Tuesday 19 September 2023 12:05 PM IST : By Nishtha Gandhi

क्या आपका बच्चा है स्पेशल चाइल्ड

1812406129

मम्मी-पापा बनना हर कपल के लिए जिंदगी का सबसे खुशी का अनुभव होता है। उस पर आज सोशल मीडिया का दौर है, जिसमें सेलेब्रिटीज की तरह हर कपल प्रेगनेंसी और उससे जुड़े अनुभवों व तसवीरों को साझा करते रहते हैं। लेबर रूम में डिलीवरी की लाइव स्ट्रीमिंग या वीडियो रेकॉर्डिंग की जाती है। बच्चे के जन्म के बाद उसके माइलस्टोंस को फ्रेंड्स के साथ शेअर किया जाता है। ऐसे में अगर बच्चे को कोई हेल्थ प्रॉब्लम हो, तो पेरेंट्स के लिए बहुत बड़े ट्रॉमा जैसी स्थिति हो जाती है। ऐसा नहीं है कि जो कपल्स सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव नहीं रहते, उन पर बच्चे की हेल्थ कंडीशन का कोई असर नहीं पड़ता। बच्चा अगर किसी भी तरह की तकलीफ में हो, तो पेरेंट्स के लिए इससे बड़े दुख की बात हो ही नहीं सकती। कोई बीमारी या खास मेडिकल कंडीशन होने पर हम उसके इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ते, लेकिन अगर बच्चा मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम हो, तो परिवार के लिए उसे स्वीकार करना मुश्किल हो जाता है। घर में जब कोई बच्चा किसी तरह की अक्षमता का शिकार होता है, तो सबसे पहले परिवार के लोग अपने भाग्य को कोसना शुरू कर देते हैं। भारतीय घरों में तो कई तरह के अंधविश्वासों का भी हमेशा से पालन किया जाता रहा है, जिनकी वजह से मां को भी कई तरह के आरोपों का सामना करना पड़ता है। पुणे के लेक्सिकन रेनबो थेरैपी एंड चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर की हेड और सीनियर ऑक्यूपेशनल थेरैपिस्ट डॉ. ईशा सोनी बताती हैं कि अकसर ऐसे केसेज में पेरेंट्स को सबसे ज्यादा समझदारी और पेशेंस दिखाने की जरूरत होती है, लेकिन कई बार स्थिति इसके बिलकुल उलट होती है। पेरेंट्स और परिवार की मनोस्थिति ज्यादातर इस तरह की होती है-

- वे इस स्थिति या बच्चे की बीमारी को स्वीकार नहीं कर पाते।

- एक डॉक्टर के डायग्नोसिस पर विश्वास नहीं होता, जिसकी वजह से वे कई डॉक्टरों के पास चक्कर काटना शुरू कर देते हैं। उन्हें लगता है कि डॉक्टर बच्चे की स्थिति ठीक से समझ नहीं पाए। इस चक्कर में इलाज शुरू होने में देरी होती है।

- परिवार के बुजुर्गों की बातों में आ कर इलाज नहीं करवाते। अकसर बुजुर्गों को यह लगता है कि डॉक्टर तो सिर्फ पैसे बनाने के लिए जबर्दस्ती की बीमारी का बहाना बनाते हैं। जबकि कुछ बच्चे देर से बोलना व चलना शुरू करते हैं। उनके पास अपनी बात साबित करने के लिए कई उदाहरण तक होते हैं। उनका प्रेशर इस हद तक बढ़ जाता है कि बच्चे के माता-पिता तनाव में आ कर कोई निर्णय नहीं ले पाते।

डॉ. ईशा सोनी का कहना है, ‘‘बच्चे में किसी भी तरह की डिसएबिलिटी है, तो सबसे पहले पेरेंट्स को इस बात को खुले दिल से स्वीकार करना होगा। बेवजह की कंफ्यूजन में पड़ कर वे सिर्फ इलाज में देरी ही करते हैं। समय रहते इलाज व थेरैपी शुरू करने पर बच्चे को काफी फायदा हो सकता है।’’

