Monday 03 October 2022 03:40 PM IST : By Nishtha Gandhi

दशहरा हो तो ऐसा

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दशहरे की छुटि्टयों में घूमने का प्लान हो, तो कुछ ऐसे राज्यों में जाएं, जहां दशहरे की रौनक ही अलग होती है। जानें, कहां कैसे मनाया जाता है नवरात्रि और दशहरे का उत्सव-

इस बार दशहरे की छुटि्टयों में अगर आप कहीं घूमने जाना चाहते हैं, तो उन शहरों का रुख करें, जहां आपको दशहरे की रौनक पूरे शबाब पर देखने को मिले। पूरे देश में यों तो इन दिनों रामलीलाओं, मेले और रावण दहन का शोर रहता है, पर कुछ खास शहरों का दशहरा अलग ही होता है। इनमें सबसे पहला नाम आता है मैसूर का, जिसे देखने के लिए देश विदेश से पर्यटक और फोटोग्राफर आते हैं।

भव्य है मैसूर का दशहरा

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कर्नाटक में दशहरे को स्टेट फेस्टिवल माना जाता है। वहां इसे नादहब्बा कहा जाता है। मैसूर का शाही परिवार इस दिन खास पूजा करता है और शाही दरबार का आयोजन भी करता है। ऐसा माना जाता है कि मैसूर के शाही परिवार द्वारा दशहरे की सवारी की शुरुआत 15वीं शताब्दी में वाडिया राजा वोडेयार द्वारा की गयी थी। यह भी कहा जाता है कि इस दिन चामुंडेश्वरी देवी ने महिषासुर नाम के राक्षस का वध किया था। इसी दिन को मैसूर के लोग विजयदशमी या दशहरे के रूप में मनाते हैं। नवरात्रि के बाकी 9 दिन भी देवी के 9 रूपों की पूजा की जाती है।

समय बीतने के साथ दशहरे के रूप-रंग में बेशक बदलाव आया है, पर आज भी मैसूर के दशहरे में पूरी भव्यता और शाही अंदाज कायम है। इस दिन का खास आकर्षण होता है शाही दरबार और मैसूर पैलेस से ले कर बन्नीमंडप मैदान तक निकलने वाली सवारी। दशहरे से पहले दिन शाही तलवार की पूजा होती है। इस दिन की सवारी में हाथी, घोड़े, ऊंट, नर्तक सभी शामिल होते हैं। अगले दिन जंबो सवारी होती है। लगभग पूरे शहर का चक्कर लगानेवाली इस सवारी के लिए खासतौर से हाथियों को ट्रेनिंग दी जाती है। एक हाथी की पीठ पर चामुंडेश्वरी देवी की बड़ी सी प्रतिमा रखी जाती है। इस सवारी में सुंदर झांकियां भी होती हैं। कहा जाता है कि बन्नीमंडप मैदान में ही वह पेड़ है, जहां पांडवों ने अज्ञातवास में जाने से पहले अपने अस्त्र-शस्त्र छुपाए थे। मैसूर के दशहरे की एक और खास बात है कि पूरे 10 दिनों तक महल के दरबार हाल में स्वर्ण सिंहासन को जनता देख सकती है। इसके अलावा महल के सामने बने डोड्डकेर मैदान में आलीशान मेला भी लगता है, साथ ही कई तरह की प्रतियोगिताओं जैसे कुश्ती, योगा, ट्रेजर हंट, पेट शो, फूड फेस्टिवल व हेरिटेज टूर का भी आयोजन किया जाता है। दशहरे के दिनों में अगर आप मैसूर जाएंगे, तो खुद को उसी दौर में पहुंचा हुआ पाएंगे, जब आलीशान महलों में रहने वाले राजा-महाराजा अपनी पूरी राजसी शानोशौकत का प्रदर्शन समय-समय पर जनता के सामने किया करते थे। आज भी मैसूर में दशहरा फेस्टिवल के आयोजन पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। इन दिनों शुरू होने वाली ट्रेड एग्जीबिशंस महीनों तक चलती हैं।

