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कानपुर की होमियोपैथी डॉक्टर मधुलिका शुक्ला का दावा है कि होमियोपैथी से कई असाध्य रोगों का सौ फीसदी तक इलाज संभव है। डॉक्टर्स के परिवार में जन्मी मधुलिका को अपने फील्ड में महत्वपूर्ण योगदान के लिए समय-समय पर कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त होते रहते हैं। मधुलिका कहती हैं, ‘‘हर मेडिकल फील्ड की अपनी सीमाएं हैं। होमियोपैथी में मरीज को बिना पीड़ा पहुंचाए सिंपल ओरल मेडिसिन्स से इलाज किया जाता है। आज लगातार हो रहे अध्ययनों और रिसर्च की बदौलत होमियोपैथी बहुत एडवांस हो चुकी है। इसके साइड इफेक्ट्स बहुत कम हैं। अब तो सिम्प्टोमेटिक रिलीफ के लिए होमियोपैथी भी एलोपैथी की तरह काम करने लगी है। इसमें डॉक्टर पहले मरीज को त्वरित आराम पहुंचाने की कोशिश करते हैं और फिर धीरे-धीरे मुख्य बीमारी को जड़ से दूर करने का प्रयास करते हैं।’’

ऐसा माना जाता है कि लंबी चलने वाली आम बीमारियों के लिए होमियोपैथी बहुत कारगर है, फिर भी इसे ले कर एक धारणा यह है कि यह जल्दी असर नहीं करती। डॉ. मधुलिका कहती हैं, ‘‘स्किन संबंधी परेशानियों, गाइनी हेल्थ जैसे पीसीओडी और यूटराइन फाइब्रॉयड्स में यह बहुत अच्छा काम करती है। आजकल पढ़ाई-कैरिअर का स्ट्रेस लोगों पर ज्यादा है, फूड हैबिट्स और लाइफस्टाइल में बहुत बदलाव आए हैं, प्रदूषण बढ़ा है, जिससे बहुत सी बीमारियां बढ़ रही हैं। इन सभी समस्याओं में होमियोपैथी अच्छा काम करती है। इसमें मुख्य कारणों को खंगाला जाता है, उसी से बीमारी का इलाज ढूंढ़ा जाता है। फाइब्रॉयड्स जैसी बीमारियां शुरू होते ही इलाज शुरू कर दें तो सौ फीसदी अॉपरेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी। केमिकल मेडिसिन्स ना ले कर नेचुअर रेमेडी लेते हैं तो साइड इफेक्ट्स की भी चिंता नहीं होती। सांस संबंधी परेशानियां, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, साइनस जैसी तमाम परेशानियों में होमियोपैथी के जीरो साइड इफेक्ट्स हैं। सबसे बड़ी बात कि यह पेनलेस तरीका है मर्ज दूर करने का। इसमें ना सर्जरी है और ना दर्द। आप काम करते रह सकते हैं, इलाज और काम साथ-साथ चल सकता है। हारमोनल बदलावों में तो इसका शर्तिया इलाज संभव है। कई लोग पूछते हैं कि एलोपैथी के साथ होमियोपैथी इलाज भी कराएं तो दिक्कतें तो नहीं होंगी। ऐसा किया जा सकता है, लेकिन दोनों दवाओं के बीच आधे-एक घंटे का अंतर रखना चाहिए।’’

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आज की लाइफस्टाइल में फैटी लिवर, स्टोन प्रॉब्लम आम बात हो गयी है। मधुलिका कहती हैं, ‘‘इनमें भी होमियोपैथी कारगर है, लेकिन सिर्फ दवा लेने से काम नहीं चलता, साथ में परहेज जरूरी है। प्रॉब्लम शुरू होते ही चिकित्सक के पास चले जाएं तो हाइपर एसिडिटी, गैस्ट्रो संबंधी दिक्कतों के अलावा प्री-पोस्ट मेनोपॉजल सिम्प्टम्स में भी होमियोपैथी का प्रभाव अच्छा है। अभी सरकार ने एक ब्रिज कोर्स का प्रस्ताव रखा है, ताकि डॉक्टर को हर चीज पढ़ाई जाए। अगर यह प्रस्ताव पास होता है तो मेडिकल फील्ड के लिए बहुत अच्छा होगा। एलोपैथी में एंटीबायोटिक दवाओं का काफी प्रयोग होता है। छोटे शहरों व गांवों में तो लोग हर मर्ज के लिए एंटीबायोटिक दवाएं लेने लगते हैं, जिससे बॉडी एंटीबायोटिक रजिस्टेंट हो जाती है। सिर, कमर, गरदन, पीठ या बॉडी पेन में लोग अपने मन से ही पेनकिलर्स खाते हैं, लंबे समय तक इन्हें लेने से किडनी, लिवर अादि खराब होने लगते हैं। दूसरी ओर होमियोपैथी बजट फ्रेंडली उपाय है, इसमें बेसिक ओरल दवाओं से इलाज होता है।’’

एलोपैथी हो या होमियोपैथी, सबकी अपनी सीमाएं हैं। होमियोपैथी में कोई जादू की छड़ी नहीं है कि दवा लेते ही मर्ज दूर हो जाएगा। फैटी लिवर है या फाइब्रॉयड्स, पहले अल्ट्रासाउंड या एलएफटी जांच करानी होगी। जांच के बाद ही पता चलेगा कि बीमारी किस स्तर पर है। आज जब हर जगह नेचुरल रेमिडीज की बात चल रही है तो मेडिसिंस सिस्टम में भी नेचुरल तरीकों पर अधिक काम करना चाहिए।

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