“कई सालों से छोटा-मोटा उपहार दे कर काम चला रहे हो भैया ! आखिर सोने के झुमके कब मिलेंगे?” सुनीता ने भाई धीरज को राखी बांधते हुए व्यंग्य बाण छोड़ ही दिया।
“अरे सुनीता, अभी हाथ जरा तंग है। मौका मिलते ही दे दूंगा,” भैया धीरज मुस्कराए।
“क्या भैया ! हर बार यही कह कर टाल देते हो। आपके घर आने में ही अच्छा-खासा किराया-भाड़ा लग जाता है। कुछ तो बहन का खयाल किया करो!” सुनीता का मुंह फूल गया था।
सुनीता जब भी भाई धीरज और भाभी पुष्पा के घर आती, एक छोटा-मोटा सा भूचाल ले आती। धीरज की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी । पुष्पा और बच्चे सब अच्छे से समझते थे, पर सुनीता की फरमाइशें आती रहती थीं। धीरज की बेटी काश्वी की कुछ महीनों पहले ही नौकरी लगी थी और बेटा किशुंक बैंक से ऋण ले कर हॉस्टल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था।
“सोने के झुमके तो जब मिलेंगे तब मिलेंगे, पर भाभी मेहमानों की आवभगत तो ढंग से कर दिया करो। कुछ दिन पहले जब ये अपने दोस्त को ले कर खाने पर आए तो आपने पूरी, सब्जी और हलवे में ही निपटा दिया,” सुनीता ने मुंह बनाया।
“वो दीदी, जीजा जी जल्दी में थे सो इतना ही बना पायी,” पुष्पा ने शांत भाव से कहा।
“तो भाभी ! काश्वी से मदद ले लेतीं, वो घर पर ही थी ना ! उसके हाथों में क्या मेहंदी लगी थी !”
सुनीता के पति का ऑफिस धीरज के घर के पास ही पड़ता था। कई बार सुनीता जब लंच बॉक्स नहीं तैयार कर पाती थी तो वो लंच टाइम में अपने किसी सहकर्मी को ले कर निसंकोच साले धीरज के घर चले आते थे। उन्हें बाहर का खाना पसंद नहीं था। कुछ दिन पहले भी ऐसा ही हुआ था और पुष्पा ने फटाफट खाना बनाया था, क्योंकि उन्हें जल्दी आॉफिस वापस पहुंचना था।
“और किंशुक तुम ! जब मेरा मोनू अपने दोस्त के साथ आया था तो तुमने उसे सिर्फ चाय-बिस्किट ही दिया, एक-दो तरह के नमकीन ही रख देते,” सुनीता का अगला निशाना किंशुक था।
“बुआ, उस समय मुझे जरूरी काम से निकलना था, इसलिए इतना ही कर पाया। घर पर कोई था नहीं और मोनू के आने के बारे में पहले से पता नहीं था।”
“हां तो अपने मामा के घर आने के लिए मोनू को पहले से सूचना देनी पड़ेगी क्या ? और भाभी ! बच्चों को थोड़े तौर-तरीके भी सिखाइए, सिर्फ पढ़ाई से कुछ नहीं होता है।”
पुष्पा ने इशारों से किंशुक को वहां से जाने को कह दिया। सुनीता के पति वाला गुण उसके बेटे में भी था, वह भी पापा की तरह बिना बताए दोस्तों को ले कर मामा के घर आ जाता था। अचानक आए मेहमानों के स्वागत में कोई कसर रह जाने पर पति या पुत्र को भले ही कोई आपत्ति ना हो, पर सुनीता आतिथ्य का सूक्ष्म निरीक्षण कर कहीं भी कोई कमी मिलने पर भाई का पूरा घर सिर पर उठा लेती थी।
समय बीतने के साथ ना तो सुनीता के रंग-ढंग में कोई परिवर्तन आया और ना ही काश्वी की चिढ़ में। एक वर्ष बाद काश्वी का विवाह ऋषभ से हो गया। ऋषभ के परिवार में उसकी मम्मी अनीता और बड़ा भाई रजत था, ऋषभ के पिता का स्वर्गवास हो चुका था। ऋषभ की छोटी बहन कनिका विवाह के बाद उसी शहर में रहती थी। ऋषभ के बड़े भाई रजत का अपनी पत्नी से मनमुटाव चल रहा था, वह देवर ऋषभ की शादी में भी नहीं आयी थी।
