अमित टंडन को हम फैमिली मैन कह सकते हैं। उनकी कॉमेडी को पूरे परिवार के साथ बैठ कर देखा जा सकता है। पति-पत्नी की नोंकझोंक हो या बच्चों की शरारतें, मध्यवर्गीय हसरतें हों या व्यवस्था की दिक्कतें, अमित बहुत सहजता से इनके बारे में बात करते हैं और अंदाजे बयां कुछ ऐसा होता है कि उनके मुंह से कोई बात निकलने से पहले ही हंसी आ जाती है। आखिर तमाम इंजीनियरों को क्या हो गया कि वे इंजीनियरिंग छोड़ कर बाकी सब कुछ कर रहे हैं? अमित हंस कर जवाब देते हैं, ‘‘हमारे देश में इंजीनियरिंग तो 12वीं की तरह हो गयी है। कोई चॉइस ही नहीं होती स्टूडेंट्स के पास। माता-पिता ने कह दिया कि करनी है तो कर लेंगे। बहरहाल, मेरे लिखने की शुरुआत कॉलेज से हो गयी थी। तब ऐसा कुछ नहीं सोचा था, कॉमेडी 34-35 की उम्र में शुरू की। पहले यह शौकिया थी, मगर लोगों को पसंद आयी, तो सिलसिला चल निकला।’’
फैमिली मैन वाला अंदाज क्या सोच-समझ कर अपनाया? इस पर अमित कहते हैं, ‘‘मैं शादीशुदा हूं, 2 बच्चों का बाप हूं। मेरे अनुभव परिवार से ही जुड़े हैं। मैं चाहता हूं कि जो भी करूं, उसे परिवार के साथ बैठ कर लोग देख सकें। जो कुछ हम देख रहे हैं, झेल रहे हैं, कॉमेडी वहीं से निकलती है। मेरे लिए परिवार और बच्चे ही मेरा सबसे बड़ा मुद्दा हैं, तो मैं इन्हीं पर लिखता हूं। कोई युवा लड़का स्टेज पर कॉमेडी करेगा, तो शायद उसकी प्राथमिकता अलग होगी, वह अपनी उम्र के लोगों की पसंद के हिसाब से कॉमेडी करेगा। कॉमेडी ईमानदारी की मांग करती है। मैंने अपने बचपन में बंटवारे की बातें सुनी हैं। एक बार तिहाड़ जेल गया, कई तरह के किस्से सुनने को मिले। तो मैंने उन्हीं को अपना विषय बनाया। हम मध्यवर्गीय लोग हैं, हमेशा ट्रेनों से सफर किया, फिर फ्लाइट में चलने लगे, तो यहां भी कई शिकायतें करने लगे। मैंने ऐसे ही तमाम अनुभवों से अपने सब्जेक्ट्स लिए हैं।
लॉकडाउन में क्या किया? अमित कहते हैं, ‘‘कोविड ने हमें भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर परफॉर्म करने के लिए बाध्य किया। मैंने जूम शोज करने शुरू किए। बहुत अलग है यह माध्यम। स्टेज पर हम फ्रंट रो में बैठे लोगों से कम से कम 20 फुट की दूरी पर खड़े होते हैं, लेकिन यहां कैमरे के इस पार-उस पारवाला मामला है। अपनी पूरी बॉडी लैंग्वेज को ही बदल देना होता है। फिर भी मुझे इस बीच एक्सप्लोर करने के ढेर सारे मौके मिले। मैंने कॉमेडी फिल्म की कहानी लिखी, शोज के लिए भी लिखा। बीच में ऐसा भी दौर आया कि कुछ नहीं किया या फिर करने का वक्त नहीं मिला, लेकिन खुद को विस्तार देने के लिए कई आइडियाज मिले। क्रिएटिविटी के लिए कुछ खाली समय भी जरूरी होता है, तो मेरे लिए लॉकडाउनवाला दौर कुछ ऐसा ही रहा।’’
कई बार किसी बात पर मूड खराब होता है, लेकिन स्टेज पर परफॉर्म करना है, तो कैसे संभालते हैं खुद को ऐसे वक्त में? अमित इस सवाल के जवाब में अपना एक अनुभव सुनाते हैं, ‘‘एक बार मैं कनाडा में परफॉर्म कर रहा था। मेरे पापा को अभिनेत्री श्रीदेवी जी के गाने बहुत पसंद थे। मैं अपने लगभग हर शो में श्रीदेवी जी के बारे में कुछ ना कुछ जरूर रखता था। शो शुरू होने जा रहा था कि उससे तुरंत पहले श्रीदेवी जी की आकस्मिक मौत की खबर मिली। शो में उन पर मुझे 10-15 मिनट बोलना था, मगर उनकी मौत मेरे लिए एक झटके की तरह थी। श्रीदेवी जो को देख कर हम बड़े हुए हैं, मेरे पापा उनके फैन थे। शो का पूरा फॉर्मेट कॉमेडी का है और यहां ट्रेजेडी हो गयी है। बहरहाल, हमने शो में दो मिनट का मौन रखा और फिर कोई नया सिरा ढूंढ़ कर बात शुरू की। दर्शक भी उदास थे, मगर फिर जब मैंने बात शुरू की, तो कुछ देर बाद भीड़ की हंसी सुनायी देने लगी। शो हिट गया। कॉमेडी का नियम है कि मौलिक रहें। नकल ना करें। जॉनी लीवर की तरह ही मिमिक्री करनी है, तो लोग आपको क्यों देखें, जॉनी लीवर को क्यों ना देखें। इसलिए कभी यह ना सोचें कि मार्केट में क्या चल रहा है। वही करें, जो आपका दिल करे, वही बेस्ट होगा।’’