Friday 23 August 2024 11:16 AM IST : By Prachi Bhardwaj

अधूरे हम अधूरे तुम भाग-1

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आज सुबह जब अरुण बाथरूम में थे, तब उनके फोन की रिंग बजी। ममता ने नंबर देखा... विदेशी नंबर देख उन्होंने बाथरूम के दरवाजे के बाहर से पुकारा, ‘‘कहीं फॉरेन से फोन आ रहा है।’’ फोन अरुण के परम मित्र श्यामल का निकला। अमेरिका में आयी मंदी के कारण उनकी नौकरी जाती रही। मुंबई में एक नौकरी मिली है सो वे सपरिवार भारत लौट रहे हैं, यही बतलाने को फोन किया। ‘‘हां यार, यह भी कोई पूछने की बात है। मेरा घर, तुम्हारा घर। जब तक तुम्हारे लिए एक पसंदीदा घर का इंतजाम नहीं हो जाता, यहीं रहना आराम से,’’ अरुण ने कह तो दिया, पर चिंता की लकीरें ममता के माथे पर उभर आयीं, ‘‘यहां मुंबई में इतने छोटे घरों में कैसे एडजस्ट करेंगे सब?’’ ममता चिंतित हो उठी।

‘‘कुछ दिनों की बात है। मैं आज ही प्रॉपर्टी डीलर से उनकी पसंद का घर ढूंढ़ने को कह दूंगा। तब तक हो जाएगा कुछ ना कुछ।’’ मगर उनके देखे-चुने बिना घर कैसे फाइनल हो सकता था। सो श्यामल, उनकी पत्नी निशा और बेटा निनाद भारत आते ही सबसे पहले अरुण और ममता के घर पहुंचे। ममता अपनी प्लानिंग कर चुकी थी- अरुण और वह ड्रॉइंगरूम में, बेटी ध्रुवी के साथ और उनका इकलौता बेडरूम मेहमानों के लिए।

उस समय निनाद और ध्रुवी करीब 17-18 वर्ष के थे, जब पहली बार उनकी मुलाकात हुई। यह ऐसी मुलाकात नहीं थी, जिसका इंतजार दोनों कर रहे हों। ध्रुवी अपना कमरा, अपनी अलमारी और अपनी स्टडी टेबल छिन जाने से परेशान थी, तो निनाद टीनएज में अपने दोस्त, अपना स्कूल, अपना शहर, अपना देश छोड़ कर यहां आने की वजह से दुखी था। वह खुद उस वक्त एक अल्हड़ लड़की थी, जो जिंदगी के हरेक पल को अपने अर्थों में जीना चाहती थी। गोलमटोल चेहरा, सांवली सूरत, फैशन की ओर कम ध्यान, लड़कों की तरह छोटे-छोटे बाल, बॉयज ड्रेस पहनना और साइकिलिंग उसके शौक हुआ करते थे। फिर भी ध्रुवी को उम्मीद थी कि विदेश से आ रहा है, तो निनाद आकर्षक नौजवान होगा। लेकिन निनाद साधारण सा लड़का दिख रहा था लंबा, पतला, गोरा, बालों को जैल लगा कर एक ओर चिपकाया हुआ और हल्की उगती दाढ़ी-मूंछें।

निनाद अकसर सकुचाया रहता। ना खुल कर खाना खाता, ना किसी से कोई बातचीत। बस अपने फोन में कुछ देखता-पढ़ता रहता। एक ही घर में रहने की वजह से ममता खाना परोसने के बाद निनाद को और खिलाने के क्रम में उलझ जाया करतीं।

‘‘फॉरगेट इट ममता,’’ निशा उन्हें रिलैक्स करने को कहतीं, लेकिन एक तो हिंदुस्तानी मां और उस पर मेजबान, ममता रुकती भी तो कैसे।

