Thursday 18 November 2021 12:57 PM IST : By Ruby Mohanty

शैली ज्योति की अजरख कला में दिखती है गांधी विचारधारा

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जब कभी किसी भी प्रदर्शनी में जाएं और किसी बुनकर, हस्तशिल्प या कारीगर से कुछ खरीदें, तो उनके साथ बहुत मोलभाव ना करें, क्योंकि ये वे कलाकार हैं, जो देश की कला को बचाए हुए हैं। सच पूछा जाए, तो अपना देशप्रेम जतलाने के लिए किसी खास एनजीओ को जॉइन करने की जरूरत नहीं है, हर साल सिर्फ 5 मीटर खादी खरीदें, यह मानना है फैशन डिजाइनर शैली ज्‍याेति का, जो लंबे समय से गांधी जी के स्वधर्म और सर्वोदय से काफी प्रभावित रही हैं। उन्होंने अजरख कला पर विशेष काम किया है। गांधी जी के विचारों और उनके आंदोलनों को अपनी कला के माध्यम से उकेरने और लोगों में देश के प्रति जिम्मेदारी और प्रेम का जज्बा जगाने का काम किया है। शैली ज्योति का मानना है, ‘‘साल में एक बार 5 मीटर हथकरघा खादी खरीदना ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बुनकरों और हस्त शिल्प निर्माताअों के साथ जुड़ने का एक मानवीय और बेहतरीन तरीका है। गांधी जी ने अपने भाषण में कहा था, ‘‘ऐसे बुनकरों को 3 पैसे के बजाय 3 अाने दें, तो ज्यादा बेहतर है क्योंकि अाना की कीमत अधिक है। उन्हें महसूस होगा कि उन्होंने स्वराज जीत लिया है। सच तो यह है उन्हें सुरक्षा मिलेगी और हम अपने देश की कला को बचाने में एक तरह से मददगार साबित होंगे। मेरा काम 21वीं सदी के लिए प्रासंगिक नैतिक और शांतिपूर्ण समाज बनाने के लिए गांधी की राष्ट्र निर्माण की विचारधारा पर केंद्रित है, जो अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ता है।’’

कला का उद्देश्य 

शैली ज्योति का गुरुग्राम से भुज तक का सफर बहुत रोचक और मेहनतभरा है। उनका मानना है कि अजरख प्रिंट से तैयार ड्रेस मटीरियल या साड़ी तो हम सभी 2-4 साल में इस्तेमाल कर फेंक देते हैं। पर हाथ से बनी अजरख कला संग्रहालय में रखी जाती है। उन्होंने अजरख हुनर को बचाने के लिए अजरख कला पर काम किया है। अजरख कला के माध्यम से शैली ज्योति ने गांधी जी की विचाराधारा और आंदोलनों को बखूबी पेश किया है। उनकी कला में एक खास थीम होती है। अजरख कला में मछली को उन्होंने जगह दी है। गौर करें, मछली कभी भी अकेली नहीं चलती, वह सभी के साथ समूह में रहना पसंद करती है। समाज में भी एक विचार के लोग मिल कर काम करें, तो समाज में बदलाव अाता है। अजरख में मछली के माध्यम से देशप्रेम, अनुशासन, जिम्मेदारी और एकजुटता के महत्व को बताया है। कैसे बड़ी संख्या में मछलियां एक तालाब में एक साथ रहती हैं। यह सीख प्रत्येक देशवासी को लेने की जरूरत है। देश के प्रति हमारी क्या जिम्मेदारी है, यह सभी जान लें। जब मछलियांें की तरह सभी साथ चलेंगे, तभी देश में अार्थिक मजबूती अाएगी। अगर हम 5 मीटर खादी का कपड़ा खरीदेंगे, तो गांव में कई चरखे चलेंगे, इसका अंदाजा अाप लगा सकते हैं।

