आज महान कथाकार प्रेमचंद की जन्म तिथि है। हिंदी साहित्य जगत में मुंशी प्रेमचंद ने जो योगदान दिया है, उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती है। समाज का ऐसा कौन सा रूप है, जिसे अपनी कहानियों, उपन्यासों के माध्यम से प्रेमचंद ने पाठकों के सामने नहीं रखा। सबसे ज्यादा अचरज की बात यह है कि जिस सरलता और सादगी से वे अपनी रचनाएं लिखते थे, वे 100 साल से ज्यादा समय के बाद भी प्रासंगिक लगती हैं। इंसान किस परिस्थिति में किस प्रकार का बर्ताव कर सकता है, क्या कह सकता है, क्या सोच सकता है, इसका इतना सुंदर वर्णन प्रेमचंद की कहानियों में मिलता है। मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य का बहुत बड़ा नाम हैं, लेकिन इनकी रचनाएं पढ़ते समय आपको ऐसा महसूस होगा कि मानो हमारे आसपास के माहौल या लोगों की बात हो रही हो। दरअसल, किसी रचनाकार की महानता इसमें नहीं होती कि वह कितनी मुश्किल भाषा का प्रयोग करता है और कितनी गहरी बात कह रहा है, बल्कि इसमें होती है कि वह गहरी से गहरी बात को कितनी सरलता से और हमारे बोलचाल की भाषा में कह देता है और प्रेमचंद यह कला बखूब जानते थे।
बात करें, उनकी रचनाओं की तो उन्होंने गोदान, गबन, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि, सेवासदन, प्रेमाश्रम समेत कई उपन्यास लिखे हैं, वहीं उनके कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। मुंशी प्रेमचंद की कई कहानियां अलग-अलग पाठ्य पुस्तकों में भी पढ़ाई जाती हैं। ईदगाह, दो बैलों की कथा आदि कहानियां लगभग सभी ने पढ़ी होंगी। इनके अलावा हम आपको बता रहे हैं प्रेमचंद की वे 5 कहानियां, जिन्हें समय मिलने पर जरूर पढ़ें-
बूढ़ी काकीः परिवार में अकसर वृद्धों को किस तरह की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है, इसका दिल छूने वाला वर्णन मिलता है इस कहानी में। परिवार में भोज की व्यवस्था हो रही है, बहू उसकी तैयारियों में लगी है, लेकिन बूढ़ी काकी को कोई भोजन नहीं देता। बेचारी बुढि़या अपनी कोठरी में बैठी हुई मन ही मन कल्पना कर रही है कि आज क्या-क्या पकवान बने होंगे, किस-किस ने खाना खा लिया होगा, जरा सी आहट पर सोचती है कि शायद बहू खाना ले कर आ रही होगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। बूढ़ी काकी को खाना मिला कि नहीं, यह जानने के लिए कहानी पढ़ना जरूरी है।
बासी भात में खुदा का साझाः कर्ज में डूबे एक गृहस्थ आदमी दीनानाथ की बड़ी मुश्किल से नौकरी लगती है। वह इसके लिए ईश्वर को अनेकों धन्यवाद देता है। लेकिन एक दिन ऑफिस में मैनेजर बुला कर बहीखातों में थोड़ी फेरबदल करने को कहता है। मजबूरी में ऐसा करने के बाद दीनानाथ अपराधबोध से भर जाता है। इतना कि बच्चे को मलेरिया होते ही वह अनहोनी की आशंका से कांप जाता है। बच्चा ठीक हुआ तो खुद बीमार पड़ गया और मन में सोच लिया कि बस अब अंत निकट है, क्योंकि बुरे कर्मों की सजा तो ईश्वर देगा ही। अंत में कैसे उसे समझ आता है कि जो दंड का भय दिखा कर भक्ति कराए, वह कैसा ईश्वर है, दुनिया तो प्रेम से चलती है, फिर ईश्वर ने हाथ में डंडा क्यों पकड़ा हुआ है।
खुदाई फौजदारः सेठ नानकचंद को डाकुअों द्वारा भेजी गयी चिटि्ठयां मिल रही थीं कि उनके घर डकैती की जाएगी और सारा माल-असबाब लूट लिया जाएगा। सेठजी अभी असमंजस में ही थे कि दारोगा के भेजे चार सिपाही उनके घर पर टपक पड़े। सेठजी ने उन पर विश्वास करके सारा खजाना उनके हवाले कर दिया। पर क्या वाकई वे सिपाही थे या खुदाई फौजदारों की कोई साजिश, सेठजी के घर किस अंदाज में डकैती पड़ी, यही कहानी है खुदाई फौजदार की।
बड़े भाई साहबः एक होनहार लड़का और उससे 5 साल बड़े बड़े भाई साहब, इन दोनों की कहानी है यह। लड़का हर साल अव्वल आता है और भाई साहब बार-बार फेल हो जाते हैं, लेकिन फिर भी उनकी नसीहतों का पुलिंदा खत्म ही नहीं होता। लब्बो-लुआब यह है कि बड़े हमेशा बड़े ही रहते हैं, पढ़ाई करने और तजुरबा हासिल करने में फर्क होता है। बड़े चाहे कितने ही नाकामयाब हों, लेकिन छोटों को यह बताने से बाज नहीं आते। बड़े भाई साहब कब तक अपने बड़प्पन का चोला पहने रखते हैं, यह देखने वाली बात है।
बड़े घर की बेटीः जिस तरह से सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह से भूख से बावला इंसाल जरा-जरा सी बात पर तुनक उठता है, औरत के आंसू मर्द के गुस्से पर रोगन का काम करते हैं, जैसी कई बातें पढ़ते-पढ़ते आप इस कहानी को अपने आसपास ही कहीं घटता हुआ पाते हैं। बहू आनंदी का देवर से जो झगड़ा हुआ, उसकी वजह से दोनों भाइयों के अलग होने की नौबत आ गयी, लेकिन फिर आनंदी ने ही ऐसा क्या कर दिया कि ससुराल में सभी ने मान लिया कि वाकई वह बड़े घर की बेटी है।