सी ए भवानी देवी टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज बन गयी हैं। टोक्यो अोलंपिक में ये मेडल भले ही ना जीत पायी हों, लेकिन इन्होंने देश का दिल जरूर जीत लिया है। इस महिला खिलाड़ी का जन्म तमिलनाडु में एक पुजारी के यहां हुआ। देवी के प्रति अपनी श्रद्धा के कारण उन्होंने अपनी बेटी का नाम भवानी रखा। भवानी को इस बात का दुख है कि आज उनके पिता उनकी इस खुशी को देखने के लिए जीवित नहीं हैं। 2019 में उनका स्वर्गवास हो गया। भवानी 2009 में मलेशिया में आयोजित राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीत चुकी हैं। आइए भवानी से जानें, उनके सफर के बारे में कुछ खास-
तलवार पकड़ने का पहला सपना आपने कब देखा, उस समय आपकी उम्र क्या थी?
स्कूल के दिनों से ही मुझे खेल में मजा आने लगा था। उन्हीं दिनों मुझे स्पोर्ट्स में किस्मत आजमाने का खयाल आया। जब भी मौका मिलता, मैं टेनिस, वॉलीबॉल जैसे गेम्स देखने का मौका नहीं चूकती। तब तक मुझे तलवारबाजी के बारे में कुछ भी पता नहीं था। जब मैं छठी क्लास में पहुंची, तो मैंने स्पोर्ट्स में अपना नाम लिखवाया। उसी समय मैं इस खेल से रूबरू हुई। धीरे-धीरे जब इस खेल के बारे में जानकारियां बढ़ने लगीं, तो इस ओर मेरा झुकाव होता चला गया। मुझे तलवारबाजी दूसरे गेम से बहुत अलग लगी और तभी मैंने आगे की जिंदगी तलवार की धार के नाम करने की ठान ली।
आमतौर पर लोगों ने पुरुषों के हाथ में तलवार देखी है। महिलाओं के हाथ में तलवार कम ही नजर आयी है, ऐसा क्यों?
मेरे दिमाग में यह कभी नहीं आया कि यह खेल पुरुषों के लिए बना है। मेरा मानना है कि अगर किसी खेल के प्रति आपकी खास रुचि है, तो जेंडर से जुड़ा भेदभाव कभी रुकावट नहीं बन सकता। मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मेरे शौक को पूरा करने में परिवार का साथ मिला।
तलवारबाजी के अलावा आपके दूसरे क्या-क्या शौक हैं?
मैंने ताइक्वांडो और स्क्वॉश की ट्रेनिंग ले रखी है। यहां तक कि भरतनाट्यम भी सीखा है। लेकिन जैसे ही फेंसिंग को ले कर मेरी यात्रा शुरू हुई, दूसरे शौक पीछे छूटते चले गए।
स्पोर्ट्स को जुनून बनाने के लिए पैसे को पानी की तरह बहाना पड़ता है, ऐसे में पिछड़े राज्यों, ट्राइबल इलाकों, गरीब घरों की लड़कियों को खेलों के क्षेत्रों में आगे बढ़ते देखना चकित करता है। ऐसा क्यों है?
मैंने भी ऐसी विसंगतियां देखी हैं। कुछ प्लेअर्स खेल में आगे बढ़ने के बावजूद परिस्थितिवश इससे नाता तोड़ लेते हैं। खेल काफी समर्पण और धैर्य मांगता है और इन सबके साथ कड़ी मेहनत करना भी जरूरी होता है। ऐसे में कुछ हिम्मत हार बैठते हैं। पुरुष के पास फिर भी समय होता है। महिला खिलाडि़यों को प्रोत्साहन नहीं मिलने पर उनको बीच में ही खेल छोड़ना पड़ता है। शादी के बाद पारिवारिक दायित्वों को निभाने के कारण भी कुछ महिला खिलाड़ी इसे अलविदा कह देती हैं।
आपको किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा?
