Tuesday 24 December 2024 11:53 AM IST : By Indira Rathore

पैरेलल सिनेमा के जनक थे फिल्मकार श्याम बेनेगल

shyam-benegal

वर्ष 2024 के दिसंबर महीने को अलविदा कहते हुए देश सिनेमा और संगीत की दो महान हस्तियों को भी अलविदा कह रहा है। पहले तबलावादक उस्ताद जाकिर हुसैन और अब फिल्ममेकर श्याम बेनेगल नहीं रहे। सबसे ज्यादा राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले समानांतर सिनेमा के दिग्गज पटकथा लेखक, निर्देशक, निर्माता श्याम बेनेगल का दिनांक 20 दिसंबर 2024 को 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने भारतीय सिनेमा को बेहतरीन कलाकार नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी, ओमपुरी, स्मिता पाटिल, अनंत नाग और सिनेमेटोग्राफर गोविंद निहलानी से रूबरू करवाया। उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण, दादा साहब फालके के अलावा 8 नेशनल अवार्ड्स मिले। पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक डिस्कवरी अॉफ इंडिया पर बने दूरदर्शन के कल्ट धारावाहिक भारत एक खोज के जरिए उनकी श्याम बेनेगल का नाम घर-घर में चर्चित हो गया था।

अंकुर, भूमिका, मंडी, मंथन, निशांत, सूरज का सातवां घोड़ा, त्रिकाल, सरदारी बेगम, कलयुग, वेल डन अब्बा, जूनून, जुबैदा, मम्मो, मुजीब जैसी तमाम फिल्में दर्शकों के दिलों में अपनी स्मृतियां बनाए रखती हैं। वह विशिष्ट थे, अपनी कहन शैली में भी और समाज को आईना दिखाने के अपने लहजे में भी। प्रायोगिक और प्रगतिशील सिनेमा में भी वह सरलता से अपनी बात कहने की क्षमता रखते थे। समाज, राजनीतिक व्यवस्था के लगभग हर स्तर को उन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए छुआ। खुद हैदराबाद में पले-बढ़े थे लेकिन वे हर फिल्म की पृष्ठभूमि के मुताबिक भाषा, पहनावे, रीति-रिवाज, स्थानीयता और संगीत को इस तरह दिखाते थे कि कहीं से भी यह नहीं लगता था कि फिल्म किसी और जगह की है। अगर किसी ने चरणदास चोर देखी होगी तो छत्तीसगढ़ की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में वहां की भाषा, पहनावा, बोली सब उन्हें याद रह जाएगा। इसी तरह जुबैदा में बंटवारे के बाद के बदलते भारत की तसवीर और समाज दर्शकों को दिखता है।

उन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए वह सबकुछ दिखाया, जो समाज को देखना चाहिए लेकिन इस तरह कि उनकी फिल्मों को लेकर कभी कोई विवाद नहीं खड़ा हुआ। अंकुर जाति और लैंगिक भेद पर आधारित फिल्म थी तो निशांत में सामंतवाद की आलोचना की गई। इसी तरह मंथन के बारे में कहा जाता है कि यह फिल्म किसानों से चंदा लेकर बनाई गई थी। मंडी तवायफों की जिंदगी पर बनी भावप्रवण कहानी थी तो भूमिका पितृसत्ता में महिलाओं की स्थिति को लेकर बनाई गई। यह एक प्रसिद्ध मराठी नायिका की कहानी थी। हर फिल्म में उनका ट्रीटमेंट, कहानी कहने की शैली और नजरिया भिन्न होता था। वह कभी खुद को रिपीट नहीं करते थे।

श्याम बेनेगल की फिल्में केवल सिनेमा भर नहीं थीं, वे समाज के अंदर गहरे जाकर सचाई निकाल लाती थीं। आज उनके जाने से सिनेमा के एक युग का अंत हो गया है लेकिन नए फिल्मकारों के लिए वह एक मिसाल छोड़ गए हैं। उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि!