Tuesday 04 June 2024 05:19 PM IST : By Dr. Manjari Shukla

बंटी की दादी भाग-2

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मीनू कमरे में गयी तो देखा बंटी तो डॉ. मिश्रा की गोद में आराम से बैठा हुआ था। डॉक्टर ने कहा, ‘‘बंटी ने मुझे सारी बातें बता दी हैं, इसलिए मैंने अमित से कह कर बंटी की दादी को गांव से तुरंत बुलवा लिया है।’’

मीनू की आंखें गुस्से से जल उठीं और वह चिल्ला कर बोली, ‘‘इलाज करने के लिए कहा है आपको, ना कि हमारे पारिवारिक मामलों को सुलझाने के लिए।’’

पर डॉ. मिश्रा पर जैसे इस बात का कोई असर ही नहीं हुआ। वे घृणा से बोले, ‘‘कहने को तो बहुत कुछ मन कर रहा है मेरा, पर तुम मेरी एक बात मान लो, उसके बाद जो मन हो करना। वैसे अमित का फोन रात में आएगा तुम्हारे पास।’’

अमित का गुस्सा मीनू जानती थी। उसे लगा कहीं गुस्से में अमित नौकरी ही छोड़ कर ना आ जाए और उसकी आंखों के सामने ढेर सारी ईएमआई नाच उठी। सकपकाते हुए वह बोली, ‘‘क्या करना है मुझे।’’

‘‘खास कुछ नहीं, बस सुबह बंटी को क्रेश में छोड़ना और उनसे कहना कि तुम उसे लेने रात के 9 बजे जाओगी, क्योंकि तुम्हें शहर से बाहर जाना है ऑफिस के काम से, पर तुम सिर्फ 1 घंटे बाद पहुंचोगी उसे लेने के लिए बिना उन्हें बताए सीधे वहां, जिस कमरे में बंटी रहता है।’’

बात तो बहुत अजीबोगरीब थी, पर मीनू ने सोचा मान लेने में कोई हर्ज नहीं है। डॉ. मिश्रा बोले, ‘‘और कोई भी बात हो, तो मुझे तुरंत फोन करना। मैं उस क्रेश के सामने ही खड़ा रहूंगा।’’ मीनू को डॉ. मिश्रा की बेसिरपैर की बात सुन कर लग रहा था कि वह मेज पर रखे पेपरवेट से उनका सिर फोड़ दे, पर चिढ़ और गुस्से के मारे उसके मुंह से बोल तक नहीं निकल रहे थे। उसने बंटी को गोद में उठाया और घर की ओर चल दी। उस रात बंटी ने उसे बिलकुल तंग नहीं किया और सारी दवा चुपचाप खा ली।

बहुत दिनों बाद आज उसने सिर्फ एक बात पूछी, ‘‘दादी मां कितने बजे तक आ जाएंगी।’’ मीनू का मन हुआ, उसे अच्छे से डांटे पर बुखार की याद आते ही उसने उसे सीने से चिपटा लिया और उसके सिर पर बड़े ही प्यार और दुलार से हाथ फेरने लगी। बंटी को सुलाते हुए उसकी आंख भी कब लग गयी, उसे पता ही नहीं चला।

सुबह उसने सबसे पहले ऑफिस फोन करके छुट्टी ली और फिर नाश्ता वगैरह करके बंटी को क्रेश छोड़ने के लिए निकल गयी। शर्मा मैडम उसे देखते ही खिल उठीं। मीनू ने उनसे नमस्ते करते हुए कहा, ‘‘आज मुझे शहर से बाहर जाना है। किसी भी हालत में मैं रात के 9 बजे से पहले नहीं लौट पाऊंगी। वैसे मैंने बंटी का सारा खाना-पीना रख दिया है।’’

शर्मा मैडम बोलीं, ‘‘यह तो और अच्छी बात है कि बंटी हमारे साथ ज्यादा समय तक रहेगा,’’ अाैर उन्होंने बंटी को अपने पास खींचा तो बंटी ने रोना शुरू कर दिया। ‘‘आप जाइए, थोड़ी ही देर में बिलकुल मस्त हो जाएगा,’’ शर्मा मैडम बंटी को प्यार करते हुए बोलीं।

