फैमिली में सभी लोग कितने भी बिजी क्यों ना हों, साथ में बैठ कर डिनर जरूर करें। परिवार के सभी लोगों पर इसका पॉजिटिव असर दिखेगा। दुनियाभर में हुई कई तरह की रिसर्च और स्टडीज ने इसे साबित किया है। फिर क्यों ना शुरुआत आज के डिनर से ही की जाए !
- अकसर पेरेंट्स की शिकायत होती है कि उनके बच्चों को हरी सब्जियां पसंद नहीं आतीं, वे फल खाने और दूध पीने से कतराते हैं। एेसा पाया गया है कि अगर बच्चों के साथ बैठ कर खाना खाया जाए, तो उनमें नए-नए स्वाद को स्वीकारने की आदत बनती है। दरअसल सबके साथ मिल कर खाना खाने के दौरान टेबल पर रखी खाने-पीने की चीजों में मौजूद न्यूट्रिशन की भी बातें होती हैं, जो बच्चों पर पॉजिटिव असर डालती हैं। क्लीनिकल जर्नल में न्यूट्रिशन पर छपी एक रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया है।
- परिवार के साथ खाना खाने वाले टीनएजर्स फल और सब्जी खाने को ले कर नानुकुर नहीं करते। फास्ट फूड और सॉफ्ट ड्रिंक्स में इनकी दिलचस्पी कम होती है। इनकी सेहत के लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है !
- घर में परिवार के साथ बैठ कर खाना खाने का एक और फायदा है। रेस्टोरेंट की तुलना में होममेड फूड खानेवाले के मोटे होने के चांसेज कम होते हैं। घर के खाने से बॉडी को 60 प्रतिशत तक कम कैलोरी मिलती है। साथ ही घर का खाना न्यूट्रिशन से भरपूर भी होता है।
- फैमिली के साथ खाना खाने वाले आमतौर पर मोटापे से दूर रहते हैं। दरअसल एेसे बच्चों में नियमित रूप से डाइनिंग टेबल पर बैठने की आदत हो जाती है। वे परिवार के दूसरे सदस्यों को फॉलो करते हुए घर का बना पोषण से भरा खाना खाते हैं। इतना ही नहीं परिवार के दूसरे सदस्यों को खाना परोसते और एक-दूसरे की मदद करते देख कर वे भी एेसा करना सीख जाते हैं।
- एक रिसर्च में यह भी पता चला है कि परिवार के साथ खाना खाने वाले स्कूल और कॉलेज में अच्छा परफॉर्म करते हैं। देखा गया कि सप्ताह में 5 से 6 बार परिवार के साथ डिनर करने वाले किशोर बच्चों के एग्जाम के रिजल्ट पर अच्छा असर हुआ।
- मल्टीनेशनल कंपनी आईबीएम के वुमन एंप्लॉइज पर हाल ही में हुई स्टडी काफी मजेदार है। लंबे समय तक ऑफिस में काम करनेवाली वर्किंग मदर्स टेंशन की शिकार हो जाती हैं। एेसे में परिवार के साथ नियमित खाना खाने से इनका स्ट्रेस कम होता है।
- सप्ताह में कम से कम 4 से 5 बार अपने परिवार के साथ डिनर करनेवाले टीनएजर साइबर बुलिंग के बुरे प्रभावों से बचे रहते हैं, जोकि इंटरनेट के इस दौर के लिए जरूरी भी है। इतना ही नहीं, इस वजह से इनमें तनाव और चिंता भी कम होती है।
- किशोर उम्र के बच्चों में आत्महत्या की आशंका पायी गयी है। पढ़ाई का प्रेशर हो या फिर किसी दूसरी वजह से निराशा हाथ लगने पर वे सुसाइड कर लेते हैं। स्टडी में पाया गया है कि अगर शुरू से ही बच्चे परिवार के साथ बैठ कर खाना खाएं, तो बड़े होने पर वे तुरंत घबरा कर आत्महत्या करने की नहीं सोचते हैं।