Wednesday 20 October 2021 03:29 PM IST : By Ruby Mohanty

मणिपुर की मदर्स मार्केट, जिसे सिर्फ महिलाएं चलाती हैं

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सोच कर बहुत ताज्जुब होता है क्या दुनिया में ऐसा भी कोई बाजार है, जहां सिर्फ महिलाएं ही दुकान की मालकिन हैं और दुकान चलाती हैं? जी हां, म्यांमार सीमा से सिर्फ 65 किलोमीटर दूर एशिया का अदभुत मार्केट है- इमा कैथल। इन दुकानों की बहुत सारी खासियतें हैं। हर महिला दुकानदार को यहां दुकान चलाने के लिए लाइसेंस मिलता है। बड़ी उम्र तक काम करने के बाद वह अपनी शादीशुदा बेटी को दुकान सौंप देती है। इस मार्केट में दुकान लगाने की इजाजत सिर्फ शादीशुदा महिलाओं को ही है। दुकानों के ये स्टाल यहां एक पीढ़ी से दूसरी को दिए जाते हैं और यह सम्मान की बात मानी जाती है। यहां महिलाएं काफी दूरदराज के इलाकों से अपनी दुकान चलाने के लिए आती हैं। यहां हर तरह की क्वॉिलटी की दुकानें हैं। इन दुकानों पर काम करना महिलाओं के लिए गर्व की बात है। सिर्फ निचले तबके की महिलाएं ही नहीं, बल्कि उच्च मध्यमवर्गीय महिलाएं भी यहां अपनी दुकानें चलाती हैं। कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जो कुछ घंटों के लिए अपनी दुकान खोलती हैं। टीचर, कंप्यूटर एक्सर्ट, सोशल वर्क या दूसरी नौकरियां करने वाली स्त्रियां भी यहां काम करती हैं। गुवाहाटी में एक गैर सरकारी संस्थान में काम कर रही रेहाना रेहमान के मुतािबक, उन्हें काम के सिलसिले में हर 15 दिन में मणिपुर जाने का मौका मिलता है। वे कहती हैं, ‘‘यह दुनिया भर के लोगों के लिए वाकई सुखद आश्चर्य है कि यहां सिर्फ महिलाएं ही काम करती हैं। यहां सब तरह का सामान मिलता है। खाने-पीने, पहनने-अोढ़ने, पारंपरिक सजावट की चीजें और गहनों की बहुत वेराइटी यहां देखने का मिलती है। पर पुरुष यहां काम नहीं करते। यहां शॉपिंग करना अच्छा लगता है।’’

महिलाओं की ही मार्केट क्यों 

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यह मार्केट 500 साल पुराना इतिहास अपने साथ समेटे हुए है। जब इंफाल में मुद्राओं का चलन नहीं होता था तब भी यहां की महिलाएं सामान एक-दूसरे से आदान-प्रदान करती थीं। मणिपुरी भाषा में ‘नुपी या इमा’ मां को कहते हैं। कैथल मतलब बाजार है। यानी इसे ‘मां का बाजार’ माना जाता है। वैसे सही मायने में यह कोई नहीं बता सकता कि इमा कैथल असल में कबसे शुरू हुआ, लेिकन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह मार्केट 16वीं सदी से मौजूद है। मणिपुरी इतिहास के मुतािबक ‘लालुप काबा’ एक पुराना सिस्टम है, जिसे मणिपुर के लोग आज भी मानते हैं। यानी पुरुष घर से दूर जा कर लड़ाई करेंगे, मछली पकड़ेंगे, बाहर जा कर काम करेंगे और महिलाएं खेतों में काम करेंगी, मछलियां सुखाएंगी, मोितयों के गहने बनाएंगी, कपड़ा बुनेंगी, फूल गूंथेंगी, जड़ी-बूटियों व ताजे मसाले कूटेंगी और फिर इन्हें ले जा कर इमा कैथल में बेचेंगी। इसी तरह तयशुदा नियम से घर चलते थे। आज भी हर हफ्ते महिलाएं ग्रुप बना कर अपना सामान बेचने के लिए मार्केट जाती हैं। मुनाफा होता है और इस कमाई से घर चलता है। 