मीनू ने साेचा डाॅ. मिश्रा लगता है पागल हो गए हैं। पता नहीं हजारों मरीज क्यों उनसे मिलने के लिए मरे जा रहे हैं। इतनी महान और देवी जैसी औरत पर शक कर रहे हैं। यही सब साोचते हुए मीनू ने कार घर की तरफ ना माेड़ते हुए एक पार्क की तरफ मोड़ दी। करीब 1 घंटे बाद डॉ. मिश्रा का फोन आया, ‘‘अब आप बंटी को लेने के लिए जाइए।’’

‘‘जी,’’ कहते हुए मीनू ने फोन काटा और सोचा, ‘मेरी जान के पीछे ही पड़ गए है ये डॉ. मिश्रा।’

मीनू ने डाॅक्टर के कहे अनुसार कार बाहर पार्क की और सीधे क्रेश के अंदर चली गयी। अंदर शर्मा मैडम बैठ कर नर्स और डॉक्टर के साथ चाय पी रही थीं। मीनू ने उन्हें देख कर कहा, ‘‘नमस्ते मैडम, आज शहर के बाहर नहीं जाना पड़ा, तो सोचा बंटी से मिलती चलूं।’’

शर्मा मैडम के साथ-साथ वहां बैठे उन दोनों लोगों को भी जैसे सांप सूंघ गया। शर्मा मैडम हड़बड़ा कर खड़ी हो गयीं और उनके हाथ में पकड़ा हुआ चाय का कप छूट गया।

मीनू ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आप सब मुझे देख कर इतना डर क्यों रहे हैं।’’

तभी बगल के कमरे से नौकरानी की कर्कश चीखती हुई आवाज कानों में पड़ी, ‘‘तेरी मम्मी इतना सज-संवर कर ऑफिस जाती है, जरा सा पॉटी-सूसू नहीं करवा सकती, यहां पर आते ही गंदगी करने लगते हो..’’ और फिर एक चांटे की आवाज के साथ ही उस बच्चे के जोर से रोने की आवाज आयी।

मीनू के तो दिमाग ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया। उसने सोचा कि शायद नौकरानी को पता ही नहीं है कि शर्मा मैडम ये सब सुन रही हैं। वह शर्मा मैडम से उस नौकरानी को निकाल देने की बात करने ही वाली थी कि कमरे से नौकरानी सप्तम सुर में चीखी, ‘‘शर्मा मैडम, आप सुन रहे हो ना... आज इसको शाम तक खाना मत देना। वैसे भी आज मैं अपना टिफिन नहीं लायी हूं।’’

मीनू को तो जैसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। उसने विस्मय से शर्मा मैडम की ओर देखा, जो चश्मा उतार कर रुमाल से अपने माथे का पसीना पोंछ रही थीं।

मीनू का दिल बंटी के बारे में सोच कर जोरों से धड़क रहा था। वह बंटी का नाम ले कर चिल्लाना चाह रही थी, पर शब्द जैसे आवाज का साथ ही नहीं दे रहे थे। वह तेजी से उस कमरे की ओर बढ़ी, पर वहां की हालत देख कर उसका कलेजा मुंह को आ गया। जिस बच्चे को आया ने मारा था वह नंगे बदन एक कोने में दुबका सिसकियां भर रहा था। कुछ छोटे बच्चे जमीन पर चुपचाप बैठे हुए थे मानो वे इसी तरह नंगी फर्श पर बैठने के अभ्यस्त हों। कुछ बच्चे खिलौनों की अलमारी के कांच के पास खड़े ढेर सारे खिलौनों को हसरतभरी निगाह से देख रहे थे।

मीनू की आंखों के सामने में वे रंगबिरंगे नरम, मुलायम गद्दे और तकिए नाच गए, जो शर्मा मैडम ने बच्चों को सुलाने के लिए दिखाए थे। तभी पीछे से शर्मा मैडम आ गयीं और खींसे निपोरती हुई बोलीं, ‘‘अरे, वो मैं... मैं क्या बताऊं आपको... बस खिलौनों की अलमारी का... ताला खोलने ही जा रही थे और... और...’’

