Friday 19 March 2021 11:39 AM IST : By Nishtha Gandhi

बच्चे अगर ऑनलाइन ज्यादा समय बिता रहे हों, तो पेरेंट्स कैसे रहें सचेत

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बात आज से 10 साल पहले की करें, तो उस समय अपने बच्चों को कंप्यूटर के आगे बैठे देख किसी भी माता-पिता को गर्व और खुशी होती, पर आज जब बच्चे कंप्यूटर के आदी होते जा रहे हैं, तो वह वाकई चिंता का विषय है। कुछ समय पहले हुए एक सर्वे में यह बात सामने आयी कि ज्यादातर भारतीय पेरेंट्स सोशल नेटवर्किंग के खतरों से अनजान हैं।

एक नजर आंकड़ों पर

मैकेफी द्वारा कराए गए इस सर्वे की मानें, तो भारत में किशोर रोजाना अपने खाली समय में से 86 प्रतिशत समय फेसबुक पर और 54 प्रतिशत समय टि्वटर पर बिताते हैं। यह भी गौरतलब है कि 13 वर्ष और उससे ज्यादा उम्र वाले 97 प्रतिशत किशोरों का फेसबुक पर अकाउंट है। ये लोग ऐसी साइटों पर नए-नए लोगों से दोस्ती करते हैं। अपने घर का पता, मोबाइल नंबर शेअर करते हैं और अपनी तसवीरें पोस्ट करते हैं। इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर तमाम तरह के अश्लील वीडियो और लिंक्स शेअर किए जाते हैं, जिनमें पोर्नोग्राफी और नॉनवेज जोक्स के लिंक्स भी शामिल हैं।

लगातार ऑनलाइन रहने के कारण ये साइबर क्राइम और साइबर बुलिंग के शिकार हुए हैं और अधिकांश के माता-पिता को इसकी जानकारी नहीं होती। अगर और विस्तार से देखा जाए, तो हर चार में से एक किशोर साइबर बुलिंग का शिकार है और इस कारण वे गुस्से और अवसाद के शिकार हो जाते हैं।

अब जरा एक नजर इस पर भी डाल लीजिए कि पेरेंट्स का इस बारे में क्या कहना है। लगभग 53 प्रतिशत पेरेंट्स का कहना है उनके यह जानने का समय ही नहीं है कि उनके बच्चे ऑनलाइन क्या कर रहे हैं। इसी तरह से 60 प्रतिशत से ज्यादा माता-पिता ने यह स्वीकार किया उनके टीनएजर बच्चे उनसे ज्यादा टेक सेवी हैं, जिसके कारण वे यह जान ही नहीं पाते कि बच्चे इंटरनेट पर क्या कर रहे हैं। पर उन्हें इस बात की भी चिंता जरूर रहती है कि बच्चे नेट पर क्या देख रहे हैं।

दिल्ली के एक निजी स्कूल में पांचवीं कक्षा में पढ़नेवाले अनिकेत बंसल (नाम परिवर्तित) ने अपना फेसबुक अकाउंट 10 साल की उम्र में बना लिया था। हालांकि यह अकाउंट खोलने के लिए उसे अपनी उम्र बढ़ा कर लिखनी पड़ी, पर क्या फर्क पड़ता है। उसकी क्लास के लगभग सारे बच्चों का फेसबुक पर अकाउंट है। पूछने पर वह बताता है कि छुटि्टयों में और स्कूल से घर आने पर वह अपने दोस्तों के साथ चैट करता है, गेम्स खेलता है है, पर यह भी सोचनेवाली बात है कि यह सब वह अपनी मम्मी के सामने नहीं करता। अनिकेत जैसे बच्चों की आज हमारे यहां कमी नहीं है। यह वह उम्र है, जब बच्चों को किसी चीज की पूरी समझ नहीं होती, पर वे अपने आपको समझदार मानते हैं। आज पेरेंट्स अपने बच्चों को काउंसलर के पास इसलिए ले जाते हैं कि उनके बच्चे सारी रात ऑनलाइन रहते हैं, जिसका बुरा असर उनके स्वास्थ्य और पढ़ाई दोनों पर पड़ता है। पेरेंट्स की शिकायत होती है कि बच्चे उनकी बात नहीं मानते और बच्चे इस बात पर गुस्सा रहते हैं कि मम्मी-पापा बेवजह हमारी लाइफ में दखलंदाजी कर रहे हैं। आखिर ऑनलाइन रहने में नुकसान ही क्या है। मनोवैज्ञानिक दीपक गुप्ता का मानना है, ‘‘यह स्थिति वाकई खतरनाक है। एक 13-14 साल के किशोर की सोच बिलकुल अलग होती है। वे फास्ट लाइफ में विश्वास करते हैं। सब कुछ बहुत जल्दी और अभी चाहिए। उनकी निर्णय लेने की क्षमता विकसित होने की स्थिति में होती है, पूरी तरह विकसित नहीं हुई होती। उनके साथ डांट-डपट करना उन्हें कई कुंठाअों का शिकार बना सकता है और यह भी जरूरी नहीं कि वे आपकी बात मान ही लें। हो सकता है कि वे आपसे छिप-छिप कर इंटरनेट सर्फ करने लगें। इसलिए आपको उनके जितना या उनसे ज्यादा स्मार्ट बनना होगा। बेहतर है कि उन पर रोकटोक करने के बजाय उनके साइबर संसार में आप भी शामिल हो जाएं । उन्हीं से पूछें कि फेसबुक और टि्वटर अकाउंट कैसे बनाया जाता है। उन्हें अपनी फ्रेंड लिस्ट में शामिल करें, ताकि आप उन पर नजर रख सकें।’’