लोक कला का प्रदर्शन कुल्लू का दशहरा

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कुल्लू का दशहरा स्थानीय परंपराओं, लोक कलाओं और परंपरा का सुंदर संगम है। कुल्ल्ू के दशहरे की खास बात यह है कि जब सब जगह दशहरा खत्म हो जाता है, तब यहां पर दशहरे का उत्सव शुरू होता है। कुल्लू में दशहरे के दिन से जश्न शुरू हो कर अगले 10 दिनों तक चलता है। यहां पर भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। यह एक तरह से पूरे क्षेत्र के देवी देवताओं का मिलन है। आज भी यहां पर सभी देवी-देवताओं को यात्रा में शामिल हो कर देव मिलन के लिए निमंत्रण भेजा जाता है। भगवान रघुनाथ का रथ खींचने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है। राज परिवार के सदस्य भी इस यात्रा में शामिल हो कर मुख्य भूमिका निभाते हैं। कहा जाता है कि कुल्लू में रघुनाथ जी की जो मूर्ति है, उसे एक ब्राह्मण अयोध्या से अपने राजा जगत सिंह को श्राप से मुक्त करने के लिए चुरा कर लाया था। तभी से भगवान रघुनाथ को यहां का राजा मान कर पूजा जाने लगा। दशहरे पर सजी हुई पालकी में रघुनाथ जी की मूर्ति लगा कर पूरे शहर की परिक्रमा करवायी जाती है। साथ ही छोटी-छोटी पालकियों में हिडिंबा, बिजली महादेव भी मौजूद रहते हैं। यहां के प्रमुख उत्सवों में ठाकर, मुहल्ला और लंका दहन हैं, जो अलग-अलग दिनों में किए जाते हैं। झंडे, पंखे और शस्त्र पूजा के अलावा नौपट पूजन, नृसिंह पूजन, घोड़ पूजा यहां का विशिष्ट आकर्षण हैं। ढोल-नगाड़ों के बीच लोक नृत्य करते हुए स्थानीय निवासी और कलाकार रथ के आगे पीछे चलते हैं। इस उत्सव का समापन लंका दहन के साथ होता है, जिसकी तैयारी महीनों पहले से की जाने लगती है। रात को यहां कला केंद्र उत्सव आयोजित किया जाता है, जिसमें तरह-तरह के रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दौरान यहां देश-विदेश से पर्यटक इकट्ठा होते हैं, इसलिए अगर दशहरे पर कुल्लू जाने का प्लान बना रहे हों, तो होटल की बुकिंग पहले से करवा लें।

बंगाल की काली पूजा

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सिर्फ दशहरा ही नहीं, बल्कि पूरे बंगाल में इन दिनों काली पूजा की धूम रहती है। कोलकाता में नवरात्र की शुरुआत महालय से होती है। षष्ठी से पुष्पांजलि व भोग अर्पित किया जाता है और दशमी यानी दशहरा के दिन दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है, जिसमें महिलाएं सिंदूर खेला करती हैं। पूरे 9 दिन यहां हर छोटे-बड़े शहर, गांव में एक से बढ़ कर एक पंडाल बनाए जाते हैं। कुछ पंडाल फिल्मी थीम पर आधारित होते हैं, तो कुछ पंडाल सामाजिक संदेश देनेवाले होते हैं। कुछ में जबर्दस्त लाइट एंड साउंड इफेक्ट का इस्तेमाल किया जाता है। पंडाल ही नहीं, बल्कि बाजारों और सड़कों में भी गजब की रौनक देखने को मिलती है। लाल पाड़ की बंगाली साड़ी पहने महिलाएं और खूबसूरत कुरते-पाजामे या धोती कुरता पहने पुरुषों को देख कर आप खुद को शरत चंद्र या बंकिम चंद्र के किसी उपन्यास की दुनिया में पहुंचा हुआ पाएंगे। शॉपिंग करनी हो, ठेठ बंगाली भोजन का स्वाद चखना हो, रौनक मेला देखना हो, तो इन दिनों बंगाल जरूर जाएं। बंगाल के मशहूर धनुची डांस में कलाकारों के अलावा आम महिलाएं भी शामिल हो जाती हैं। पंडालों में मिलने वाला भोग भी किसी दावत से कम नहीं होता।

दशहरे के दिन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगा कर नम आंखों से देवी दुर्गा को विदा करती हैं। सरकारी टूरिज्म बोर्ड के अलावा कई प्राइवेट टूर एजेंसियां भी आपको खासतौर से बंगाल की दुर्गा पूजा दिखाने के लिए टूर अरेंज करती हैं।

