Thursday 17 March 2022 04:19 PM IST : By Gopal Sinha

डूब जाएं फाग और फागुन की मस्ती में

फागुन आया नहीं कि मन बौरा उठा ! हौले-हौले चलती बसंती हवा मानो फिजा में भांग सी मस्ती घोल रही हो ! फगुनाहट से सराबोर दिल मचल-मचल कर कह रहा है कि चाहे कुछ भी हो, इस बार होली में वो धमाल करेंगे कि बस... कोई अपने ही रंग में प्रीतम को रंगने को तैयार है, तो कोई किसी के रंग में मन-प्राण से भीगने के लिए बेताब बैठा है। फागुन के रंग केवल लाल-पीले-नीले ही नहीं होते, वे तो मन को ऐसे रंगों में रंगते हैं, जो हमें बाहर की दुनिया में तो नहीं मिलते, हां उसका मस्ताना असर जरूर देखने को मिलता है। 

फागुन का महीना अपने साथ ढेर सारी निराली परंपराएं भी ले कर आता है। होली तो फागुन के आखिरी दिन खेली जाती है, पर लोक गीतों यानी फाग की सुर लहरियों पर झूमने का दौर इसके पहले दिन से ही शुरू हो जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में होली मनाने का तरीका बेशक अलग-अलग हो, पर आत्मा सबकी एक जैसी ही है- समाज को एक सूत्र में पिरोनेवाली मस्ती से सराबोर। 

फाग का रंगीला राग

खेले सखियन संग फाग आज बरसाने में

बोलो होली के रसिया की जय...

फाग खेलन बरसाने आए हैं, नटवर नंदकिशोर

घेर लईं सब गली रंगीली, छाय रही छबि छटा रंगीली, जिन ढप-ढोल मृदंग बजाए हैं, बंशी की घनघोर...

ये हैं फाग गीत की चंद बानगियां। फाग यानी फागुन महीने का खास गीत। राजस्थान में फागुन के महीने में होली मनाते हुए एक विशेष किस्म का गीत गाते हैं, जिसे ‘फाग’ कहा जाता है। यह उत्सव बसंत के आगमन की खुशी में मनाया जाता है, जिसमें फागुन मास के पहले दिन से ही फाग गाने की शुरुआत हो जाती है। ग्रामीण इलाकों में फाग गाने का अपना ही महत्व है। सिर्फ राजस्थान में ही नहीं, फाग के सुरों पर पूरा देश खासकर मध्य प्रदेश, हरियाणा, मथुरा भी फागुन के महीने में झूम उठता है। सभी राज्य अपनी अलग परंपराएं निभाते हुए यह त्योहार मनाते हैं। 

फाग उत्सव मनाने का इतिहास लगभग 300 साल पुराना है। शुरुआत में रंगों की जगह फूलों का इस्तेमाल होता था, क्योंकि माना जाता था कि रंग उनके किशन कन्हैया की मूर्ति को नुकसान पहुंचा सकते हैं। फाग के भी कई स्वरूप होते हैं जैसे कृष्ण फाग, जिसमें श्रीकृष्ण की रासलीला का बखान फाग गीतों के माध्यम से किया जाता है। रंगारंग झांकियां निकालती हैं, जिनमें रंगबिरंगे परिधान पहने और बदन को रंगों से रंग कर लोक नर्तक और गायक लोगों के सामने अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। 

बुंदेलखंड में फागुन के महीने में गांव की चौपालों पर फाग का निराला जमघट लगता है। इन बैठकों में रंगों की बौछार तो होती ही है,रंगबिरंगे गुलाल से सजे फगुआरे टोली बना कर जब फाग गीत गाते हैं, तो अदभुत समां बंध जाता है। ढोलक की थाप और मंजीरे की झंकार पर जब वहां के किसान जोशभरे फाग गाते हैं, तो बच्चे, बूढ़े, जवान हों या महिलाएं सभी झूम उठते हैं। बुंदेलखंड के लोक कवि ईशुरी के फाग गीतों पर वहां के ग्रामीण अनोखे रंग में रंग जाते हैं। 

छत्तीसगढ़ प्रांत में होली के दिनों में स्थानीय छत्तीसगढ़ी भाषा में गीत गाए जाते हैं। फाग गीत फागुन मास के अंतिम दिन होली मनाने तक गाए-बजाए जाते हैं। फाग के साथ ढोलक, मंजीरा और मिट्टी से बने विशेष किस्म के नगाड़े बजाए जाते हैं।

होली की मतवाली होरी

पूरा देश फागुन शुरू होते ही होली के खुमार में डूब जाता है। ज्यादातर ग्रामीण इलाकाें में इस महीने गाए जानेवाले लोक गीत कहीं ‘फाग’ के नाम से जाने जाते हैं, तो कहीं इन गीतों को ‘होरी’ भी कहा जाता है। यानी फागुन में गाए जानेवाले गीत फाग और होली में गाए जानेवाले गीत होरी। बस, फर्क इतना सा है कि होरी जहां शास्त्रीय रूप लिए होते हैं, वहीं फाग में दिल की सारी उमंगें जबान पर आ जाती हैं, चाहे उन्हें द्विअर्थी बोलों में क्यों ना ढालना पड़े। 

अब अगर होली का त्योहार राधा-कृष्ण की लीला पर आधारित है, तो इस मौके पर गाए जानेवाले गीतों के बोल भी उनके इर्दगिर्द ही घूमते हैं। मस्ती के इस पर्व के शुरू होने की कथा भी कम रोचक नहीं है। कहते हैं सांवले बालकृष्ण अपनी सखी राधा के गोरे रंग से जलते थे। उन्होंने अपनी माता यशोदा से अपने दिल की बात कही, तो मैया यशोदा ने चुहल में कह दिया कि अपनी राधा के मुख पर चाहो तो मनचाहा रंग लगा लो। फिर क्या था, मौका पा कर नटखट कन्हैया ने राधा के चेहरे को रंग डाला। बस, उसी दिन से होली के दिन अपनों को रंग में रंगने का चलन शुरू हो गया। 

होरी के गीत क्लासिकल और सेमी क्लासिकल दोनों रूपों में गाए जाते हैं। वृंदावन में राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंगों, कृष्ण व गोपियों की रासलीलाअों का चित्रण करते शृंगार रस में डूबे ये गीत होली को बेहद रोमांटिक भी बना देते हैं। ज्यादातर होरी गीत राग काफी में गाए जाते हैं। होली खेलत नंदलाल बिरज में... राग काफी में ही गाया एक गीत है। वहीं शोभा गुर्टू का गाया गीत होली मैं खेलूंगी उन संग डट के, जो पिया आएंगे बृज से पलट के... ठुमरी स्टाइल में है। ठुमरी स्टाइल में गायी गयी अन्य होरी हैं मोके डार देगी सारी रंग की गगरिया... और अब कौन गुनन सो मनाऊं होरी आली, पिया तो मानत नहीं...।

फाग हो या होरी, सभी सामाजिक सदभाव कायम करने में अहम भूमिका निभाते हैं। सबमें मस्ती का वही तूफान होता है। इसकी बानगी यूपी-बिहार के इस रंगीले भोजपुरी फाग गीत में देखिए-

सारा रारा रा रा रा...

जोगीरा सारा रारा रा रा रा...

वाह भाई वाह, वाह खेलाड़ी वाह... साली के संग सात सहेली, सातों खेले होली... ऐ सातों मिलके जीजा से रंगवाल आपन चोली...फिर देख देख रे....

सारा रारा रा रा रा रा... जोगीरा सारा रा...