘मैं तो केवल तुम्हारी कामयाबी पर खुश हो रहा हूं। एक औरत को और क्या चाहिए- वह जवान है, अमीर है, और अब तुम्हारा चरणदास भी। तुम चाहोगी वह मूंछ रखे, तो रख लेगा। तुम्हारा हुकुम होगा कि मूंछ साफ करे, तो क्लीन शेव कर लेगा। बस, इसके लिए कुछ दिन और उसे तरसाना, ताकि वह पूरी तरह तुम्हारी गिरफ्त में पागल हो जाए। थोड़े समय खुद पर काबू रखना जैसे अब तक रखती आयी हो। आयी हो ना?’’
‘‘चुप हो जाओ, निनाद। मैं यहां तुम्हारी बकवास सुनने नहीं, बल्कि तुम्हारा दर्द बांटने आयी थी। मुझे क्या पता था कि तुम...’’
‘‘ओह, तो तुम्हें नहीं पता था कि मैं... मुझे भी कहां पता था कि तुम...’’ निनाद ने ध्रुवी का बढ़ा हुआ हाथ बेरहमी से झटक दिया।
गालों पर लुढ़क आए आंसुओं को पोंछते हुए ध्रुवी कहने लगी, ‘‘मैं समझने लगी थी कि तुम मुझसे प्यार करते हो, लेकिन आज तुमने मेरी सारी गलतफहमी दूर कर दी।’’
‘‘तो एक से दिल नहीं भरता मैडम का। ठीक है, जो हुकुम सरकार, आपकी गुलामी में पूंछ हिलाने को तैयार है यह कुत्ता,’’ निनाद ने जैसे ही यह कहा, ध्रुवी अपनी हथेलियों से अपना मुंह ढांपे उसके घर से बाहर दौड़ गयी।
अगले कुछ दिन ध्रुवी का मन किसी काम में नहीं लगा। उस दिन की बात बार-बार उसके मन को व्यथित करती रहती। उसका दिल एक बार फिर टूटा था- वह भी उसी इंसान के लिए। प्यार एक नाजुक भावना है। उसको देखभाल चाहिए। यदि उसे पनपाना है, तो संजोना भी पड़ेगा। अपनी अलग डगर पर चलने से शायद दिल के किसी कोने में प्यार जिंदा तो रह सकता है, पर हासिल नहीं हो सकता।
ध्रुवी के लिए ममता और अरुण ने एक रिश्ता देखा और उसे फोटो भेज कर सूचित किया। अब वे दोनों चाहते थे कि ध्रुवी एक बार घर आ कर लड़के से मिल ले, ताकि बात आगे बढ़ सके।
ध्रुवी, निनाद की मानसिक स्थिति को समझने का पूरा प्रयास कर रही थी, तभी तो इतना कुछ सुनने के बाद भी वह उसे एक आखिरी मौका देना चाहती थी। उस शाम फिर वह उसके घर पहुंच गयी। हो सकता है अब तक निनाद थोड़ा शांत हो गया हो, सोचते हुए। औपचारिक मुलाकात के बाद ध्रुवी ने अपने आने का मकसद जाहिर किया।
‘‘मुबारक हो। कब है शादी?’’ निनाद ने सपाट स्वर में कहा। उसकी आवाज इतनी ठंडी थी कि ध्रुवी की आगे कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई। उसका दिल करने लगा कि वह निनाद से लड़ पड़े, उसके ऐसे जली-कटी सुनाने पर उससे रूठ जाए। पर वह जान गयी थी कि हर रिश्ता रूठने का हक नहीं देता। उसको आभास होने लगा कि जिस तरह वह इस रिश्ते को देख रही है वैसे शायद निनाद नहीं देख रहा... और अब उसे अपने तौरतरीके बदलने पड़ेंगे। सामने वाला तो पहले से ही आगे बढ़ चुका है। उसे भी तो मानसिक सुख-शांति का हक है ना !
