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पुलिस की नौकरी जोखिम भरी है, यह इतनी आसान नहीं। इसमें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत होना जरूरी है। वे महिलाएं वाकई में बहादुर हैं, जो पुलिस में नौकरी करती हैं। टफ ड्यूटी और लंबे वर्किंग ऑवर के साथ भागदौड़ करना आसान नहीं। यह भी नहीं मालूम होता है कि अगली ड्यूटी कब, कहां और कितनी देर तक की मिलेगी? और ऐसे में घर-परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी! इन दोहरी जिम्मेदारियों को निभानेवाली महिलाअों का समाज और देश में अलग स्थान है। अपनी इच्छा से इस फील्ड में नौकरी करने वाली और हरियाणा की रहनेवाली सीमा गुप्ता का इस नौकरी के प्रति अलग जज्बा है। वे कहती हैं, ‘‘खुद से जीतने की जिद है मुझे और खुद को हराना है !’’ जी हां, खुद से कंपीटिशन रखने वाली दिल्ली पुलिस की हेड कॉन्स्टेबल सीमा गुप्ता को पुलिस की नौकरी में 18 साल हो चुके हैं। अब तक की नौकरी में उन्हें कई तरह के अनुभव हुए। सबसे अच्छा अनुभव लापता बच्चों को उनके पेरेंट्स से मिलवाने का था। वे कहती हैं, ‘‘यही ड्यूटी सभी को मिलती है, पर आप काम को कितनी शिद्दत से कर पाते हैं, यह महत्वपूर्ण है। लापता बच्चों को उनके पेरेंटस से मिलवाने का काम अकेले का नहीं है, अपनी सहयोगी सुमन हुडा के साथ मिल कर मैं इस काम को अंजाम दे पायी।’’

दिल्ली पुलिस की हेड कॉन्स्टेबल सीमा गुप्ता और कॉन्स्टेबल सुमन हुडा ने मिल कर मार्च 2024 से फरवरी 2025 तक 112 लापता बच्चों को उनके पेरेंट्स से मिलवाया। इनमें ज्यादातर किशोर बच्चे थे। लापता होने की मुख्य वजह झांसे में आ कर नशे की गिरफ्त में पड़ जाना, छोटी लड़कियों को वेश्यावृति में धकेल दिया जाना थी। जो छोटे बच्चों को झांसा देने का टारगेट करते हैं, वे पहले बच्चाें को नशा करने की लत लगाते हैं, उसके बाद जब नशे के लिए बच्चे तड़पते हैं, उन्हें नशा बेचने के धंधे में धकेल देते हैं। बच्चे अपने घर नहीं जाते और उनके पेरेंट्स उनके लिए परेशान रहते हैं। सीमा कहती हैं, ‘‘मुझे याद है, 9 साल का लापता बच्चा जब मिला तो उसे देख कर बहुत आश्चर्य हुआ। मासूम सा दिखने वाला वह बच्चा बहुत ज्यादा नशे में था। उसकी नाक से खून बह रहा था। वह दृश्य मैं कभी नहीं भूल सकती। कई बच्चे तो ऐसे हैं, जिनकी गुम होने की एफआईआर दिल्ली में की जाती है जबकि वे बच्चे बिहार और बंगाल में मिलते हैं। लापता बच्चों में ज्यादातर मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास सोसाइटी से ताल्लुक रखते हैं। इस समाज से किशोर ही नहीं, छोटे बच्चे भी लापता होते हैं।’’

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सीमा गुप्ता को पुलिस में आए 18 वर्ष और सुमन को 14 साल हुए हैं। इन्हें साथ में काम करते हुए चंद महीने ही हुए है। सीमा खुद 2 बच्चों की मां हैं और अपनी कठिन जॉब करते हुए भी अपने बच्चों को बखूबी संभालती हैं। वे कहती हैं, ‘‘बच्चों को ढूंढ़ने और केस को सॉल्व करने में महीनों लग जाते हैं तो कुछ केस 4 दिन में भी सॉल्व हो जाते हैं। जब बच्चों को ढूंढ़ कर हम उनके पेरेंट्स से मिलवाते हैं, तब बहुत अच्छा लगता है। हम अपनी जॉब में पूरी तरह से ध्यान दें पाएं, इसके लिए पति बहुत हेल्प करते हैं। आजकल सोशल मीडिया से बच्चों को हम दूर नहीं कर सकते। पर वे क्या कर रहे हैं, उन पर नजर रख सकते हैं, जिससे बच्चे किसी के झांसे में ना आएं और ना कोई गलत कदम उठाएं। अगर आप बच्चों का खयाल नहीं रख सकते हैं तो ऐसे पेरेंट्स को बेबी बर्थ नहीं करना चाहिए।’’ सचमुच ! प्रोफेशन कितना भी जोखिम भरा हो, अगर प्रोफेशन व फैमिली लाइफ में बैलेंस बैठा कर पैशन के साथ काम करें तो महिलाएं जीवन में बहुत आगे बढ़ सकती हैं।

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