ध्रुवी इन दिनों स्वयं को काफी उपेक्षित महसूस करती। मम्मी उसकी और नखरे उठा रही निनाद के ! अगर निनाद उसमें थोड़ी रुचि दिखाता, तब भी कुछ बात बनती, लेकिन यहां तो वह ऐसे बिहेव करता जैसे उसे किसी से कोई लेना-देना नहीं। दरअसल निनाद के आने से ध्रुवी के जीवन में पहली बार एक लड़के के लिए जरा चेतना जागी। उसने स्वयं को आईने में निहारना शुरू कर दिया। अपने गोल कपोलों पर वह जरा सी झींक उठती। जी करता निनाद की तरह पतली हो जाए। अब उसे लंबे बालों को अदा से झटकने की इच्छा होने लगी। उफ ! उसने पहले क्यों नहीं सोचा कि वह अब 17 वर्ष की हो चली है, कोई 10-12 साल की छोटी बच्ची नहीं रही। ध्रुवी के अंदर आकर्षण पनपने लगा, एक केमिस्ट्री, जो उसे निनाद की ओर खींचते हुए चार्ज कर जाती। अब जब भी वह रोमांटिक गाने सुनती, तो उसके अधरों पर स्मित की रेखा स्वयं ही खिंच जाने लगी। आजकल वह अपनी नोटबुक के अंत में कुछ डूडल भी करने लगी थी- एक अधूरा सा स्केच, जिसमें एक लड़का होता, एक लड़की होती।

प्यारभरे आकर्षण में विवेक कहां होता है, वहां तो बस एक झुकाव होता है, एक खिंचाव होता है, जो हमारी हर भावना को प्रभावित कर देता है। आजकल ध्रुवी के मन की परतें निनाद के नाम लेनेभर से फड़फड़ाने लगी थीं। पर निनाद में ऐसी कोई बात उसे ना दिखायी देती। वह तो उसे देखे बिना ही सामने से गुजर जाता। अपने कमरे में, या कहें कि ध्रुवी के कमरे में घंटों अकेला बिता देता। जबकि ध्रुवी उसे देखने के लिए अकसर घर में बहाने बनाती इधर-उधर घूमती रह जाती। खाना भी अकसर वह अपने कमरे में खाता। एक ही घर में रहते हुए भी दोनों का आमना-सामना बहुत कम हुआ करता। क्या यह इसलिए क्योंकि निनाद ऐसा ही चाहता है? शायद यह ध्रुवी का क्रश था, प्यार नहीं, क्योंकि प्यार में तो और भी गहरी, डुबो देने वाली तरंगें होती होंगी, वह सोचा करती। अगर उसके दिल को प्यार हुआ है, तो उसका प्यार निनाद तक क्यों नहीं पहुंच पा रहा? दूर-दूर से देखनेभर को प्यार की संज्ञा दे सकते हैं? आखिर यह उसका पहला प्यार था, उसने कौन सी प्रेम में डिग्रियां हासिल की थीं। उसका यों विचलित होना स्वाभाविक था। लगता तो प्यार ही था, किंतु इस स्टेज पर उसे प्यार की तीव्रता का कोई अंदाजा ना था और ना ही वह समीपता उन दोनों के बीच स्थापित हो रही थी, जिसकी उसे आशा थी।

इन्हीं विचारों में उलझती ध्रुवी कन्फ्यूज रहने लगी। क्या है उन दोनों के बीच- कोई संग-साथ की यादें नहीं, कोई लगाव नहीं, मिलने की तड़प नहीं, भविष्य के लिए संजोए सपने नहीं... निजी अनुभवों और भावनाओं की तरलता से सूखा यह प्यार नहीं हो सकता। ध्रुवी अपने अंदर उठते ज्वार को टीनएज का साइड इफेक्ट समझ कर दिमाग से परे सरका देना चाहती थी, मगर दिल जो हर बार निनाद को देख भीग जाता था, उसे कैसे मनाए !

