Tuesday 04 June 2024 01:36 PM IST : By Nishtha Gandhi

यौन शोषण के दर्द से उबरने में बच्चों की मदद करती है आर्ट थेरैपी

art-therapy-1

कला के माध्यम से आप जहां अपनी मनोभावनाओं को अभिव्यक्त कर सकती हैं, वहीं यह अपनी खुद की मनोस्थिति को समझने में भी आपकी मदद करता है। इसके द्वारा आप किसी बुरी लत से छुटकारा पा सकते हैं, भावनाओं पर काबू करना सीखते हैं, खोया आत्मविश्वास वापस पा लेते हैं, यहां तक कि यौन शोषण के दर्द से उबरने में भी आर्ट थेरैपी बहुत मददगार है। यह जरूरी नहीं कि आपको इस थेरैपी का फायदा तभी मिलेगा, जब आपको आर्ट की जानकारी होगी। यह एक तरीका है अपनी मनोभावनाएं व्यक्त करने का। आपके द्वारा खींची गयी आड़ी-तिरछी लाइनें देख कर भी कोई प्रोफेशनल आपकी मनोस्थिति का अंदाजा लगा सकता है। उसी के आधार पर आपका ट्रीटमेंट और काउंसलिंग किए जाते हैं। कई अध्ययनों में यह सिद्ध हो चुका है कि सामान्य व्यक्ति भी अगर तनाव में हो, तो ड्रॉइंग और कलरिंग करने से उसका माइंड रिलैक्स होता है। इसके अलावा संगीत और डांस भी दिमाग पर पॉजिटिव असर डालते हैं।

इस क्षेत्र में काम करने वाले एक्सपर्ट्स का मानना है कि म्यूजिक, डांस और आर्ट, ये तीनों तरीके ही आर्ट थेरैपी का हिस्सा हैं। म्यूजिक थेरैपी में वाद्य यंत्र बजाना, गाना सुनना और गाना शामिल हैं, वहीं डांस थेरैपी में विभिन्न मुद्राओं की मदद से शरीर की मूवमेंट करायी जाती है। डांस और म्यूजिक के दौरान शरीर में एंडोर्फिन नाम के हारमोन का स्राव होता है, जो आपको खुश और स्वस्थ महसूस करवाता है। मिट्टी की मूर्तियां बनाना भी इसी थेरैपी का हिस्सा है। ना सिर्फ किसी बीमारी के इलाज के लिए, बल्कि काम का तनाव दूर करने के लिए भी लोग इस थेरैपी की मदद ले रहे हैं, जिसका सकारात्मक असर भी देखने को मिलता है।

आज बाजार में वयस्कों के लिए डिजाइन की गयी ड्रॉइंग बुक भी मिलने लगी हैं और खासतौर से कई आर्टिस्ट तनाव से उबारने के लिए क्ले मॉडलिंग, स्कल्पचर मेेकिंग वर्कशॉप्स का आयोजन भी करने लगे हैं।

