जल्दी शादी की उम्र 18 से 23 साल और देर से शादी की उम्र 30 साल के बाद। आज के दौर में शादी की सही उम्र 24 से 28 वर्ष है। पर शादी की जगह आज की प्राथमिकता कैरिअर, पर्सनल फ्रीडम, पैसा और भौतिक सुख-सुविधाएं हैं। जब तक शादी होती है, उम्र का अहसास होने लगता है। लो फर्टिलिटी और लो लिबिडो की परेशानी से अस्पताल की ओर रुख करने के साथ वैवाहिक जीवन की शुरुआत होती है। दिल्ली की मैरिज काउंसलर और वरिष्ठ एडवोकेट अनुजा कपूर के मुताबिक, ‘‘लड़कियों की समय पर शादी होने से उनकी सेक्स में भागीदारी और ऊर्जा का स्तर ज्यादा होता है। दंपती अच्छी सेक्सुअल ड्राइव के साथ वैवाहिक जीवन की शुरुआत करते हैं। पर लेट मैरिज होने पर ऐसा नहीं होता। अकसर महिलाएं हारमोन्स की गड़बड़ी, आसानी से सेक्स में भाग ना ले पाने के साथ और भी कई तरह की मेडिकल परेशानी झेलती हैं। क्रोमोजोनल, बायलोजिकल और एनवाॅयरमेंटल ये तीन बातें महिलाओं की सेक्सुअल डिजायर को प्रभावित करती हैं। भारतीय महिलाओं की लिबिडो अच्छी है, बावजूद इसके, घर व ऑफिस की दोहरी जिम्मेदारी और कोई सपोर्ट सिस्टम ना होने की वजह से उनकी सेक्सुअल डिजायर कम होती है। घर का परिवेश ही अगर अच्छा नहीं होगा, तो लिबिडो अच्छा हाेनेे के बाद भी सेक्स लाइफ अच्छी नहीं होगी। पर सही उम्र में शादी हो, तो किसी भी तरह के प्रेशर में सेक्स में भागीदारी करने की वजह से कपल्स सेक्स एंजॉय कर पाते हैं। लिबिडो को कायम रखने के लिए साफ-सफाई, ओरल हाइजीन और कमरे में पसंदीदा महक महिलाओं को काफी प्रभावित करती है। लिबिडो का मतलब सेक्सुअली एक्टिव होना है। जबकि भारतीय समाज में महिलाओं के लिए मस्टरेबशन करना, सेक्स टॉय यूज करना अमूमन अच्छा नहीं माना जाता। वेजाइना फ्लूइड नहीं निकलने पर वेजाइनल इन्फेक्शन की परेशानी से भी वे अनजान है।’’ सच तो यह है कि जब सहमति से सेक्स की उम्र 18 साल है, तो शादी 32 में क्यों? शादी सेक्स को वैधानिक बनाती है। स्त्री-पुरुष पहले से ही सेक्स में इन्वॉल्व हैं, तो देरी से शादी लिबिडो पर कोई बुरा असर नहीं डाल सकती।
हारमोन्स को रखें दुरुस्त
आजकल लड़कियां कैरिअर में सेटल हाेते-हाेते 30 की उम्र में कदम रख चुकी होती हैं। इस उम्र में उनके सामने बहुत सारे चैलेंजेस होते हैं। नए रिश्ते में एडजस्टमेंट और बॉन्डिंग अच्छी करने का प्रेशर और बेबी प्लानिंग का प्रेशर, कैरिअर का प्रेशर। बहुत सारे स्ट्रेस से उनके हारमोन्स डिस्टर्ब होते हैं, जिससे थाइराॅयड, शुगर और बीपी की परेशानी हाेने लगती है। यही वजह है, जो उनकी सेक्स ड्राइव ही नहीं, फर्टिलिटी पर भी असर करता है। गौर करें, जो भी हारमोन्स में बदलाव होते हैं, उसका डाइरेक्ट कनेक्शन ब्रेन से होता है। इसीलिए जो भी बात ब्रेन पर असर करेगी, उससे हारमोन्स प्रभावित होंगे।
फोर्टिस हॉस्पिटल, मुंबई की वरिष्ठ गाइनीकोेलॉजिस्ट डॉ. सोनल कुमता के अनुसार, ‘‘हारमोन्स को अच्छा रखने के लिए अपनी लाइफ स्टाइल पर ध्यान दें। खराब डाइट, व्यायाम की कमी, बढ़ता वजन, बहुत ब्लू रेजवाले गैजेट का इस्तेमाल हारमोन्स को खतरे में डालता है। अगर हारमोन्स में गड़बड़ी हुई, तो मेंस्ट्रुअल साइकिल बिगड़ेगा और सेक्स ड्राइव पर खराब असर आएगा। हारमोन्स को ठिकाने रखने के लिए मल्टीपल ट्रीटमेंट ऑप्शन हैं। सबसे खास बात है कि जो बातें हारमोन को डिस्टर्ब करती हैं उनकी जड़ तक जाएं, जैसे लाइफस्टाइल, जिसमें शामिल हैं हेल्दी डाइट, एक्सरसाइज और नींद। टीवी, मोबाइल जैसी चीजों से इंटेंस हारमोनल बदलाव हाेते हैं। रात को जल्दी खाना और सुबह जल्दी उठने की आदत से शरीर का बायोलॉजिकल क्लॉक ठीक रहता है। रोज 7-8 घंटे की नींद लेनी जरूरी है। पूरी नींद से बॉडी रिलैक्स होगी, मन खुश होगा। दिमाग शांत रहेगा, जिससे हारमोन्स की परेशानी नहीं होगी। कुछ महीनों के लिए हारमोन्स को ठीक रखने के लिए दवाएं भी ले सकती हैं।’’