मजबूत आर्थिक स्थिति 

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धीरे-धीरे यह 50 औरतों के ग्रुप से 100 और फिर 100 से 500 तक हो गया है। सालों तक इस तरह रोजगार की बढ़त हुई और अब 4000 से अधिक दुकानें इमा कैथल में हैं। कई पुरुष मछली पकड़ने का पारंपरिक काम करते हैं और बड़ी संख्या में पुरुष मणिपुर के बाहर भी काम करने जा चुके हैं। इसीलिए महिलाओं के लिए और भी जरूरी हो गया है कि वे दुकानों से अपनी कमाई के लिए पुख्ता काम करें। वैसे 2003 में लोकल गवर्नमेंट ने मार्केट को शॉिपंग मॉल में बदलना चाहा, लेकिन महिलाओं के विरोध की वजह से सफल नहीं हुआ। यहां की महिला यूनियन का मानना है कि अगर हमें किसी बात विरोध करना होता है, तो हम सभी औरतें अपनी दुकान बंद कर देती हैं, एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर ह्यूमन चेन बना लेती हैं, रोड ब्लॉक हो जाते हैं। यह हमारा विरोध करना तरीका होता है। 

टूरिज्म को बढ़ावा 

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इमा कैथल मार्केट एसोसिएशन की सीनियर मेंबर टोंबी देवी के मुतािबक, ‘‘मदर्स मार्केट मणिपुर टूरिज्म का बहुत बड़ा हिस्सा बना चुका है। इमा कैथल कई सालों से लगातार बढ़ रहा है और यहां अब कई लोग आते हैं, विदेशी सैलानी आते हैं, जो मणिपुर हैंडीक्राफ्ट, स्टाइलिश बैग और कपड़ों से ले कर मसालों तक बहुत कुछ खरीद कर ले जाते हैं। यहां की सबसे तीखी मिर्च ‘मोरोक’ पूरी दुनिया में मशहूर है और वह जगह-जगह एक्सपोर्ट की जाती है।’’ यहां महिलाओं ने अपनी यूनियन बनायी हुई है, जो पूरे मार्केट को चलाती है। यहां महिला दुकानदारों के लिए क्रेडिट सिस्टम भी है। महिलाएं सामान पहले ले कर बाद में उसकी रकम यूनियन को चुका सकती हैं। ट्रेडिशनल ड्रेस सैरोंग और शॉल पहने मणिपुरी महिलाएं हर सुबह दुकानों में काम संभालती बहुत खूबसूरत दिखती हैं। 

मजेदार अनुभव 

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इमा मार्केट के 2 हिस्से हैं। एक भाग में मछली, मसाले, चावल और सब्जियां मिलती हैं। दूसरे भाग से कपड़े, गहने व अन्य वस्तुएं खरीद सकते हैं। हो सकता है मार्केट में घूमते-घूमते यहां के लोकल फूड का मजा लेने का मन करेगा। चेहरे पर मुस्कान बिखेरती स्त्रियां मछली-भात भी बेचती नजर आएंगी। टूरिस्ट को अगर शॉपिंग करते-करते भूख लग जाए, तो मछली-भात का लुत्फ भी ले सकते हैं। मार्केट के पहले हिस्से में लाइव किचन वाली छोटी-छोटी दुकानें हैं। यहां महिलाएं ग्राहक को उसके मन मुताबिक महकता मछली-भात परोसती हैं। दूसरी मार्केट में हाथ के बने कपड़े मिलते हैं। सिलाई मशीन ले कर बैठी इन महिलाओं से ग्राहक तुरत-फुरत में सैरोंग भी सिलवा सकते हैं।

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