Thursday 27 July 2023 04:03 PM IST : By Nishtha Gandhi

बच्चों को रिश्तेदारों से मिलवाएं सोशल स्किल्स सिखाएं

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अगर कोई टाइम मशीन आपको मिल जाए, तो आप अपने जीवन के किस दौर में जाना चाहेंगे? हम जानते हैं कि इस सवाल के जवाब में 90 प्रतिशत लोगों का जवाब होगा कि वे बचपन के जमाने को फिर से जीना चाहेंगे, जब वे गरमी की छुटि्टयों में कजिंस के साथ खूब धमाचौकड़ी किया करते थे। छत पर लेटे हुए तारों को गिनना और ध्रुवतारा देखने का दावा करना, कमरे में गद्दे बिछा कर किराए पर वीसीआर ला कर एक के बाद एक फिल्में देखना, दोपहर में घर के आंगन में पत्थर उठा कर स्टापू, पकड़म-पकड़ाई खेलना, फर्श पर गोल घेरा बना कर बैठना और एक जैसी थालियों में खाना खाना, ना जाने बचपन की ऐसी कितनी ही सुहानी यादें हमारे पास हैं, जो आजकल के बच्चों के पास नहीं हैं।

फरीदाबाद के मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. जया सुकुल का कहना है, ‘‘कजिंस और एक्सटेंडेड फैमिली बच्चों को खुशमिजाज बनाती है। इससे बच्चों को एक्सपोजर मिलता है। जब वे किसी और फैमिली के रहने का तौर-तरीका देखते हैं, तो वे अपने माता-पिता और परिवार के रहनसहन की आपस में तुलना करते हैं। इससे उनकी सोच खुलती है। इस बात का अहसास भी होता है कि हमें दूसरों की तुलना में कितनी सुविधाएं मिल रही हैं। बच्चे जब दूसरे परिवार से घुलतेमिलते हैं या फिर उनके साथ समय बिताते हैं, तो यह भी समझते हैं कि कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते। अलग-अलग लोगों का अलग व्यवहार होता है। इससे बच्चों के मन में हर तरह के लोगों के साथ सामंजस्य बैठाने की भावना विकसित होती है। वैसे भी 10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल व फैमिली इंटरेक्शन बेहद जरूरी होता है। इससे उनकी पर्सनेलिटी डेवलपमेंट में बहुत मदद मिलती है। आजकल न्यूक्लियर फैमिलीज में एक या दो ही बच्चे होते हैं। पिछले 2 सालों से बच्चों में अकेलेपन की वजह से एंग्जाइटी, चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन, पर्सनेलिटी डिसअॉर्डर जैसी दिक्कतें बहुत ज्यादा देखी जा रही हैं। ऐसे बच्चे अकेलेपन की वजह से उपेक्षित महसूस करते हैं, उन्हें लगता है कि वे अपनी बात किसी से शेअर नहीं कर सकते। इस उम्र के बच्चे अपने इमोशंस ना तो ठीक तरह से व्यक्त कर सकते हैं, और ना ही उन्हें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना आता है।’’

