Wednesday 29 September 2021 04:31 PM IST : By Nishtha Gandhi

फैमिली के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताने के लिए आजमाएं ये 25 टिप्स

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आजकल बेशक कोरोना संबंधी पाबंदियां हट गयी हों, लेकिन फिर भी खासकर बच्चों और बुजुर्गों के बाहर जाने पर पाबंदी है। इस वजह से एंग्जाइटी, गुस्सा और बोरियत भी हद से ज्यादा बढ़ गए हैं। बच्चे जहां बहुत ज्यादा चिड़चिड़े हो गए हैं, वहीं बुजुर्गों में डिप्रेशन के मामले बढ़ रहे हैं। बेशक आज सभी घर में हैं, लेकिन फिर भी अकेलेपन के शिकार हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि सब अपने काम के अलावा स्मार्टफोन में भी बिजी हैं। काम से जो समय बचता है, वह या तो ओटीटी प्लेटफाॅर्म पर मूवी देखने में जाता है, गेम खेलने में जाता है और सोशल मीडिया पर चैटिंग करने व पोस्ट देखने में जाता है। स्मार्टफोन की दुनिया में बिजी व्यक्ति इस बात से पूरी तरह अनजान रहता है कि उसके आसपास क्या हो रहा है। यह एक तरह का नशा है, जिसकी बुरी लत लगने पर उसे छोड़ना बेहद ही मुश्किल होने लगता है। सीएमआर और वीवो कंपनी द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि कोरोना पैनडेमिक के दौरान भारतीयों द्वारा स्मार्टफोन पर बिताए जानेवाले समय में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पहले जहां एक भारतीय औसतन 4-5 घंटे स्मार्टफोन पर बिताया करता था, वहीं अब वह समय बढ़ कर 7-8 घंटे हो गया है। जाहिर सी बात है पहले वर्क फ्राॅम होम के 8-10 घंटे, फिर स्मार्टफोन पर 7-8 घंटे, फिर रोजमर्रा के काम के 2-3 घंटे, तो ऐसे में बाकी बचे 4-5 घंटों में नींद पूरी करें या फिर परिवार के साथ समय बिताएं। अकसर पेरेंट्स की शिकायत रहती है कि बच्चे सारा समय मोबाइल पर चिपके रहते हैं, लेकिन अगर उनसे पूछा जाए कि वे कितना समय आॅनलाइन या स्मार्टफोन पर बिताते हैं, तो कमोबेश वही स्थिति निकल कर आएगी। एक्सपर्ट्स की मानें, तो यही सारी स्थितियां कई तरह की मानसिक समस्याओं के लिए भी जिम्मेदार हैं, जिनमें एंग्जाइटी, चिड़चिड़ापन, हरी सिकनेस, डिप्रेशन जैसी समस्याएं प्रमुख हैं। पिछले दिनों जहां डिप्रेशन के मामले बहुत बढ़े, वहीं ऐसे मामलों में भी बढ़ोतरी देखी गयी, जिनमें घर के बुजुर्ग इस कदर परेशान हो गए कि किसी को बिना बताए चुपचाप घर छोड़ कर भी चले गए। इन सब समस्याओं का हल सिर्फ यही है कि हम खुद में इस तरह से बदलाव लाएं कि परिवार में सभी एक-दूसरे के साथ समय बिताना एंजाॅय कर सकें। 

जब घर में हों छोटे बच्चे

2-6 साल की उम्र के बच्चे हों, तो उन्हें समझाना और संभालना आपको मानसिक रूप से इस कदर थका देगा कि आप खुद ही झुंझला जाएंगे। उस पर ना तो आप उन्हें बाहर कहीं घुमाने ले जा सकते हैं और ना ही खुद घर से बाहर जा सकते हैं। इन बच्चों को दिन भर बिजी रखने के लिए आजमाएं ये बातें-

1 दो साल के बाद से बच्चों के हाथों की मांसपेशियों का विकास होने लगता है, इसलिए इन्हें घर में ही रह कर कलरिंग करने की प्रैक्टिस करवाएं। इनके लिए एक एक्टिविटी बेस्ड मैगजीन मंगवाएं, जिनसे इनका टाइम पास भी हो और ये कुछ सीख भी सकें।

2 इन बच्चों को किसी सीमा में बंध कर रहना पसंद नहीं आता, मसलन आप अगर इन्हें बुक में कलरिंग करने को कहेंगी, तो ये आपके हाथ नहीं आएंगे, इनके लिए चाॅक लाएं। घर में अगर खुली छत या आंगन हो, तो वहां के फर्श पर इन्हें चित्रकारी करने को कहें। इस तरह ये बच्चे अलग-अलग शेप्स बनाना सीखेंगे। इससे इनकी मांसपेशियों का विकास होता है और बच्चों की क्रिएटिविटी भी बढ़ती है।