ऋषभ और सास अनीता दोनों ही सुलझे हुए विचारों के थे। काश्वी सोच रही थी कि आखिर उसकी जेठानी घर छोड़ कर क्यों गयी होंगी। ऋषभ और मम्मी जी ने उसे थोड़ी-बहुत बातें संक्षेप में बतायी थीं।
काश्वी को ससुराल में आए एक महीना भी नहीं हुआ था कि एक दिन उसकी सास यानी मम्मी जी ने बताया कि ऋषभ की रंजना बुआ अगले दिन एक सप्ताह के लिए रहने आ रही हैं। शादी में उनसे बहुत ज्यादा बात करने का समय नहीं मिला था। बुआ शब्द सुनते ही काश्वी एकदम चौकन्नी हो गयी। बचपन से ही सुनीता बुआ का आगमन एक छोटा-मोटा तूफान ले कर आता था, जाने ये रंजना बुआ कैसी होंगी।
“मम्मी जी, क्या मुझे ऑफिस से छुट्टी लेनी होगी? कल से पूरे हफ्ते जो स्पेशल डिशेज बनानी हो, उनके बारे में प्लानिंग कर लेते हैं। आप मुझे रंजना बुआ की पसंद बता दीजिए, मैं रसोई का सामान मंगवा लूंगी।”
“काश्वी बेटा, इतना हड़बड़ा क्यों रही हो? छुट्टी लेने की कोई जरूरत नहीं है, तुम अपना रूटीन फॉलो करो। रंजना बुआ बहुत ही सादा खाना खाती हैं। जैसे तुम्हारे आॉफिस जाने से पहले हम दोनों मिल कर नाश्ता और खाना बना लेते हैं, वैसे ही करेंगे। कुछ और काम होगा तो मैं मेड से करवा लूंगी।”
मम्मी जी की बातें सुन कर भी काश्वी आश्वस्त नहीं हो पा रही थी। अगले दिन सुबह रंजना बुआ आ गयी थीं। रंजना बुआ ने तो उपहारों की झड़ी लगा दी थी। कपड़े, मिठाइयां और मेवे देख कर काश्वी की आंखें फटी की फटी रह गयीं, क्या कोई बुआ इतने उपहार ले कर आती हैं। सुनीता बुआ को तो उसने हमेशा मांगते या शिकायत करते ही देखा था, कीमती उपहारों से भी बढ़ कर था रंजना बुआ का सरल और सहज व्यवहार !
रंजना बुआ को आए हुए दो दिन हो गए थे। काश्वी ने देखा कि सुबह की चाय से रात के खाने तक जो कुछ भी उनके सामने आता, रंजना बुआ दिल खोल कर हर चीज की तारीफ करती थीं।
“काश्वी, तुम्हें खाने में क्या पसंद है, आज मैं तुम्हारी पसंद का खाना बनाऊंगी।”
“काश्वी, हमें गरम रोटियां नहीं खानी हैं। तुम रोटियां बना कर आ जाओ, तभी सब साथ में खाना खाएंगे।”
काश्वी को रंजना बुआ की बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। क्या ससुराल के रिश्तेदार भी इतने आत्मीय हो सकते हैं। इतना लाड़ तो कभी उसकी सुनीता बुआ ने भी नहीं किया था, बीच-बीच में रंजना बुआ फूफा जी और अपनी बेटी को फोन करके काश्वी की प्रशंसा के पुल बांधती रहती थीं। रंजना बुआ के वापस घर जाने तक काश्वी उनके वात्सल्य की वर्षा में ऊपर से नीचे तक सराबोर हो गयी थी।
रंजना बुआ को गए अभी 4 दिन ही हुए थे कि कनिका आ गयी, उसका पारा चढ़ा हुआ था।
“क्या मम्मी ! मेरी सास तो एकदम अड़ियल हैं। कितना बोला कि मेरी बुआ आ रही हैं और मुझे उनसे मिलने जाना है, पर उन्हें तो खुद ही घूमने जाना था। मुझे यहां आने से मना कर दिया,” कनिका झुंझलायी।