भुलाए यौन शोषण का दर्द

दिल्ली के विमहंस अस्पताल में आर्ट थेरैपिस्ट सोनिया भंडारी का कहना है, ‘‘जैसे खाना आपके शरीर के लिए जरूरी है, ठीक वैसे ही कला आपकी आत्मा के लिए जरूरी है। जब आप पेंटिंग, क्ले वर्क जैसा कुछ भी रचनात्मक करते हैं, तो इस दौरान आपकी बॉडी के साथ-साथ दिमाग भी काम करता है। रंगों और चित्रों के माध्यम से व्यक्ति ट्रामा होने पर भी अपने मनोभावों को आसानी से अभिव्यक्त कर लेता है। आर्ट थेरैपिस्ट उन चित्रों में छिपा संदेश समझ कर व्यक्ति की मुश्किल स्थिति से बाहर आने में मदद करता है। जब कोई व्यक्ति हमारे पास थेरैपी के लिए आता है, तो हम उसे पेड़, इंसान जैसे सामान्य चित्र ही बनाने के लिए कहते हैं। व्यक्ति वह चित्र जैसे बनाता है, वह ढंग ही उसके मनोभावों की चुगली कर देता है। अकसर सेक्सुअल एब्यूज के शिकार बच्चे और युवतियां लोगों से बात करने में झिझकते हैं, ऐसे लोग खुद में सिमट जाते हैं और यहां तक कि थेरैपी के शुरुआती 8-10 सेशंस तक वे किसी चीज को छूना भी नहीं चाहते। ऐसे लोग गहरे, पेस्टल रंगों से पेंटिंग करते हैं और अकसर खुद को दोस्तों के साथ बातचीत करते हुए चित्र बनाते हैं। दरअसल, ये लोग लोगों से मिलना-जुलना और अपना हाल बांटना चाहते हैं, लेकिन शरम और झिझक की भावना इन्हें ऐसा करने से रोकती है। इस थेरैपी की मदद से उनका खोया आत्मसम्मान वापस लौटता है और वे जीवन में आगे बढ़ना सीखते हैं। इनके अलावा कैंसर के रोगियों के लिए भी यह थेरैपी फायदेमंद साबित हुई है। युवाओं के मन में दूसरों के सामने अपनी अच्छी इमेज बनाने का प्रेशर होता है, जिसकी वजह से वे डिप्रेशन की गिरफ्त में आ जाते हैं। वहीं बुजुर्गों में असुरक्षा की भावना उम्र के साथ बहुत तीव्र हो जाती है और इस वजह से वे खुद को हर समय बीमार महसूस करते हैं। इन सभी केसेज में आर्ट थेरैपी मददगार रहती है।’’

art-therapy

30 वर्षीय रहमान (बदला नाम) परिवार का बड़ा बेटा था। वह बायोपोलर डिस्ऑर्डर और ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिस्ऑर्डर से ग्रस्त था। जब वह आर्ट थेरैपी के सेशन के लिए आया, तो पेड़ और फूल पत्तियों का चित्र बनाने के लिए भी स्केल मांगता था। डॉ. सोनिया का कहना है कि यह बायोपोलर डिस्ऑर्डर और ओसीडी के लक्षणों में से एक है। इसमें व्यक्ति हर काम परफेक्शन से करना चाहता है। हमने रहमान को पेंटिंग करने के लिए स्टेंसिल्स दिए, जिनकी मदद से वह सुंदर पेंटिंग करता था। थेरैपी के एक-दो सेशंस के बाद ही उसकी स्थिति में सुधार आना शुरू हो गया है। अब वह पेंटिंग के लिए स्केल और स्टेंसिल नहीं मांगता और अब वह आर्ट एंड क्राफ्ट से सुंदर चीजें बनाने लगा है। ओसीडी के पेशेंट्स के लिए क्ले वर्क भी बहुत फायदेमंद है। इससे उनकी घबराहट कम होती है।

वहीं यौन शोषण के शिकार बच्चे और युवतियां क्ले वर्क और मूर्तियां बनाने से डरते हैं। दरअसल, वे किसी चीज को छूने से और शारीरिक रूप से संपर्क बनाने से डरते हैं। लेकिन धीरे-धीरे हम इनके मन का डर दूर करते हैं।

यह थेरैपी ना सिर्फ आपको मानसिक रूप से स्थिर बनाती है, बल्कि भावनात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याएं भी दूर करती है। विदेशों में इस तरह की थेरैपी का काफी क्रेज है। जिन लोगों ने यह थेरैपी ली है, उन्हें अपने जीवन में इससे काफी सकारात्मक बदलाव महसूस हुए। इन लोगों का कहना है कि इस थेरैपी के बाद ना सिर्फ वे अपनी कमजोरियों को जान पाए, बल्कि यह जानने में भी मदद मिली कि उनमें क्या खूबियां हैं। इसके बाद उनके परिवार के साथ संबंध भी बेेहतर बने। मुश्किल परिस्थितियों का सामना कैसे करना है और उनसे बाहर कैसे आना है, यह भी समझने में इस तरह की थेरैपी से मदद मिलती है।

आप भी इस तरह की आर्ट थेरैपी आजमा कर देखें। इसके कई तरीके हैं, जैसे फिंगर पेंटिंग करना, कोलाज बनाना, कठपुतली बनाना, फैमिली ट्री ड्रॉ करना, परिवार के लोगों की मिट्टी की मूर्तियां बनाना, कोई कहानी लिखना या फिर खुद को किसी परी कथा का पात्र बना कर कहानी लिखना आदि।