कैसे करें शुरुआत

- क्या वह शारीरिक रूप से अक्षम है या फिर मानसिक या व्यवहार संबंधी परेशानी है। कुछ समस्याएं जैसे तुतलाना, हकलाना, भैंगापन, डिसलैक्सिया, लेजी आई सही इलाज और थेरैपी से या तो पूरी तरह या फिर काफी हद तक ठीक हो जाते हैं।

- बच्चे की समस्या की पहचान करके अपने आसपास किसी अच्छे डॉक्टर व थेरैपिस्ट की तलाश करें। आजकल कई मोबाइल एप्स पर आपको इन डॉक्टर्स की क्वाॅलिफिकेशन और एक्सपीरिएंस से जुड़ी सारी जानकारी व पेशेंट्स का फीडबैक आराम से मिल जाता है। इसे पढ़ कर ही डॉक्टर का चुनाव करें।

- जब भी आप थेरैपिस्ट के पास जाएं, तो उनसे बच्चे की समस्या व ट्रीटमेंट से जुड़े सवाल पूछने से ना कतराएं। अगर थेरैपिस्ट आपके बच्चे की जरूरत के हिसाब से ट्रीटमेंट करने के बजाय यह सोच रखता है कि ऐसी समस्यावाले सारे बच्चों पर एक ही थेरैपी काम करेगी, तो उसे बदल डालें। हर बच्चे का थेरैपी के प्रति रिस्पॉन्स अलग होता है। उसी के हिसाब से ट्रीटमेंट होना चाहिए।

- हो सकता है कि आप ऐसे कई लोगों के संपर्क में आएं, जिनके बच्चाें की समस्या आपके बच्चेवाली ही हो। उनसे बातचीत करके जानकारी जरूर लें, लेकिन यह ना सोचें कि सब पर एक ही तरीका काम करेगा। हर बच्चा अलग होता है।

- कुछ बच्चे थेरैपीज या इलाज शुरू होते ही अच्छा रिस्पॉन्स देने लगते हैं, लेकिन कुछ स्लो होते हैं। अगर आपका बच्चा स्लो है, दूसरे बच्चों के मुकाबले वह देर से सीखता है, तो धैर्य ना खोएं।

- स्पेशल चाइल्ड के केस में इंटरनेट से पढ़ कर या दूसरों से सुन कर कोई फास्ट रिस्पॉन्स मेथड ना अपनाएं। इससे बच्चे को नुकसान हो सकता है। ना ही सुने-सुनाए टोने-टोटकों या नीम-हकीमों के चक्कर में पड़ें। बहुत से लोग मिर्गी के दौरों के इलाज के लिए झाड़ा लगवाने या ओझा-तांत्रिकों के फेर में पड़ कर बच्चे की जिंदगी बर्बाद कर देते हैं। जबकि नियमित इलाज और दवाई खाने से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।

- बतौर पेरेंट्स आप भी अपनी जानकारी समय-समय पर अपडेट करते रहें। इसके अलावा यह भी नोट करें कि किस स्थिति में बच्चा कैसे बिहेव करता है। क्या वह अपने जैसे बच्चों के साथ ज्यादा खुश रहता है या फिर नॉर्मल बच्चों के साथ। नए लोगों से मिलने पर उसका बर्ताव क्या रहता है, उसकी पसंद-नापसंद क्या है। कौन सी चीज उसे डराती है और किस चीज से वह खुश होता है। इसे समय-समय पर बच्चे के थेरैपिस्ट के साथ शेअर करें। इससे उन्हें
मदद मिलेगी।

- आमतौर पर ऐसे बच्चों को अपने पीअर ग्रुप में हंसी का पात्र बनना पड़ता है। इसकी वजह से बच्चा अकेलापन और आत्मविश्वास में कमी का सामना कर सकता है। इसलिए जरूरी है कि समय-समय पर आप बच्चे का हौसला बढ़ाते रहें। उसे अकेलापन महसूस ना होने दें।