उस दिन ध्रुवी को अपनी सहेली के घर एक किताब लौटाने जाना था। दिन ढल चुका था। ऐसे में अकेली जाने देना ममता को ठीक नहीं लगा। निशा ने जबरन निनाद को उसके संग भेज दिया गया।

‘‘आइ डोंट वांट टू फोर्स यू,’’ घर से कुछ कदम दूर आते ही ध्रुवी बोली। वह निनाद के अनमनेपन से पहले ही व्यथित थी। और आज तो निनाद उसके कदमों से कदम मिला कर भी नहीं चल रहा था। चार कदम पीछे था। ‘‘तुम चाहो तो घर चले जाओ या कहीं भी। मैं खुद जा सकती हूं।’’

‘‘इट्स ओके,’’ बस इतना ही कहा निनाद ने।

ध्रुवी और भी खिन्न हो गयी। उसके मन की तरंगें क्यों नहीं पहुंच रहीं निनाद तक, जबकि वह इतना पास है, इतना करीब। वह कुछ विचारमग्न थी कि निनाद कहने लगा, ‘‘तुम क्या हमेशा से यहीं रहती आयी हो? आई मीन वर यू बोर्न हियर?’’

‘‘हां। यहीं पैदा हुई और यहीं पढ़ रही हूं। तुम्हें अपनी सिटी बहुत याद आती होगी ना? अपने फ्रेंड्स... गर्लफ्रेंड?’’ ध्रुवी ने सकुचाते हुए पूछ लिया।

‘‘मैं हमेशा से इंट्रोवर्ट टाइप का लड़का रहा हूं। कभी कोई गर्लफ्रेंड नहीं रही अब तक... वहां यूएस में तो मेरे फ्रेंड्स मुझे बहुत चिढ़ाते थे इस बात पर,’’ कुछ खुलने लगा निनाद। इस शाम के बाद दोनों में दोस्ती की शुरुअात हो गयी। हमउम्र होने के कारण माता-पिता को लगता एक-दूसरे से कुछ सीखेंगे-सिखाएंगे। आखिर भिन्न परिवेशों से जो आए हैं। और ध्रुवी व निनाद- दोनों अपनी दुनिया खोजने लगे। ध्रुवी की आंखें वह सब कहने को आतुर रहतीं, जो उसके दिल में गढ़ रहा होता। निनाद कभी सयाना बन उसके नयनों की भाषा पढ़ रहा हो, ऐसा लगता, तो कभी ध्रुवी को संदेह होता कि शायद निनाद जिस कल्चर से आया है, वहां यह सब आम है।
जल्दी श्यामल के लिए एक घर का इंतजाम हो गया, अरुण की अपनी सोसाइटी में ही। जब तक निनाद के कॉलेज और उनकी नौकरी का बंदोबस्त नहीं होता, तब तक यही ऑप्शन सही लगा। शिफ्ट होने के बाद निनाद और ध्रुवी का आमना-सामना होने के चांस कम हो गए। अब निनाद उनके घर से जा चुका था। ध्रुवी बाय कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गयी।

निनाद के शिफ्ट होने के बाद शाम को जब ध्रुवी नीचे सोसाइटी के पार्क में गयी, तो उसे वहां खड़ा पा कर सुखद आश्चर्य से भर गयी। यानी निनाद को भी उसका साथ भाता है, तभी वह उससे मिलने की चाह में वहां मौजूद है।

‘‘हाय,’’ कहते हुए ध्रुवी निनाद की ओर बढ़ गयी।

दोनों का यह नित्यकर्म बन गया। एक ही घर में रहते हुए भी जो दोनों थोड़े खिंचे हुए से रहते थे, वही अब दूसरे घरों से मिलने आते हुए एक-दूसरे के करीब आने लगे। अब ध्रुवी जब कभी नीचे पार्क में जाती, तो उसकी तैयारी कुछ देर पहले से करती- फेस वाॅश से मुंह धोती, होंठों पर लिप ग्लॉस, आंखों में काजल, कानों में लूप्स और बालों को अकसर संवार कर खुला छोड़ दिया करती। निनाद भी महकता-मुस्कराता आता। ‘‘तुमने कभी गोलगप्पे ट्राई किए हैं?’’ ध्रुवी ने एक शाम पूछा, तो निनाद ने ना में सिर हिलाया, ‘‘सुना है बहुत स्पाइसी होते हैं।’’