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उनकी अजरख कला में मछली के अलावा गोधूली का भी संदेश है। गोधूली संदेश में शैली ज्योति कहना चाहती हैं कि जीवन को ‘री-डिजाइन’ करने की जरूरत है, क्योंकि महामारी ने हमें जीवन को ले कर बहुत कुछ सिखा दिया है। व्यक्ति को चाहिए कि वह कुछ देर थम जाए। हमारे जीवन में गोधूली एक तरह का पॉज है, यह सोचने के लिए कि इंसान अपनी तरक्की के माध्यम से किधर जा रहा है। ‘टेक ए पॉज’ जीवन में कुछ समय के लिए थम जाएं। 

शोज कैसे-कैसे

शैली ज्याेति का पहला शो 2008 में ‘इंडिगो नेरेटिव’ थीम पर हुअा। उनका कहना था कि इस शो में इंडिगो के माध्यम से मैं यह बताने की कोशिश कर रही थी कि हमारे पूर्वी भारत के किसानों को नील की खेती जबर्दस्ती करने को कहा जाता था। 1917-18 में जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से 
वापस अाए, तो उन्होंने इनके लिए चंपारण आंदोलन किया। अरबी भाषा में अजरख का मतलब इंडिगो है। इंडिगो ब्लू से मेरा क्रश पहले से ही था और इसलिए अपने पहले शो इंडिगो नेरेटिव में मैंने चंपारण आंदोलन की बारीकी को अपनी कला का माध्यम से लोगों के सामने पेश किया। किसानों की मेहनत और नील की खेती का महत्व लोगों के सामने लाना जरूरी था। इसके बाद मेरा अगला शो ‘सॉल्ट ः द ग्रेट मार्च’ पर हुअा।’ शैली ने अजरख अार्ट वर्क के कई पैटर्न बनाए, जिससे ब्लाउज, साड़ी, स्टाेल तैयार हो सकते हैं। कोई भी डिजाइनर खुद कला के माध्यम से समाज में बदलाव ला सकता है। अगर काेई खादी पसंद करता है, तो वह अपने पूरे व्यक्तित्व को बदल सकता है। यह मात्र कपड़ा खरीदना ही नहीं है, देश की अार्थिक व्यवस्था को मजबूती देना भी है।’’ 

अजरख कला की प्रक्रिया

शैली ज्योति के लिए स्‍टाइल महत्‍वपूर्ण है, पर वह अजरख के पूरे प्रोसेस से रूबरू होना चाहती थीं और यही वजह है अाज भी वह साल में एक बार एक महीने के लिए खुद भुज जाती हैं। शैली ज्योति का मानना है, ‘‘दरअसल, अजरख की डिमांड पूरे विश्‍व में है, पर 4,500 साल पुराने इस हुनर के कारीगर बहुत कम रह गए हैं, जो फिलहाल गुजरात के अजरखपुर, राजस्‍थान और पाकिस्तान में हैं। पहले सन 1819 फिर 2001 में कच्छ भूकंप के बाद कच्छ का पानी बहुत ज्यादा खराब हो गया, जो अजरख की कला के लिए सही नहीं था। इसीलिए इस परेशानी से बचने के लिए कारीगर वहां से शिफ्ट हो गए, जो अाज वह जगह अजरखपुर के नाम से जानी जाती है। अजरख के काम के लिए पानी की बहुत जरूरत होती है। पहले कपड़े को हरड़ के पानी में रातभर भिगोया जाता है, उसे धूप में सुखाया जाता है फिर उसे पानी से धोया जाता है। फिर वह डिजाइनर की टेबल तक अाता है और अंत में उस पर मार्किंग होती है। पानी की अधिक जरूरत के कारण कारीगर कच्छ के किनारे रहते हैं।’’

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अजरख कला की पूरी प्रकिया में काफी मेहनत लगती है। इससे उनके पूरे परिवार की रोजी-रोटी चलती है। यह कला पूरे विश्व की धरोहर है। इसे बचाने के लिए अाप भी जिम्मेदारी लें। परिवार में किसी का जन्मदिन होता है, तो हम उसे कुछ ना कुछ गिफ्ट करते हैं, लेकिन 15अगस्त, 26 जनवरी, 2 अक्तूबर में अपने देश को उपहार क्यों नहीं दे सकते। इसके लिए ज्यादा नहीं, सिर्फ अपने लिए खादी खरीदें और अपनों को खादी उपहार में दें।