कुदरत ने उन्हें जैसे भी बनाया, उन्होंने सहर्ष कबूला, आज वह भारत की पहली ट्रांसजेंडर जज बनी चुकी हैं। उनकी नियुक्ति पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर की लोक अदालत में की गयी है। ‘‘अपनी दो बहन के बाद मैं थी। मां बाबा ने मुझे लड़का माना था। नाम जयंत रखा था, लेकिन जब मैं बड़ी होने लगी, स्कूल में लोग मुझे छेड़ने लगे। मुझे खुद अपने आप में आए बदलाव ने अचरज में डाल दिया था। मैं बाकियों से अलग हूं। ना स्त्री में ना पुरुषों में । मैं ट्रांसजेंडर हूं। यह बात मैं जानने लगी थी। लेकिन दिल ने स्वीकार भी करने लगता था कि मेरे तरीके के लोग हजारों में एक होते हैं।’’
मिलिए, जोयिता मंडल से! जो वाकई में हजारों नहीं, बल्कि लाखों में एक हैं। 29 साल की उम्र में बनी लोक अदालत में भारत की पहली ट्रांसजेंडर जज, जो ना सिर्फ प्रतिष्ठित पद है, बल्कि देश के लिए भी गर्व की बात है। ट्रांसजेंडर के लिए बंधी-बंधाई लीक को तोड़ कर उन्होंने यह सम्मानजनक पद हासिल किया लेकिन इस मुकाम तक पहुंचना बहुत संघर्षभरा था।
बहुत से प्रोफेशन में से आपने सामाजिक कार्यकर्ता का प्रोफेशन ही क्यों चुना? पूछने पर वह कहती हैं, ‘‘बचपन से मैं समाज के लिए काम करने का इरादा रखती थी। मैं और मेरे जैसे लोगों ने इस समाज को सहर्ष स्वीकारा, लेकिन समाज ने हमें कभी नहीं कबूला। मैंने सोचा कि क्यों ना समाज में कुछ बदलाव किया जाए। 2006 में दसवीं कक्षा पास कर चुकी थी। मैं एक हेल्थ कैंप लगानेवाले स्वयंसेवी संथान से जुड़ी। वहां पर मैं कोई भी खास जिम्मेदारी ले लेती थी। मानव सेवा करना मुझे बचपन से अच्छा लगता है। आज भले ही वह संस्था बंद हो गयी लेकिन मुझे खुद से अवगत तो उसने ही कराया। ’’
नया मोड़ जिंदगी का
जोयिता 2010 से सोशल वर्कर के रूप में काम कर रही हैं। इस काम को करते हुए उन्होंने इसराइट्स अॉफ एलजीबीटी (लेस्बियन गे बाईसेक्सुअल ट्रांसजेंडर) के अधिकार के बारे में जाना। उनका मानना था कि ‘‘समाज भले ही हमें दूसरी नजर से देखता हो, लेकिन जब ऐसे लोग कैंप में मुफ्त इलाज और शरण के लिए हमसे सेवा लेने आते हैं, तो ट्रांसजेंडर के प्रति नजरिया पूरा बदल जाता है। उन्हें इस कैंप से पूरी सहायता मिलती थी। अपने इस काम की सराहना देख कर जोयिता को लगा जिस काम में इतना आदर है, तो क्यों ना इसी को जीवन का लक्ष्य ही बनाया जाए।’’
यही जोयिता की लाइफ का टर्निंग पॉइंट था। अपने वजूद को ले कर उनकी लड़ाई, परिवार के साथ भी चल रही थी। मां-बाबा उन्हें बहुत प्यार करते हैं, लेकिन वे उनके ट्रांसजेंडर होने की बात को कभी नहीं स्वीकार कर पाए। वे कहते थे कि समाज को ले कर इतने कामों में क्यों लगे हो? जैसे हो, वैसे ही घर में रहो। यहां खाना-पीना सब मिल तो रहा है। पर सच तो यह है कि तन-मन में चल रही, इस जद्दोजहद में जोयिता अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही थी।
सेवाएं कैसी कैसी