‘‘चलो, आज खाने चलते हैं- माई ट्रीट,’’ कहते हुए ध्रुवी उसे पास के मार्केट में ले गयी। आंसू पोंछते निनाद ने एक बार भी शिकायत नहीं की कि उसे तीखा खाने की आदत नहीं। ध्रुवी की मनमोहक मुस्कान और उसे इंप्रेस करने के चक्कर में चुपचाप खाता चला गया। किंतु जब अगले दिन वह पार्क में नहीं आ पाया, तब ध्रुवी को पता चला कि तीखा खाने के कारण उसका पेट खराब हो गया। ध्रुवी के मन में निनाद के प्रति उभरी चिंता के साथ-साथ एक तसल्ली भी हुई- उसे विश्वास होने लगा कि निनाद भी उसे पसंद करता है, तभी तो उसकी खुशी के कारण उसने वह भी कर डाला, जो उसके लिए सही नहीं था।

कुछ हफ्तों में श्यामल और निशा की जिंदगी पटरी पर आ गयी। श्यामल की नौकरी लग गयी और निनाद का एडमिशन हो गया। श्यामल को अपनी पसंद का घर भी मिल गया। नवी मुंबई में उनका नया ऑफिस होगा, इसलिए घर भी वहीं लेना उचित रहा। श्यामल व निशा सामान पैक करने आदि में व्यस्त थे कि निनाद आंख बचा कर ध्रुवी से मिलने खिसक गया। पार्क की बेंच पर पास-पास बैठे निनाद ने धीरे से ध्रुवी से कहा, ‘‘सो, आई गेस दिस इस इट।’’

‘‘तुमने सोसाइटी के पीछे वाला गार्डन नहीं देखा ना?’’ ध्रुवी एक बार उसके साथ बाहर जाना चाहती थी। उसे यही सूझा।

आज गार्डन में घूमते हुए दोनों के कदम एक साथ उठने लगे। बिछड़ने का अहसास होने लगा। अभी तो प्रेम कहानी शुरू भी नहीं हुई, अभी से अल्पविराम ! फिर दोनों ना जाने कब मिलेंगे। मुंबई की भागदौड़भरी जिंदगी में किसके पास दूसरे के घर जाने का टाइम है। निनाद का एडमिशन हो जाएगा, वह अपने नए दोस्तों में खो जाएगा। ध्रुवी भी तो इस वर्ष कॉलेज चली जाएगी। अपनी अलग दुनिया खोजने लगेंगे दोनों। शायद ऐसे खयाल दोनों के जहन में चलने लगे, उनके कदमों से कदम मिलाते हुए।

तभी हौले से ध्रुवी ने निनाद की एक उंगली अपनी छोटी उंगली में उलझती महसूस की। बिना नजरें मिलाए वे दोनों सरकते रहे। उंगलियां आपस में खेलने लगीं। अब उनके हाथ एक-दूसरे को नाजुकता से पकड़ चुके थे। यों ही चलते हुए दोनों निनाद के घर पहुंच गए। दरवाजे की घंटी बजाने से पहले निनाद की बांह ने ध्रुवी की कमर टटोल ली। उसे अपने पास घुमाते हुए निनाद ने अपने पतले अधरों को ध्रुवी के रसभरे होंठों पर मृदुलता से रख दिया। इससे पहले कि चुंबन की तपिश अनुभव होती, एक जानी-पहचानी भारी भरकम आवाज ने उन दोनों की तंद्रा चटका दी, ‘‘ध्रुवी...’’ यह आवाज अरुण की थी, जो उसी समय श्यामल के घर कुछ मदद करने आए थे। पिता द्वारा उन्हें ऐसी स्थिति में पकड़े जाने पर दोनों बेहद शर्मिंदा हो गए। आंख मिलाने की हिम्मत नहीं हो पायी। निनाद घर के अंदर तो ध्रुवी अपने घर की ओर भाग गयी। अरुण भी पीछे-पीछे चले।