3 बच्चों को इनकी पसंद के अनुरूप एजुकेशनल टाॅयज खेलने को दें। कुछ को पजल्स बनाना अच्छा लगता है, तो कुछ को बिल्डिंग ब्लाॅक्स से खेलना। इस समय बाहर जाना सेफ नहीं है, इसलिए आॅनलाइन टाॅयज मंगवाए जा सकते हैं। नए खिलौने के साथ बच्चे पूरा दिन बिजी रह सकते हैं।

4 बच्चों के लिए चिप्स, टाॅफीज और चाॅकलेट का स्टाॅक मंगवा कर रखें। कई बार बच्चे बोरियत के कारण चिड़चिड़े हो जाते हैं, ऐसे में उन्हें चिप्स का छोटा पैकेट, एक-दो टाॅफियां या छोटी चाॅकलेट दे कर शांत किया जा सकता है। 

जब बच्चे हों थोड़े समझदार

5 आॅनलाइन पढ़ते समय इनका स्क्रीन टाइम पहले ही बहुत ज्यादा हो चुका होता है, इसलिए गेम्स खेलने या वीडियो देखने का इनका समय तय करें। इस मामले में किसी तरह की ढिलाई ना करें। 

6 दिनभर में इनके साथ बातचीत करने, बोर्ड गेम्स खेलने का समय जरूर निर्धारित करें। मोनोपोली, बाॅगल, कैरम, लूडो, ताश जैसे गेम्स इनका दिमाग डेवलप करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन इन्हें यह गेम्स खेलना आपको सिखाना होगा। हो सके, तो इस काम में घर के बुजुर्गों काे इन्वाॅल्व करें।

7 इस उम्र के बच्चों में कोई ना कोई हाॅबी जरूर डेवलप करें, जैसे पेंटिंग, डांसिंग, एक्टिंग, आर्ट एंड क्राफ्ट, क्रिएटिव राइटिंग आदि। 

8 बच्चों के साथ मिल कर पौधों में पानी देना, घर की डस्टिंग करना या कुकिंग जैसे काम घर में पाॅजिटिविटी बढ़ाते हैं। बच्चे जब कोई काम करते हुए गंदगी फैलाते हैं, तो उनके साथ डांट-डपट ना करें, जब उनका काम पूरा हो जाए, तो उन्हें ही उस गंदगी को साफ करने को कहें।

9 यह ना सोचें कि छोटे बच्चे सारा दिन अपने आप खेलते रहेंगे। ये बच्चे ना तो कैरम, लूडो और सांप सीढ़ीे जैसे गेम्स खेल सकते हैं और यकीन मानिए ये आपको भी नहीं खेलने देंगे। इनके साथ आपको इनकी पसंद के गेम्स खेलने होंगे, जैसे बैट बॉल, पकड़मपकड़ाई,छुपनछुपाई आदि। खेल-खेल में रोल इनैक्ट करते हुए इन्हें आप कई कहानियां और राइम्स सिखा सकती हैं। 

10 घर के किसी ना किसी काम की जिम्मेदारी भी उन पर जरूर डालें, फिर चाहे वे पानी की बोतलें भरना हो, रोजाना टेबल साफ करनी हो, अपने रूम की सफाई खुद करनी हो या फिर दादा-दादी के दवाई के समय का ध्यान रखना हो। इन्हें बाकी परिवार के साथ बैठ कर बातें करने और किस्से-कहानियां सुनने-सुनाने से कभी ना रोकें।

जब हों टीनएजर और युवा

11 गाजियाबाद के यशोदा हॉस्पिटल में साइकोथेरैपिस्ट डॉ. रागिनी सिंह का कहना है, ‘‘लॉकडाउन के दौरान बच्चों में गुस्सा और एग्रेशन बहुत बढ़ गया। ज्यादा समय ऑनलाइन रहने के कारण बच्चे गलत संगति में भी पड़ गए। मेरे पास एेसे कई केसेज भी आए, जिनमें माता-पिता बच्चों की गलत आदतों से परेशान थे।’’ टीनएजर जहां हद से ज्यादा मूडी और एरोगेंट होते हैं, वहीं वयस्क हो चुके बच्चे अपनी मनमानी करने वाले होते हैं, परिवार के साथ इमोशनली जोड़ने के लिए इन्हें इनकी दुनिया से बाहर लाना बहुत जरूरी है। 

12 सप्ताह में एक-दो बार दूर रह रहे फैमिली मेंबर्स से बच्चों की वीडियो कॉल करवाएं। हो सके, तो इन्हें फैमिली वॉट्सएप ग्रुप्स का मेंबर बनाएं, इसका फायदा यह रहेगा कि बच्चे गलत दोस्तों की संगति में फंसने से बच जाएंगे। 

13 बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार कोई आॅनलाइन क्लास भी जाॅइन करवा सकते हैं, जैसे जूडो, डांसिंग, स्केचिंग, वेदिक मैथ्स, एबैकस,कोडिंग, गेम डेवलपिंग, बाॅक्सिंग, योगा, एरोबिक्स, इंस्ट्रूमेंटल या वोकल म्यूजिक आदि। 