2009 में घर छोड़ कर वह पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर में चली आयी। नौकरी के लिए कॉल सेंटर ज्वाइन किया। वहां भी उनका मजाक बनाया जाने लगा। कहीं पर कोई किराये पर कमरा देने के लिए तैयार नहीं हुआ। ऐसे में उन्हें अकसर खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ी। जोयिता बताती हैं कि उस दौरान मैं अपने समुदाय के लोगों से छिपछिप कर मिलती थी। हम लोग ने समाज सेवा के लिए अपना संगठन बनाया। धीरे-धीरे जोयिता के काम को सामाजिक कार्य का दर्जा मिला। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने उनके काम को बहुत सराहा। इसके बाद जोयिता एक सामाजिक संस्था से जुड़ी और सोशल वर्क को ही अपने जीवन का आधार बना लिया।
इसी के चलते उन्होंने मानव व्यापार, एचआईवी प्रोजेक्ट, सेक्सवर्कर, ब्लड डोनेशन कैंप, अनाथ बच्चे, बूढ़े और लाचार लोगों के लिए काम किया । ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट, जोयिता की लंबी लड़ाई का सुखद अंत हुआ। अब वह लोक अदालत की जज बन चुकी हैं। ऐसे में वह दूसरों को न्याय दिलाने का काम कर रही हैं। लोक अदालत में नियुक्ति के फैसले से जोयिता काफी खुश हैं।
कोलकाता युनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर चुकी जोयिता कहती है, ‘‘सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मेरा काम देखा है। ट्रांसजेंडर हूं इसीलिए नहीं। देश में काफी ट्रांसजेंडर्स ऐसी है, जिन्हें आगे आने का मौका मिले, तो वे काफी बेहतर कर सकती हैं। मेरी तरह कई और भी ट्रांसजेंडर हैं, जिनके काम को पहचाना जाना चाहिए । ट्रांसजेंडर्स में से कई लोग तो बहुत पढ़े-लिखे हैं। लेकिन इनके लिए नौकरियां नहीं हैं। ट्रांसजेंडर्स को सिर्फ सेक्स वर्कर, भिखारी या बधाई पार्टी में जानेवाले ही ना समझें। मुझे अपने ट्रांसजेंडर होने पर दुख नहीं। जो हूं, मै खुश हूं अपने वजूद को साबित करने के लिए मुझे जितना दूर भी जाना हो, जाऊंगी। मैं समाज से जुड़ी हुई हूं, इसीलिए समाज को मुझे कबूलना होगा। किसी दूसरे के लिए मैं खुद को बदलना नहीं चाहती।’’
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
जोयिता की समाज सेवा को देखते हुए पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर के लोक अदालत में जज के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मिली अलग पहचान सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वोटर आईडी कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट से ले कर तमाम प्रतियोगी परीक्षाअों और सरकारी व गैर सरकारी फॉर्म में अब थर्ड जेंडर के रूप में ये अपनी पहचान दर्ज करा सकती हैं। इंडियन रेल और आईआरटीसी ने भी नवंबर 2016 में टिकट रिजर्वेशन फॉर्म में ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर के रूप में शामिल किया गया। सेंट्रल यूनिवर्सिटी और तमाम शिक्षण संस्थानों में भी अब इन्हें अवसर दिए जा रहे हैं। उन्हें ऐसा वार्ड चाहिए जहां वे सहज हो सकें।
जोयिता अपने नए जीवन और अोहदे से खुश है उनके काम को धीरे धीरे राज्य सरकार, स्थानीय संस्थाअों की ओर से सम्मान मिल रहा है। राष्ट्रीय स्तर के कई गीत संगीत के प्रोग्रामों में मुख्य अतिथि के रूप में जाना भी गर्व महसूस करता है।