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क्या आपको याद है अपने बचपन की दीवाली या कोई भी त्योहार जब कई दिन पहले से परिवार का हर छोटा-बड़ा सदस्य त्योहार की तैयारियों में जुट जाता था। घर की रंगाई-पुताई होती थी, बच्चे घर की सफाई करते थे, अपने हाथों से बंदनवार बनाते थे, गेरू और खडि़या से चौक पूरा जाता था, दीवाली की सजावट कैसे होगी, कहां पर दीये जलाए जाएंगे, इन सभी कामों में बच्चे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे।

सिर्फ यही नहीं, होली पर गुजिया और दीवाली पर पूरी-कचौड़ी तलने, भरने जैसे काम भी बच्चे पूरे उत्साह से किया करते थे। उस समय एक ही बड़े घर में चाची, ताई सबके अलग-अलग घर हुआ करते थे। चचेरे भाई-बहनों में होड़ लगी होती थी कि किस के घर का पोर्शन ज्यादा सुंदर लगेगा। कौन इस बार नए तरीके से घर सजाएगा। लेकिन वक्त बदलने के साथ घर की पुताई, सफाई, यहां तक कि डेकोरेशन का जिम्मा भी अर्बन कंपनी जैसे सर्विस प्रोवाइडरों ने ले लिया है और रही बात खाने-पीने की तो घर में बनाने की जगह अब सब कुछ रेडीमेड आने लगा है। लेकिन क्या आपको नहीं लगता है कि अब त्योहारों से वह पर्सनल टच कहीं खो रहा है।

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हमारे पास तो फिर भी बचपन की कुछ यादें हैं, लेकिन आजकल के बच्चों की यादों की पिटारी बिलकुल खाली है। हम अकसर शिकायत करते हैं कि बच्चे अब किसी तरह की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते या फिर घर के किसी काम में हाथ नहीं बंटाते, उनमें सोशल स्किल्स नहीं हैं। पर क्या कभी यह सोचा है कि सोशल स्किल्स सिखाने का कोई क्रैश कोर्स नहीं होता है, यह तो निरंतर अनुभव से सीखने को मिलती हैं। आजकल के बहुत से पेरेंट्स की दिक्कत यह है कि वे अपने बच्चों को ले कर जरूरत से ज्यादा प्रोटेक्टिव हैं। इस वजह से वे बच्चों को आत्मनिर्भर नहीं होने देते। घर के कामों में पहले बच्चों की काफी भागीदारी हुआ करती थी, जो अब ना के बराबर है। इसमें सबसे बड़ा रोल ऑनलाइन सारी सुविधाएं प्रदान करने वाली कंपनियों का भी है। लेकिन इनकी वजह से बच्चे व्यावहारिकता और सोशल स्किल्स के मामले में कच्चे ही रह रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि बच्चों को त्योहार की तैयारियों में शामिल करने से आप उन्हें बहुत सी लाइफ स्किल्स सिखा सकते हैं और वह भी बिना किसी मेहनत के, जानिए कैसे-

सजावट से बनेंगे रचनात्मक

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बच्चों को घर की सजावट जैसे काम दीजिए, इन कामों को करने से उनमें रचनात्मकता बढ़ती है। बहुत सारे काम जैसे रंगोली बनाना, घर में फूलों की मालाएं लगाना, बंदनवार और तोरण टांगना जैसे काम उनमें सौंदर्य बोध भी बढ़ाते हैं। हो सकता है कि शुरुआत में वे इन कामों में रुचि न जगाएं, लेकिन आप उन्हें मोटिवेट करें। अगर आप इन कामों को किसी टास्क या जिम्मेदारी की तरह उन्हें देंगी तो वे कभी भी मन से इन्हें नहीं करेंगे। उन्हें अपने साथ इन्वॉल्व करके ये काम आप करवा सकती हैं। पहली बार खराब बनने वाली रंगोली अगली बार जरूर परफेक्ट बनेगी और वे अपने आप अलग-अलग रंग के फूलों से रंग संयोजन करना भी सीखेंगे।

और भी हैं स्किल्स

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जैसे दीयों में तेल भरना और उन्हें घर में सजाना। अकसर हमें लगता है कि बच्चे दीयों में तेल भरेंगे कम और गिराएंगे ज्यादा। थोड़े से नुकसान के डर से हम उन्हें एक बड़ा काम सिखाने से चूक जाते हैं और यह भी समझ नहीं पाते कि ऐसे कामों से बच्चों में बैलेंसिंग की स्किल्स विकसित होती हैं। छोटे बच्चों की मांसपेशियां और उनकी पकड़ मजबूत होती है। सबसे बड़ी बात है कि वे अपने परिवार, संस्कृति और परंपराओं से जुड़ाव महसूस करते हैं। जो बच्चे अपने परिवार से जुड़े होते हैं, वे संसार के किसी भी कोने में रहें, त्योहारों पर अपने घर लौटने की कोशिश करते हैं। ना भी लौट पाएं तो ये लोग अपने बच्चों को भी ऐसे संस्कार सिखाते हैं।

Happy grandmother with grandson lighting diyas while sitting on chair in illuminated home during Diwali celebration
छोटी-छोटी तैयारियों में बुजुर्गो के साथ शामिल करें बच्चों को

पूजा से आएगी पॉजिटिविटी

पूजा पाठ की तैयारियों जैसे मंदिर साफ करने, मंदिर सजाने, पूजा का सामान लाने से बच्चों का सामान्य ज्ञान बढ़ता है। आज बहुत से बच्चों को यह भी पता नहीं होता कि दीवाली क्यों मनायी जाती है, गणेश पूजन क्यों किया जाता है, यहां तक कि धूप, कपूर और अगरबत्ती जैसी चीजों तक की उन्हें पहचान नहीं होती। ऐसे बच्चे आगे चल कर अपने परिवार में कौन सी परंपरा का पालन करेंगे। हर धर्म का सम्मान करना अच्छी बात होती है, लेकिन बच्चों को अपने धर्म, गोत्र की परंपराओं का पालन करना भी आना चाहिए। पूजा कोई काम या कर्मकांड भर नहीं है, बल्कि यह मन में पवित्रता और सकारात्मकता का संचार करती है। आज के समय में जब मानसिक रोग इतने बढ़ रहे हैं, ऐसे में मंत्र उच्चारण और पूजा पाठ का महत्व बच्चों को समझाना जरूरी है। यह आडंबर नहीं, बल्कि साइंस है। भगवान हमारी मानसिक आवश्यकता है, जो कठिन समय में हमें हिम्मत और साहस देता है। कई रिसर्च में भी यह साबित हुआ है कि मंत्रोच्चारण से ना सिर्फ मन को शांति मिलती है, बल्कि एकाग्रता भी बढ़ती है।

Two girls dancing as they celebrate the festival of Diwali
जब बच्चे खुद को त्योहार का हिस्सा महसूस करेंगे, तभी दिल से एंजॉय करेंगे

वैसे भी त्योहारों का असली मतलब परिवारों को जोड़ना और मिल कर खुशियां मनाना होता है। फिर आप बच्चों को इनसे अछूता क्यों रखती हैं। जब माता-पिता दोनों कामकाजी हों तो सीमित छुटि्टयों की वजह से त्योहार एंजाॅयमेंट कम और थकान ज्यादा देने लगते हैं। लेकिन अगर परिवार के सारे लोग मिलजुल कर त्योहारों का काम बांटेंगे तो ऐसा नहीं होगा और त्योहारों का मजा दोगुना हो जाएगा।

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