14 टीनएजर को अपनी लाइफ और कमरे में पेरेंट्स का ज्यादा दखल पसंद नहीं आता। इसलिए इनके कमरे में ताकाझांकी ना करें और ना ही इनके सामने इनके फोन की हिस्ट्री चेक करें। लेकिन कुछ रूल्स इनसे जरूर फाॅलो करवाएं, जैसे खाने और नाश्ते के समय पूरा परिवार इकट्ठा बैठेगा। इस दौरान इनसे बातचीत करें। 

15 सप्ताह में एक बार इन्हें किचन संभालने दें। छोटे-मोटे काम जैसे चाय या सैंडविच बनाना, पास्ता या पुलाव जैसी चीजें बनाना इन्हें सिखाएं। जब वे कुछ कुकिंग करें, तो ढूंढ़-ढूंढ़ कर इनके बनाए खाने में कमियां ना निकालें। 

घर के बुजुर्ग कैसे रहें खुश

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16 बुढ़ापा अपने साथ जिद और चिड़चिड़ापन दोनों लाता है। साथ ही इनमें एक असुरक्षा की भावना भी होती है। इसलिए इनकी आदतों को सुधारने की कोशिश ना करें। ऐसा करने पर इन्हें लगने लगेगा कि अब हम बेकार हो गए हैं, तो घर में हर बात के लिए हमें ही गलत ठहराया जाता है।

17 डॉ. रागिनी सिंह का कहना है, ‘‘इस पैनडेमिक में सबसे ज्यादा ज्यादती बुजुर्गों व बच्चों के साथ हुई है। इनमें एग्रेशन और डर की बहुत बढ़ोतरी हुई है। हमारे पास कई पेशेंट्स एेसे आए, जिनमें डिप्रेशन के कारण या तो गुस्सा बहुत बढ़ गया या फिर उन्होंने एकदम चुपचाप रहना शुरू कर दिया। इनसे पुरानी बातों के बारे में बातचीत करें, इससे बुजुर्गों का मनोबल बहुत बढ़ता है और यह महसूस होता है कि वे भी अपने समय में बहुत सशक्त रहे हैं।’’

18 बुजुर्गों पर बच्चों को पढ़ाना, उनके साथ छत पर टहलना, खाना खिलाना जैसी छोटी-मोटी जिम्मेदारियां डालें। अगर वे एक्टिव हैं, तो अपने डर के मारे उन्हें एक कमरे तक सीमित ना कर दें। हो सके, तो सास-ससुर को एक वक्त का खाना, चाय, नाश्ता बनाने दें।

19 लूडो, ताश, सांप सीढ़ी जैसे गेम्स में उन्हें जरूर इन्वाॅल्व करें। अगर आपका ज्यादातर समय आॅफिस के काम में बीतता है, तो कुछ देर उनके पास बैठ कर भी काम करें। 

20 इन्हें छोटे बच्चों को आॅनलाइन क्लास दिलवाने की जिम्मेदारी दें। टीचर्स जब बच्चों के साथ दादा-दादी को बैठे देखते हैं, तो उन्हें बाकी बच्चों को किस्से-कहानियां सुनाने या गुड हैबिट्स सिखाने की जिम्मेदारी दे सकते हैं। अपने इस नए रोल से दादा-दादी का दिल बहलेगा और बच्चों को उन पर गर्व होगा।

21 लाॅकडाउन के दौरान कई धार्मिक एक्टिविटीज जैसे हवन, कीर्तन आदि भी आॅनलाइन होने शुरू हुए थे। आसपास के ऐसे ग्रुप्स से इन्हें जोड़ें, जिससे कि दिन के एक-दो घंटे का समय आसानी से बीत सके। 

22 बच्चों को यह जिम्मेदारी दें कि वे दादा-दादी को इंटरनेट सर्फ करना सिखाएं, इससे वे भी आॅनलाइन भजन, प्रवचन आदि सुन सकते हैं। 

23 कुछ लोग घर के बुजुर्गों को ले कर हद से ज्यादा प्रोटेक्टिव हो जाते हैं और इनके घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा देते हैं। एेसा ना करें, इन्हें समय-समय पर किसी रिश्तेदार के घर ले जाएं। 

24 समय-समय पर रिश्तेदारों से इनकी वीडियो कॉल जरूर करवाएं। इससे इन्हें यह अहसास रहेगा कि सब लोग अभी भी आपस में जुड़े हुए हैं। 

25 पेरेंट्स या सास-ससुर के साथ रहने को बंधन ना मानें। यह जान लें कि सिर्फ थोड़े से एडजस्टमेंट से आपको इतने फायदे मिलेंगे कि आप सोच भी नहीं सकते। आपको सिर्फ उनकी बात पर चुप रहना है और यह सोचना है कि एक चुप सौ सुख के बराबर है।