तन और मन का कनेक्शन

कई शोधों से यह बात तय हो चुकी है कि तन औरर मन का लिबिडो पर असर पड़ता है। लेट मैरिज के फायदे कम पर नुकसान ज्यादा हैं। जैसे एडजस्टमेंट करने में दिक्कत, उमंग और उत्साह की कमी, सेक्स को ले कर कम क्रेज या नयी सेक्स पोजिशन ट्राई करने में हिचक। पैसों पर जरूरत से ज्यादा फोकस, फैमिली प्लानिंग और एक-दूसरे को जानने के लिए कम समय। बेबी बर्थ की जल्दी। इन्फर्टिलिटी और कंसीव करने में दिक्कत। बावजूद इसके दिल्ली की गेटवे ऑफ हीलिंग की फाउंडर साइकोथेरैपिस्ट डॉ. चांदनी तुगनैत की सलाह है कि रोज वर्कआउट करें, तो शरीर में डोपामाइन जैसे हैप्पी हारमोन्स प्रोड्यूस होंगे। पर अगर मन ही ठीक नहीं है, तो वर्कअाउट करने का भी मन नहीं करेगा। मेंटल हेल्थ को सही रखना जरूरी है। ठीक से डाइट लें। खुश नहीं रहेंगे, तो डिजायर प्रभावित होगी।
खुश नहीं रहने पर पति-पत्नी के बॉन्डिंग अच्छी नहीं होगी। मेंटल हेल्थ को अच्छा रखने के लिए रुटीन अच्छा रखें। बॉडी को हाइड्रेट रखें, नींद पूरी लें। अपने शौक का काम पूरा करें। योग और मेडिटेशन, ब्रीदिंग एक्सरसाइज के लिए समय निकालें। हड़बड़ाहट में खाना ना खाएं। जो भी काम कर रहे हैं, उस पर पूरी तरह से फोकस्ड रहें। जैसे खाना खाते वक्त खाने की खुशबू, स्वाद, प्रेजेंटेशन जैसी सभी बातों पर गौर करें। यही बात या यही संदर्भ दंपतियों पर भी लागू होता है। जब आप अपने पार्टनर के साथ रहें, तो पूरी तरह उस पर ही फोकस्ड रहें। हालांकि साथ रहने के बाद भी उन मधुर पलों में बहुत से कामों में दिमाग उलझा हुआ होता है, जिसकी वजह से उन निजी लमहों में भी कपल्स साथ नहीं रहते। मेडिटेशन से ध्यान केंद्रित करने की क्षमता डेवलप होती है, जिससे वे इंटीमेसी के पलों को बेहतर एंजॉय कर सकते हैं।
समय पर बॉडी चेकअप
देरी से विवाह की वजह चाहे कोई भी हो, पर स्त्री और पुरुष दोनों की बात करें, तो स्त्री के तन और मन पर खासतौर पर फर्क पड़ता है। बड़ी उम्र में मां बनने के खतरे को देखते हुए शादी करते ही चाइल्ड बर्थ करने की अर्जेंसी होती है। प्रेगनेंट होने पर महिलाएं पहले की तरह सेक्सुअली एक्टिव नहीं रह पातीं। कई बार तो हाई रिस्क प्रेगनेंसी की वजह से सेक्सुअल एक्टिवनेस वैसे भी कम हो जाती है। प्रोफेशनल लाइफ जरूरत से ज्यादा तनावपूर्ण होने पर ना चाहते हुए एक-दूसरे के लिए समय नहीं निकाल पाते, जिसकी वजह से उनकी सेक्सुअल एक्टिविटी पर बुरा असर होता है। सकारा वर्ल्ड हॉस्पिटल बंगलुरू के सीनियर कंसल्टेंट यूरोलॉजी एंड एंड्रोलॉजी डॉ. गोकुल कृष्णन पी.जे. के मुताबिक, ‘‘कई बार लेट मैरिज होने के अहसास से महिलाएं खुद काे आकर्षक महसूस नहीं करतीं, उनमें सेक्सुअल कॉन्फिडेंस भी कम हो जाता है। इस्ट्रोजन और कुछ एंड्रोजन हारमोन्स के अलावा न्यूड्रोएंड्रोक्राइन फीमेल लिबिडो और इच्छा पर असर रखता है। हारमोन्स को सही रखने के लिए अपनी लाइफस्टाइल पर ध्यान दें।अपने पार्टनर के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं। घर और ऑफिस लाइफ के बीच बैलेंस रखें। घर काे ऑफिस से मॉनिटर ना करें और ना ही घर पर ऑफिस का काम करें।एक-दूसरे की शरीर की जरूरत को समझें। अगर अकसर दोनों में एक को सेक्सुअल अर्ज की समस्या है, तो उनकी तह में जाएं। अगर पुरुष पार्टनर को इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी कोई भी समस्या है, तो उसका समय पर इलाज हो, इसका ध्यान रखें। वैसे समय-समय पर बॉडी का रुटीन चेकअप जरूर कराते रहें।