बस, यह थी उनकी आखिरी मुलाकात ! अरुण के रोबीले सुर ने उन्हें इस कदर चौंका दिया कि जब उनका ट्रक घर से निकला, तो ध्रुवी ने बाय बोलने के लिए अपने घर की बालकनी से भी नहीं झांका।

घर पहुंच कर काफी हंगामा हुआ। जो कुछ अरुण ने देखा, उससे वे अपना आपा खो चुके थे। ‘‘बेहया, बेशर्म लड़की, दूसरे के दरवाजे पर खड़े हो कर नीच हरकत करते तुझे शरम नहीं आयी। क्या यही संस्कार दिए हैं हमने तुझे...’’ वे गरज रहे थे। कमरे के कोने में खड़ी ममता सुबक रही थीं और अपने पल्लू से अपने आंसुओं को पोंछती जा रही थीं। ‘‘मैंने सोचा था कुछ अच्छा सीखेगी उस लड़के से, कुछ ऐसा जो अपने देश की शिक्षा से छूट गया हो, मुझे क्या पता था कि यह सब सीख रही है...’’ काफी देर तक आगबबूला होने के बाद जब अरुण शांत हुए, तो ध्रुवी को पुनः समझाने लगे, ‘‘बेटी, दोस्ती और रिश्तेदारी में फर्क होता है। श्यामल मेरे दोस्त जरूर हैं, पर उनसे कोई रिश्ता जोड़ना संभव नहीं। हमारी जात-बिरादरी अलग है, हमारे संस्कार अलग हैं। वे मांस-मच्छी खाने वाले, जनेऊ ना पहनने वाले लोग हैं और हम ठहरे उच्च कुलीन पंडित। और वैसे भी अभी तेरी उमर ही क्या है। यह सब किशोरावस्था की भटकन है। मैं जानता हूं कि मेरी बेटी सयानी है, मेरी बात का मान रखेगी। जब तू समझदार हो जाएगी तब खुद ही हंसेगी अपनी इस बेवकूफी पर। और मुझे धन्यवाद देगी, तेरा जीवन बर्बाद होने से बचाने के लिए।’’

अरुण बोलते रहे, ध्रुवी सुनती रही। उस उम्र में इसके अलावा कुछ और होना संभव भी कहां था। ‘बेवकूफी’, ‘जिंदगी की बर्बादी’ जैसे भाव उसकी आत्मा को घायल कर रहे थे, किंतु वह चुप थी। कैसे कहती वह अपने जन्मदाता से कि यह किशोरावस्था की खुमारी नहीं, उसका प्यार है ! हां, उसका अंतर्मन जरूर पुकार रहा था, चीख कर कह रहा था कि जिस झूठी शान, इज्जत और मर्यादा की खातिर हम बच्चों को गमों के सागर में झोंका जा रहा है, उस दर्द को हमारे अपने भी महसूस करें। बच्चे अपनों की इज्जत और मर्यादा का ख्याल रखते हुए अपना रिश्ता निभाते हैं, चुप रह जाते हैं, तो बड़ों को भी हमारी भावनाओं की कद्र करते हुए समाज के सम्मुख आना चाहिए। दोनों फिर कभी मिल ना सके। कई महीने और फिर साल बीत गए।

एक आकर्षण जो पनप ना सका... एक टीस जो दिल में रह-रह कर टुहुकती... रोमांस की लहरों के ज्वार-भाटे दिल की गहराइयों में उठते-गिरते रहे। निनाद और ध्रुवी दोनों एक-दूसरे को याद किया करते, पहले प्यार की खुमारी अलग ही होती है। यदि यह केवल आकर्षण होता, तो इतने समय बाद धुंधला पड़ गया होता। ध्रुवी अकसर नोस्टेल्जिया से घिर जाया करती- निनाद की याद, उनकी छुअन, पहले चुंबन का मासूम अहसास ! काश वे दोनों थोड़ा और सावधान होते उस शाम, अब वह केवल यही सोच पाती। कॉलेज के दिनों में उसे जो भी लड़के मिले, सबमें उसने निनाद की छवि ढूंढ़ने का प्रयास किया। लेकिन कोई नहीं मिल पाया।

क्रमशः