स्मार्ट बनाते हैं रिश्ते

साफ है कि परिवार और रिश्तेदारों की एक व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसे हम धीरे-धीरे खुद ही अपने जीवन से गायब करते जा रहे हैं। जरा सोचें, हम अपने बच्चों को क्या दे रहे हैं। ना ही रिश्ते और ना ही यादें। आजकल के बच्चे साइबर स्मार्ट बेशक हों, लेकिन स्ट्रीट स्मार्ट नहीं हैं। यानी उनमें व्यावहारिकता ना के बराबर है। शेअरिंग, एडजस्टमेंट, डिसिप्लीन, लाइफ स्किल्स के नाम पर आजकल के बच्चे लगभग जीरो ही हैं। ये सब चीजें माता-पिता घुट्टी में घोल कर नहीं पिला सकते, बल्कि हमउम्र भाई-बहन ही सिखाते हैं। लेकिन बात जब छुटि्टयों की बोरियत दूर करने की आती है, तो हमें फैंसी रिजॉर्ट और हिल स्टेशन ही याद आते हैं। पढ़ाई के लिए भी अगर किसी दूसरे शहर में जाना हो, तो हम अपने बच्चे को किसी रिश्तेदार के घर नहीं छोड़ते। हमें लगता है कि पता नहीं वे हमारे बच्चे के साथ कैसा सुलूक करेंगे। यानी हम खुद ही बच्चे के दिमाग में चाचा, ताऊ, बुआ, फूफा, मामा-मामी की खराब इमेज बना रहे हैं। हमें लगता है कि हमारा बच्चा किसी और की मरजी से उठेगा-बैठेगा, खाएगा-पिएगा, तो उसे असुविधा होगी। लेकिन हम यह नहीं समझ पाते कि यही असुविधा उसे आनेवाले जीवन की बड़ी चुनौतियों के लिए तैयार करती है। मनचाहा ना मिलने पर शांत रहना, किसी और के बनाए डिसिप्लीन का पालन करना, थोड़ा सा एडजस्ट करना, वे काम करना, जो खुद को पसंद ना होते हुए भी करने पड़ रहे हैं, अपने गुस्से और भावनाओं के उठते ज्वार को काबू में रखना, ऐसी खूबियां हैं, जो बच्चे तभी सीख पाते हैं, जब वे घर के सुरक्षात्मक घेरे को तोड़ कर बाहर निकलते हैं। अगर बचपन से ही हम उन्हें ऐसी परिस्थितियों में डालेंगे, तो वे बड़ी आसानी से ये सब सीख लेंगे। जबकि बड़े होने पर अगर उन्हें इस तरह की एडजस्टमेंट करनी पड़ती हैं, तो उनके लिए बेहद मुश्किलभरा काम होता है। नतीजतन फ्रस्ट्रेशन में युवा आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।

और भी हैं फायदे

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ऐसा नहीं है कि रिश्तेदारों से मिलना सिर्फ बच्चों को सोशल स्किल्स ही सिखाता है, बल्कि यह हर किसी के लिए फायदेमंद है। आजकल लॉन्ग वीकेंड तक में तमाम हिल स्टेशंस पर लोगों का हुजूम उमड़ जाता है। घंटों का जाम लगता है, ना ठहरने के लिए होटल मिलता है और ना ही आप ठीक से घूम पाते हैं। खाना-पीना भी पर्यटकों की भीड़ की वजह से बहुत महंगा हो जाता है। तो क्यों ना इस मुसीबत में फंसने के बजाय अपने रिश्तों को फिर से जिंदा बनाएं। दूर-पास के रिश्तेदार, जिनसे आपका मन मिलता हो, उनके घर जाएं, उन्हें अपने घर बुलाएं और साथ में अच्छा समय गुजारें। आपसी रिश्ते मजबूत होंगे, तो अकेलापन भी महसूस नहीं होगा। लेकिन कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें-

- जिनके घर आप जा रहे हों, उनकी सुविधा का भी ध्यान रखें। ऐसा ना हो कि आपका दिमाग तो फ्रेश हो जाए, लेकिन वे थक जाएं।

- यह आना-जाना दोतरफा होना चाहिए। जिनके घर आप गए हों, उन्हें भी जरूर अपने घर बुलाएं और वैसी ही खातिरदारी करें, जैसी आपको मिली थी।

- अगर वर्किंग कपल्स के घर जाना हो, तो उनके रुटीन का ध्यान रखें। हो सकता है कि छुट्टीवाले दिन वे खाना बाहर से खाते हों या बच्चों को हॉबी क्लासेज ले जाते हों, जाने से पहले ये सारी बातें पता कर लें।

- बच्चों को किसी के घर ले जाने से पहले यह समझाएं कि वे वहां जा कर बदतमीजी ना करें और ना ही खाने-पीने की कोई चीज मांगें। इस तरह से बच्चे डिसिप्लीन सीखते हैं।

- अगर उनके घर खाना खाने जा रहे हैं, तो खाना सर्व करने में मदद कर सकते हैं।