“घूमने नहीं जाना था, तुम्हारे देवर के लिए लड़की देखने जाना था। उनका कार्यक्रम तो पहले से ही तय था, उनका काम तुम्हारे यहां आने से ज्यादा जरूरी था।”
“मम्मी, आप तो हमेशा मेरी सास का पक्ष लेती रहती हैं। इसके पहले भी जब रंजना बुआ आयी थीं, तब भी मैं नहीं आ पायी थी। “
“तब तुम्हारी ननद को डेंगू हो गया था और वह काफी कमजोर हो गयी थी। कई लोग उसे देखने भी आ रहे थे, ऐसे में तुम्हारा सिर्फ बुआ के साथ समय बिताने के लिए आना उचित नहीं था।”
“अब इसमें कनिका की भी क्या गलती है, रंजना बुआ हैं ही इतनी प्यारी !” काश्वी मन ही मन मुस्करा रही थी। घर में कुछ भी घटित हो, पर जेठ रजत भैया हमेशा चुप्पी साधे रहते थे। काश्वी को उनकी समस्या के बारे में ज्यादा पता नहीं था, इसलिए उनके बारे में कोई राय बनाना मुश्किल था।
आजकल काश्वी के ऑफिस में काफी काम था। उसे अपनी सहकर्मी श्रुति के साथ मिल कर कुछ काम खत्म करना था, पर श्रुति 2-3 दिनों से काम पर अपना पूरा ध्यान नहीं दे पा रही थी। एक लड़की श्रुति से मिलने आती थी, श्रुति उसके साथ ऑफिस के पास के किसी पार्क या रेस्टोरेंट में चली जाती थी। श्रुति से पूछने पर पता चला कि वह लड़की अलका उसकी पुरानी सहेली है और उसके व्यक्तिगत जीवन में काफी समस्याएं चल रही हैं। पास के शहर से यहां अपने किसी रिश्तेदार के घर आयी है। अलका को दिल्ली में नयी नौकरी शुरू करनी है।
अलका को जिस जगह पर दिल्ली में रहना था, वहां पर श्रुति दो साल पीजी में रह कर नौकरी कर चुकी थी। अलका को अभी तक दिल्ली में उस जगह पर बढ़िया पीजी मिल नहीं पाया था, इसलिए उसको श्रुति से कुछ ना कुछ जानकारी चाहिए होती थी।
आखिरकार अलका को एक अच्छा पीजी मिल ही गया था ।
“चलो अलका को पीजी मिल गया, अगले हफ्ते वह वहां चली जाएगी और मेरा काम खत्म हुआ। अलका की मम्मी उसके दिल्ली में अकेले रहने को लेकर काफी तनाव में थी। काश्वी, अब तुम भी मेरा एक काम कर दो। तुम इसी शहर की हो, मेरे लिए एक बढ़िया सी गिटार की क्लास ढूंढ़ दो। मुझे वीकेंड पर गिटार सीखना है।”
ऑफिस का जरूरी काम खत्म होते ही काश्वी को मां और पापा की याद आने लगी। एक ही शहर में रहते हुए भी वह कितने दिनों तक उनसे मिल नहीं पाती थी। दो दिन की छुट्टी ले कर उसने मायके जाने का कार्यक्रम बनाया। सरप्राइज देने के इरादे से वह जब वहां पहुंची तो घर पर ताला बंद था। आज सुबह ही तो उसने पापा से फोन पर बात की थी और घुमा-फिरा कर पूछ भी लिया था कि मां और पापा घर पर ही हैं। अब वे अचानक कहां चले गए।
“अरे बिन्नी ! तुम कब आयीं? आओ मेरे घर में आराम से बैठो। मां-पापा आ जाएंगे,” पड़ोस वाली आंटी ने उसे बुला लिया था।
आंटी के घर पर बैठे आधा घंटा ही हुआ था कि बाहर मां-पापा के आने की हलचल सुनायी दी। मां-पापा काश्वी को देख कर बहुत खुश हुए। मां ने जल्दी से प्रेशर कुकर में खिचड़ी बनने को रख दी।
“क्या हुआ मां ! कहां से आ रही हैं ?”
“अरे, तुम्हारी सुनीता बुआ ने अचानक फोन करके हमें खाने पर बुला लिया, जिद कर रही थीं कि छोले-भटूरे खाने आ जाओ। हम दोनों वहां पहुंचे ही थे कि बुआ की ऊपर की मंजिल वाले पड़ोसी की मेड ने गलती से उनकी बालकनी में पानी गिरा दिया। उसके बाद सुनीता बुआ ने ऐसी घमासान लड़ाई शुरू की, जो थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। छोले उबले पड़े हुए थे, मैदा गुंथा हुआ था। हमने कई बार सुनीता को शांत करने की कोशिश की, पर उसने हमारी एक ना सुनी। आखिरकार हम दोनों ने वहां से वापस आने में ही अपनी भलाई समझी,” मां पूरी बात एक सांस में ही बोल गयी थीं।
अगले दिन दोपहर में काश्वी मां के साथ बाजार निकली। यह बाजार उसे बहुत पसंद था, उसका ससुराल और आॉफिस शहर के दूसरे छोर पर होने के कारण यहां शॉपिंग करने वह बहुत दिनों बाद आयी थी। बाजार पहुंचते ही मां की सहेली का फोन आ गया।
“मुझे आंटी से कुछ जरूरी बात करनी है, मैं यहां रेस्टोरेंट में कॉफी पीते हुए बात करती हूं। बात खत्म होते ही आ जाऊंगी,” मां ने काश्वी को भेज दिया था।
बाजार में घूमते हुए काश्वी की नजर अचानक रंजना बुआ पर पड़ी। रंजना बुआ श्रुति की सहेली अलका के साथ थीं। काश्वी रंजना बुआ की तरफ बढ़ने लगी। तब तक अलका कपड़े देखते-देखते दुकान में अंदर की तरफ चली गयी थी, उसने काश्वी को नहीं देखा। काश्वी ने रंजना बुआ को आवाज दी तो वे ठिठक गयीं। काश्वी को देखते ही रंजना बुआ के चेहरे का रंग उड़ गया।
“अरे बिन्नी, तुम !”
रंजना बुआ को काश्वी का यह नाम मालूम जरूर था, पर उन्होंने उसे कभी बिन्नी कह कर नहीं बुलाया था। रंजना बुआ का सफेद पड़ता चेहरा और उसे बिन्नी कह कर संबोधित करना काश्वी को थोड़ा अजीब लगा ।
उधर अलका लेटेस्ट डिजाइन के कपड़े देखने में व्यस्त थी। ना जाने क्यों रंजना बुआ काश्वी से पीछा छुड़ाने के मूड में थीं, तब तक मां का फोन भी आ गया। रंजना बुआ के पैर छू कर काश्वी ने उनसे विदा ली तो बुआ की जान में जान आ गयी।
काश्वी ने बाजार में अलका के हाथ पर ‘तितली’ का टैटू देखा था, काश्वी को ऐसा लगा कि वह ‘तितली के टैटू’ वाला हाथ उसने पहले भी कहीं देखा है। एक बार ऑफिस में उसने अलका को करीब से देखा था, पर शायद उस दिन उसने पूरी बाजू के कपड़े पहने थे, इसलिए टैटू दिखा नहीं था। दिमाग पर बहुत जोर डालने पर भी काश्वी को यह याद नहीं आ रहा था कि यह टैटू उसने कहां देखा था।
मां-पापा के साथ काश्वी का समय तो बहुत अच्छा बीता, पर मन में रंजना बुआ को ले कर सवाल उठते रहे।
काश्वी ने ऑफिस आते ही श्रुति को फोन में रंजना बुआ की तसवीर दिखायी तो श्रुति ने बताया कि वे अलका की आंटी हैं और उन्होंने ही अलका को दिल्ली में नौकरी दिलवाने में मदद की है। श्रुति उनसे एक बार मिली है।
“श्रुति, अलका की आंटी ऋषभ की सगी बुआ हैं।”
“अच्छा, असल में अलका मेरी कजिन की फ्रेंड है। अपनी कजिन के कहने पर मैंने अलका की मदद की। चलो अच्छा है कि अलका की आंटी तुम्हारी रिश्तेदार हैं, आगे से अलका का कोई काम होगा तो तुम्हीं कर देना। अरे हां काम से याद आया काश्वी, तुमने मेरे लिए अपने शहर में कोई गिटार क्लासेज की जानकारी जुटायी या नहीं !”