मेरे सामने भी चुनौतियां थीं। ट्रेवलिंग, ट्रेनिंग और स्पॉन्सरशिप जुटाना बहुत ही थका देने वाला काम था। कई बार मुझे यह महसूस होता था कि मेरे ट्रिप्स के कारण मेरे परिवार पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। लेकिन मुझ पर मेरी मां के गहरे विश्वास ने मुझे हारने नहीं दिया। मेरे जुनून को पूरा करने के लिए मेरी मां को अपने गहने तक गिरवी रखने पड़े। मुझे आज भी याद है कि सीमित अार्थिक संसाधनों के बीच मेरी पहली महंगी तलवारबाजी की किट खरीदी गयी। मैं रिन की शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे अपनी खेल यात्रा को सबके साथ शेअर करने का मौका दिया, ताकि ऐसे सपने देख रही तमाम लड़कियों का मनोबल बढ़े।
वह महिला खिलाड़ी, जिससे आपको प्रेरणा मिलती रही है?
मैंने बचपन से ही सानिया मिर्जा को अपनी प्रेरणा माना है। उनको टीवी पर देश के लिए खेलते और सम्मान पाते देखना अच्छा लगता था। मैं पीटी ऊषा, साइना नेहवाल, सेरेना विलियम्स और लगभग सभी फीमेल एथलीट को देख कर गर्व महसूस करती हूं। इनको देख कर ही मैंने यह जाना कि स्पोर्ट्स भी जिंदगी जीने का एक खास तरीका है।
क्या शादी के बाद महिला प्लेअर्स के जोश में कमी आ जाती है?
सानिया मिर्जा और मैरी कॉम जैसी महिला खिलाडि़यों ने ऐसे मिथक को जड़ से खत्म कर दिया है। मुझे लगता है कि महिला खिलाडि़यों को शादी के बाद परिवार का सपोर्ट मिलता रहे, तो वे खुद को साबित करती रहेंगी।
तलवारबाजी के अलावा किस गेम को खेलने में मजा अाता है?
तलवारबाजी करने के बाद मिलनेवाली फुरसत में मैं वॉलीबॉल और फुटबॉल खेलती हूं।
अगर ओलंपिक के लिए एक और स्पोर्ट्स चुनने की आजादी मिलती, तो आप क्या चुनतीं?
वॉलीबॉल।
आपकी हॉबीज क्या-क्या हैं?
मुझे पढ़ना पसंद है। इसके अलावा साइकिलिंग, लंबी वॉक पर जाना, शॉपिंग करना और फिल्में देखना अच्छा लगता है। मैं पुराने तमिल शोज बहुत देखती हूं। इसमें पुराने जमाने की तलवारबाजी का तरीका देखने को मिलता है। रशियन मूवी फेंसर और बिल्ला मेरी पसंदीदा फिल्में हैं।
एक स्पोर्ट्सपर्सन होने के कारण डाइट को ले कर किन बातों का खयाल रखती हैं?
मैं अपने प्रशिक्षक के निर्देशों के अनुसार डाइट लेती हूं। मुझे कभी यह नहीं लगता कि मैं अपने खानपान में किसी चीज की कमी महसूस कर रही हूं। यह जरूर है कि मुझे नियत मात्रा में ही शुगर, सॉफ्ट ड्रिंक और आइसक्रीम खाने की अनुमति है। पर मैंने हमेशा अपनी डाइट को एंजॉय किया है।
फिटनेस के लिए कौन-कौन सी खास एक्सरसाइज करती हैं?
पुलअप, पुशअप, स्क्वॉट करती हूं। रोजाना एक से दो घंटे का समय मैं एक्सरसाइज को देती हूं।
देश के लिए खेलने का आनंद कैसा होता है?
अपने देश के लिए खेलना हर एथलीट का सपना होता है। अपने देश और देशवासियों के लिए पदक जीतने से बड़ा दूसरा कोई अहसास नहीं हो सकता।
मां दुर्गा के हाथ में तलवार देख कर क्या महसूस होता है?
देवी दुर्गा को देख कर साहस और शक्ति का अहसास होता है। उनकी छवि महिलाओं को प्रेरित करती है कि वे भी बेखौफ हो कर अपने सपने को पूरा करें।