भारत के प्रसिद्ध उद्यमी रतन टाटा इस साल दिसंबर में 87 के हो जाते लेकिन जन्मदिन के दो महीने पहले ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। नमक से लेकर जहाज और सॉफ्टवेअर तक फैली टाटा इंडस्ट्रीज को लगातार नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में इस सीधे-सादे और सरल उद्योगपति का हाथ था। आखिर ऐसा क्या था इस उद्योगपति में कि वह भारतीयों के इतने चहेते रहे हैं!
उनकी दरियादिली के कई किस्से हैं। जैसे उन्हें जानवरों से बहुत प्यार था। इसके बारे में एक मजेदार किस्सा है। वर्ष 2018 में रतन टाटा को ब्रिटिश राजघराने ने लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित करना चाहा, लेकिन रतन टाटा ने वहां जाने से इनकार कर दिया। वजह जानकर खुद प्रिंस चार्ल्स हैरान रह गए। रतन टाटा ने कहा कि उनके पेट डॉग्स बीमार हैं और उन्हें अकेला छोड़कर वह इस अवॉर्ड फंक्शन में नहीं जा सकेंगे। मुंबई स्थित उनका मुख्यालय हो या फिर ताज होटल का अहाता, वहां कुत्तों को बैठे देखा जा सकता है। उन्होंने कर्मचारियों को कहा था कि जानवरों के साथ अच्छा बर्ताव किया जाए।
रतन टाटा ट्रेंड लाइसेंस वाले पायलट थे। कहा जाता है कि एक बार 2004 में पुणे में उनके एक सीनियर कर्मचारी की अचानक तबीयत खराब हो गई। डॉक्टरों ने उन्हें तुरंत मुंबई ले जाने की सलाह दी लेकिन संडे होने के कारण डॉक्टर्स एयर एंबुलेंस का जुगाड़ नहीं कर पा रहे थे। जब यह बात रतन टाटा को पता चली तो वह खुद विमान उड़ाने को तैयार हो गए। हालांकि इस बीच एयर एंबुलेंस का प्रबंध हो गया और यह नौबत नहीं आई।
सफल उद्योगपति होने के साथ ही रतन टाटा एक संवेदनशील इंसान थे। अपने कर्मचारियों को वह परिवार की तरह समझते थे। कोरोना काल में जब हर छोटी-बड़ी कंपनी कर्मचारियों की छंटनी कर रही थी, उन्होंने इसका विरोध किया और कहा कि ऐसा करना नैतिकता के खिलाफ है।
मुंबई में 26/11 को हुए आतंकी हमले में आतंकवादियों ने ताज होटल को भी निशाना बनाया था। एक इंटरव्यू में रतना टाटा ने इसका जिक्र करते हुए बताया कि उनके पास किसी का फोन आया कि ताज में गोलीबारी हो रही है। जब उन्होंने स्टाफ को फोन किया तो किसी ने कॉल नहीं उठाई। तब वे खुद कार चलाकर ताज पहुंचे लेकिन वॉचमैन ने उन्हें रोक दिया कि अंदर गोलीबारी हो रही है। तब उन्होंने सिक्योरिटी के लोगों से कहा कि जरूरत पड़े तो पूरी प्रॉपर्टी को गोली या बम से उड़ा दो लेकिन एक भी आतंकी जिंदगा नहीं बचना चाहिए। तब होटल में 300 गेस्ट थे, जिनमें से कुछ मारे भी गए। उन तीन दिन-तीन रात रतन टाटा ताज होटल मैनेजमेंट के साथ खुद मौजूद रहे।
30 से अधिक कंपनियों के मालिक दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में एक थे मगर कभी किसी अरबपति वाली सूची में वे नजर नहीं आए। उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की, जिसने भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में से एक की नींव रखी। कोरोना के दौरान उन्होंने पीएम केयर फंड में 500 करोड़ की बड़ी धनराशि दान की थी।
उन्होंने शादी नहीं की थी। उम्र के एक पड़ाव पर पहुंचकर वह भी अकेलेपन को महसूस करने लगे थे। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि आप नहीं जानते कि अकेलापन क्या होता है, जब तक आप खुद अकेले जीवन जीने को मजबूर नहीं होते, आपको उसका दर्द नहीं पता चल सकता। जब तक आप बूढ़े नहीं होते, तब तक आपका मन बूढ़ा होने का बिलकुल नहीं करता। बुजुर्गों के अकेलेपन को दूर करने के लिए युवाओं के सहयोग पर आधारित शांतनु नायडू के स्टार्टअप की ओपनिंग पर उन्होंने ये उद्गार व्यक्त किए थे।
आम आदमी को लेकर रतन टाटा किस तरह संवेदनशील थे, इसका उदाहरण था उनके द्वारा ईजाद की गई लखटकिया नैनो कार। जब उन्होंने एक दंपती और बच्चों को स्कूटर में भीगते देखा तो इस कार को बनाने का विचार उनके मन में आया। दुर्भाग्य से यह सस्ती और बजट कार लोगों को उतनी रास नहीं आ सकी।
रतन टाटा अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दान में देते थे। न सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं के दौरान टाटा की तरफ से हमेशा बड़ी मदद की गई, बल्कि आर्थिक तंगी से जूझने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी उन्होंने कई तरह की स्कॉलरशिप की व्यवस्था की। कहा जा सकता है कि देश में बिजनेसमैन तो कई हैं लेकिन टाटा जैसा कोई दूसरा नहीं।