ध्रुवी ने शादी के लिए हामी भर दी। अनुराग एक सभ्य लड़का था, शांत, सुशील। उससे शादी करके ध्रुवी के जीवन में नयी छटा बिखर गयी। शादी के पश्चात ध्रुवी एक बार फिर मुंबई लौट गयी। अब उसके जीवन में सब कुछ भला था- एक पति, एक बेटी, छोटा सा प्यारा घर और जीवन जीने के लिए पर्याप्त साधन। गृहस्थी की रेत के कण दिल पर जमते रहे। ध्रुवी ने अनुराग को पूरी ईमानदारी से अपना तो लिया, किंतु मन की तहों में दबा निनाद के प्रति प्रेम ना भुला सकी। वह प्यार केवल छुप गया, मिटा नहीं। ना ध्रुवी ने अनुराग से कभी इसका कोई जिक्र किया और ना ही अपने मन को निनाद की याद करने से रोका।
तभी तो कई सालों बाद जब ध्रुवी अपनी बेटी को हनीमून के लिए विदा करने एअरपोर्ट आयी, तो अपने कंधे पर चिरपरिचित थपथपाहट ने उसे चौंका दिया। बालों में चांदी और पतले चेहरे पर खिंच आयीं लकीरों के बावजूद निनाद ने उसके दिल के तारों को एक बार फिर उसी तरह झंकार दिया जैसे बचपन, और फिर जवानी में।
‘‘निनाद, तुम?’’ ध्रुवी प्रसन्नता से उछल पड़ी। अब तक जो अधर एक स्मित रेखा में कैद थे, अचानक उनमें दांत समा नहीं पा रहे थे। निनाद से मिलने पर ध्रुवी की आकुलता देख अनुराग भी हतप्रभ रह गया। जिस ध्रुवी को वह जानता था वह तो एकदम धीर-गंभीर, जिम्मेदार और शालीन स्त्री थी। और आज जो उसके सामने थी वह एक व्यग्र, उतावली षोडशी समान लग रही थी। चोटी में बंधे उसके खिचड़ी बाल और हल्की नारंगी दुसूति साड़ी में कुछ देर पहले तक उसकी गरिमा और भी ओजस हो रही थी। लेकिन अब एकाएक उसकी आकृति उसके आचरण से मेल खाने में चूकने लगी।
‘‘इनसे मिलो, ये हैं अनुराग, मेरे पति। और यह है निनाद, मेरा बहुत अच्छा दोस्त,’’ ध्रुवी ने अनुराग की आंखों में जो प्रश्नचिह्न पढ़ा, उसका उत्तर उसने दोनों का परिचय करवा कर दे दिया, ‘‘हम आज ना जाने कितने वर्षों बाद मिले हैं।’’
बेटी और दामाद अपनी फ्लाइट के लिए जा चुके थे। अनुराग, ध्रुवी व निनाद को उनकी अनेकानेक बातों के साथ छोड़ कर घर के लिए रवाना हो गया, ‘‘मैं बहुत थक गया हूं। तुम्हें तो अब काफी सारी बातें करनी होंगी, तो तुम ड्राइवर के साथ आ जाना। मैं कैब ले कर घर चलता हूं। फिर मिलेंगे निनाद साहब।’’
ध्रुवी और निनाद ने एक ईटिंग जॉइंट खोजा और वहीं विराजमान हो गए। इतने सालों कहां रहे, कैसी जिंदगी बितायी, जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव साझा करते दोनों ने करीब दो घंटे बिता दिए। निनाद ने बताया कि अब वह एक फुलटाइम चित्रकार बन गया है। मुंबई में अपनी पेंटिंग की नुमाइश करने आया है।
‘‘घर-परिवार में कौन-कौन हैं?’’
‘‘मैंने शादी नहीं की, और मॉम-डैड को गुजरे एक अरसा बीत गया।’’
‘‘पर क्यों निनाद?’’ उसकी बात सुन कर ध्रुवी फीकी पड़ गयी।
‘‘मैं अब भी तुम्हें मिस करता हूं, ध्रुवी। तुमसे अधिक मुझे इस जिंदगी में कुछ नहीं चाहिए। तुम नहीं मिलीं, तो तुम्हारी यादें, तुम्हारा खयाल ही सही...’’ मंद सुर में निनाद ने कहा।
‘‘मैं तो आयी थी तुम्हारे पास... मैं भी तो तुम्हें खोना नहीं चाहती थी, पर तुमने...’’ ध्रुवी के स्वर में नैराश्य घुल गया। पुराने घाव एक बार फिर रिसने लगे। लेकिन उसने स्वयं को संभाल लिया, ‘‘खैर छोड़ो, जो बीत गयी सो बात गयी।’’
‘‘तुम्हारे लिए यह कहना आसान है, क्योंकि तुम आगे बढ़ गयीं। मुझसे पूछो, जो वहीं उसी गली के मोड़ पर खड़ा तुम्हारी राह देख रहा है,’’ निनाद इतने अंतराल बाद ध्रुवी को सामने पा कर अपने को वश में रख पाने में विफल होने लगा, ‘‘क्या हम एक नहीं हो सकते, ध्रुवी? क्या तुम मुझे एक मौका और नहीं दे सकतीं? उस समय मैं जो कर बैठा उसका हरजाना मैंने सारी उम्र भरा। क्या तुम मुझे माफ नहीं कर सकतीं?’’ निनाद गिड़गिड़ाने लगा।
‘‘ऐसी बातें मत करो, निनाद, अब इनका कोई औचित्य नहीं है। अनुराग मेरे पति हैं। मैं उन्हें धोखा नहीं दे सकती। वे मेरा प्यार ना सही, पर मैं उनका प्यार हूं। उन्होंने पूरी निष्ठा से मेरा साथ निभाया है, और मेरी ईमानदारी में भी कोई कमी नहीं रही। हां, तुम मेरे दिल में हमेशा रहोगे। पर इस प्यार को अधूरा ही रहना होगा, हम दोनों के दिलों में धड़कते हुए,’’ ध्रुवी ने सजल नेत्रों से कहा, ‘‘अब मुझे चलना होगा। पिछली बार भी मैं तुमसे पूछ कर गयी थी। इस बार भी तुम मुझे जाने दो।’’ कुछ क्षण दोनों मौन बैठे रहे।
अपनी आंखों में झांकती ध्रुवी को देख निनाद मुस्कराया, ‘‘कभी-कभी प्यार और साथ में अंतर रह जाता है। शायद हम दोनों की किस्मत को यही मंजूर है। जाओ और अपनी गृहस्थी संभालो,’’ कह कर निनाद ने हौले से ध्रुवी का हाथ सहलाया।
वह प्यार कैसा, जो मुंह में कसैलापन छोड़ जाए। एक रिश्ते को पाने के लिए औरों के दिल चकनाचूर हो जाएं, ऐसे प्यार से बेहतर है वह प्रेम-सुवास, जो आत्मा को महका दे।