Friday 16 July 2021 03:09 PM IST : By Nishtha Gandhi

बच्चों को कैसे सिखाएं एंगर मैनेजमेंट

teenage

गुड़गांव के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में 2017 में दूसरी कक्षा के एक छात्र प्रद्युम्न की हत्या हुई थी। उसका आरोपी निकला 11वीं कक्षा का छात्र, जिसने महज पीटीएम और एग्जाम टालने के लिए बेरहमी से छोटे बच्चे की हत्या कर दी। दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा की एक अधिकृत पार्किंग में काम करनेवाला 17 साल का किशोर पता नहीं किस बात से गुस्से में था कि अंधाधुंध गाड़ी पार्क करते समय ना जाने कितनी गाडि़यों को टक्कर मार दी। उसके गुस्से की शिकार हुई गर्भवती महिला, जिसने अस्पताल जाने से पहले ही दम तोड़ दिया। रोहिणी कोर्ट में मर्डर के एक अपराधी को पेशी के लिए ले जाते समय अंधाधुंध फायरिंग हुई, जिसमेें अपराधी की मौत हो गयी। फायरिंग करनेवाला कोई शातिर और पेशेवर अपराधी नहीं, बल्कि महज 19 साल का किशोर था। 

दिल्ली के ही एक स्कूल में नवीं के एक छात्र का झगड़ा 11वीं के कुछ छात्रों से हो गया। उसे ‘देख लेने’ की नीयत से उन छात्रों ने स्कूल के बाहर उस छात्र को लोहे की रॉड से इतना पीटा कि उसने वहीं दम तोड़ दिया।

आखिर क्या वजह है कि युवाअों के गुस्से का पारा आसमान छू रहा है। बाल मनोविज्ञानी और काउंसलर डॉक्टर रेखा मल्होत्रा का कहना है, ‘‘किशोरावस्था में हिंसक स्वभाव मेल हारमोन टेस्टोस्टेरॉन के प्रभाव से है। यह हारमोन ताकत और स्टेमिना बढ़ाता है, जिसकी वजह से वे अपने अंदर ऊर्जा महसूस करते हैं, जो उग्र होते स्वभाव के रूप में निकलती है। परिवार और समाज की परिस्थितियां भी बच्चों के व्यवहार को हिंसक बनाने में योगदान देती हैं। दस में से 9 फिल्मों में हिंसा और मारधाड़ को महिमा मंडित करके दिखाया जाता है। वीडियो गेम्स में कार रेसिंग, बॉक्सिंग, पंचिंग वाले गेम्स ही अब बच्चों को ज्यादा पसंद आने लगे हैं। छोटी उम्र से ही बच्चे इस सारी मारधाड़ को हीरोइज्म से जोड़ कर देखने लगते हैं। परिवार में पिता का हिंसक व्यवहार भी बच्चों को वैसा ही व्यवहार दोहराने के लिए प्रेरित करता है। मेरे पास कुछ ऐसे भी केस आए हैं, जिनमें बच्चे अपने घर में घरेलू हिंसा होते हुए देखते हैं और फिर घर से बाहर वैसा ही व्यवहार करते हैं। उन्हें लगता है कि अपना गुस्सा दिखाने का यही एक तरीका है, जिससे सामने वाला डर जाएगा।’’ सिमटते परिवारों और समाज में अब सिर्फ और सिर्फ व्यक्ति ही अहम रह गया है। ‘हम’ से ‘मैं’ के इस सफर में हर व्यक्ति अपनी गाड़ी में अकेला बैठा तेज रफ्तार से चला आ रहा है, जिसके आगे अगर कोई आ जाए, तो पांव ब्रेक नहीं, बल्कि एस्कलेरेटर दबाते हैं। 

चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट और काउंसलर डॉ. रेणु गोयल का कहना है, ‘‘परिवारों का बदलता ढांचा बच्चों के मन की बेचैनी को हिंसा में तब्दील करने में अहम रोल निभा रहा है। पहले घर के बड़ों के सामने बच्चे चीखने-चिल्लाने से कतराते थे। इस तरह वे गुस्से को कंट्रोल करना सीखते थे। इसके अलावा चूंकि पहले बड़े संयुक्त परिवारों में छोटे बच्चे काफी संख्या में होते थे, इसलिए आपस में बातचीत और लड़ाई करके बच्चों की फ्रस्ट्रेशन काफी हद तक निकल जाती थी। अब स्थिति इसके बिल्कुल उलट है। बच्चों को अपनी भावनाअों को दबाना ही नहीं आता।’’