स्मार्ट पेरेंट्स बनने के 8 तरीके

- बच्चे का दिन प्लान करें। उसे इतना बिजी कर दें कि इधर-उधर ना भटके। पढ़ाई के अलावा उसमें कोई हॉबी विकसित करें। इसके लिए आपको बच्चे को पर्याप्त समय देना होगा और उसकी हॉबी में खुद भी रुचि लेनी होगी।

- दिनभर आप घर से बाहर रहते हैं, तो रात का खाना साथ खाएं। बच्चा बातों-बातों में कई बातें आपसे शेअर कर लेगा। अगर आपको बाहर भी जाना है, तो भी उसके साथ सूप पिएं। अपने भी अच्छे-बुरे अनुभव उसके साथ बांटें।

- बच्चे के दोस्त बन कर रहें। उसके साथ ऐसा रिश्ता बनाएं कि आप उसे आप पर विश्वास हो वह आपसे कुछ ना छिपाए।

- बच्चे से पूछताछ करने से बेहतर है कि उस पर अपने तरीके से नजर रखी जाए जैसे कभी अचानक उन्हें स्कूल से लेने जाना, उन्हें बिना बताए ऑफिस से जल्दी घर लौट आना, कभी अपना फोन खराब होने का बहाना बना कर उनका फोन इस्तेमाल करना, उनके साथ इंटरनेट सर्फ करना। इस तरह उन्हें एक डर बना रहेगा और वे कोई गलत काम नहीं करेंगे।

- भूल कर भी उनके दोस्तों की बुराई ना करें। इस उम्र में बच्चे दोस्तों के प्रभाव में ज्यादा रहते हैं, इसलिए उनके खिलाफ कुछ सुनना पसंद नहीं आता। जो दोस्त आपको नापसंद हो, उसके साथ अपने टीनएजर बच्चे को अकेला ना जाने दें।

- आजकल ऐसे कई एप्स और इंटरनेट फिल्टरिंग सॉफ्टवेअर्स मौजूद हैं, जिनसे आप आपत्तिजनक वेबसाइट्स को लॉक कर सकते हैं। यह तय कर सकते हैं कि बच्चा नेट पर कौन-कौन सी वेबसाइट देखेगा। इस तरह के एप्स उसके फोन में डाउनलोड करें।

- अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे को हर समय ऑनलाइन रहने का एडिक्शन हो गया है, तो उसके साथ डांट-डपट करने के बजाय फोन का नोटिफिकेशन ऑफ करने को कहें। इस तरह से वह हर दूसरे मिनट में फोन उठा कर चेक नहीं करेगा।

- बच्चे ज्यादातर रात में फोन और लैपटॉप से चिपके रहते हैं। बेडरूम में फोन नहीं रहेगा, यह नियम भी घर में बनाएं। लेकिन ध्यान रहे कि यह नियम आप पर भी लागू होगा।

कैसे जानें बच्चा साइबर बुली है

- वह कमरे में अकेले बैठ कर फोन या लैपटॉप पर समय बिताता है और किसी को आते देख कर स्क्रीन ऑफ कर देता है।

- अगर सबके बीच बैठ कर ऑनलाइन रहता है, तो बार-बार चेक करता है कि कहीं कोई उसका फोन देख तो नहीं रहा।

- अगर कोई फोन को हाथ लगा ले, उससे पूछे बिना कंप्यूटर ऑन कर ले, तो बहुत ज्यादा गुस्सा हो जाता है। अकसर साइबर बुली बच्चे दोस्तों और रिश्तेदारों से अपने सोशल मीडिया अकाउंट के बारे में बात करने से कतराते हैं।

- उसने सोशल मीडिया पर एक से ज्यादा नामों से अकाउंट बना रखे हैं। अचानक उसके व्यवहार में परिवर्तन आने लगता है और वह बात-बात में गुस्सा हो जाता है।

पुणे की अध्यापिका अनिंदिता मिश्रा, जो टीनएजर्स और अभिभावकों को इंटरनेट के खतरों के प्रति सचेत करनेवाली मुहिम का हिस्सा हैं, का कहना है कि आप बच्चों को सिर्फ यह कह सकते हैं कि फलां साइट मत देखो या इससे तुम्हें नुकसान हो सकता है, पर उन पर 24 घंटे नजर रखना संभव नहीं है। ऐसे में बेहतर है कि उनके साथ इस तरह की रिलेशनशिप बनायी जाए कि वे आपसे खुल कर हर बात शेअर करें। चाहें, तो अपनी टीनएज की कोई शैतानी बताते हुए इस बात पर जोर दें कि आपने वह बात अपने मम्मी या पापा से शेअर की। इस तरह से बच्चों के दिल का डर भी दूर होगा और वे भी आपसे बेहतर तरीके से खुल सकेंगे।’’