Wednesday 07 July 2021 01:02 PM IST : By Nishtha Gandhi

यादों में रहेंगे दिलीप कुमार

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फिल्म इंडस्ट्री के पहले रोमांटिक हीरो दिलीप कुमार का 98 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी के बाद आज सुबह निधन हो गया। सूत्रों के मुताबिक आज सुबह मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांसें लीं। परिवार में पत्नी सायरा बानो ने उनके निधन की पुष्टि की है। कुछ अरसा पहले दिलीप कुमार के छोटे भाई का कोरोना के चलते निधन हो गया था। हालांकि उस समय दिलीप कुमार को तबीयत खराब होने की वजह से इस खबर से अनजान ही रखा गया था। आज शाम 5 जूहू के कब्रिस्तान में राजकीय सम्मान के साथ दिलीप साहब का अंतिम संस्कार किया जाएगा। 

रोमांटिक हीरो से ट्रेजिडी किंग तक का सफर

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हिंदी सिनेमा को कई नायाब फिल्में देने वाले दिलीप कुमार के कैरिअर की शुरुआत वर्ष 1944 में आयी फिल्म ज्वार भाटा से हुई थी। उसके बाद अंदाज, आन, दाग, जोगन, बाबुल, हलचल, दीदार, तराना जैसी कई रोमांटिक फिल्में इन्होंने की, जिसकी वजह से इनकी इमेज रोमांटिक हीरो की बन गयी थी। उस समय की फिल्मों में कोई सामाजिक संदेश भी छुपा होता था। वर्ष 1955 में आयी फिल्म देवदास के बाद से दिलीप कुमार को ट्रेजिडी किंग के नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है कि फिल्म देवदास करने के बाद दिलीप कुमार डिप्रेशन में चले गए थे। उस समय डॉक्टर की सलाह पर उन्होंने लाइट रोमांटिक रोल्स करने शुरू किए। इसके बाद उन्होंने कोहिनूर जैसी फिल्मों में काम किया। के. आसिफ की फिल्म मुगले आजम को दिलीप कुमार के जीवन की सबसे यादगार फिल्मों के कारण जाना जाता है। यह भी कहा जाता है कि तब तक दिलीप कुमार और मधुबाला का रोमांस खात्मे की तरफ था। फिल्म के कुछ सींस में दोनों कलाकारों के बीच इंटीमेसी साफ देखी जा सकती है और यह भी कहा जाता है कि मोहब्बत में मधुबाला के पीछे हटने के कारण दिलीप कुमार खासे नाराज थे। खैर 8 साल में बन कर तैयार हुई यह फिल्म कामयाबी के कई रिकार्ड कायम कर गयी थी।

सायरा बानो से शादी

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दिलीप कुमार का सायरा की मां नसीम बानो के घर काफी आनाजाना था। सायरा ने बचपन से दिलीप कुमार को देखा था और उन्हें पसंद करने लगी थीं। बाद में कई फिल्मों में दोनों ने साथ काम भी किया था। हालांकि दिलीप साहब को अपने से 20 साल छोटी हीरोइन के साथ काम करने में थोड़ी हिचक भी थी। बाद में इन दोनों की शादी फिल्म इंडस्ट्री की पहली ऐसी शादी बनी, जहां दोनों की उम्र में 20 साल का फासला था। हालांकि अब ऐसी जोडियां खूब देखने को मिल रही हैं, लेकिन इनमें से एक भी जोड़ी ऐसी नहीं है, जो मोहब्बत की ऐसी मिसाल कायम कर सके, जो दिलीप साहब और सायरा बानो ने की है। अलग-अलग समय पर बातचीत के दौरान सायरा बातती हैं कि कैसे वे और दिलीप साहब एक दूसरे का सहारा बने रहे हैं। दिलीप साहब के लिए खाना बनाने से ले कर उनकी छोटी-छोटी जरूरतों का सायरा ही ख्याल रखा करती थीं। दिलीप कुमार की गाडी की आवाज सुनते ही सायरा साग छौंक दिया करती थीं और जब तक वे चाय बना कर उनके साथ चाय खत्म करती थीं, तब तक साग तैयार हो जाता था। जाहिर सी बात है कि एक दूसरे के प्यार में डूबे इस कपल को कभी बच्चों की कमी महसूस नहीं हुई । 

हर कमरे में रखते थे चश्मा

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सायरा ने अपने इंटरव्यू में बताया था कि दिलीप साहब बहुत भुलक्कड़ भी थे। वे अकसर अपना चश्मा कहीं ना कहीं रख कर भूल जाते थे। बाद में पूरे घर में चश्मे की ढूंढास मचती थी। इसका हल इस रूप में निकाला गया कि घर के हर फ्लोर पर दिलीप साहब का चश्मा रखा गया। 

अवार्ड्स की लग गयी झड़ी

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अपनी बेजोड़ एक्टिंग के लिए दिलीप कुमार ने 8 बार फिल्मफेयर की ट्राफी अपने नाम की है। साथ ही पद्मविभूषण और दादासाहेब फाल्के अवार्ड्स भी उन्हें मिले हैं। पाकिस्तान का सर्वेच्च नागरिक पुरस्कार निशाने इम्तियाज भी उन्हें मिल चुका है। बहरहाल, कई वर्षों की लंबी बीमारी के बाद दिलीप साहब तो दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन अपनी बेहतरीन अदाकारी, दिल छूने वाली फिल्मों की वजह से दिलीप कुमार लंबे समय तक प्रशंसकों के दिल पर राज करते रहेंगे।