प्रद्युम्न हत्याकांड में जो हुआ, उसने पूरे देश को हिला दिया था। आखिर कैसे महज 16-17 साल का एक किशोर इतने क्रूर दिलवाला हो गया कि किसी बच्चे का बेरहमी से कत्ल करते समय वह जरा भी नहीं घबराया। डॉक्टर रेणु गोयल का कहना है, ‘‘मार-पिटाई, रेसिंग जैसे टास्क वाले वीडियो गेम्स आज के बच्चों के दिमाग पर बुरा असर डाल रहे हैं। उन्हें हर स्थिति में क्विक रिस्पाॅन्स करने की आदत पड़ रही है, जिसमें बटन दबाते ही एक्शन हो रहा है। उस बच्चे ने भी अपने इमोशन को डिले नहीं किया। नतीजा सबके सामने है।’’

बच्चों के हिंसक व्यवहार की शुरुआत घर से ही होती है। अगर समय रहते माता-पिता इन्हें समझ लें और उन्हें टोकना शुरू कर दें, तो बच्चे का गुस्सा हिंसा में नहीं बदलेगा जैसे-

- अगर बच्चा हर छोटी-बड़ी बात पर अपने दोस्तों से झगड़ पड़ता है। झगड़े में जरूरत से ज्यादा उग्र हो जाता है, बाद में देख लेने की धमकी देता है। वह धक्कामुक्की और मार-पिटाई करता है। 

- वह बात-बात में गालीगलौज करने लगा है और गुस्सा आने पर सामान उठा कर फेंकता है। 

- वह आते-जाते चीजों को पैरों से ठोकर मारता है, जानवरों के साथ बुरा व्यवहार करता है। 

- अपनी जिद ना पूरी होने पर वह बुरी तरह से खीज जाता है। गुस्से में खाना-पीना छोड़ देता है। 

- जब बच्चे की स्कूल से शिकायत आने लगे कि उसका व्यवहार बहुत उग्र और हिंसक हो रहा है। 

- अगर वह लंबे समय तक किसी के साथ दोस्ती नहीं रख पाता। 

- टीनएजर्स थोड़े मूडी तो होते हैं, लेकिन अगर उनका मूड पल-पल में रंग बदलने लगे, तो फिर समझ लें कि कहीं कुछ गड़बड़ है।

- वह किसी भी नियम, कायदे और अनुशासन को मानने से इंकार करने लगे।

मन को समझें पेरेंट्स 

डॉ. रेखा मल्होत्रा का कहना है, ‘‘बच्चों के हिंसक होते व्यवहार के जिम्मेदार माता-पिता भी हैं। वे बच्चों के साथ बैठ कर उन्हें अपनी भावनाअों को नियंत्रित करना नहीं सिखाते, नैतिक शिक्षा और किस्से-कहानियों की बातें अब कोई नहीं करता। जरूरी है कि माता-पिता दिन खत्म होने से पहले अपने बच्चों को पास बिठा कर यह जरूर पूछें कि क्या आज उन्होंने किसी की मदद की। इससे उन्हें अहसास होगा कि समाज के प्रति भी उनकी कुछ जिम्मेदारी है और जीवन का उद्देश्य सिर्फ अपने लिए ही जीना नहीं, बल्कि दूसरों की खुशी का ध्यान रखना भी है।’’

क्रेडी हेल्थ में क्लीनिकल साइकियाट्रिस्ट डॉ. मनीत वालिया का कहना है, ‘‘जिन परिवारों में माता-पिता अपने किशोर होते बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार नहीं रखते, उन्हें जरूरत से ज्यादा छूट दे देते हैं या फिर जो घर और स्कूल में बुलिंग के शिकार होते हैं, उन किशोरों का स्वभाव हिंसक और उग्र होता है। कई बार परिवार में पैसों की कमी के कारण उपजी हीन भावना भी स्वभाव में हिंसा को बढ़ावा देती है। ऐसे किशोरों को अगर समय पर सही मार्गदर्शन ना मिले, तो वे या तो डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं या फिर अपनी फ्रस्ट्रेशन निकालने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाते हैं।’’ 

दरअसल, आज जरूरत है कि हम यह सोचें कि क्या कुछ गलती हमारी भी है? काउंसलर्स की बातों पर यकीन करें, तो आजकल के माता-पिता को बच्चों से ज्यादा काउंसलिंग की जरूरत है। किसी का सिर्फ एक ही बच्चा है, तो किसी के सिर्फ दो। माता-पिता का तर्क होता है कि सिर्फ एक ही तो बच्चा है, इसे लाड़ नहीं करेंगे, तो किसे करेंगे, और हमारा कौन है। इस वजह से बच्चे पहले जिद्दी, फिर आत्मकेंद्रित, फिर गुस्सैल और फिर उग्र व हिंसक बनते है। पेरेंट्स को यह समझना होगा कि उनका जरूरत से ज्यादा फ्रेंडली व्यवहार बच्चों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। आग में तपे बिना सोना कभी कुंदन नहीं बन सकता। फिर भला बिना संघर्ष के आनेवाली पीढ़ी कैसे निखरेगी। आज आलम यह है कि स्कूल में टीचर अगर बच्चे को एक थप्पड़ मार दें, तो पेरेंट्स लड़ने पहुंच जाते हैं। 10 साल के बच्चे को यह पता है कि कोई अध्यापक स्कूल में बच्चों पर हाथ नहीं उठा सकता। 

सिखाएं एंगर मैनेजमेंट 

अब वह समय है कि किशोर बच्चों को एंगर मैनेजमेंट यानी गुस्से पर काबू करने के तरीके वैसे ही सिखाए जाएं, जैसे आप छोटे बच्चों को उंगली थाम कर चलना सिखाते हैं। आपकी मदद के लिए बाल मनोविज्ञानी कुछ टिप्स दे रहे हैं- 

- अपने बच्चों के साथ दिन में थोड़ा समय जरूर बिताएं। इस दौरान गैजेट्स और टीवी अॉफ रखें। बातचीत लेक्चर की तरह ना हो, इसका ध्यान रखें। 

- अपनी भावनाअों पर काबू कैसे रखा जाए और गुस्से में रिएक्ट करने से पहले उसे दबाने की कोशिश कैसे करें, यह भी उन्हें समझाएं। 

- पंचतंत्र की कहानियां और बचपन के किस्से सुनाएं, जब आपने किसी दोस्त के साथ समझदारी से अपना झगड़ा सुलझाया हो।

- पेरेंट्स को बच्चों के लिए खुद भी रोल मॉडल बनना होगा। जरा-जरा सी बात पर गुस्सा आपको भी आता हो, तो पहले खुद को सुधारें। 

- किशोर अगर उग्र होता जा रहा है, तो उसके व्यवहार का कारण पता करें। कहीं स्कूल में कोई उसे बुली तो नहीं कर रहा है, या फिर वह किसी प्रकार की हीन भावना का शिकार तो नहीं हाे रहा। 

- गुस्से को काबू करने के तरीके भी किशोरों को सिखाने जरूरी हैं। आप कह सकते हैं कि जब भी गुस्सा आए, मुटि्ठयां भींचने का मन करे, दिमाग की नसें फड़कने लगे, तो वह चीखने-चिल्लाने से पहले लंबी गहरी सांस ले, 1-20 तक गिनती गिने। आप अपना भी उदाहरण उसे दे सकती हैं, कि जब आपको गुस्सा आता है, तो आप घर की सफाई करती हैं, कुकिंग करती हैं या म्यूजिक सुनती हैं।

- दोस्तों के साथ अगर उसकी ज्यादा मार-पिटाई होने लगी है, तो उसे कुछ दिनों के लिए उन दोस्तों से अलग रखें, बेवजह उलझनेवाले दोस्तों को इग्नोर करने की सलाह दें। 

- अगर आपके किशोर का गुस्सा जरूरत से ज्यादा बढ़ने लगे, तो किसी काउंसलर से सलाह लेने में कोई बुराई नहीं है।