दिल्ली की रामलीला का जवाब नहीं

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नवरात्रों के दिनों में अगर दिल्ली आएं, तो दिन में आप कहीं भी घूमे-फिरें, लेकिन शाम का समय रामलीला घूमने के लिए रिजर्व रखें। दिल्ली में आप जहां कहीं भी हों, उसी इलाके की रामलीला देखने जा सकते हैं, क्योंकि यहां लगनेवाली लगभग सभी रामलीलाएं अपने आपमें बेमिसाल हैं। फिर भी दिल्ली की प्रमुख रामलीलाओं की बात करें, तो पुरानी दिल्ली के रामलीला मैदान में लगनेवाली रामलीला को यहां की सबसे पुरानी रामलीला कहा जाता है। यहां पर आप पुरानी दिल्ली के लगभग सभी व्यंजनों का स्वाद चख सकते हैं। बच्चे तो यहां पर रामलीला देखने कम और झूले झूलने ही ज्यादा आते हैं। साथ ही मौत का कुआं, राइफल शूटिंग जैसी कई मजेदार एक्टिविटीज भी होती हैं। लाल किला के परेड ग्राउंड में लगनेवाली रामलीलाएं भी बेहद भव्य और आलीशान हैं। यहां पर फिल्म और टीवी के सितारे रामलीला के पात्रों का रोल अदा करते हैं। दशहरे पर यहां प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत कई वीआईपी मेहमान पहुंचते हैं। दिल्ली के जिन मशहूर खोमचेवालों और हलवाइयों के नाम आप इंटरनेट पर पढ़ते आए हैं, उन सभी के स्टॉल्स आपको इन रामलीलाओं में मिल जाएंगे। पंजाबी बाग, अशोक विहार, वजीरपुर, मयूर विहार में भी काफी अच्छी रामलीलाएं लगती हैं। हां, इन सभी जगहों पर आपको काफी भीड़भाड़ मिलेगी। पुरानी दिल्ली में रोजाना रामलीला सवारी भी निकलती है, जो अपने आपमें अनूठा आयोजन है। रथों पर बैठे राम, सीता, लक्ष्मण पर जहां लोग फूल बरसा कर आरती करते दिखेंगे, वहीं रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद को गाली देते और चिढ़ाते हुए भी नजर आ जाते हैं। ये कलाकार भी कई बार मस्ती के मूड में आ कर कभी अपनी तलवार घुमाते हैं, तो कभी मूंछों पर ताव दे कर जनता को पलट कर चिढ़ाते दिखायी देते हैं। भरत मिलाप के दिन रामलीला की बेहद भव्य सवारी पुरानी दिल्ली में देर रात निकलती है। जगह-जगह राम, लक्ष्मण, सीता की आरती उतारी जाती है। कुछ रामलीलाओं में कवि सम्मेलन व रंगारंग कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। फ्लाइंग हनुमान, आतिशबाजी, उड़ने वाले पुष्पक विमान, थ्रीडी इफेक्ट्स, साउंड इफेक्ट जैसी खासियतों के साथ दिल्ली की रामलीला मॉडर्न तो होती जा रही है, पर अपना पारंपरिक स्वरूप बरकरार रखे हुए है।

गुजरात का गरबा है गजब

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गुजरात के गरबा उत्सव को विश्व का सबसे लंबा चलनेवाला डांस फेस्टिवल माना जाता है। नाच, गाना, डांडिया के रंग में रंगा गुजरात इन दिनों पूरे उत्साह से लबरेज होता है। जगह-जगह पर डांडिया कॉम्पीटिशन आयोजित किए जाते हैं, पंडालों को सबसे सुंदर सजाने की होड़ लगती है, कौन सबसे ज्यादा पॉपुलर आर्टिस्ट को अपने यहां लाइव परफॉर्मेंस करने के लिए बुलाता है, इस पर भी लोगों में जबर्दस्त क्रेज होता है। मानसून के बाद मिट्टी की उर्वरक शक्ति बहुत बढ़ जाती है, इसी के प्रतीक स्वरूप मिट्टी के बरतन में जौ बौयी जाती है। शाम की आरती के समय लोक नृत्य गरबी किया जाता है, जिसमें नर्तक मिट्टी के एक पात्र में जलते दिए ले कर डांस करते हैं। कच्छ में माता नो मढ़, भावनगर के नजदीक खोड़यार मंदिर और अहमदाबाद-राजकोट हाइवे पर चोटिला का चामुंडा माता मंदिर अपने गरबा आयोजन के लिए पूरे गुजरात में प्रसिद्ध हैं। अगर आपको डांडिया खेलना नहीं भी आता, तो भी डांडिया की धुन पर थिरकते और पांरपरिक पोशाक में सजे-संवरे युवक-युवतियों को देखना बेहद सुखद है। वैसे डांडिया और ढोल की आवाज पर पैर अपने आप ही थिरकने लगते हैं।