Friday 08 March 2024 04:32 PM IST : By Anshu singh

वूमंस डे स्पेशल : गायिका और कंपोजर वसुंधरा दास ने अपने संगीत से कैसे जोड़ा दिलों को...

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जब परिवार में ही संगीत रचा-बसा हो, तो भला बाल मन उससे कैसे न प्रभावित हो। छह वर्ष की छोटी-सी उम्र में वसुंधरा ने अपनी दादी से भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था। उनकी दादी बेहतरीन शास्त्रीय गायिका एवं गुरु थीं। लेकिन उम्र कम थी और सीखने के लिए जरूरी अनुशासन की कमी थी तो मां ने अन्य गुरुओं के पास सीखने को भेजा। बताती हैं वसुंधरा, ‘‘मैंने सुरेंद्र जी, ललिता जी समेत अलग-अलग गुरुओं से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। फिर पं. परमेश्वर हेगड़े जी के पास पहुंची, जो बासवराज राजगुरु के शिष्य हैं। उन्हें लगता था कि मैं खयाल गायकी में आगे बढ़ूंगी, लेकिन मेरी दिलचस्पी मल्टीपल स्टाइल सिंगिंग में थी। गुरु जी ने मेरी मदद की। क्लासिकल सीखने से ही मेरे गायन में विविधता आयी।’’

संगीत एवं गणित का गठजोड़

इकोनॉमिक्स, मैथ्स एवं स्टैटिस्टिक्स में ग्रेजुएशन करने के बावजूद संगीत में ही कैरिअर बनाने का निर्णय लिया वसुंधरा ने। कहती हैं, ‘‘संगीत में मौके तलाशने के लिए पेरेंट्स से एक वर्ष का समय मांगा था, जो कभी खत्म नहीं हुआ। मैं गणित को संगीत का ही विस्तारित रूप मानती हूं। जब-जब रिद्म की गिनती करती हूं, मैथ्स की मदद लेती हूं। मस्तिष्क का दाहिना हिस्सा क्रिएटिव चीजें कर रहा होता है, बायां हिस्सा गिनती। संगीत मेरी रगों में बहता है। उसने मुझे बेहतर इंसान बनाया है।’’

‘ड्रम जैम’ से बदला लोगों का जीवन

बेंगलुरू स्थित ‘ड्रम जैम’ संस्था के माध्यम से वसुंधरा कॉरपोरेट ट्रेनिंग, टीम बिल्डिंग के अलावा कम्युनिटी स्तर पर स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों में कैंसर, डिमेंशिया, पार्किंसन के मरीजों और स्पेशल नीड्स के बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम करती है। वह बताती हैं, ‘‘ड्रम सर्किल सत्र में हम बताते हैं कि कैसे संगीत के जरिए भाषा एवं धर्म की सीमाओं से परे जाकर सही रूप में इंसान बना जा सकता है। लगभग 10 साल तक मैंने अकेले बेंगलुरु में निशुल्क कम्युनिटी सत्र किए। आज यह श्रीलंका, दुबई, थाइलैंड, सिंगापुर जैसे देशों में भी आयोजित हो रहा है, जिससे लाखों लोग लाभान्वित हो रहे हैं।’’

विविध मुल्कों के संगीत को किया आत्मसात

बेंगलुरु में पली-बढ़ी वसुंधरा कॉलेज के कॉयर ग्रुप और म्यूजिक बैंड का हिस्सा रहीं। उन्होंने वेस्टर्न, अफ्रीकी, लैटिन अमेरिकी, अरेबियन, पूर्वी यूरोप, स्पैनिश...हर तरह का म्यूजिक सुना-समझा। फ्लेमेंको से विशेष लगाव रहा। कहती हैं वसुंधरा, ‘‘पहले न तो लाइव स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स थे, न वर्ल्ड स्टेशंस, केवल सीडी से संगीत सुनती थी। यात्राओं के दौरान संगीतकारों व गायकों के संपर्क में यी। अजरबैजान की जैज सिंगर एवं पियानिस्ट अजीजा मुस्तफा की गायकी से मैं बहुत प्रभावित रही हूं।’’

जीवनसाथी बने म्यूजिक पार्टनर भी

बेंगलुरु में वसुंधरा का म्यूजिक स्टूडियो ‘एक्टिव’ है। कहती हैं वह, ‘‘मैं और मेरे पति रॉबर्ट हमेशा स्वतंत्र रूप से प्रोजेक्ट्स पर काम करना चाहते थे। हम जीवनसाथी होने के अलावा एक अच्छी टीम भी हैं। दोनों एक-दूसरे की भावनाओं, जरूरतों को बेहतर समझते हैं।’’

म्यूजिक इंडस्ट्री में महिलाओं के साथ भेदभाव पर हो मंथन

भारतीय म्यूजिक इंडस्ट्री में भी जेंडर इक्वैलिटी की जरूरत है। खासतौर पर मेहनताने के मुद्दे पर। सोचें, पुरुष सिंगर के मुकाबले महिला सिंगर कितने समय तक गा पाती हैं? 40, 50, 60 की उम्र पार करते ही मौके कम हो जाते हैं। म्यूजिक इंडस्ट्री को इस समस्या का समाधान निकालना होगा। जरूरी ये भी है कि महिलाएं अपने विचारों को अभिव्यक्त करें, उन पर अडिग रहें। दूसरों को भी ऐसा करने का मौका एवं स्पेस दें।