थेरैपीज कितनी मददगार हैं

कोई भी थेरैपी इस बात पर निर्भर करती है कि बच्चे में किस तरह की डिसएबिलिटी है। शारीरिक, मानसिक, व्यवहार जन्य या भावनात्मक दिक्कतों के लिए अलग-अलग थेरैपीज मौजूद हैं-

ऑक्यूपेशनल थेरैपीः मोटर स्किल्स, एडीएल, सेंसरी डिसएबिलिटी, ग्रिप डेवलपमेंट, हैंडराइटिंग की दिक्कत।

स्पीच एंड लैंग्वेज थेरैपीः यह उन बच्चों को दी जाती है, जिन्हें बोलने में दिक्कत होती है, हकलाते हैं। जो बच्चे बोल नहीं पाते, उनके लिए एएसी यानी ऑल्टरनेटिव ऑगमेंटेटिव कम्यूनिकेशन मेथड का इस्तेमाल किया जाता है।

फीडिंग एंड ओरल प्लेसमेंट थेरैपीः यह थेरैपी उन बच्चों को दी जाती है, जिन्हें खाना चबाने और निगलने में दिक्कत होती है। जो बच्चे खाने को मुंह में डाल कर चबाने और निगलने में सामंजस्य नहीं बिठा पाते। जो बच्चे खाने में किसी नयी चीज को एक्सेप्ट नहीं कर पाते, उनके लिए भी यह थेरैपी मददगार है।

बिहेवियर थेरैपीः बच्चों के साथ-साथ पेरेंट्स के लिए भी यह थेरैपी मददगार है। इससे उन्हें ज्यादा बेहतर तरीके से बच्चों के व्यवहार को समझने और पेरेंटिंग का सही तरीका अपनाने में मदद मिलती है। थेरैपी के दौरान थेरैपिस्ट या काउंसलर्स पॉजिटिव रिइंफोर्समेंट तरीकों से बच्चों के व्यवहार में परिवर्तन लाने और उसे सुधारने की कोशिश करते हैं।

रेमेडियल तरीकेः ये बच्चों को पढ़ाने के अलग-अलग तरीके होते हैं। एक्सपर्ट्स बच्चों में किस तरह की डिसएबिलिटी है, उसकी पहचान करते हैं और फिर उसके आधार पर उन्हें पढ़ाते हैं। इसके लिए वे मल्टीसेंसरी रिसोर्स और तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। यानी बच्चों को जो तरीका समझ आता है या फिर उनका जो सेंस ऑर्गन ज्यादा बेहतर काम करता है, उसके अनुरूप ही उन्हें पढ़ाया जाता है।

कैसे करें पहचान

हर माता-पिता को इस बात पर नजर रखनी चाहिए कि उनके बच्चे का सही से विकास हो रहा है कि नहीं। बच्चों की ग्रोथ के लिए कुछ माइलस्टोंस निर्धारित किए गए हैं, इनके बारे में पता करें और गौर करें कि आपके बच्चे ने इन्हें समय रहते पूरा किया है कि नहीं। इसके अलावा कुछ और बातों पर गौर करें-

- वह आई कॉन्टैक्ट करता है कि नहीं।

- बच्चा पोयम सुनाता है, उसे गिनती याद है, अलग-अलग चीजों की पहचान है, जिसमें फल-सब्जियां, वाहनों के नाम और जानवरों के नाम भी शामिल हैं, लेकिन वह आपको मम्मी-डैडी कह कर नहीं बुला पाता है।

- जब आप कहीं बाहर जाते हैं या किसी के घर जाते हैं, तो अजनबियों के बीच में वह बहुत असहज हो जाता है या डरा-सहमा रहता है।

- वह प्ले स्कूल में या पार्क में अपने हमउम्र बच्चों के साथ मिल कर खेल नहीं पाता।

- वह अजनबियों से जरा भी नहीं डरता और किसी अजनबी के बुलाने पर भी उसके साथ चल देता है।