तभी मीनू ने बंटी को देखने के लिए दूसरे कमरे में झांका। बंटी की हालत देख कर मीनू का कलेजा मुंह को आ गया। बंटी के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। उसके गोरे गालों पर उंगलियों के निशान साफ नजर आ रहे थे। उसने डर के मारे टट्टी और पेशाब कर दी थी, जिसमें लथपथ बैठा हुआ वह हिलक-हिलक कर रो रहा था। उसके हाथ पैर भी उन्होंने रस्सी से बांधे हए थे।

मीनू के आगे जैसे कमरा घूमने लगा और वह धड़ाम से वहीं बैठ गयी। बंटी उसे देख कर चीत्कार कर उठा और अपने नन्हे-नन्हे हाथ उसकी ओर फैला कर सरकने लगा। पूरा कमरा ‘मां-मां’ की आवाजों से गूंज रहा था, पर मीनू के हाथ इस बुरी तरह से कांप रहे थे कि वह बंटी की रस्सी भी नहीं खोल पा रही थी। तभी उस कमरे में डाॅ. मिश्रा एक इंस्पेक्टर और 5-6 सिपाहियों के साथ आए, जिन्होंने शर्मा मैडम और उनके स्टाफ को पकड़ रखा था। डॉ. मिश्रा ने तुरंत रस्सी खोलते हुए बंटी को गले लगा लिया। बंटी लगातार रोए जा रहा था।

इंस्पेक्टर बोला, ‘‘आपको डाॅ. मिश्रा का शुक्रगुजार हाेना चाहिए, जिन्होंने आपके बच्चे के साथ यहां रह रहे कई मासूमों की जिंदगी बचा ली।’’

डॉ. मिश्रा गुस्से से बोले, ‘‘बंटी ने कई बार आपको बताने की कोशिश की, पर आपने उसे मारपीट कर जबर्दस्ती यहां भेज दिया। कल जब मैंने उसकी दादी को वापस लाने का आश्वासन दिया, तब उसने मुझे यहां की आपकी देवी समान शर्मा मैडम की करतूतों के बारे में बताया।’’

तभी इंस्पेक्टर बोला, ‘‘जल्दी से सभी बच्चों के पेरेंट्स को फोन करके यहां बुलाओ, आखिर उन्हें भी तो पता चले कि बिना जानेबूझे अपने बच्चों को दूसरे हाथों में सौंप देने का क्या हश्र होता है।’’

मीनू को लगा, उसकी आंखों के सामने कमरा तेजी से घूम रहा है। उसने जोरों से आंखें बंद कर लीं और पागलों की तरह चीख उठी, ‘‘मेरे लालच ने आज मुझे यह दिन दिखाया। मां कहलाने के लायक भी नहीं हूं मैं,’’ और यह कहते हुए वह फूट-फूट कर रोने लगी और बंटी को डाॅक्टर की गोद से ले कर पागलों की तरह चूमने लगी।

बंटी मीनू के गले में दोनों बांहें डाले निढाल पड़ा हुआ था। रो-रो कर अब वह बुरी तरह थक चुका था और रह-रह कर सिसकियां ले रहा था। तभी मीनू की नजर बिस्तर के किनारे रखे मिर्च पाउडर से भरे कटोरे पर पड़ी।

बंटी ने शर्मा मैडम की तरफ डरते हुए देखा और धीरे से उसके कान में बोला, ‘‘मैं जब बिस्तर पर सूसू कर देता था, तो वह इसको मेरे मुंह में डालती थी।’’ मीनू फफक-फफक कर रोने लगी और शर्मा मैडम से बोली, ‘‘सब मेरी गलती है। ये सारी गलती मेरी है और अब मैं इसे सुधारना चाहती हूं,’’ और जब तक कोई समझ पाता, उसने बिजली की गति से जा कर वह कटोरा उठाया और शर्मा मैडम के मुंह पर फेंक दिया।

चीखने-चिल्लाने की आवाजों से जैसे उसके दिल के फफोलों पर ठंडे पानी के छींटे से पड़ रहे थे...अब वह चल दी बंटी की दादी से माफी मांग कर उन्हें हमेशा के लिए अपने साथ रखने के लिए।