श्रुति को गिटार क्लासेज ढूंढ़ने का आश्वासन दे कर काश्वी घर पहुंची तो मम्मी जी कनिका को फोन पर कुछ समझा रही थीं, पर कनिका शांत नहीं हो रही थी। काफी देर बाद मम्मी जी की बातें खत्म हुईं।
“क्या हुआ मम्मी जी?”
“अरे कनिका की नादानियां और क्या ! कनिका निखिल से नयी कार खरीदने की जिद कर रही है और निखिल कह रहा है कि अभी पैसे नहीं हैं। कनिका की सास ने कह दिया कि कनिका ना तो घर की जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेती है और ना चादर देख कर पांव पसारती है। कनिका की सास गलत नहीं हैं, कनिका के ससुराल में जिम्मेदारियां भी हैं और आर्थिक परेशानियां भी। कितना मना किया था कनिका को कि वह निखिल से विवाह ना करे, उसमें अभी परिपक्वता नहीं है। उस परिवार में सामंजस्य नहीं बिठा पाएगी, पर कनिका ने मेरी एक ना सुनी।”
“कनिका और निखिल की लव मैरिज हुई थी मम्मी जी ?”
“हां दोनों कॉलेज में साथ पढ़ते थे और गिटार क्लासेज में भी साथ थे।”
“ओह!”
काश्वी का मन हुआ कि रंजना बुआ से बाजार में हुई मुलाकात के बारे में मम्मी जी को बताए, पर फिर वह रुक गयी। वैसे भी बताने को कुछ खास नहीं था, रंजना बुआ ने कुछ ऐसा कहा भी नहीं था। अभी उसकी शादी को थोड़ा ही समय हुआ था, इस तरह यों रंजना बुआ के अजीब व्यवहार की विवेचना करना अच्छा नहीं लगता। वैसे भी थोड़ी देर में मम्मी जी को किसी कीर्तन में जाना था। काश्वी ने मम्मी जी से गिटार सिखाने वाले संगीत संस्थान का पता ले लिया था।
अगले दिन काश्वी ने श्रुति को संस्थान का पता दे दिया। श्रुति ने काश्वी से वह संगीत संस्थान भी देख कर आने का अनुरोध किया। काश्वी ऑफिस में काम खत्म करके संस्थान पहुंच गयी। वहां की प्रबंधक सुनंदा से काश्वी की मुलाकात हुई। सुनंदा कनिका को अच्छे से जानती थी।
“आप कनिका की छोटी भाभी हैं ? कनिका ने तो मायके में भी कोहराम मचा रखा होगा। उस पर से कनिका की बुआ के तो कहने ही क्या ! ऐसी बुआ से तो भगवान बचाए,” सुनंदा के चेहरे पर व्यंग्य छलक रहा था।
काश्वी के मन में संदेह के बीज को सुनंदा ने प्रस्फुटित कर दिया था। आखिर सुनंदा ने ऐसा क्यों कहा? उस दिन बाजार में काश्वी को देख कर रंजना बुआ घबरा क्यों गयी थीं? वह ‘तितली के टैटू’ वाला हाथ काश्वी ने कहां देखा था?
क्रमश: